"देवी व्रत": अवतरणों में अंतर
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*श्वेत पुष्पों से सम्मान देने के उपरान्त धूप, घण्टी एवं दीप का दान किया जाता है। | *श्वेत पुष्पों से सम्मान देने के उपरान्त धूप, घण्टी एवं दीप का दान किया जाता है। | ||
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*किसी भी मास की पूर्णिमा पर, कर्ता केवल दूध पर रहता है तथा गोदान करने से लक्ष्मी के लोक में पहुँचता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 239); कृत्यकल्पतरु (447-448 | *किसी भी मास की पूर्णिमा पर, कर्ता केवल दूध पर रहता है तथा गोदान करने से लक्ष्मी के लोक में पहुँचता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 239); कृत्यकल्पतरु (447-448</ref> | ||
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12:50, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत कार्तिक में होता है।
- कर्ता केवल दूध एवं रात्रि में शाक सब्जी मात्र खाता है।
- इसमें देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
- तिल से होम किया जाता है,- 'जयन्ती मंगला काली भदकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा धात्री स्वधा स्वाहा नमोस्तु ते।।' मन्त्र के साथ में जाप किया जाता है।
- इससे सभी पापों, रोगों एवं भयों से मुक्ति हो जाती है।[1]
- प्रकीर्णक व्रत, गौरी एवं शम्भु, जनार्दन एवं लक्ष्मी तथा सूर्य एवं उसकी पत्नी छाया की मूर्तियों की पूजा की जाती है।
- श्वेत पुष्पों से सम्मान देने के उपरान्त धूप, घण्टी एवं दीप का दान किया जाता है।
- इससे दिव्य रूप प्राप्त होता है।[2]
- किसी भी मास की पूर्णिमा पर, कर्ता केवल दूध पर रहता है तथा गोदान करने से लक्ष्मी के लोक में पहुँचता है।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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