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'''ब्रह्म सूत्र''' को वेदान्तशास्त्र अथवा उत्तर (ब्रह्म) मीमांसा का आधार [[ग्रन्थ]] माना जाता है। इसके रचयिता [[बादरायण]] कहे जाते हैं। बादरायण से पूर्व भी [[वेदान्त]] के आचार्य हो गये हैं, सात आचार्यों के नाम तो इस ग्रन्थ में ही प्राप्त हैं। इसका विषय है- 'ब्रह्म का विचार'। | |||
ब्रह्मसूत्र के अध्यायों का वर्णन इस प्रकार हैं- | |||
*'''प्रथम अध्याय''' का नाम 'समन्वय' है, इसमें अनेक प्रकार की परस्पर विरुद्ध श्रुतियों का समन्वय ब्रह्म में किया गया है। | |||
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*'''दूसरे अध्याय''' का साधारण नाम 'अविरोध' है। | *'''दूसरे अध्याय''' का साधारण नाम 'अविरोध' है। | ||
**इसके प्रथम पाद में स्वमतप्रतिष्ठा के लिए स्मृति-तर्कादि विरोधों का परिहार किया गया है। | **इसके प्रथम पाद में स्वमतप्रतिष्ठा के लिए स्मृति-तर्कादि विरोधों का परिहार किया गया है। | ||
**द्वितीय पाद में | **द्वितीय पाद में विरुद्ध मतों के प्रति दोषारोपण किया गया है। | ||
**तृतीय पाद में ब्रह्म से तत्वों की उत्पत्ति कही गयी है। | **तृतीय पाद में ब्रह्म से [[तत्व|तत्वों]] की उत्पत्ति कही गयी है। | ||
**चतुर्थ पाद में भूतविषयक श्रुतियों का विरोधपरिहार किया गया है। | **चतुर्थ पाद में भूतविषयक श्रुतियों का विरोधपरिहार किया गया है। | ||
*'''तृतीय अध्याय''' का साधारण नाम 'साधन' है। इसमें जीव और ब्रह्म के लक्षणों का निर्देश करके मुक्ति के बहिरंग और अन्तरंग साधनों का निर्देश किया गया है। | *'''तृतीय अध्याय''' का साधारण नाम 'साधन' है। इसमें जीव और ब्रह्म के लक्षणों का निर्देश करके मुक्ति के बहिरंग और अन्तरंग साधनों का निर्देश किया गया है। | ||
*'''चतुर्थ अध्याय''' का नाम 'फल' है। इसमें जीवन्मुक्ति, जीव की उत्क्रान्ति, सगुण और निर्गुण उपासना के फलतारतम्य पर विचार किया गया है। | *'''चतुर्थ अध्याय''' का नाम 'फल' है। इसमें जीवन्मुक्ति, जीव की उत्क्रान्ति, सगुण और निर्गुण उपासना के फलतारतम्य पर विचार किया गया है। | ||
*ब्रह्मसूत्र पर सभी वेदान्तीय सम्प्रदायों के आचार्यों ने भाष्य, टीका व वृत्तियाँ लिखी हैं। इनमें गम्भीरता, प्रांजलता, सौष्ठव और प्रसाद गुणों की अधिकता के कारण शांकर भाष्य सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता है। इसका नाम 'शारीरक भाष्य' है। | *ब्रह्मसूत्र पर सभी वेदान्तीय सम्प्रदायों के आचार्यों ने भाष्य, टीका व वृत्तियाँ लिखी हैं। इनमें गम्भीरता, प्रांजलता, सौष्ठव और प्रसाद गुणों की अधिकता के कारण शांकर भाष्य सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता है। इसका नाम 'शारीरक भाष्य' है। | ||
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08:56, 1 मई 2012 के समय का अवतरण
ब्रह्म सूत्र को वेदान्तशास्त्र अथवा उत्तर (ब्रह्म) मीमांसा का आधार ग्रन्थ माना जाता है। इसके रचयिता बादरायण कहे जाते हैं। बादरायण से पूर्व भी वेदान्त के आचार्य हो गये हैं, सात आचार्यों के नाम तो इस ग्रन्थ में ही प्राप्त हैं। इसका विषय है- 'ब्रह्म का विचार'।
ब्रह्मसूत्र के अध्यायों का वर्णन इस प्रकार हैं-
- प्रथम अध्याय का नाम 'समन्वय' है, इसमें अनेक प्रकार की परस्पर विरुद्ध श्रुतियों का समन्वय ब्रह्म में किया गया है।
- दूसरे अध्याय का साधारण नाम 'अविरोध' है।
- इसके प्रथम पाद में स्वमतप्रतिष्ठा के लिए स्मृति-तर्कादि विरोधों का परिहार किया गया है।
- द्वितीय पाद में विरुद्ध मतों के प्रति दोषारोपण किया गया है।
- तृतीय पाद में ब्रह्म से तत्वों की उत्पत्ति कही गयी है।
- चतुर्थ पाद में भूतविषयक श्रुतियों का विरोधपरिहार किया गया है।
- तृतीय अध्याय का साधारण नाम 'साधन' है। इसमें जीव और ब्रह्म के लक्षणों का निर्देश करके मुक्ति के बहिरंग और अन्तरंग साधनों का निर्देश किया गया है।
- चतुर्थ अध्याय का नाम 'फल' है। इसमें जीवन्मुक्ति, जीव की उत्क्रान्ति, सगुण और निर्गुण उपासना के फलतारतम्य पर विचार किया गया है।
- ब्रह्मसूत्र पर सभी वेदान्तीय सम्प्रदायों के आचार्यों ने भाष्य, टीका व वृत्तियाँ लिखी हैं। इनमें गम्भीरता, प्रांजलता, सौष्ठव और प्रसाद गुणों की अधिकता के कारण शांकर भाष्य सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता है। इसका नाम 'शारीरक भाष्य' है।
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