"ओणम": अवतरणों में अंतर
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ओणम, [[केरल]] का एक प्रमुख त्यौहार है। जिस तरह उत्तरी [[भारत]] में [[विजय दशमी|दशहरे]] का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार केरल में ओणम का त्योहार मनाया जाता है। अन्तर केवल इतना है कि दशहरे में दस दिन पहले [[रामलीला|राम लीलाओं]] का आयोजन होता है और ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है। | |||
==मनाने का समय== | ==मनाने का समय== | ||
ओणम | ओणम को मलयाली कैलेण्डर कोलावर्षम के पहले महीने 'छिंगम' यानी [[अगस्त]]-[[सितंबर]] के बीच मनाने की परंपरा चली आ रही है। ओणम के पहले दिन जिसे अथम कहते हैं, से ही घर-घर में ओणम की तैयारियां प्रारंभ हो जाती है और दस दिन के इस उत्सव का समापन अंतिम दिन जिसे 'थिरुओनम' या 'तिरुओणम' कहते हैं, को होता है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-others/%E0%A4%93%E0%A4%A3%E0%A4%AE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-1110909042_1.htm |title=ओणम पर्व पर सजी रंगोलियां |accessmonthday=9 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेबदुनिया हिन्दी|language=हिन्दी }}</ref> | ||
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==ओणम का अर्थ== | ==ओणम का अर्थ== | ||
वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। श्रावण के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता | वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। [[श्रावण]] के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता है, चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है, रंग–बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सारा चमन महक उठता है। केरल में [[चाय]], अदरक, इलायची, [[काली मिर्च]] तथा धान की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है। [[नारियल]] और ताड़ के वृक्षों से छाए हुए [[जल]] से भरे तालाब बहुत सुन्दर लगते हैं। लोगों में नयी–नयी आशाएँ और नयी–नयी उमंगें भर जाती हैं। लोग खुशी में भरकर श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन करते हैं। | ||
==तैयारियाँ== | ==तैयारियाँ== | ||
ओणम के त्योहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे - जैसे ओणम का मुख्य त्योहार निकट आता है, वैसे - वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है। | ओणम के त्योहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे - जैसे ओणम का मुख्य त्योहार निकट आता है, वैसे - वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है। | ||
==मूर्ति की स्थापना== | ==मूर्ति की स्थापना== | ||
इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में [[विष्णु]] भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को 'थप्पतिकलि' कहते हैं। बच्चे [[वामन अवतार]] के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को 'ओणम लप्ण' कहते हैं। रात को हर घर में [[गणेश]] जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे 'पूवड़' कहते हैं। | इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में [[विष्णु]] भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को 'थप्पतिकलि' कहते हैं। बच्चे [[वामन अवतार]] के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को 'ओणम लप्ण' कहते हैं। रात को हर घर में [[गणेश]] जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे 'पूवड़' कहते हैं। | ||
==मुख्य त्योहार== | ==मुख्य त्योहार== | ||
