"अशोक वृक्ष": अवतरणों में अंतर
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'''अशोक वृक्ष''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Saraca asoca'') को [[हिन्दू धर्म]] में काफ़ी पवित्र, लाभकारी और विभिन्न मनोरथों को पूर्ण करने वाला माना गया है। अशोक का शब्दिक अर्थ होता है- "किसी भी प्रकार का शोक न होना"। यह पवित्र वृक्ष जिस स्थान पर होता है, वहाँ पर किसी प्रकार का शोक व अशान्ति नहीं रहती। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष पर प्राकृतिक शक्तियों का विशेष प्रभाव माना गया है, जिस कारण यह वृक्ष जिस जगह पर भी उगता है, वहाँ पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते चले जाते हैं। इसी कारण अशोक का वृक्ष भारतीय समाज में काफ़ी प्रासंगिक है। भगवान [[श्रीराम]] ने भी स्वयं ही इसे शोक दूर करने वाले पेड़ की उपमा दी थी। [[कामदेव]] के पंच पुष्प बाणों में एक अशोक भी है। ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे 'अशोक' कहते हैं, अर्थात् जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है। | |||
==वानस्पतिक परिचय== | |||
अशोक का वृक्ष हरित वृक्ष आम के समान 25 से 30 फुट तक ऊँचा, बहुत-सी शाखाओं से युक्त घना व छायादार हाता है। देखने में यह मौलश्री के पेड़ जैसा लगता है, परन्तु ऊँचाई में उससे छोटा ही होता है। इसका तना कुछ लालिमा लिए हुए [[भूरा रंग|भूरे रंग]] का होता है। यह वृक्ष सारे [[भारत]] में पाया जाता है। इसके पल्लव 9 इंच लंबे, गोल व नोंकदार होते हैं। ये साधारण डण्ठल के व दोनों ओर 5-6 जोड़ों में लगते हैं। कोमल अवस्था में इनका वर्ण श्वेताभ [[लाल रंग|लाल]] फिर गहरा [[हरा रंग|हरा]] हो जाता है। पत्ते सूखने पर लाल हो जाते हैं। फल वसंत ऋतु में आते हैं। पहले कुछ [[नारंगी रंग|नारंगी]], फिर क्रमशः लाल हो जाते हैं। ये [[वर्षा]] काल तक ही रहते हैं। | |||
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अशोक वृक्ष के विभिन्न भाषाओं में नाम भिन्न हैं जो निम्नवत हैं- | |||
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==औषधीय व धार्मिक गुण== | |||
अशोक का वृक्ष अपने विशेष गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके कुछ गुण निम्नलिखित हैं- | |||
#अशोक का वृक्ष शीतल, कड़वा, ग्राही, वर्ण को उत्तम करने वाला, कसैला और वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। | |||
#इस वृक्ष का क्वाथ गर्भाशय के रोगों का नाश करता है, विशेषकर रजोविकार को नष्ट करता है। इसकी छाल रक्त प्रदर रोग को नष्ट करने में उपयोगी होती है। | |||
#माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है। | |||
#अशोक के [[फल]] एवं छाल को उबालकर पीने से स्त्रियों को कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह सौंदर्य में भी वृद्धि करता है। | |||
#इसकी छाल को उबालकर पीने से कई तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है। | |||
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#इस वृक्ष को लगाने और उसको सींचने से धन में वृद्धि होती है। | |||
#यदि अशोक वृक्ष की जड़ को तांबे के ताबीज में भरकर विधिपूर्वक धारण किया जाए, तो हर असंभव कार्य पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाएगी। | |||
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==रासायनिक गुण== | |||
अशोक वृक्ष की छाल में हीमैटाक्सिलिन, टेनिन, केटोस्टेरॉल, ग्लाइकोसाइड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्शियम तथा लौह के यौगिक पाए गए हैं, पर अल्कलॉइड और एसेन्शियल ऑइल की मात्रा बिलकुल नहीं पाई गई। टेनिन एसिड के कारण इसकी छाल सख्त ग्राही होती है, बहुत तेज और संकोचक प्रभाव करने वाली होती है, अतः रक्त प्रदर में होने वाले अत्यधिक रजस्राव पर बहुत अच्छा नियन्त्रण होता है।<ref name="वेबदुनिया हिन्दी"/> | |||
