"गाय": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
No edit summary |
||
(7 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 38 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा जीव जन्तु | |||
[[ | |चित्र=Jaisalmer-urbancow.jpg | ||
|चित्र का नाम=गाय | |||
|जगत=एनीमेलिया (''Animalia'') | |||
|संघ=कॉर्डेटा (''Chordata'') | |||
|वर्ग= मेमेलिया (''Mammalia'') | |||
|उप-वर्ग= | |||
|गण=अर्टिओडाक्टायला (''Artiodactyla'') | |||
|उपगण= | |||
|अधिकुल= | |||
|कुल=बोवाइडी (''Bovidae'') | |||
|जाति=बोस (''Bos'') | |||
|प्रजाति=टौरस ('' taurus'') | |||
|द्विपद नाम=बोस टौरस (''Bos taurus'') | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1=प्रमुख नस्लें | |||
|पाठ 1= [[भारत]] में गाय की 28 नस्लें पाई जाती हैं। रेड सिन्धी, साहिवाल, गिर, देवनी, [[थारपारकर गाय|थारपारकर]] आदि नस्लें भारत में दुधारू गायों की प्रमुख नस्लें हैं। | |||
|शीर्षक 2=हिन्दू धार्मिक मान्यता | |||
|पाठ 2=गाय के शरीर में 33 करोड़ [[देवता]] वास करते हैं, एवं गौ-सेवा करने से एक साथ 33 करोड देवता प्रसन्न होते हैं। | |||
|अन्य जानकारी=[[हिन्दू]], गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। [[हिन्दू धर्म]] में गाय की पूजा का मूल आरंभिक [[वैदिक काल]] में खोजा जा सकता है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''गाय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Cow'', वैज्ञानिक नाम: बोस टौरस: ''Bos taurus'') एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है। इससे हमें उत्तम किस्म का [[दूध]] प्राप्त होता है। रेड सिन्धी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि नस्लें [[भारत]] में दुधारू गायों की प्रमुख नस्लें हैं। भारत में गाय की 28 नस्लें पाई जाती हैं। [[हिन्दू]], गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। [[हिन्दू धर्म]] में यह विश्वास है कि गाय देवत्व और प्राकृतिक कृपा की प्रतिनिधि है, और इसलिए इसकी रक्षा तथा पूजा की जानी चाहिए। हिन्दू धर्म में गाय की पूजा का मूल आरंभिक [[वैदिक काल]] में खोजा जा सकता है। भारोपीय लोग, जिन्होंने दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. में [[भारत]] में प्रवेश किया, वे पशुपालक थे। पशुओं का बड़ा आर्थिक महत्त्व था, जो वैदिक धर्म में भी दिखाई देता है। यद्यपि [[प्राचीन भारत]] में गायों और बैलों की बलि दी जाती थी और उनका माँस खाया जाता था। लेकिन दुधारू गायों की बलि क्रमश: बंद की जा रही थी। जैसे [[महाभारत]] व [[मनुस्मृति]] के हिस्सों में और [[ऋग्वेद]] में दुधारू गाय को पहले से ही 'अवध्य' कहा गया था। [[चित्र:Cows-mathura.jpg|left|thumb|गौ (गायें)]] | |||
गाय की पूज्यता का संकेत उपचार शुद्धिकरण और प्रायश्चित के संस्कारों में पंचगव्य, गाय के पांच उत्पादन, [[दूध]] दही, मक्खन, मूत्र और गोबर के प्रयोग से मिलता है। बाद में अहिंसा के आदर्श के उदय के साथ गाय अहिंसक उदारता के जीवन का प्रतीक बन गई। साथ ही इस तथ्य के आधार पर कि उसके उत्पादन पोषण प्रदान करते हैं। गाय को मातृत्व और धरती माँ से भी संबद्ध किया गया। गाय को पहले पहल [[ब्राह्मण]] (या पुरोहित) वर्ग के साथ भी जोड़ा गया और उसे मारना कभी-कभी (ब्राह्मणों द्वारा) ब्रह्म हत्या जैसा निंदनीय कार्य माना जाता था। ईसा की पहली शताब्दी के मध्य में गुप्त राजाओं द्वारा गाय की हत्या करने पर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया। | गाय की पूज्यता का संकेत उपचार शुद्धिकरण और प्रायश्चित के संस्कारों में पंचगव्य, गाय के पांच उत्पादन, [[दूध]] दही, मक्खन, मूत्र और गोबर के प्रयोग से मिलता है। बाद में अहिंसा के आदर्श के उदय के साथ गाय अहिंसक उदारता के जीवन का प्रतीक बन गई। साथ ही इस तथ्य के आधार पर कि उसके उत्पादन पोषण प्रदान करते हैं। गाय को मातृत्व और धरती माँ से भी संबद्ध किया गया। गाय को पहले पहल [[ब्राह्मण]] (या पुरोहित) वर्ग के साथ भी जोड़ा गया और उसे मारना कभी-कभी (ब्राह्मणों द्वारा) ब्रह्म हत्या जैसा निंदनीय कार्य माना जाता था। ईसा की पहली शताब्दी के मध्य में गुप्त राजाओं द्वारा गाय की हत्या करने पर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया। | ||