दसवें दिन ओणम का मुख्य त्योहार मनाया जाता है। | दसवें दिन ओणम का मुख्य त्योहार मनाया जाता है। जो कि त्रयोदशी के दिन होता है। इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह सवेरे उठ कर स्नान कर लेते हैं और घर का बुज़ुर्ग सबको नये–नये कपड़े पहनने के लिए देता है। लड़कियाँ एक विशेष प्रकार का पकवान, जिसे 'वाल्लसन' कहते हैं, बना कर श्रावण देवता, गणेश जी, विष्णु भगवान, वामन भगवान तथा फूलों की देवी पर चढ़ाती हैं और लड़के तीर चलाकर उस चढ़ाये हुए पकवान को वापस लौटा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। | ||
[[चित्र:Onam-2.jpg|thumb|250px|left|ओणम, [[केरल]]<br />Onam, Kerala]] | |||
==तिरू ओणम== | ==तिरू ओणम== | ||
तिरू ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को 'नेन्द्रम' कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे 'नेन्द्रम काय' कहते हैं। यह केले केवल [[केरल]] में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। | तिरू ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को 'नेन्द्रम' कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे 'नेन्द्रम काय' कहते हैं। यह केले केवल [[केरल]] में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। | ||
==प्राचीन परम्परायें== | ==प्राचीन परम्परायें== | ||
यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्योहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि पाताल लोक लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्योहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्योहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है। | यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्योहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि [[पाताल लोक]] लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्योहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्योहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है। | ||
==पौराणिक आख्यान== | ==पौराणिक आख्यान== | ||
कहा जाता है कि जब [[परशुराम]]जी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने | कहा जाता है कि जब [[परशुराम]]जी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने [[सह्याद्रि पर्वत]] की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता [[वरुण देवता|वरुण]] की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फैंको। जहाँ तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को 'केरल या मलयालम' कहते हैं। परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहाँ पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है और जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन 'ओणम' का त्योहार मनाया जाता है। हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है। | ||
==वामन कथा== | ==वामन कथा== | ||
राक्षस नरेश महाबली, [[विष्णु]] भगवान के भक्त [[प्रह्लाद]] का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण महाबलि ने | [[चित्र:Onam-1.jpg|thumb|250px|ओणम<br />Onam]] | ||
राक्षस नरेश महाबली, [[विष्णु]] भगवान के भक्त [[प्रह्लाद]] का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण महाबलि ने देवताओं के राज्य को बलपूर्वक छीन लिया था। दुराग्रही व गर्व–दर्प से भरे राजा [[बलि]] ने देवताओं को कष्ट में डाल दिया। तब परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। प्रार्थना सुन भगवान श्री विष्णु ने वामन, अर्थात् बौने के रूप में महर्षि [[कश्यप]] व उनकी पत्नी [[अदिति]] के घर जन्म लिया। एक दिन वामन महाबलि की सभा में पहुँचे। इस ओजस्वी, ब्रह्मचारी नवयुवक को देखकर एकाएक महाबलि उनकी ओर आकर्षित हो गया। महाबलि ने श्रद्धा से इस नवयुवक का स्वागत किया और जो चाहे माँगने को कहा। | |||