==वास्तुशास्त्र में उपयोग== | |||
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अशोक वृक्ष
| |
जगत | पादप |
संघ | मैग्नोलियोफाइटा (Magnoliophyta) |
वर्ग | मैग्नोलियोप्सिडा (Magnoliopsida) |
गण | फ़ेबेल्स (Fabales) |
कुल | फ़ेबेसी (Fabaceae) |
जाति | एस. असोक (S. asoca) |
प्रजाति | सराका (Saraca) |
द्विपद नाम | सराका असोक (Saraca asoca) |
अशोक वृक्ष (अंग्रेज़ी: Saraca asoca) को हिन्दू धर्म में काफ़ी पवित्र, लाभकारी और विभिन्न मनोरथों को पूर्ण करने वाला माना गया है। अशोक का शब्दिक अर्थ होता है- "किसी भी प्रकार का शोक न होना"। यह पवित्र वृक्ष जिस स्थान पर होता है, वहाँ पर किसी प्रकार का शोक व अशान्ति नहीं रहती। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष पर प्राकृतिक शक्तियों का विशेष प्रभाव माना गया है, जिस कारण यह वृक्ष जिस जगह पर भी उगता है, वहाँ पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते चले जाते हैं। इसी कारण अशोक का वृक्ष भारतीय समाज में काफ़ी प्रासंगिक है। भगवान श्रीराम ने भी स्वयं ही इसे शोक दूर करने वाले पेड़ की उपमा दी थी। कामदेव के पंच पुष्प बाणों में एक अशोक भी है। ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे 'अशोक' कहते हैं, अर्थात् जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है।
वानस्पतिक परिचय
अशोक का वृक्ष हरित वृक्ष आम के समान 25 से 30 फुट तक ऊँचा, बहुत-सी शाखाओं से युक्त घना व छायादार हाता है। देखने में यह मौलश्री के पेड़ जैसा लगता है, परन्तु ऊँचाई में उससे छोटा ही होता है। इसका तना कुछ लालिमा लिए हुए भूरे रंग का होता है। यह वृक्ष सारे भारत में पाया जाता है। इसके पल्लव 9 इंच लंबे, गोल व नोंकदार होते हैं। ये साधारण डण्ठल के व दोनों ओर 5-6 जोड़ों में लगते हैं। कोमल अवस्था में इनका वर्ण श्वेताभ लाल फिर गहरा हरा हो जाता है। पत्ते सूखने पर लाल हो जाते हैं। फल वसंत ऋतु में आते हैं। पहले कुछ नारंगी, फिर क्रमशः लाल हो जाते हैं। ये वर्षा काल तक ही रहते हैं।
अशोक वृक्ष की फलियाँ आठ से दस इंच लंबी चपटी, एक से दो इंच चौड़ी दोनों सिरों पर कुछ टेढ़ी होती है। ये ज्येष्ठ माह में लगती हैं। प्रत्येक में चार से दस की संख्या में बीज होते हैं। फलियाँ पहले जामुनी व पकने पर काले वर्ण की हो जाती हैं। बीज के ऊपर की पपड़ी रक्ताभ वर्ण की, चमड़े के सदृश मोटी होती है। औषधीय प्रयोजन में छाल, पुष्प व बीज प्रयुक्त होते हैं। असली अशोक व सीता अशोक, पेण्डुलर ड्रपिंग अशोक जैसी मात्र बगीचों में शोभा देने वाली जातियों में औषधि की दृष्टि से भारी अंतर होता है। छाल इस दृष्टि से सही प्रयुक्त हो, यह अनिवार्य है। असली अशोक की छाल बाहर से शुभ्र धूसर, स्पर्श करने से खुरदरी अंदर से रक्त वर्ण की होती है। स्वाद में कड़वी होती है। मिलावट के बतौर कहीं-कहीं आम के पत्तों वाले अशोक का भी प्रयोग होता है, पर यह वास्तविक अशोक नहीं है।[1]
प्रकार
अशोक का वृक्ष दो प्रकार का होता है- एक तो असली अशोक वृक्ष और दूसरा उससे मिलता-जुलता नकली अशोक वृक्ष।
असली अशोक वृक्ष
असली अशोक के वृक्ष को लैटिन भाषा में 'जोनेसिया अशोका' कहते हैं। यह आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लम्बे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे रंग के होते हैं, इसीलिए इसे 'ताम्रपल्लव' भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसंत ऋतु में आते हैं, जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। सुनहरी लाल रंग के फूलों वाला होने से इसे 'हेमपुष्पा' भी कहा जाता है।
नकली अशोक वृक्ष
नकली अशोक वृक्ष के पत्ते आम के पत्तों जैसे होते हैं। इसके फूल सफ़ेद, पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। यह देवदार जाति का वृक्ष होता है। यह दवाई के काम का नहीं होता।[2]
