"रामहरख सिंह सहगल": अवतरणों में अंतर
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'''रामहरख सिंह सहगल''' (जन्म- [[28 सितम्बर]], [[1896]], [[लाहौर]], मृत्यु- [[1 फरवरी]], [[1952]]) अपने समय के जानेमाने पत्रकार और क्रांतिकारी भावनाओं के व्यक्ति थे। उस समय की अद्वितीय मासिक [[पत्रिका]] 'चांद' के वे संस्थापक और संपादक थे। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] को गति देने के उद्देश्य से चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर इस अंक की 10000 प्रतियां छापी गई थीं, जिसे अंग्रेज़ी सरकार ने जब्त कर लिया था। | '''रामहरख सिंह सहगल''' (जन्म- [[28 सितम्बर]], [[1896]], [[लाहौर]], मृत्यु- [[1 फरवरी]], [[1952]]) अपने समय के जानेमाने पत्रकार और क्रांतिकारी भावनाओं के व्यक्ति थे। उस समय की अद्वितीय मासिक [[पत्रिका]] 'चांद' के वे संस्थापक और संपादक थे। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] को गति देने के उद्देश्य से चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर इस अंक की 10000 प्रतियां छापी गई थीं, जिसे अंग्रेज़ी सरकार ने जब्त कर लिया था। | ||
सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्राँतिकारी पत्रकार रामहरख सिंह जी सहगल ऐसे स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकार थे जो स्वतंत्रता आँदोलन में भी जेल गये और अपने लेखन एवं प्रकाशन के लिये भी । | |||
वे अपने छात्र जीवन में ही स्वतंत्रता आँदोलन से जुड़ गये थे। खुले तौर पर वे [[काँग्रेस]] के साथ थे पर उनका संपर्क और सहभागिता क्राँतिकारी आँदोलन से थी । क्राँतिकारी [[भगतसिंह|भगत सिंह]] मानों उनके पारिवारिक सदस्य थे । रामहरख जी बेटी स्नेहलता सहगल ने आगे चलकर लिखा था कि वह भगत सिंह की गोद में खेली है। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
रामहरख सिंह सहगल का जन्म [[28 सितम्बर]], [[1896]] ई. को [[लाहौर]] के निकट एक [[गांव]] में हुआ था। उन्होंने पत्रकार का जीवन [[1923]] ई. में [[इलाहाबाद]] से 'चांद' मासिक पत्रिका प्रकाशित करने के साथ शुरू किया। [[1927]] में 'भविष्य', [[1937]] में 'कर्मयोगी' और [[1940]] में 'गुलदस्ता' अंक निकाला। उन्होंने अपने प्रकाशित 'चांद' अंक को जनचेतना और नारी-जागरण का माध्यम बना दिया। इस कार्य से उन्हें विदेशी सरकार का ही नहीं, समाज के कट्टरपंथियों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=739|url=}}</ref> | रामहरख सिंह सहगल का जन्म [[28 सितम्बर]], [[1896]] ई. को [[लाहौर]] के निकट एक [[गांव]] में हुआ था। परिवार [[आर्य समाज|आर्यसमाज]] से जुड़ा था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा [[लाहौर]] में और महाविद्यालयीन शिक्षा [[प्रयागराज]] में हुई । वे अपने छात्र जीवन से ही स्वाधीनता आँदोलन से जुड़ गये थे । 1921 के [[असहयोग आंदोलन|असहयोग आँदोलन]] से जुड़े पर उनका तरीका प्रभात फेरी निकालकर केवल नारे लगाना भर नहीं था । वे छात्रों और युवाओं को एकत्र करके भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेकने का आव्हान करते थे। गिरफ्तार हुये और तीन माह की सजा हुई । लौटकर आये और प्रयागराज में रहकर ही जीवन यापन का निर्णय लिया। आरंभ में कुछ पत्र पत्रिकाओं में जुड़े और लेखनकार्य आरंभ किया । उन्होंने पत्रकार का जीवन [[1923]] ई. में [[इलाहाबाद]] से 'चांद' मासिक पत्रिका प्रकाशित करने के साथ शुरू किया। [[1927]] में 'भविष्य', [[1937]] में 'कर्मयोगी' और [[1940]] में 'गुलदस्ता' अंक निकाला। उन्होंने अपने प्रकाशित 'चांद' अंक को जनचेतना और नारी-जागरण का माध्यम बना दिया। इस कार्य से उन्हें विदेशी सरकार का ही नहीं, समाज के कट्टरपंथियों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=739|url=}}</ref> | ||
==योगदान== | ==योगदान== | ||