== | ==धार्मिक मान्यताएँ== | ||
भारतीय परंपरा के अनुसार गाय के शरीर में 33 करोड़ [[देवता]] वास करते हैं, एवं गौ-सेवा करने से एक साथ 33 करोड देवता प्रसन्न होते हैं। गाय का विशिष्ट संबंध कई देवताओं, विशेषकर [[शिव]] जिनका वाहन बैल है। [[इंद्र]] मनोकामना पूर्ण करने वाली गाय, [[कामधेनु]] से निकट से संबद्ध, [[कृष्ण]] अपनी युवावस्था में एक ग्वाले और सामान्य रूप से देवियों के साथ उनमें से कई के मातृवत गुणों के कारण जोड़ा जाता है। 19 शताब्दी के बाद के दशकों में विशेषकर [[उत्तरी भारत]] में एक गो रक्षा आंदोलन शुरू हुआ, जिसने [[हिंदू|हिंदुओं]] को एकीकृत करने और एक समूह के रूप में उन्हें [[मुसलमान|मुसलमानों]] से अलग करने का प्रयास यह मांग करके किया कि सरकार गो हत्या पर प्रतिबंध लगाए। राजनीतिक और धार्मिक उद्देश्यों का यह घालमेल समय-समय पर कई दंगों का कारण बना और अंतत: [[1947]] में भारतीय उपहाद्वीप के विभाजन में भी इसकी भूमिका रही। | |||
भारतीय परंपरा के अनुसार गाय के शरीर में 33 करोड़ [[देवता]] वास करते | ====हिन्दू संस्कृति में गाय==== | ||
==गौ माता== | गाय निर्बल दीन हीन जीवों का प्रतिनिधित्व करती है, सरलता, शुद्धता, और सात्विकता की मूर्ति है। गौ माता की पीठ में [[ब्रह्मा]], गले में [[विष्णु]] और मुख में [[रुद्र]] निवास करते हैं, मध्य भाग में सभी देवगण और रोम रोम में सभी 'महर्षि' बसते हैं। [[श्रीकृष्ण]] को हम गोपाल कृष्ण, गोविंद कहते हैं। गाय [[पृथ्वी]], [[ब्राह्मण]] और [[देवता|देव]] की प्रतीक है। गौ रक्षा और गौ संवर्धन हिंदुओं के आवश्यक कर्तव्य माने जाते हैं। सभी दानों में 'गोदान' का महत्त्व सर्वाधिक माना जाता है। | ||
हिन्दू [[संस्कृति]] के अनुसार जिस घर में गाय निवास करती हैं एवं जहाँ गौ सेवा होती है, उस घर से समस्त समस्याएँ कोसों दूर रहती हैं। भारतीय [[संस्कृति]] के अनुसार गाय को अपनी माता के समान संम्मान दिया जाता हैं इस लिये गाय को गौ-माता कहकर पुकारते है। | ====गौ माता==== | ||
*गाय का दूध अमृत के समान है, गाय से प्राप्त दूध, घी, मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता है। | हिन्दू [[संस्कृति]] के अनुसार जिस घर में गाय निवास करती हैं एवं जहाँ गौ सेवा होती है, उस घर से समस्त समस्याएँ कोसों दूर रहती हैं। भारतीय [[संस्कृति]] के अनुसार गाय को अपनी माता के समान संम्मान दिया जाता हैं इस लिये गाय को गौ-माता कहकर पुकारते हैं। | ||
*गाय के गोबर का प्रयोग चुल्हें बनाने, आंगन | ====कामधेनु==== | ||
*भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय ही ऐसा पशुजीव है, जो अन्य पशुओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान माना है। | [[चित्र:cows-mathura2.jpg|250px|thumb|[[कामधेनु|कामधेनु गाय]]]] | ||
{{Main|कामधेनु}} | |||
