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'''अरुण योगिराज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Arun Yogiraj'', जन्म- [[1983]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध मूर्तिकारों में से एक हैं। भारत में अरुण योगीराज की चर्चा हर ज़ुबान पर है, और हो भी क्यों ना। देशवासियों के रोम-रोम में बसने वाले 'रामलला' ([[राम|भगवान श्रीराम]]) की ऐसी मूर्ति उन्होंने तराशी है, जिसे देखकर हर कोई भावुक है। [[उत्तर प्रदेश]] में [[अयोध्या]] के [[राम मन्दिर, अयोध्या|राम मन्दिर]] की मूर्ति अरुण योगीराज ने ही बनाई है। अरुण वह मूर्तिकार हैं, जिनकी [[प्रधानमंत्री]] [[नरेंद्र मोदी]] भी सराहना कर चुके हैं।
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}}'''अरुण योगीराज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Arun Yogiraj'', जन्म- [[1983]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध मूर्तिकारों में से एक हैं। भारत में अरुण योगीराज की चर्चा हर ज़ुबान पर है, और हो भी क्यों ना। देशवासियों के रोम-रोम में बसने वाले 'रामलला' ([[राम|भगवान श्रीराम]]) की ऐसी मूर्ति उन्होंने तराशी है, जिसे देखकर हर कोई भावुक है। [[उत्तर प्रदेश]] में [[अयोध्या]] के [[राम मन्दिर, अयोध्या|राम मन्दिर]] की मूर्ति अरुण योगीराज ने ही बनाई है। अरुण वह मूर्तिकार हैं, जिनकी [[प्रधानमंत्री]] [[नरेंद्र मोदी]] भी सराहना कर चुके हैं।
==परिचय==
==परिचय==
मूर्तिकार अरुण योगीराज [[कर्नाटक]] के [[मैसूर]] में अग्रहारा के रहने वाले हैं। उनकी कई पीढ़ियाँ इसी काम से जुड़ी हुए हैं। उनके [[पिता]] योगीराज शिल्पी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी ने वाडियार घराने महलों में अपनी कला दिखाई थी। अरुण योगीराज का मैसूर राजा के कलाकारों के परिवार से संबंध है। शुरुआत में वह अपने पिता और दादा की तरह मूर्तिकार नहीं बनना चाहते थे और उन्होंने [[2008]] में मैसूर यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। हालांकि, उनके दादा ने कहा था कि अरुण एक मूर्तिकार ही बनेगा और अंत में वही हुआ। अरुण एक मूर्तिकार बने और ऐसे मूर्तिकार, जिन्होंने साक्षात रामलला ([[अयोध्या]] के [[राम मन्दिर, अयोध्या|राम मन्दिर]] में स्थापित [[राम]] की प्रतिमा) की मूर्ति बनाई।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.jagran.com/news/national-who-is-sculptor-arun-yogiraj-who-made-statue-of-ramlala-for-pran-pratishtha-in-ayodhya-ram-mandir-23633496.html|title=कौन हैं मूर्तिकार अरुण योगीराज?|accessmonthday=15 फ़रवरी|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= jagran.com|language=हिंदी}}</ref>
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अरुण योगीराज के पिता और दादा भी मूर्तिकार रहे हैं। मूर्तिकारों की पाँचवीं पीढ़ी में जन्मे अरुण योगीराज के पूर्वजों को मैसूर राजपरिवार का संरक्षण प्राप्त था। उनके पिता योगीराज शिल्पी अपने पिता बी बसवन्ना शिल्पी की 8 संतानों में से एक थे। अरुण उनके 17 पोते-पोतियों में से एक हैं। अरुण के पिता गायत्री और भुवनेश्वरी मंदिर के लिए कार्य कर चुके हैं। कृष्णा राजा सागर बाँध पर कावेरी की प्रतिमा उनके दादा ने ही बनाई थी। बसवन्ना शिल्पी श्री सिद्धलिंगा स्वामी के छात्रों में से एक थे। सिद्धलिंगा स्वामी ने ही बेंगलुरु के विधान सौधा गुम्बदों को डिजाइन किया है। वो मैसूर राजपरिवार के प्रमुख शिल्पी थे। बसवन्ना ने मात्र 10 वर्ष की आयु में [[1931]] में उनके गुरुकुल में शिक्षा आरंभ की और अगले 25 वर्षों तक वहाँ कड़ा प्रशिक्षण लिया। [[1953]] में वो मठ से बाहर निकले और स्वतंत्र कार्य शुरू किया।
==व्यावसायिक यात्रा==
==व्यावसायिक यात्रा==
