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*ऐसी मान्यता है कि शान्ती पंचमी व्रत से कर्ता से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं। | *ऐसी मान्यता है कि शान्ती पंचमी व्रत से कर्ता से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं। | ||
*शान्ती पंचमी मंत्र यह है, '''कुरुल्ले हुं फट्स्वाहा'''।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 1, 95, केवल आश्विन पंचमी पर); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 563-564, [[भविष्य पुराण]] 1|37|1-3 एवं 1|38|1-5 से उद्धरण | *शान्ती पंचमी मंत्र यह है, '''कुरुल्ले हुं फट्स्वाहा'''।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 1, 95, केवल आश्विन पंचमी पर); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 563-564, [[भविष्य पुराण]] 1|37|1-3 एवं 1|38|1-5 से उद्धरण</ref> | ||
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13:01, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- भाद्रपद की पंचमी पर शान्ती पंचमी व्रत किया जाता है।
- काले एवं अन्य चूर्णों से सर्पों की आकृतियाँ तथा गंध आदि से पूजा करनी चाहिए।
- आश्विन पंचमी पर दर्भों से सर्पाकृतियाँ बनाकर उनकी पूजा, इन्द्राणी की पूजा भी करनी चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि शान्ती पंचमी व्रत से कर्ता से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं।
- शान्ती पंचमी मंत्र यह है, कुरुल्ले हुं फट्स्वाहा।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 1, 95, केवल आश्विन पंचमी पर); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 563-564, भविष्य पुराण 1|37|1-3 एवं 1|38|1-5 से उद्धरण
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