कामधेनु का वर्णन [[पुराण|पौराणिक]] गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है जिसमें दैवीय शक्तियाँ थी और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी यह कामधेनु जिसके पास होती थी उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। उसका दूध अमृत के समान था। [[कृष्ण]] कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। [[कश्यप]] ने [[वरुण देवता|वरुण]] से कामधेनु माँगी थी फिर लौटायी नहीं, अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में [[गंगा नदी|गंगा]], पर्वतों में [[हिमालय]], भक्तों में [[नारद]], सभी पुरियों में [[कैलाश पर्वत|कैलाश]], सम्पूर्ण क्षेत्रों में [[केदार क्षेत्र]] श्रेष्ठ है, वैसे ही गऊओं में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ है। '''कामधेनु''' सबका पालन करने वाली है। माता स्वरूपिणी हैं- सब इच्छाएँ पूर्ण करने वाली है। जब भगवान [[विष्णु]] स्वयं कच्छपरूप धारण करके मन्दराचल के आधार बनें। इस प्रकार मन्थन करने पर क्षीरसागर से क्रमश: कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा नामक अश्व, [[ऐरावत|ऐरावत हाथी]], कौस्तुभ्रमणि, [[कल्पवृक्ष]], [[अप्सरा|अप्सराएँ]], लक्ष्मी, वारुणी, चन्द्रमा, [[शंख]], शांर्ग धनुष, धनवन्तरि और अमृत प्रकट हुए। | |||
==औषधीय महत्त्व== | |||
*गाय का दूध अमृत के समान है, गाय से प्राप्त [[दूध]], [[घी]], मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता है। | |||
*गाय के गोबर का प्रयोग चुल्हें बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यो में लिया जाता है, और यहाँ तक कि गाय के मूत्र से भी विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ बनाई जाती है, गाय के मूत्र में कैंसर, टीवी जैसे गंभीर रोगों से लड़ने की क्षमता होती हैं, जिसे वैज्ञानिक भी मान चुके है, तथा गौ-मूत्र के सेवन करने से पेट के सभी विकार दूर होते हैं। | |||
*[[भारतीय संस्कृति]] के अनुसार गाय ही ऐसा पशुजीव है, जो अन्य पशुओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान माना है। | |||
*ज्योतिष शास्त्र में भी नव ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाने के लिये गाय का ही वर्णन किया गया हैं। | *ज्योतिष शास्त्र में भी नव ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाने के लिये गाय का ही वर्णन किया गया हैं। | ||
*यदि बच्चे को बचपन में गाय का दूध पिलाया जाए तो बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है। | *यदि बच्चे को बचपन में गाय का दूध पिलाया जाए तो बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है। | ||
*गाय की सेवा से भगवान | *गाय की सेवा से भगवान [[शिव]] भी प्रसन्न होते हैं। | ||
*हाथ-पांव में जलन होने पर गाय के [[घी]] से मालिश करने पर आराम मिलेगा। | |||
*हाथ-पांव में जलन होने पर गाय के घी से मालिश करने पर आराम मिलेगा। | |||
*शराब, गांजे या भांग का नशा ज़्यादा हो जाय तो गाय का घी में दो तोला चीनी मिलाकर देने में 15 मिनट में नशा कम हो जायेगा। | *शराब, गांजे या भांग का नशा ज़्यादा हो जाय तो गाय का घी में दो तोला चीनी मिलाकर देने में 15 मिनट में नशा कम हो जायेगा। | ||
*जल जाने वाले स्थान या घाव को पानी से धोकर गाय का घी लगाने से फफोले कम हो जाते हैं और जलन कम हो जाती है। | *जल जाने वाले स्थान या घाव को पानी से धोकर गाय का घी लगाने से फफोले कम हो जाते हैं और जलन कम हो जाती है। | ||
*बच्चों को सर्दी या कफ की शिकायत हो जाये तो गाय के घी से छाती और पीठ पर मालिश करने से तुरन्त आराम मिलता है | *बच्चों को सर्दी या कफ की शिकायत हो जाये तो गाय के घी से छाती और पीठ पर मालिश करने से तुरन्त आराम मिलता है | ||
*किसी मनुष्य को अगर हिचकी आये तो उसे रोकने के लिये आधा चम्मच गाय का घी पिलाने से हिचकी रुक जाती है। | *किसी मनुष्य को अगर हिचकी आये तो उसे रोकने के लिये आधा चम्मच गाय का [[घी]] पिलाने से हिचकी रुक जाती है। | ||