अरुण योगीराज की व्यावसायिक यात्रा परंपरा, शिक्षा और उनकी जन्मजात प्रतिभा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का एक आकर्षक मिश्रण है। प्रसिद्ध मूर्तिकारों की पांच पीढ़ियों वाले परिवार में जन्मे अरुण योगीराज ने लगभग यह कर लिया था कि वह बनेंगे तो मूर्तिकार। एमबीए पूरा करने और कॉर्पोरेट जगत में थोड़े समय के लिए कार्य किया और फिर अपनी प्रतिभा को जगाने के लिए मूर्तिकला का आह्वान किया और अयोध्या में रामलला की मूर्ति बनाकर आज [[भारत]] ही नहीं पूरे विश्व में अपना नाम चर्चा में कर लिया। [[2008]] से वह देशभर में कला प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना रहे हैं क्योंकि उनकी बनाई गई मूर्तियाँ हमेशा ही शुर्ख़ियों में रही हैं।
अरुण योगीराज की व्यावसायिक यात्रा परंपरा, शिक्षा और उनकी जन्मजात प्रतिभा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का एक आकर्षक मिश्रण है। प्रसिद्ध मूर्तिकारों की पांच पीढ़ियों वाले परिवार में जन्मे अरुण योगीराज ने लगभग यह कर लिया था कि वह बनेंगे तो मूर्तिकार। एमबीए पूरा करने और कॉर्पोरेट जगत में थोड़े समय के लिए कार्य किया और फिर अपनी प्रतिभा को जगाने के लिए मूर्तिकला का आह्वान किया और अयोध्या में रामलला की मूर्ति बनाकर आज [[भारत]] ही नहीं पूरे विश्व में अपना नाम चर्चा में कर लिया। [[2008]] से वह देशभर में कला प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना रहे हैं क्योंकि उनकी बनाई गई मूर्तियाँ हमेशा ही शुर्ख़ियों में रही हैं।
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[[अयोध्या]] के राम मन्दिर में [[22 जनवरी]], [[2024]] को अरुण योगीराज की ही बनाई हुई बालराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। आज जितना गर्व खुद की कला पर अरुण योगीराज को है, उतनी ही खुशी देश के करोड़ों रामभक्त के अलावा उकी मां को भी है। अरुण योगीराज की मां सरस्वती ने कहा कि "आज मैं बहुत खुश हूँ। काश उसके [[पिता]] जीवित होते तो वे भी बहुत खुश होते। पूरी दुनिया ने मेरे बेटे की कला को आज देखा है"।
[[अयोध्या]] के राम मन्दिर में [[22 जनवरी]], [[2024]] को अरुण योगीराज की ही बनाई हुई बालराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। आज जितना गर्व खुद की कला पर अरुण योगीराज को है, उतनी ही खुशी देश के करोड़ों रामभक्त के अलावा उकी मां को भी है। अरुण योगीराज की मां सरस्वती ने कहा कि "आज मैं बहुत खुश हूँ। काश उसके [[पिता]] जीवित होते तो वे भी बहुत खुश होते। पूरी दुनिया ने मेरे बेटे की कला को आज देखा है"।
====मुख्य प्रतिमाएँ====
[[चित्र:Ram-Murti-Ayodhya.jpg|thumb|250px|अरुण योगीराज द्वारा निर्मित [[राम]] प्रतिमा, [[राम मन्दिर, अयोध्या]]]]
अरुण योगीराज की बनाई गई प्रतिमाओं में शामिल हैं-
*[[इंडिया गेट]], [[दिल्ली]] पर अमर जवान ज्योति के पीछे [[सुभाष चंद्र बोस]] की 30 फीट की मूर्ति
*[[केदारनाथ]] में [[आदि शंकराचार्य]] की 12 फीट ऊँची प्रतिमा
*[[मैसूर]] केचुंचनकट्टे में 21 फीट ऊँची [[हनुमान]] की प्रतिमा
*[[बी. आर. अम्बेडकर|डॉ. बी. आर. अम्बेडकर]] की 15 फीट ऊँची प्रतिमा
*मैसूर में [[रामकृष्ण परमहंस|स्वामी रामकृष्ण परमहंस]] की सफेद अमृतशिला प्रतिमा
*नंदी की छ: फीट ऊँची अखण्ड मूर्ति
*वनशंकरी देवी की छ: फीट ऊँची मूर्ति
*मैसूर के राजा जयचामाराजेंद्र वाडेयार की 14.5 फीट ऊँची सफेद अमृतशिला प्रतिमा
==रामलला की प्रतिमा==
[[29 दिसंबर]], [[2023]] को [[अयोध्या]] के [[राम मंदिर, अयोध्या|राम मंदिर]] के लिए [[राम]] की मूर्ति का चयन मतदान प्रक्रिया के माध्यम से किया गया था। [[कर्नाटक]] के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने श्रीराम की मूर्ति बनाई है। [[मैसूर]] के रहने वाले अरुण योगीराज काफी प्रसिद्ध मूर्तिकारों में से एक हैं, इनका पूरा परिवार ही इसी काम को करता रहा है। उन्होंने भी इसी धरोहर को आगे बढ़ाया और मूर्ति बनाने की कला को पूरे देश में प्रसिद्ध किया। उन्होंने राम मंदिर के लिए भगवान राम की मूर्ति को तैयार किया। अब वही प्रतिमा मंदिर के अंदर लगाई गई है।
