"ध्रुव तीर्थ मथुरा": अवतरणों में अंतर
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अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक [[ध्रुव]] देवर्षि [[नारद]] से यहीं [[यमुना नदी|यमुना]] तट पर मिला था । देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया । पुन: यहीं से [[मधुवन]] के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं । यहाँ [[श्राद्ध]] करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। । [[गया]] में [[पिण्ड दान]] करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्राचीन [[निम्बादित्य]] सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरुपरम्परा की धारा में रहते आये हैं । प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का [[ब्रजमण्डल]] में यही एक स्थान बचा हुआ है । | |||
यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप: ।<br /> | <blockquote>यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप: ।<br /> | ||
तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते ।।<br /> | तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते ।।<br /> | ||
ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरुते नर: ।<br /> | ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरुते नर: ।<br /> | ||
पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत: ।। | पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत: ।। | ||
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==वास्तु== | ==वास्तु== | ||
यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है । | यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है । | ||
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13:19, 15 जून 2011 के समय का अवतरण
अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक ध्रुव देवर्षि नारद से यहीं यमुना तट पर मिला था । देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया । पुन: यहीं से मधुवन के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं । यहाँ श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। । गया में पिण्ड दान करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरुपरम्परा की धारा में रहते आये हैं । प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का ब्रजमण्डल में यही एक स्थान बचा हुआ है ।
यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप: ।
तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते ।।
ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरुते नर: ।
पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत: ।।----आदि वराह पुराण
वास्तु
यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है ।