*यदि किसी मनुष्य को [[सर्प]] काट जाये तो उसे 70 या 150 ग्राम गाय का ताजा घी पिलाकर 40-50 मिनट बाद जितना गर्म पानी पी सकें, पिलायें। इसके बाद उल्टी-दस्त होंगे, इसके बाद विष का प्रभाव कम होने लगेगा।<ref>{{cite web |url=http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/domestic-treatment/30/ |title=गाय के घी का औषधीय गुण |accessmonthday=5 फ़रवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=merapahadforum.com |language=हिन्दी}}</ref> | *यदि किसी मनुष्य को [[सर्प]] काट जाये तो उसे 70 या 150 ग्राम गाय का ताजा घी पिलाकर 40-50 मिनट बाद जितना गर्म पानी पी सकें, पिलायें। इसके बाद उल्टी-दस्त होंगे, इसके बाद विष का प्रभाव कम होने लगेगा।<ref>{{cite web |url=http://www.merapahadforum.com/culture-of-uttarakhand/domestic-treatment/30/ |title=गाय के घी का औषधीय गुण |accessmonthday=5 फ़रवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=merapahadforum.com |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
== | ==वैज्ञानिक महत्त्व== | ||
==== | [[चित्र:Indian-cow.jpg|thumb|200px|गाय]] | ||
गाय की उपस्थिति का पर्यावरण के लिए एक | गाय एक स्तनपायी जीव है। दुनिया में स्तनपायी जीवों की कोई 5000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिन्हें तीन वर्गों में बांटा जा सकता है- | ||
#एक वर्ग है मोनोट्रीम्स (Monotremes) का, जो अंडे देते हैं। | |||
[[कृषि]] में गाय के गोबर की खाद्य, औषधि और उद्योगों से पर्यावरण में काफ़ी सुधार है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99%कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक है, गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। | #दूसरा वर्ग है मारसुपिअल्स (Marsupials) का, जिनके बच्चे कम विकसित अवस्था में पैदा होते हैं और फिर मां की थैली में पलते हैं। | ||
#तीसरा वर्ग है प्लासेनटल्स (Placentals) का, जिनके बच्चे गर्भ में पलते हैं। | |||
[[चाय]], कॉफ़ी जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थों में दूध एक | |||
लेकिन उपरोक्त सभी गर्म ख़ून और रीढ़ की हड्डी वाले, चौपाए जीव हैं, जो अपने बच्चे को [[दूध]] पिलाते हैं। गाय प्लासेनटल्स वर्ग के आर्टीओडेक्टाइल (Artiodactyla) उपवर्ग में आती है।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.com/hindi/news/story/2007/01/070120_askus_gandhi.shtml |title= गाय का वैज्ञानिक नाम क्या है|accessmonthday= 11 अक्टूबर|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com |language=हिंदी }}</ref> | |||
[[चित्र:Cows-Handpainted-Rajasthan-Stamp.jpeg|thumb|200px|गाय पर जारी [[डाक टिकट]]]] | |||
गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो [[ऑक्सीजन]] ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है। गाय के मूत्र में [[पोटेशियम]], [[सोडियम]], [[नाइट्रोजन]], फास्फेट, [[यूरिया]], यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है, जो [[हृदय]] रोगों के लिए लाभकारी है। गाय का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है, उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के [[प्रदर]] रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है।[[चित्र:Cow-Shelter-Stamp.png|thumb|left|200px|गाय पर जारी [[डाक टिकट]]]] | |||
गौमूत्र का एक पाव रोज़ सुबह ख़ाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है। गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक [[ऊर्जा]] मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है। गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। | |||