==आदि शंकराचार्य की प्रतिमा==
[[चित्र:Adi-Shankaracharya-by-Arun-Yogiraj.jpg|thumb|left|250px|अरुण योगीराज द्वारा निर्मित [[आदि शंकराचार्य]] प्रतिमा, [[केदारनाथ]]]]
[[प्रधानमंत्री]] [[नरेंद्र मोदी]] ने [[5 नवंबर]], [[2021]] को [[उत्तराखंड]] के केदारनाथ धाम में जगद्गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल पर उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया था। दक्षिण से [[हिमालय]] तक की यात्रा करके भारतीय सभ्यता में भक्तिभाव को पुनर्जीवित करने वाले आदि गुरु की इस प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया। 12 फुट की इस पत्थर की प्रतिमा को उन्होंने [[मैसूर]] के सरस्वतीपुरम में गढ़ा। अरुण योगीराज का कहना था कि ये उनके लिए ख़ुशी का क्षण था। कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वो प्रतिमाएँ बनाने के लिए अपने हाथों में औजार उठाएँगे, लेकिन अब उनकी बनाई प्रतिमाएँ [[हिन्दू धर्म]] और [[भारत]] का मस्तक गर्व से ऊँचा करती हैं।<ref>{{cite web |url=https://hindi.opindia.com/miscellaneous/dharma-culture/know-all-about-who-is-sculptor-arun-yogiraj-shankaracharya-statue-kedarnath-other-works-mysore/ |title=9 महीने रोज 15 घंटे काम, दुर्घटना में पिता चल बसे फिर भी पूरी की शंकराचार्य की प्रतिमा|accessmonthday=15 फ़रवरी|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.opindia.com |language=हिंदी}}</ref>
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्य के लिए उन्हें चुना था। अरुण योगीराज का कहना था कि ये एक बड़ी जिम्मेदारी थी। ऐसा इसीलिए, क्योंकि पीएम मोदी की निगरानी में ये सब हो रहा था और वो हर गतिविधि के अपडेट्स लेते थे। पहले उन्होंने 2 फुट का मॉडल तैयार किया था। उन्होंने [[दक्षिण भारत]] में [[शंकराचार्य]] की अन्य प्रतिमाओं को देखा और उनका अध्ययन किया। उन्होंने शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों और अन्य धार्मिक स्थलों के विद्वानों से बात की। पीएमओ ने प्रतिमा कैसी होनी चाहिए ये उन्हें बता दिया था, लेकिन रिसर्च के हिसाब से बदलाव करने की उन्हें पूरी छूट थी। ये प्रतिमा ब्लैक क्लोराइट शीस्ट की ‘कृष्ण शिला’ से बनी है, जिसका उपयोग हजारों वर्षों से होता रहा है। [[कर्नाटक]] के एचडी कोटे से इसे लाया गया था। ये प्रकृति की भीषण मार झेलने में भी सक्षम है। अरुण योगीराज ने 9 महीने रोज 14-15 घंटे की मेहनत की थी।
==सम्मान व पुरस्कार==
==सम्मान व पुरस्कार==
*संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने व्यक्तिगत रूप से अरुण योगीराज की प्रशंसा की थी।
*संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने व्यक्तिगत रूप से अरुण योगीराज की प्रशंसा की थी।
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*अमरशिल्पी जकनाचार्य ट्रस्ट ने सम्मानित किया।
*अमरशिल्पी जकनाचार्य ट्रस्ट ने सम्मानित किया।
*राज्य और राष्ट्रीय कला शिविरों में भाग लिया।
*राज्य और राष्ट्रीय कला शिविरों में भाग लिया।
==निःशुल्क प्रशिक्षण==
अरुण योगीराज ने कई होनहार छात्रों को निःशुल्क प्रशिक्षण भी दिया है। वह बच्चों को क्ले मॉडलिंग और अन्य कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए [[मैसूर]] में ब्रह्मर्षि कश्यप शिल्पकला शाला ट्रस्ट चलाते हैं। उनके दादा बी बासवन्ना शिल्पी को मैसूर महल के शाही गुरु शिल्पी सिद्धांती सिद्धलिंग स्वामी द्वारा प्रशिक्षित किया गया था।