श्री वामन ने शुद्धिकरण हेतु अपने लघु पैरों के तीन क़दम जितनी भूमि देने का आग्रह किया। उदार महाबलि ने यह स्वीकार कर लिया। किन्तु जैसे ही महाबलि ने यह भेंट श्रीवामन को दी, वामन का आकार एकाएक बढ़ता ही चला गया। वामन ने तब एक क़दम से पूरी पृथ्वी को ही नाप डाला तथा दूसरे क़दम से आकाश को। अब तीसरा क़दम तो रखने को स्थान बचा ही नहीं था। जब वामन ने बलि से तीसरा क़दम रखने के लिए स्थान माँगा, तब उसने नम्रता से अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। वामन ने अपना तीसरा क़दम मस्तक पर रख महाबलि को पाताल लोक में पहुँचा दिया। बलि ने यह बड़ी उदारता और नम्रता से स्वीकार किया। चूँकि बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को [[वर्ष]] में एक बार अवश्य मिल सकेगा। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं। | |||
==बलि की केरल यात्रा का महोत्सव== | ==बलि की केरल यात्रा का महोत्सव== | ||
आज भी केरलवासी महाबलि की यात्रा को ओणम के रूप में मनाते हैं। पूरा प्रान्त महोत्सव के रंग में रंग जाता है। आम के पत्तों को एक डोरी में बाँधा जाता है तथा घर के द्वारों पर टाँग दिया जाता है। रंग–बिरंगे | आज भी केरलवासी महाबलि की यात्रा को ओणम के रूप में मनाते हैं। पूरा प्रान्त महोत्सव के रंग में रंग जाता है। आम के पत्तों को एक डोरी में बाँधा जाता है तथा घर के द्वारों पर टाँग दिया जाता है। रंग–बिरंगे झाड़–फानूस व नारियल घरों की शोभा को बढ़ाते हैं। मिट्टी के बर्तन के कोन (शंकू) को बलि का प्रतीक मानकर घर के आगे रखा जाता है तथा इसे [[चन्दन]] व [[सिन्दूर]] से सजाया जाता है। आँगनों में रंग–बिरंगी रंगोली के विभिन्न आकार बनाए जाते हैं। | ||
इस पर्व का एक और विशेष कार्यक्रम है, पुष्पों को गोलाकार रूप में सजाकर रखना। इसे ही 'अट्टम या ओणम' कहा जाता है। प्रतिदिन नाना प्रकार के पुष्प गोबर के सूखे कंडे पर लगाए जाते हैं तथा इन्हें घर के आगे रखा जाता है। अट्टम के सौन्दर्य व इसके विभिन्न आकारों की स्पर्धा भी होती है। स्त्रियाँ समवेत स्वर में 'काई, केत, कली' व 'कुम्मी' लयबद्ध होकर गाती हैं। घर का मुखिया परिवार के सदस्यों में नववस्त्र बाँटता है। इस वेशभूषा को 'ओणप्पणं' कहते हैं। पुराने समय में केरल की स्त्रियाँ श्वेत साड़ियाँ पहनती थीं। इन साड़ियों के चारों ओर स्वर्णिम बूटे लगाए जाते थे। कमर से ऊपर का शरीर एक और छोटी धोती 'मेलमुड़' से ढका होता था। आधुनिक समय में केरल की स्त्रियाँ भी अन्य क्षेत्रों भाँति साड़ियाँ या सलवार कमीज़ पहनती हैं। | |||
==मनभावन व्यंजन== | ==मनभावन व्यंजन== | ||
तिरुओणम के दिन प्रातः ही स्नान आदि करके सब लोग नये–नये कपड़े पहनते हैं। बड़े लोग छोटों को आणप्पुड़वा अर्थात्–ओणम के कपड़े प्रदान करते हैं। गाँव के युवक गेंद खेलते हैं। स्त्रियाँ इकट्ठी होकर तालियाँ बजाकर गाती हैं। घरों में केले के पकवान जिसे 'पलनुरनकु' कहते हैं, बनाए जाते हैं। तिरुओणम के पहले ही नयी फ़सल के अनाजों से खलिहान भर जाते हैं। | तिरुओणम के दिन प्रातः ही स्नान आदि करके सब लोग नये–नये कपड़े पहनते हैं। बड़े लोग छोटों को आणप्पुड़वा अर्थात्–ओणम के कपड़े प्रदान करते हैं। गाँव के युवक गेंद खेलते हैं। स्त्रियाँ इकट्ठी होकर तालियाँ बजाकर गाती हैं। घरों में केले के पकवान जिसे 'पलनुरनकु' कहते हैं, बनाए जाते हैं। तिरुओणम के पहले ही नयी फ़सल के अनाजों से खलिहान भर जाते हैं। सुख-समृद्धि के इस अवसर पर ओणम का त्योहार पूरी खुशी के साथ मनाया जाता है। | ||
[[चित्र:Onam.jpg|thumb|250px|ओणम, [[केरल]]<br />Onam, Kerala]] | [[चित्र:Onam.jpg|thumb|250px|left|ओणम, [[केरल]]<br />Onam, Kerala]] | ||