गाय की उपस्थिति का पर्यावरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण योगदान है, प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि गाय की पीठ पर के सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोक कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। [[कृषि]] में गाय के गोबर की खाद्य, औषधि और उद्योगों से पर्यावरण में काफ़ी सुधार है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक है, गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने [[कीटनाशक]] इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। [[चाय]], [[कॉफ़ी]] जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थों में दूध एक ज़रूरी पदार्थ है, [[भारत]] में ऐसी अनेक मिठाइयाँ जो गौ [[दूध]] पर आधारित होती है। [[दही]], मक्खन और [[घी]] भारतीय भोजन के आवश्यक अंग हैं। घी में तले व्यंजनों का खाद अप्रतिम होता है। [[छाछ]] न केवल प्यास बुझाती हैं बल्की बहुत से प्रचलित व्यंजनों का आधार है। | |||
==धार्मिक महत्त्व== | ==धार्मिक महत्त्व== | ||
* | *भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय और मंदिरों का एक दूसरे से मज़बूत रिश्ता है, धार्मिक अनुष्ठानों में गाय की अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। | ||
*गाय को दैविक माना गया है, तथा | *गाय को दैविक माना गया है, तथा हिन्दू संस्कृति के अनुसार दिन की शुरुआत गाय की पूजा से शुरू होती है। गाय को खिलाना और उसकी पूजा करना दैविक अनुष्ठान है । | ||
*पारिवारिक उत्सवों तथा त्योहारों में गाय की प्रधानता है, ऐसे अनेक त्योहार है, जहाँ गाय अपना एक प्रमुख स्थान रखती है। | *पारिवारिक उत्सवों तथा त्योहारों में गाय की प्रधानता है, ऐसे अनेक त्योहार है, जहाँ गाय अपना एक प्रमुख स्थान रखती है। | ||
*अनेक मंदिरों के प्रवेशद्वार पर गाय का छप्पर होता है जिससे मनुष्य में पवित्रता की भावना बढ़ती है। | *अनेक मंदिरों के प्रवेशद्वार पर गाय का छप्पर होता है जिससे मनुष्य में पवित्रता की भावना बढ़ती है। | ||
*हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य [[गणेश]] उनकी माता [[पार्वती]] को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। | *हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य [[गणेश]] उनकी माता [[पार्वती]] को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। | ||
====गोपाष्टमी==== | |||
==== | |||
{{Main|गोपाष्टमी}} | {{Main|गोपाष्टमी}} | ||
[[ब्रज]] [[संस्कृति]] का यह एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान | [[ब्रज]] [[संस्कृति]] का यह एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। [[कार्तिक]], [[शुक्ल पक्ष]], [[प्रतिपदा]] से [[सप्तमी]] तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन [[इन्द्र]] अहंकाररहित होकर भगवान की शरण में आये। [[कामधेनु]] ने श्रीकृष्ण का [[अभिषेक]] किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रात: काल गायों को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और [[मेंहदी]] के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category: | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://raviwar.com/columnist/c3_cow_is_our_mother_devindersharma.shtml गाय हमारी माता है] | |||
*[http://ashish.jagranjunction.com/2011/01/31/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%81/ गाय और माँ] | |||
*[http://www.aryasamaj.org/newsite/node/990 देसी गाय का महत्त्व] | |||
*[http://religion.bhaskar.com/article/milk-of-cow-1020445.html गाय का दूध क्यों होता है फ़ायदेमंद?] | |||
*[http://www.bhaskar.com/2010/01/08/100108142018_170159.html गाय के दूध व मूत्र में प्राण शक्ति] | |||
*[http://www.indlive.com/hindi/news/--677482/677482.html गाय के दूध से नवजातों में नहीं होती है एलर्जी] | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गाय}} {{भारतीय संस्कृति के प्रतीक}}{{जीव जन्तु}} | |||
[[Category:प्राणि विज्ञान]] | |||
[[Category:स्तनधारी जीव]] | |||
[[Category:पौराणिक कोश]] | |||
[[Category:हिन्दू धर्म]] | |||
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | |||