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*[https://www.abplive.com/photo-gallery/news/india-ayodhya-ram-lalla-idol-sculptor-arun-yogiraj-made-many-beautiful-monolithic-stone-murthi-2596770 रामलला की मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज ने बनाई हैं कई मंत्रमुग्ध करने वाली मूर्तियाँ]
==संबंधित लेख==
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05:29, 16 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

अरुण योगीराज
अरुण योगीराज
अरुण योगीराज
पूरा नाम अरुण योगीराज
जन्म 1983
जन्म भूमि मैसूर, कर्नाटक
अभिभावक माता- सरस्वती

पिता- योगीराज शिल्पी

कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र मूर्तिकला
पुरस्कार-उपाधि नलवाड़ी पुरस्कार, 2020

साउथ जोन यंग टैलेंटेड आर्टिस्ट अवार्ड, 2014

प्रसिद्धि मूर्तिकार
नागरिकता भारतीय
मुख्य निर्माण राम प्रतिमा, राम मन्दिर, अयोध्या

आदि शंकराचार्य प्रतिमा, केदारनाथ
भीमराव आम्बेडकर प्रतिमा, मैसूर
सुभाष चंद्र बोस प्रतिमा, इंडिया गेट

अन्य जानकारी अरुण योगीराज ने इंडिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट की मूर्ति बनाई है। इसके अलावा उन्होंने आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई है, जिसकी स्थापना केदारनाथ में की गई है।

अरुण योगीराज (अंग्रेज़ी: Arun Yogiraj, जन्म- 1983) भारत के प्रसिद्ध मूर्तिकारों में से एक हैं। भारत में अरुण योगीराज की चर्चा हर ज़ुबान पर है, और हो भी क्यों ना। देशवासियों के रोम-रोम में बसने वाले 'रामलला' (भगवान श्रीराम) की ऐसी मूर्ति उन्होंने तराशी है, जिसे देखकर हर कोई भावुक है। उत्तर प्रदेश में अयोध्या के राम मन्दिर की मूर्ति अरुण योगीराज ने ही बनाई है। अरुण वह मूर्तिकार हैं, जिनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सराहना कर चुके हैं।

परिचय

मूर्तिकार अरुण योगीराज कर्नाटक के मैसूर में अग्रहारा के रहने वाले हैं। उनकी कई पीढ़ियाँ इसी काम से जुड़ी हुए हैं। उनके पिता योगीराज शिल्पी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी ने वाडियार घराने महलों में अपनी कला दिखाई थी। अरुण योगीराज का मैसूर राजा के कलाकारों के परिवार से संबंध है। शुरुआत में वह अपने पिता और दादा की तरह मूर्तिकार नहीं बनना चाहते थे और उन्होंने 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। हालांकि, उनके दादा ने कहा था कि अरुण एक मूर्तिकार ही बनेगा और अंत में वही हुआ। अरुण एक मूर्तिकार बने और ऐसे मूर्तिकार, जिन्होंने साक्षात रामलला (अयोध्या के राम मन्दिर में स्थापित राम की प्रतिमा) की मूर्ति बनाई।[1]