ओनसदया नामक भोज इस समारोह का सबसे आकर्षक कार्यक्रम है। नाना प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न प्रकार की | 'ओनसदया' नामक भोज इस समारोह का सबसे आकर्षक कार्यक्रम है। नाना प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न प्रकार की शाक-सब्जियों का प्रयोग किया जाता है। भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है। नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों तथा तरकारियाँ जिन्हें 'पचड़ी-पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर' इत्यादि कहा जाता है। पापड़ व केले के चिप्स भी बनाए जाते हैं। दूध की खीर जिसे 'पायसम' कहते हैं, ओणम का विशेष भोजन है। | ||
ये सभी पाक व्यंजन 'नम्बूदरी' ब्राह्मणों की पाक कला की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अह्म भूमिका निभाते हैं। कहते हैं कि केरल में अठारह प्रकार के दुग्ध पकवान हैं। इन्हें ऋतु फलों जैसे केला, आम आदि से बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई प्रकार की दालें जैसे मूंग व चना के आटे का प्रयोग भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। | |||
==नौका दौड़== | ==नौका दौड़== | ||
ओणम के अवसर पर यहाँ सर्पनौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे सर्प नौका दौड़ इसलिए कहा जाता है कि ये नौकाएँ सर्पाकार पतली होती हैं। इनकी लम्बाई 50 फीट तक होती है और बीच का भाग बहुत पतला होता है। काली लकड़ी की बनी यह नौकाएँ पानी पर इस तरह से तैरती हैं, मानों कोई बड़ा साँप रेंग रहा हो। | ओणम के अवसर पर यहाँ सर्पनौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे सर्प नौका दौड़ इसलिए कहा जाता है कि ये नौकाएँ सर्पाकार पतली होती हैं। इनकी लम्बाई 50 फीट तक होती है और बीच का भाग बहुत पतला होता है। काली लकड़ी की बनी यह नौकाएँ पानी पर इस तरह से तैरती हैं, मानों कोई बड़ा साँप रेंग रहा हो। | ||
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इसके अतिरिक्त नौका दौड़ भी होती है। नौका चलाने वाले एक ख़ास क़िस्म का गीत गाते हैं। जिसे 'वांची पट्टक्कल' यानी की 'नाव का गीत' कहते हैं। नौका की दौड़ को 'वल्लमुकली' कहते हैं। इस तरह से ओणम का त्योहार मनाकर संध्या के समय विष्णु भगवान, गणेश जी, श्रावण देव तथा वामन देव और फूलों की देवी की मूर्तियों को एक तख्ते पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और फिर आदर सहित किसी तालाब या नदी में ले जाकर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। | इसके अतिरिक्त नौका दौड़ भी होती है। नौका चलाने वाले एक ख़ास क़िस्म का गीत गाते हैं। जिसे 'वांची पट्टक्कल' यानी की 'नाव का गीत' कहते हैं। नौका की दौड़ को 'वल्लमुकली' कहते हैं। इस तरह से ओणम का त्योहार मनाकर संध्या के समय विष्णु भगवान, गणेश जी, श्रावण देव तथा वामन देव और फूलों की देवी की मूर्तियों को एक तख्ते पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और फिर आदर सहित किसी तालाब या नदी में ले जाकर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। | ||
==पर्यटन सप्ताह== | ==पर्यटन सप्ताह== | ||
केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। सरकार ओणम से सम्बन्धित पर्यटन सप्ताह भी आयोजित करती है। जिसमें केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है। ओणम के अवसर पर समूचा केरल | केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। सरकार ओणम से सम्बन्धित पर्यटन सप्ताह भी आयोजित करती है। जिसमें केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है। ओणम के अवसर पर समूचा केरल नावस्पर्धा, नृत्य, संगीत, महाभोज आदि कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है। यह त्योहार केरलवासियों के जीवन के सौंन्दर्य को सहर्ष अंगीकार करने का प्रतीक है। सब के सब एक ही रंग में रंगे होते हैं। केरल सरकार के अतिरिक्त नौसेना भी समय–समय पर बोट रेसिंग आयोजित करती है। आरन्मुला नामक स्थान पर नावों की स्पर्धा देखने के लिए हज़ारों लोगों की संख्या एकत्रित होती है। केरल में कई स्थानों पर 'कत्थक नृत्य' का आयोजन भी किया जाता है। इस महोत्सव को अपार जनसमूह आपसी भाईचारे के साथ मनाता है। यह पर्व अदभुत छटा बिखेरता है। | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पर्व और त्योहार}} | {{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}} | ||
{{व्रत और उत्सव}} | |||
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07:54, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
ओणम
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अन्य नाम | ओनम, तिरुओणम |
अनुयायी | हिन्दू धर्मावलम्बी |
उद्देश्य | केरल में फसलों की कटाई के बाद अगस्त-सितम्बर में मनाया जाने वाला दस दिनों का लम्बा त्यौहार है। |
प्रारम्भ | पौराणिक |
तिथि | ओणम मलयाली कैलेण्डर 'कोलावर्षम' के पहले महीने 'छिंगम' यानी अगस्त-सितंबर के बीच मनाने की परंपरा चली आ रही है। |
उत्सव | घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू धर्म |
संबंधित लेख | दशहरा |
अन्य जानकारी | केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। |
अद्यतन | 16:34, 24 सितम्बर 2011 (IST)
|
ओणम, केरल का एक प्रमुख त्यौहार है। जिस तरह उत्तरी भारत में दशहरे का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार केरल में ओणम का त्योहार मनाया जाता है। अन्तर केवल इतना है कि दशहरे में दस दिन पहले राम लीलाओं का आयोजन होता है और ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है।
मनाने का समय
ओणम को मलयाली कैलेण्डर कोलावर्षम के पहले महीने 'छिंगम' यानी अगस्त-सितंबर के बीच मनाने की परंपरा चली आ रही है। ओणम के पहले दिन जिसे अथम कहते हैं, से ही घर-घर में ओणम की तैयारियां प्रारंभ हो जाती है और दस दिन के इस उत्सव का समापन अंतिम दिन जिसे 'थिरुओनम' या 'तिरुओणम' कहते हैं, को होता है।[1]
ओणम का अर्थ
वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। श्रावण के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता है, चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है, रंग–बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सारा चमन महक उठता है। केरल में चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च तथा धान की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है। नारियल और ताड़ के वृक्षों से छाए हुए जल से भरे तालाब बहुत सुन्दर लगते हैं। लोगों में नयी–नयी आशाएँ और नयी–नयी उमंगें भर जाती हैं। लोग खुशी में भरकर श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन करते हैं।
तैयारियाँ
ओणम के त्योहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे - जैसे ओणम का मुख्य त्योहार निकट आता है, वैसे - वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है।
मूर्ति की स्थापना
इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को 'थप्पतिकलि' कहते हैं। बच्चे वामन अवतार के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को 'ओणम लप्ण' कहते हैं। रात को हर घर में गणेश जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे 'पूवड़' कहते हैं।
मुख्य त्योहार
दसवें दिन ओणम का मुख्य त्योहार मनाया जाता है। जो कि त्रयोदशी के दिन होता है। इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह सवेरे उठ कर स्नान कर लेते हैं और घर का बुज़ुर्ग सबको नये–नये कपड़े पहनने के लिए देता है। लड़कियाँ एक विशेष प्रकार का पकवान, जिसे 'वाल्लसन' कहते हैं, बना कर श्रावण देवता, गणेश जी, विष्णु भगवान, वामन भगवान तथा फूलों की देवी पर चढ़ाती हैं और लड़के तीर चलाकर उस चढ़ाये हुए पकवान को वापस लौटा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
तिरू ओणम
तिरू ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को 'नेन्द्रम' कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे 'नेन्द्रम काय' कहते हैं। यह केले केवल केरल में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।
प्राचीन परम्परायें
यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्योहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि पाताल लोक लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्योहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्योहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है।
पौराणिक आख्यान
कहा जाता है कि जब परशुरामजी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सह्याद्रि पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता वरुण की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फैंको। जहाँ तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को 'केरल या मलयालम' कहते हैं। परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहाँ पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है और जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन 'ओणम' का त्योहार मनाया जाता है। हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है।
वामन कथा
राक्षस नरेश महाबली, विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण महाबलि ने देवताओं के राज्य को बलपूर्वक छीन लिया था। दुराग्रही व गर्व–दर्प से भरे राजा बलि ने देवताओं को कष्ट में डाल दिया। तब परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। प्रार्थना सुन भगवान श्री विष्णु ने वामन, अर्थात् बौने के रूप में महर्षि कश्यप व उनकी पत्नी अदिति के घर जन्म लिया। एक दिन वामन महाबलि की सभा में पहुँचे। इस ओजस्वी, ब्रह्मचारी नवयुवक को देखकर एकाएक महाबलि उनकी ओर आकर्षित हो गया। महाबलि ने श्रद्धा से इस नवयुवक का स्वागत किया और जो चाहे माँगने को कहा।
श्री वामन ने शुद्धिकरण हेतु अपने लघु पैरों के तीन क़दम जितनी भूमि देने का आग्रह किया। उदार महाबलि ने यह स्वीकार कर लिया। किन्तु जैसे ही महाबलि ने यह भेंट श्रीवामन को दी, वामन का आकार एकाएक बढ़ता ही चला गया। वामन ने तब एक क़दम से पूरी पृथ्वी को ही नाप डाला तथा दूसरे क़दम से आकाश को। अब तीसरा क़दम तो रखने को स्थान बचा ही नहीं था। जब वामन ने बलि से तीसरा क़दम रखने के लिए स्थान माँगा, तब उसने नम्रता से अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। वामन ने अपना तीसरा क़दम मस्तक पर रख महाबलि को पाताल लोक में पहुँचा दिया। बलि ने यह बड़ी उदारता और नम्रता से स्वीकार किया। चूँकि बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं।
बलि की केरल यात्रा का महोत्सव
आज भी केरलवासी महाबलि की यात्रा को ओणम के रूप में मनाते हैं। पूरा प्रान्त महोत्सव के रंग में रंग जाता है। आम के पत्तों को एक डोरी में बाँधा जाता है तथा घर के द्वारों पर टाँग दिया जाता है। रंग–बिरंगे झाड़–फानूस व नारियल घरों की शोभा को बढ़ाते हैं। मिट्टी के बर्तन के कोन (शंकू) को बलि का प्रतीक मानकर घर के आगे रखा जाता है तथा इसे चन्दन व सिन्दूर से सजाया जाता है। आँगनों में रंग–बिरंगी रंगोली के विभिन्न आकार बनाए जाते हैं।
इस पर्व का एक और विशेष कार्यक्रम है, पुष्पों को गोलाकार रूप में सजाकर रखना। इसे ही 'अट्टम या ओणम' कहा जाता है। प्रतिदिन नाना प्रकार के पुष्प गोबर के सूखे कंडे पर लगाए जाते हैं तथा इन्हें घर के आगे रखा जाता है। अट्टम के सौन्दर्य व इसके विभिन्न आकारों की स्पर्धा भी होती है। स्त्रियाँ समवेत स्वर में 'काई, केत, कली' व 'कुम्मी' लयबद्ध होकर गाती हैं। घर का मुखिया परिवार के सदस्यों में नववस्त्र बाँटता है। इस वेशभूषा को 'ओणप्पणं' कहते हैं। पुराने समय में केरल की स्त्रियाँ श्वेत साड़ियाँ पहनती थीं। इन साड़ियों के चारों ओर स्वर्णिम बूटे लगाए जाते थे। कमर से ऊपर का शरीर एक और छोटी धोती 'मेलमुड़' से ढका होता था। आधुनिक समय में केरल की स्त्रियाँ भी अन्य क्षेत्रों भाँति साड़ियाँ या सलवार कमीज़ पहनती हैं।
मनभावन व्यंजन
तिरुओणम के दिन प्रातः ही स्नान आदि करके सब लोग नये–नये कपड़े पहनते हैं। बड़े लोग छोटों को आणप्पुड़वा अर्थात्–ओणम के कपड़े प्रदान करते हैं। गाँव के युवक गेंद खेलते हैं। स्त्रियाँ इकट्ठी होकर तालियाँ बजाकर गाती हैं। घरों में केले के पकवान जिसे 'पलनुरनकु' कहते हैं, बनाए जाते हैं। तिरुओणम के पहले ही नयी फ़सल के अनाजों से खलिहान भर जाते हैं। सुख-समृद्धि के इस अवसर पर ओणम का त्योहार पूरी खुशी के साथ मनाया जाता है।
'ओनसदया' नामक भोज इस समारोह का सबसे आकर्षक कार्यक्रम है। नाना प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न प्रकार की शाक-सब्जियों का प्रयोग किया जाता है। भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है। नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों तथा तरकारियाँ जिन्हें 'पचड़ी-पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर' इत्यादि कहा जाता है। पापड़ व केले के चिप्स भी बनाए जाते हैं। दूध की खीर जिसे 'पायसम' कहते हैं, ओणम का विशेष भोजन है।
ये सभी पाक व्यंजन 'नम्बूदरी' ब्राह्मणों की पाक कला की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अह्म भूमिका निभाते हैं। कहते हैं कि केरल में अठारह प्रकार के दुग्ध पकवान हैं। इन्हें ऋतु फलों जैसे केला, आम आदि से बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई प्रकार की दालें जैसे मूंग व चना के आटे का प्रयोग भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है।
नौका दौड़
ओणम के अवसर पर यहाँ सर्पनौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे सर्प नौका दौड़ इसलिए कहा जाता है कि ये नौकाएँ सर्पाकार पतली होती हैं। इनकी लम्बाई 50 फीट तक होती है और बीच का भाग बहुत पतला होता है। काली लकड़ी की बनी यह नौकाएँ पानी पर इस तरह से तैरती हैं, मानों कोई बड़ा साँप रेंग रहा हो।
इसके अतिरिक्त नौका दौड़ भी होती है। नौका चलाने वाले एक ख़ास क़िस्म का गीत गाते हैं। जिसे 'वांची पट्टक्कल' यानी की 'नाव का गीत' कहते हैं। नौका की दौड़ को 'वल्लमुकली' कहते हैं। इस तरह से ओणम का त्योहार मनाकर संध्या के समय विष्णु भगवान, गणेश जी, श्रावण देव तथा वामन देव और फूलों की देवी की मूर्तियों को एक तख्ते पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और फिर आदर सहित किसी तालाब या नदी में ले जाकर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
पर्यटन सप्ताह
केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। सरकार ओणम से सम्बन्धित पर्यटन सप्ताह भी आयोजित करती है। जिसमें केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है। ओणम के अवसर पर समूचा केरल नावस्पर्धा, नृत्य, संगीत, महाभोज आदि कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है। यह त्योहार केरलवासियों के जीवन के सौंन्दर्य को सहर्ष अंगीकार करने का प्रतीक है। सब के सब एक ही रंग में रंगे होते हैं। केरल सरकार के अतिरिक्त नौसेना भी समय–समय पर बोट रेसिंग आयोजित करती है। आरन्मुला नामक स्थान पर नावों की स्पर्धा देखने के लिए हज़ारों लोगों की संख्या एकत्रित होती है। केरल में कई स्थानों पर 'कत्थक नृत्य' का आयोजन भी किया जाता है। इस महोत्सव को अपार जनसमूह आपसी भाईचारे के साथ मनाता है। यह पर्व अदभुत छटा बिखेरता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ओणम पर्व पर सजी रंगोलियां (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 9 सितंबर, 2011।
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