[[Category:प्राणि विज्ञान कोश]] | |||
[[Category:भारतीय संस्कृति के प्रतीक]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
09:43, 6 मार्च 2024 के समय का अवतरण
गाय
| |
जगत | एनीमेलिया (Animalia) |
संघ | कॉर्डेटा (Chordata) |
वर्ग | मेमेलिया (Mammalia) |
गण | अर्टिओडाक्टायला (Artiodactyla) |
कुल | बोवाइडी (Bovidae) |
जाति | बोस (Bos) |
प्रजाति | टौरस ( taurus) |
द्विपद नाम | बोस टौरस (Bos taurus) |
प्रमुख नस्लें | भारत में गाय की 28 नस्लें पाई जाती हैं। रेड सिन्धी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि नस्लें भारत में दुधारू गायों की प्रमुख नस्लें हैं। |
हिन्दू धार्मिक मान्यता | गाय के शरीर में 33 करोड़ देवता वास करते हैं, एवं गौ-सेवा करने से एक साथ 33 करोड देवता प्रसन्न होते हैं। |
अन्य जानकारी | हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। हिन्दू धर्म में गाय की पूजा का मूल आरंभिक वैदिक काल में खोजा जा सकता है। |
गाय (अंग्रेज़ी: Cow, वैज्ञानिक नाम: बोस टौरस: Bos taurus) एक महत्त्वपूर्ण पालतू जानवर है। इससे हमें उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। रेड सिन्धी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि नस्लें भारत में दुधारू गायों की प्रमुख नस्लें हैं। भारत में गाय की 28 नस्लें पाई जाती हैं। हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। हिन्दू धर्म में यह विश्वास है कि गाय देवत्व और प्राकृतिक कृपा की प्रतिनिधि है, और इसलिए इसकी रक्षा तथा पूजा की जानी चाहिए। हिन्दू धर्म में गाय की पूजा का मूल आरंभिक वैदिक काल में खोजा जा सकता है। भारोपीय लोग, जिन्होंने दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. में भारत में प्रवेश किया, वे पशुपालक थे। पशुओं का बड़ा आर्थिक महत्त्व था, जो वैदिक धर्म में भी दिखाई देता है। यद्यपि प्राचीन भारत में गायों और बैलों की बलि दी जाती थी और उनका माँस खाया जाता था। लेकिन दुधारू गायों की बलि क्रमश: बंद की जा रही थी। जैसे महाभारत व मनुस्मृति के हिस्सों में और ऋग्वेद में दुधारू गाय को पहले से ही 'अवध्य' कहा गया था।
गाय की पूज्यता का संकेत उपचार शुद्धिकरण और प्रायश्चित के संस्कारों में पंचगव्य, गाय के पांच उत्पादन, दूध दही, मक्खन, मूत्र और गोबर के प्रयोग से मिलता है। बाद में अहिंसा के आदर्श के उदय के साथ गाय अहिंसक उदारता के जीवन का प्रतीक बन गई। साथ ही इस तथ्य के आधार पर कि उसके उत्पादन पोषण प्रदान करते हैं। गाय को मातृत्व और धरती माँ से भी संबद्ध किया गया। गाय को पहले पहल ब्राह्मण (या पुरोहित) वर्ग के साथ भी जोड़ा गया और उसे मारना कभी-कभी (ब्राह्मणों द्वारा) ब्रह्म हत्या जैसा निंदनीय कार्य माना जाता था। ईसा की पहली शताब्दी के मध्य में गुप्त राजाओं द्वारा गाय की हत्या करने पर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया।
धार्मिक मान्यताएँ
भारतीय परंपरा के अनुसार गाय के शरीर में 33 करोड़ देवता वास करते हैं, एवं गौ-सेवा करने से एक साथ 33 करोड देवता प्रसन्न होते हैं। गाय का विशिष्ट संबंध कई देवताओं, विशेषकर शिव जिनका वाहन बैल है। इंद्र मनोकामना पूर्ण करने वाली गाय, कामधेनु से निकट से संबद्ध, कृष्ण अपनी युवावस्था में एक ग्वाले और सामान्य रूप से देवियों के साथ उनमें से कई के मातृवत गुणों के कारण जोड़ा जाता है। 19 शताब्दी के बाद के दशकों में विशेषकर उत्तरी भारत में एक गो रक्षा आंदोलन शुरू हुआ, जिसने हिंदुओं को एकीकृत करने और एक समूह के रूप में उन्हें मुसलमानों से अलग करने का प्रयास यह मांग करके किया कि सरकार गो हत्या पर प्रतिबंध लगाए। राजनीतिक और धार्मिक उद्देश्यों का यह घालमेल समय-समय पर कई दंगों का कारण बना और अंतत: 1947 में भारतीय उपहाद्वीप के विभाजन में भी इसकी भूमिका रही।