अरुण योगीराज के पिता और दादा भी मूर्तिकार रहे हैं। मूर्तिकारों की पाँचवीं पीढ़ी में जन्मे अरुण योगीराज के पूर्वजों को मैसूर राजपरिवार का संरक्षण प्राप्त था। उनके पिता योगीराज शिल्पी अपने पिता बी बसवन्ना शिल्पी की 8 संतानों में से एक थे। अरुण उनके 17 पोते-पोतियों में से एक हैं। अरुण के पिता गायत्री और भुवनेश्वरी मंदिर के लिए कार्य कर चुके हैं। कृष्णा राजा सागर बाँध पर कावेरी की प्रतिमा उनके दादा ने ही बनाई थी। बसवन्ना शिल्पी श्री सिद्धलिंगा स्वामी के छात्रों में से एक थे। सिद्धलिंगा स्वामी ने ही बेंगलुरु के विधान सौधा गुम्बदों को डिजाइन किया है। वो मैसूर राजपरिवार के प्रमुख शिल्पी थे। बसवन्ना ने मात्र 10 वर्ष की आयु में 1931 में उनके गुरुकुल में शिक्षा आरंभ की और अगले 25 वर्षों तक वहाँ कड़ा प्रशिक्षण लिया। 1953 में वो मठ से बाहर निकले और स्वतंत्र कार्य शुरू किया।

व्यावसायिक यात्रा

अरुण योगीराज की व्यावसायिक यात्रा परंपरा, शिक्षा और उनकी जन्मजात प्रतिभा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का एक आकर्षक मिश्रण है। प्रसिद्ध मूर्तिकारों की पांच पीढ़ियों वाले परिवार में जन्मे अरुण योगीराज ने लगभग यह कर लिया था कि वह बनेंगे तो मूर्तिकार। एमबीए पूरा करने और कॉर्पोरेट जगत में थोड़े समय के लिए कार्य किया और फिर अपनी प्रतिभा को जगाने के लिए मूर्तिकला का आह्वान किया और अयोध्या में रामलला की मूर्ति बनाकर आज भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपना नाम चर्चा में कर लिया। 2008 से वह देशभर में कला प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना रहे हैं क्योंकि उनकी बनाई गई मूर्तियाँ हमेशा ही शुर्ख़ियों में रही हैं।

बनाई हैं कई मूर्तियाँ

अरुण योगीराज ने सिर्फ रामलला की ही मूर्ति नहीं बनाई है, बल्कि उन्होंने इससे पहले कई और भी मूर्तियां बनाई हैं, जिसके लिए उनकी तारीफ भी की गई है। अरुण योगीराज ने इंडिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट की मूर्ति बनाई है। इसके अलावा उन्होंने आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई है, जिसकी स्थापना केदारनाथ में की गई है। उन्होंने मैसूर में स्थापित हनुमान की 21 फीट की मूर्ति भी बनाई है।

अयोध्या के राम मन्दिर में 22 जनवरी, 2024 को अरुण योगीराज की ही बनाई हुई बालराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। आज जितना गर्व खुद की कला पर अरुण योगीराज को है, उतनी ही खुशी देश के करोड़ों रामभक्त के अलावा उकी मां को भी है। अरुण योगीराज की मां सरस्वती ने कहा कि "आज मैं बहुत खुश हूँ। काश उसके पिता जीवित होते तो वे भी बहुत खुश होते। पूरी दुनिया ने मेरे बेटे की कला को आज देखा है"।

मुख्य प्रतिमाएँ

अरुण योगीराज द्वारा निर्मित राम प्रतिमा, राम मन्दिर, अयोध्या

अरुण योगीराज की बनाई गई प्रतिमाओं में शामिल हैं-

रामलला की प्रतिमा

29 दिसंबर, 2023 को अयोध्या के राम मंदिर के लिए राम की मूर्ति का चयन मतदान प्रक्रिया के माध्यम से किया गया था। कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने श्रीराम की मूर्ति बनाई है। मैसूर के रहने वाले अरुण योगीराज काफी प्रसिद्ध मूर्तिकारों में से एक हैं, इनका पूरा परिवार ही इसी काम को करता रहा है। उन्होंने भी इसी धरोहर को आगे बढ़ाया और मूर्ति बनाने की कला को पूरे देश में प्रसिद्ध किया। उन्होंने राम मंदिर के लिए भगवान राम की मूर्ति को तैयार किया। अब वही प्रतिमा मंदिर के अंदर लगाई गई है।