सहगल का [[हिंदी]] पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित करने की परंपरा चलाने में बड़ा ही योगदान रहा है। उन्होंने चांद के 'अचूक अंक', 'मारवाड़ी अंक', 'पत्रांक', 'राजपूताना अंक' और 'नारी अंक' निकाल कर [[समाज]] का मार्गदर्शन किया। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] को गति देने के उद्देश्य से प्रकाशित चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर उन्होंने जो काम किया, उसे लोग आज भी भूले नहीं हैं। इस अंक की [[1931]] में 10000 प्रतियां छापी गई थीं। सूचना मिलने पर सरकार ने इसे जब्त कर लिया, पर तब तक यह देशभर में फैल चुका था। पंडित सुंदरलाल लिखित 'भारत में अंग्रेजी राज' का प्रकाशन भी चांद कार्यालय से आप ने ही किया था। यह पुस्तक प्रकाशित होते ही जब्त कर ली गई थी। | सहगल का [[हिंदी]] पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित करने की परंपरा चलाने में बड़ा ही योगदान रहा है। रामहरख जी ने '''पत्रिका चाँद''' का प्रकाशन 1923 में आरंभ किया । इस पत्रिका में तीन प्रकार की सामग्री होती थी। एक समाज एवं सांस्कृतिक जागरण, दूसरा नारी चेतना और तीसरे भारत की स्वाधीनता के लिये युवकों का आव्हान होता। 1931 में पत्रिका चाँद ने एक विशेषांक "फाँसी" का प्रकाशन किया। उन्होंने चांद के 'अचूक अंक', 'मारवाड़ी अंक', 'पत्रांक', 'राजपूताना अंक' और 'नारी अंक' निकाल कर [[समाज]] का मार्गदर्शन किया। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] को गति देने के उद्देश्य से प्रकाशित चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर उन्होंने जो काम किया, उसे लोग आज भी भूले नहीं हैं। इस अंक की [[1931]] में 10000 प्रतियां छापी गई थीं। सूचना मिलने पर सरकार ने इसे जब्त कर लिया, पर तब तक यह देशभर में फैल चुका था। पंडित सुंदरलाल लिखित 'भारत में अंग्रेजी राज' का प्रकाशन भी चांद कार्यालय से आप ने ही किया था। यह पुस्तक प्रकाशित होते ही जब्त कर ली गई थी। | ||
==कारावास== | ==कारावास== | ||
रामहरख सिंह सहगल के पत्र 'भविष्य' की राष्ट्रीय गतिविधियों के कारण इसके छह संपादकों को कारावास की यातनाएं भुगतनी पड़ी थीं। | रामहरख जी अपने जीवन में अनेक बार जेल गये। पहली बार स्वतंत्रता आँदोलन में और फिर पत्रिका में प्रकाशित सामग्री के लिये गिरफ्तार हुये । सहगल जी इलाहाबाद के 8 हेस्टिंग्ज रोड पर रहते थे। वहाँ उनकी कोठी का नाम `रैन बसेरा' था। जो क्राँतिकारियों का एक बड़ा केन्द्र था । पत्रिका चाँद जब समाज में लोकप्रियता और सरकार की आँख का सबसे बड़ा काँटा बनी तब एक संकट रामहरख जी के सामने आया। रामहरख सिंह सहगल के पत्र 'भविष्य' की राष्ट्रीय गतिविधियों के कारण इसके छह संपादकों को कारावास की यातनाएं भुगतनी पड़ी थीं। | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
रामहरख | स्वतंत्रता के बाद देश में विभाजन की त्रासदी का तनाव और वातावरण में बदलाव आया । देश में क्राँतिकारी आँदोलन कारियों के प्रति समाज में सम्मान था पर शासन में उपेक्षा का भाव रहा । इसका प्रभाव रामहरख जी भी हुये । यही सब दर्द उनके इन शब्दों में झलकता है । स्वतंत्रता के बाद वे एकाकी रहने लगे पर लेकन कार्य यथावत रहा । कुछ बीमारियाँ भी स्थाई हो गईं । अंततः एक प्रकार से गुमनामी और गंभीर आर्थिक संकट के बीच [[1 फरवरी]], [[1952]] को संसार से विदा ले ली । | ||
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रामहरख सिंह सहगल (जन्म- 28 सितम्बर, 1896, लाहौर, मृत्यु- 1 फरवरी, 1952) अपने समय के जानेमाने पत्रकार और क्रांतिकारी भावनाओं के व्यक्ति थे। उस समय की अद्वितीय मासिक पत्रिका 'चांद' के वे संस्थापक और संपादक थे। राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर इस अंक की 10000 प्रतियां छापी गई थीं, जिसे अंग्रेज़ी सरकार ने जब्त कर लिया था।
सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्राँतिकारी पत्रकार रामहरख सिंह जी सहगल ऐसे स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकार थे जो स्वतंत्रता आँदोलन में भी जेल गये और अपने लेखन एवं प्रकाशन के लिये भी । वे अपने छात्र जीवन में ही स्वतंत्रता आँदोलन से जुड़ गये थे। खुले तौर पर वे काँग्रेस के साथ थे पर उनका संपर्क और सहभागिता क्राँतिकारी आँदोलन से थी । क्राँतिकारी भगत सिंह मानों उनके पारिवारिक सदस्य थे । रामहरख जी बेटी स्नेहलता सहगल ने आगे चलकर लिखा था कि वह भगत सिंह की गोद में खेली है।
परिचय
रामहरख सिंह सहगल का जन्म 28 सितम्बर, 1896 ई. को लाहौर के निकट एक गांव में हुआ था। परिवार आर्यसमाज से जुड़ा था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में और महाविद्यालयीन शिक्षा प्रयागराज में हुई । वे अपने छात्र जीवन से ही स्वाधीनता आँदोलन से जुड़ गये थे । 1921 के असहयोग आँदोलन से जुड़े पर उनका तरीका प्रभात फेरी निकालकर केवल नारे लगाना भर नहीं था । वे छात्रों और युवाओं को एकत्र करके भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेकने का आव्हान करते थे। गिरफ्तार हुये और तीन माह की सजा हुई । लौटकर आये और प्रयागराज में रहकर ही जीवन यापन का निर्णय लिया। आरंभ में कुछ पत्र पत्रिकाओं में जुड़े और लेखनकार्य आरंभ किया । उन्होंने पत्रकार का जीवन 1923 ई. में इलाहाबाद से 'चांद' मासिक पत्रिका प्रकाशित करने के साथ शुरू किया। 1927 में 'भविष्य', 1937 में 'कर्मयोगी' और 1940 में 'गुलदस्ता' अंक निकाला। उन्होंने अपने प्रकाशित 'चांद' अंक को जनचेतना और नारी-जागरण का माध्यम बना दिया। इस कार्य से उन्हें विदेशी सरकार का ही नहीं, समाज के कट्टरपंथियों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा था।[1]
योगदान
सहगल का हिंदी पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित करने की परंपरा चलाने में बड़ा ही योगदान रहा है। रामहरख जी ने पत्रिका चाँद का प्रकाशन 1923 में आरंभ किया । इस पत्रिका में तीन प्रकार की सामग्री होती थी। एक समाज एवं सांस्कृतिक जागरण, दूसरा नारी चेतना और तीसरे भारत की स्वाधीनता के लिये युवकों का आव्हान होता। 1931 में पत्रिका चाँद ने एक विशेषांक "फाँसी" का प्रकाशन किया। उन्होंने चांद के 'अचूक अंक', 'मारवाड़ी अंक', 'पत्रांक', 'राजपूताना अंक' और 'नारी अंक' निकाल कर समाज का मार्गदर्शन किया। राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से प्रकाशित चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर उन्होंने जो काम किया, उसे लोग आज भी भूले नहीं हैं। इस अंक की 1931 में 10000 प्रतियां छापी गई थीं। सूचना मिलने पर सरकार ने इसे जब्त कर लिया, पर तब तक यह देशभर में फैल चुका था। पंडित सुंदरलाल लिखित 'भारत में अंग्रेजी राज' का प्रकाशन भी चांद कार्यालय से आप ने ही किया था। यह पुस्तक प्रकाशित होते ही जब्त कर ली गई थी।
कारावास
रामहरख जी अपने जीवन में अनेक बार जेल गये। पहली बार स्वतंत्रता आँदोलन में और फिर पत्रिका में प्रकाशित सामग्री के लिये गिरफ्तार हुये । सहगल जी इलाहाबाद के 8 हेस्टिंग्ज रोड पर रहते थे। वहाँ उनकी कोठी का नाम `रैन बसेरा' था। जो क्राँतिकारियों का एक बड़ा केन्द्र था । पत्रिका चाँद जब समाज में लोकप्रियता और सरकार की आँख का सबसे बड़ा काँटा बनी तब एक संकट रामहरख जी के सामने आया। रामहरख सिंह सहगल के पत्र 'भविष्य' की राष्ट्रीय गतिविधियों के कारण इसके छह संपादकों को कारावास की यातनाएं भुगतनी पड़ी थीं।
मृत्यु
स्वतंत्रता के बाद देश में विभाजन की त्रासदी का तनाव और वातावरण में बदलाव आया । देश में क्राँतिकारी आँदोलन कारियों के प्रति समाज में सम्मान था पर शासन में उपेक्षा का भाव रहा । इसका प्रभाव रामहरख जी भी हुये । यही सब दर्द उनके इन शब्दों में झलकता है । स्वतंत्रता के बाद वे एकाकी रहने लगे पर लेकन कार्य यथावत रहा । कुछ बीमारियाँ भी स्थाई हो गईं । अंततः एक प्रकार से गुमनामी और गंभीर आर्थिक संकट के बीच 1 फरवरी, 1952 को संसार से विदा ले ली ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 739 |
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