हिन्दू संस्कृति में गाय
गाय निर्बल दीन हीन जीवों का प्रतिनिधित्व करती है, सरलता, शुद्धता, और सात्विकता की मूर्ति है। गौ माता की पीठ में ब्रह्मा, गले में विष्णु और मुख में रुद्र निवास करते हैं, मध्य भाग में सभी देवगण और रोम रोम में सभी 'महर्षि' बसते हैं। श्रीकृष्ण को हम गोपाल कृष्ण, गोविंद कहते हैं। गाय पृथ्वी, ब्राह्मण और देव की प्रतीक है। गौ रक्षा और गौ संवर्धन हिंदुओं के आवश्यक कर्तव्य माने जाते हैं। सभी दानों में 'गोदान' का महत्त्व सर्वाधिक माना जाता है।
गौ माता
हिन्दू संस्कृति के अनुसार जिस घर में गाय निवास करती हैं एवं जहाँ गौ सेवा होती है, उस घर से समस्त समस्याएँ कोसों दूर रहती हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय को अपनी माता के समान संम्मान दिया जाता हैं इस लिये गाय को गौ-माता कहकर पुकारते हैं।
कामधेनु
कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है जिसमें दैवीय शक्तियाँ थी और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी यह कामधेनु जिसके पास होती थी उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। उसका दूध अमृत के समान था। कृष्ण कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरुण से कामधेनु माँगी थी फिर लौटायी नहीं, अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद, सभी पुरियों में कैलाश, सम्पूर्ण क्षेत्रों में केदार क्षेत्र श्रेष्ठ है, वैसे ही गऊओं में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ है। कामधेनु सबका पालन करने वाली है। माता स्वरूपिणी हैं- सब इच्छाएँ पूर्ण करने वाली है। जब भगवान विष्णु स्वयं कच्छपरूप धारण करके मन्दराचल के आधार बनें। इस प्रकार मन्थन करने पर क्षीरसागर से क्रमश: कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा नामक अश्व, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ्रमणि, कल्पवृक्ष, अप्सराएँ, लक्ष्मी, वारुणी, चन्द्रमा, शंख, शांर्ग धनुष, धनवन्तरि और अमृत प्रकट हुए।
औषधीय महत्त्व
- गाय का दूध अमृत के समान है, गाय से प्राप्त दूध, घी, मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता है।
- गाय के गोबर का प्रयोग चुल्हें बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यो में लिया जाता है, और यहाँ तक कि गाय के मूत्र से भी विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ बनाई जाती है, गाय के मूत्र में कैंसर, टीवी जैसे गंभीर रोगों से लड़ने की क्षमता होती हैं, जिसे वैज्ञानिक भी मान चुके है, तथा गौ-मूत्र के सेवन करने से पेट के सभी विकार दूर होते हैं।
- भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय ही ऐसा पशुजीव है, जो अन्य पशुओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान माना है।
- ज्योतिष शास्त्र में भी नव ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाने के लिये गाय का ही वर्णन किया गया हैं।
- यदि बच्चे को बचपन में गाय का दूध पिलाया जाए तो बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है।
- गाय की सेवा से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं।
- हाथ-पांव में जलन होने पर गाय के घी से मालिश करने पर आराम मिलेगा।
- शराब, गांजे या भांग का नशा ज़्यादा हो जाय तो गाय का घी में दो तोला चीनी मिलाकर देने में 15 मिनट में नशा कम हो जायेगा।
- जल जाने वाले स्थान या घाव को पानी से धोकर गाय का घी लगाने से फफोले कम हो जाते हैं और जलन कम हो जाती है।
- बच्चों को सर्दी या कफ की शिकायत हो जाये तो गाय के घी से छाती और पीठ पर मालिश करने से तुरन्त आराम मिलता है
- किसी मनुष्य को अगर हिचकी आये तो उसे रोकने के लिये आधा चम्मच गाय का घी पिलाने से हिचकी रुक जाती है।