आदि शंकराचार्य की प्रतिमा

अरुण योगीराज द्वारा निर्मित आदि शंकराचार्य प्रतिमा, केदारनाथ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 नवंबर, 2021 को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में जगद्गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल पर उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया था। दक्षिण से हिमालय तक की यात्रा करके भारतीय सभ्यता में भक्तिभाव को पुनर्जीवित करने वाले आदि गुरु की इस प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया। 12 फुट की इस पत्थर की प्रतिमा को उन्होंने मैसूर के सरस्वतीपुरम में गढ़ा। अरुण योगीराज का कहना था कि ये उनके लिए ख़ुशी का क्षण था। कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वो प्रतिमाएँ बनाने के लिए अपने हाथों में औजार उठाएँगे, लेकिन अब उनकी बनाई प्रतिमाएँ हिन्दू धर्म और भारत का मस्तक गर्व से ऊँचा करती हैं।[2]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्य के लिए उन्हें चुना था। अरुण योगीराज का कहना था कि ये एक बड़ी जिम्मेदारी थी। ऐसा इसीलिए, क्योंकि पीएम मोदी की निगरानी में ये सब हो रहा था और वो हर गतिविधि के अपडेट्स लेते थे। पहले उन्होंने 2 फुट का मॉडल तैयार किया था। उन्होंने दक्षिण भारत में शंकराचार्य की अन्य प्रतिमाओं को देखा और उनका अध्ययन किया। उन्होंने शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों और अन्य धार्मिक स्थलों के विद्वानों से बात की। पीएमओ ने प्रतिमा कैसी होनी चाहिए ये उन्हें बता दिया था, लेकिन रिसर्च के हिसाब से बदलाव करने की उन्हें पूरी छूट थी। ये प्रतिमा ब्लैक क्लोराइट शीस्ट की ‘कृष्ण शिला’ से बनी है, जिसका उपयोग हजारों वर्षों से होता रहा है। कर्नाटक के एचडी कोटे से इसे लाया गया था। ये प्रकृति की भीषण मार झेलने में भी सक्षम है। अरुण योगीराज ने 9 महीने रोज 14-15 घंटे की मेहनत की थी।

सम्मान व पुरस्कार

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने व्यक्तिगत रूप से अरुण योगीराज की प्रशंसा की थी।
  • 2020 में मैसूर जिला प्रशासन ने नलवाड़ी पुरस्कार दिया।
  • 2021 में कर्नाटक शिल्प परिषद की मानद सदस्यता प्राप्त की।
  • 2014 में साउथ जोन यंग टैलेंटेड आर्टिस्ट अवार्ड, भारत सरकार द्वारा मिला।
  • मैसूरु जिला प्राधिकरण द्वारा राज्योत्सव पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • माननीय कर्नाटक के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित
  • मैसूरु खेल अकादमी द्वारा सम्मानित
  • अमरशिल्पी जकनाचार्य ट्रस्ट ने सम्मानित किया।
  • राज्य और राष्ट्रीय कला शिविरों में भाग लिया।

निःशुल्क प्रशिक्षण

अरुण योगीराज ने कई होनहार छात्रों को निःशुल्क प्रशिक्षण भी दिया है। वह बच्चों को क्ले मॉडलिंग और अन्य कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए मैसूर में ब्रह्मर्षि कश्यप शिल्पकला शाला ट्रस्ट चलाते हैं। उनके दादा बी बासवन्ना शिल्पी को मैसूर महल के शाही गुरु शिल्पी सिद्धांती सिद्धलिंग स्वामी द्वारा प्रशिक्षित किया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कौन हैं मूर्तिकार अरुण योगीराज? (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2024।
  2. 9 महीने रोज 15 घंटे काम, दुर्घटना में पिता चल बसे फिर भी पूरी की शंकराचार्य की प्रतिमा (हिंदी) hindi.opindia.com। अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2024।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख