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*दूसरे दिन प्रातः सपत्नीक ब्राह्मण को सम्मानित किया जाता है। | *दूसरे दिन प्रातः सपत्नीक ब्राह्मण को सम्मानित किया जाता है। | ||
*गौरी की चारों प्रतिमाएँ हथिनी या घोड़ा की पीठ पर रखकर किसी नदी, तालाब या कूप में डाल दी जाती हैं।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 485-490, [[पद्म पुराण]] के नागरखण्ड से उद्धरण | *गौरी की चारों प्रतिमाएँ हथिनी या घोड़ा की पीठ पर रखकर किसी नदी, तालाब या कूप में डाल दी जाती हैं।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 485-490, [[पद्म पुराण]] के नागरखण्ड से उद्धरण</ref> | ||
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12:45, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया पर यह व्रत आरम्भ होता है।
- उस दिन उपवास रखा जाता है।
- रात्रि के आगमन पर गौरी की चार प्रतिमाएँ गीली मिट्टी से बनायी जाती हैं, एक अतिरिक्त प्रतिमा पर मिट्टी के पाँच खण्ड रखे जाते हैं।
- प्रत्येक प्रहर में प्रतिमाओं की पूजा मन्त्र, धूप, कर्पूर, घृत के दीप, पुष्पों, नैवेद्य एवं अर्ध्य से की जाती है।
- आगे के तीन प्रहरों में विभिन्न मन्त्रों, धूप, नैवेद्य, पुष्पों आदि का उपयोग किया जाता है।
- दूसरे दिन प्रातः सपत्नीक ब्राह्मण को सम्मानित किया जाता है।
- गौरी की चारों प्रतिमाएँ हथिनी या घोड़ा की पीठ पर रखकर किसी नदी, तालाब या कूप में डाल दी जाती हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 485-490, पद्म पुराण के नागरखण्ड से उद्धरण
अन्य संबंधित लिंक
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