विभिन्न नाम
अशोक वृक्ष के विभिन्न भाषाओं में नाम भिन्न हैं जो निम्नवत हैं-
- संस्कृत- अशोक
- हिन्दी- अशोक
- मराठी- अशोपक
- गुजराती- आसोपालव
- बंगाली- अस्पाल, अशोक
- तेलुगू- अशोकम्
- तमिल- अशोघम
- अंग्रेज़ी- Saraca asoca (सराका असोक)
- लैटिन- जोनेसिया अशोका।[2]
औषधीय व धार्मिक गुण
अशोक का वृक्ष अपने विशेष गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके कुछ गुण निम्नलिखित हैं-
- अशोक का वृक्ष शीतल, कड़वा, ग्राही, वर्ण को उत्तम करने वाला, कसैला और वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है।
- इस वृक्ष का क्वाथ गर्भाशय के रोगों का नाश करता है, विशेषकर रजोविकार को नष्ट करता है। इसकी छाल रक्त प्रदर रोग को नष्ट करने में उपयोगी होती है।
- माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है।
- अशोक के फल एवं छाल को उबालकर पीने से स्त्रियों को कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह सौंदर्य में भी वृद्धि करता है।
- इसकी छाल को उबालकर पीने से कई तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है।
- यदि व्यक्ति किसी महत्त्वपूर्ण कार्य से जा रहा है तो अशोक वृक्ष का एक पत्ता अपने सिर पर धारण करके जाए, इससे कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी।
- अशोक के वृक्ष की जड़ शुभ मुहूर्त में लाकर विधिपूर्वक पूजन कर धारण करें या पूजा स्थल में रखें, तो धन की कमी नहीं होती।
- इस वृक्ष को लगाने और उसको सींचने से धन में वृद्धि होती है।
- यदि अशोक वृक्ष की जड़ को तांबे के ताबीज में भरकर विधिपूर्वक धारण किया जाए, तो हर असंभव कार्य पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाएगी।
- इस वृक्ष को प्रतिदिन जल देने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
- इस वृक्ष के बीज, पत्ते एवं छाल को पीसकर लेप लगाने से सौंदर्य वृद्धि होती है।
- इसके बीज या फूल को शहद के साथ मिलाकर खाया जाए, तो कई व्याधियाँ दूर होती हैं।
रासायनिक गुण
अशोक वृक्ष की छाल में हीमैटाक्सिलिन, टेनिन, केटोस्टेरॉल, ग्लाइकोसाइड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्शियम तथा लौह के यौगिक पाए गए हैं, पर अल्कलॉइड और एसेन्शियल ऑइल की मात्रा बिलकुल नहीं पाई गई। टेनिन एसिड के कारण इसकी छाल सख्त ग्राही होती है, बहुत तेज और संकोचक प्रभाव करने वाली होती है, अतः रक्त प्रदर में होने वाले अत्यधिक रजस्राव पर बहुत अच्छा नियन्त्रण होता है।[2]
वास्तुशास्त्र में उपयोग
- अशोक का वृक्ष घर में उत्तर दिशा में लगाना चाहिए, जिससे गृह में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण बना रहता है। घर में अशोक के वृक्ष होने से सुख, शान्ति एवं समृद्धि बनी रहती है एवं अकाल मृत्यु नहीं होती।
- परिवार की महिलाओं को शारीरिक व मानसिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। यदि महिलायें अशोक के वृक्ष पर प्रतिदिन जल अर्पित करती रहें तो उनकी इच्छाएँ एवं वैवाहिक जीवन में सुखद वातावरण बना रहता है।
- छात्रों की स्मरण शक्ति के लिए अशोक की छाल तथा ब्रहमी समान मात्रा में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह शाम एक गिलास हल्के गर्म दूध के साथ सेवन करने से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अशोक (साराका इण्डिका) (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 मई, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 अशोक एवं अशोकारिष्ट (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2012।
- ↑ वास्तु के अनुसार अशोक का पेड़ प्रतीक है सकारात्मक उर्जा का (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वनइंडिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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