- यदि किसी मनुष्य को सर्प काट जाये तो उसे 70 या 150 ग्राम गाय का ताजा घी पिलाकर 40-50 मिनट बाद जितना गर्म पानी पी सकें, पिलायें। इसके बाद उल्टी-दस्त होंगे, इसके बाद विष का प्रभाव कम होने लगेगा।[1]
वैज्ञानिक महत्त्व
गाय एक स्तनपायी जीव है। दुनिया में स्तनपायी जीवों की कोई 5000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिन्हें तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-
- एक वर्ग है मोनोट्रीम्स (Monotremes) का, जो अंडे देते हैं।
- दूसरा वर्ग है मारसुपिअल्स (Marsupials) का, जिनके बच्चे कम विकसित अवस्था में पैदा होते हैं और फिर मां की थैली में पलते हैं।
- तीसरा वर्ग है प्लासेनटल्स (Placentals) का, जिनके बच्चे गर्भ में पलते हैं।
लेकिन उपरोक्त सभी गर्म ख़ून और रीढ़ की हड्डी वाले, चौपाए जीव हैं, जो अपने बच्चे को दूध पिलाते हैं। गाय प्लासेनटल्स वर्ग के आर्टीओडेक्टाइल (Artiodactyla) उपवर्ग में आती है।[2]
गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है। गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है, जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है। गाय का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है, उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है।
गौमूत्र का एक पाव रोज़ सुबह ख़ाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है। गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है। गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है।
गाय की उपस्थिति का पर्यावरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण योगदान है, प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि गाय की पीठ पर के सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोक कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। कृषि में गाय के गोबर की खाद्य, औषधि और उद्योगों से पर्यावरण में काफ़ी सुधार है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक है, गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। चाय, कॉफ़ी जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थों में दूध एक ज़रूरी पदार्थ है, भारत में ऐसी अनेक मिठाइयाँ जो गौ दूध पर आधारित होती है। दही, मक्खन और घी भारतीय भोजन के आवश्यक अंग हैं। घी में तले व्यंजनों का खाद अप्रतिम होता है। छाछ न केवल प्यास बुझाती हैं बल्की बहुत से प्रचलित व्यंजनों का आधार है।
धार्मिक महत्त्व
- भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय और मंदिरों का एक दूसरे से मज़बूत रिश्ता है, धार्मिक अनुष्ठानों में गाय की अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- गाय को दैविक माना गया है, तथा हिन्दू संस्कृति के अनुसार दिन की शुरुआत गाय की पूजा से शुरू होती है। गाय को खिलाना और उसकी पूजा करना दैविक अनुष्ठान है ।
- पारिवारिक उत्सवों तथा त्योहारों में गाय की प्रधानता है, ऐसे अनेक त्योहार है, जहाँ गाय अपना एक प्रमुख स्थान रखती है।
- अनेक मंदिरों के प्रवेशद्वार पर गाय का छप्पर होता है जिससे मनुष्य में पवित्रता की भावना बढ़ती है।
- हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।
गोपाष्टमी
ब्रज संस्कृति का यह एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकाररहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रात: काल गायों को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गाय के घी का औषधीय गुण (हिन्दी) (पी.एच.पी) merapahadforum.com। अभिगमन तिथि: 5 फ़रवरी, 2011।
- ↑ गाय का वैज्ञानिक नाम क्या है (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
- गाय हमारी माता है
- गाय और माँ
- देसी गाय का महत्त्व
- गाय का दूध क्यों होता है फ़ायदेमंद?
- गाय के दूध व मूत्र में प्राण शक्ति
- गाय के दूध से नवजातों में नहीं होती है एलर्जी
संबंधित लेख