"अक्षय तृतीया": अवतरणों में अंतर
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'''अक्षय तृतीया''' [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[तृतीया]] को कहा जाता है। वैदिक कलैण्डर के चार सर्वाधिक शुभ दिनों में से यह एक मानी गई है। 'अक्षय' से तात्पर्य है 'जिसका कभी क्षय न हो' अर्थात् जो कभी नष्ट नहीं होता। [[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[वृन्दावन]] में [[बांके बिहारी मन्दिर|ठाकुर जी]] के चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यत: 'अखतीज' या 'अक्खा तीज' के नाम से भी पुकारा जाता है। [[वैशाख मास]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[तृतीया]] तिथि 'अक्षय तृतीया' के नाम से लोक विख्यात है। अक्षय तृतीया को [[विष्णु|भगवान विष्णु]] ने [[परशुराम]] [[अवतार]] लिया था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। | |||
==दिव्य अवतार तिथि== | |||
[[ग्रीष्म ऋतु]] का पदार्पण, हरियाली फ़सल को पका कर, लोगों में खुशी का संचार कर, विभिन्न व्रत, पर्वों के साथ होता है। भारत भूमि व्रत व पर्वों के मोहक हार से सजी हुई मानव मूल्यों व धर्म रक्षा की गौरव गाथा गाती है। [[धर्म]] व मानव मूल्यों की रक्षा हेतु [[विष्णु|श्रीहरि विष्णु]] देशकाल के अनुसार अनेक रूपों को धारण करते हैं, जिसमें भगवान [[परशुराम]], नर नारायण के तीन पवित्र व शुभ [[अवतार]] अक्षय तृतीया को उदय हुए थे। मानव कल्याण की इच्छा से धर्म शास्त्रों में [[पुण्य]] शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है, जिसमें अक्षय तृतीया का व्रत भी प्रमुख है, जो कि अपने आप में स्वयंसिद्ध है। | |||
{{बाँयाबक्सा|पाठ=[[वृन्दावन]] स्थित श्री [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी जी के मन्दिर]] में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।|विचारक=}} | |||
====क्षमा-प्रार्थना का दिन==== | |||
'अक्षय' का अर्थ है. "जो कभी भी ख़त्म नहीं होता" अर्थात् 'जिसका कभी अन्त नहीं होता'। [[हिन्दू धर्म]] की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को 'सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन' भी कहते है, क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिये [[पंचांग]] देखने की ज़रूरत नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किये गये जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिये अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए। | |||
==धार्मिक महत्त्व== | |||
[[पुराण|पुराणों]] में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से [[त्रेता युग]] का आरंभ हुआ था। नर नारायण ने भी इसी दिन [[अवतार]] लिया था। भगवान [[परशुराम]] जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ। प्रसिद्ध तीर्थस्थल [[बद्रीनाथ|बद्रीनारायण]] के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। [[वृन्दावन]] स्थित श्री [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी जी के मन्दिर]] में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। अक्षय तृतीया को व्रत रखने और अधिकाधिक दान देने का बड़ा ही महात्म्य है। अक्षय तृतीया में [[सतयुग]], किंतु कल्पभेद से [[त्रेतायुग]] की शुरुआत होने से इसे '''युगादि तिथि''' भी कहा जाता है। वैशाख मास में भगवान भास्कर की तेज धूप तथा लहलहाती गर्मी से प्रत्येक जीवधारी क्षुधा पिपासा से व्याकुल हो उठता है। इसलिए इस तिथि में शीतल [[जल]], [[कलश]], [[चावल]], [[चना]], [[दूध]], [[दही]] आदि खाद्य व पेय पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है। सुख शांति की कामना से व सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन [[शिव]]-[[पार्वती]] और नर नारायण की [[पूजा]] का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रखकर जो प्राणी [[गंगा]]-[[यमुना|जमुनादि]] तीर्थों में [[स्नान]] कर अपनी शक्तिनुसार देव स्थल व घर में [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] द्वारा [[यज्ञ]], होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं, उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है। | |||
[[चित्र:Banke-Bihari-Temple-Vrindavan.jpg|thumb|left|[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी जी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]]] | |||
==सुख व समृद्धि वर्धक== | |||
तृतीया तिथि माँ [[गौरी]] की तिथि है, जो बल-बुद्धि वर्धक मानी गई हैं। अत: सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन माँ गौरी व सम्पूर्ण [[शिव]] परिवार की पूजा करते हैं, उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि अविवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन श्रद्धा विश्वास से माँ गौरी सहित अनंत प्रभु शिव को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं तो उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में अविलम्ब व निर्बाध रूप से जुड़ने का पवित्र अवसर अति शीघ्र मिलता है। [[वैशाख मास]] की [[शुक्ल पक्ष]] की [[तृतीया]] के दिन अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है। इस तिथि का जहाँ धार्मिक महत्व है, वहीं यह तिथि व्यापारिक रौनक बढ़ाने वाली भी मानी गई है। इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की ख़रीद-फरोख्त को बहुत ही शुभ माना जाता है। जिससे आभूषण निर्माता व विक्रेता अपने प्रतिष्ठानों को बड़े ही सुन्दर ढंग से सजाते हैं और कई तरह से ग्राहकों को लुभाने व आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। कई बड़े प्रतिष्ठानों में तो विक्रय लक्ष्य भी तय किए जाते हैं। इसमें इच्छित आभूषणों की ख़रीद व शुभ कार्य सम्पन्न करने से मानव जीवन सुख व धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। श्रद्धालु [[भक्त]] प्रभु की अर्चना वंदना करते हुए विविध नैवेद्य अर्पित करते हैं। अक्षय तृतीया सुख-शांति व सौभाग्य में निरंतर वृद्धि करने वाली है। | |||
==व्रत पद्धति== | |||
[[चित्र:Mangal-kalash.jpg|thumb|[[मंगल कलश]]]] | |||
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। अपने नित्य कर्म व घर की साफ-सफ़ाई से निवृत होकर [[स्नान]] करें। वैसे इस दिन [[समुद्र]], [[गंगा नदी|गंगा]] या [[यमुना नदी|यमुना]] में स्नान करना चाहिए। इस दिन उपवास रखें और घर में ही किसी पवित्र स्थान पर [[विष्णु]] भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन का संकल्प करें। संकल्प के बाद भगवान विष्णु को [[पंचामृत]] से स्नान कराएं, तत्पश्चात् उन्हें सुगंधित चंदन, पुष्पमाला अर्पण करें। नैवेद्य में [[जौ]] या जौ का सत्तू, ककडी और [[चना]] की दाल अर्पण करें। भगवान विष्णु को [[तुलसी]] अधिक प्रिय है, अतः नैवेद्य के साथ तुलसी अवश्य चढाएँ। जहाँ तक हो सके तो ‘विष्णु सस्त्रनाम’ का पाठ भी करें। अंत में भक्ति पूर्वक आरती करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार [[सूर्य देवता|सूर्य]] और [[चंद्रमा देवता|चंद्रमा]] इस दिन उच्चस्थ स्थिति में होते हैं। इस दिन उपवास रखते हैं और जौ, सत्तू, अन्न तथा [[चावल]] से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन को 'नवन्न पर्व' भी कहते हैं। इस दिन बरतन, पात्र, मिष्ठान, [[तरबूज़|तरबूज़ा]], [[ख़रबूज़|ख़रबूज़ा]], [[दूध]], [[दही]], चावल का दान देना चाहिए। | |||
====प्रचलित कथाएँ==== | |||
{{बाँयाबक्सा|पाठ=[[स्कंद पुराण]] और [[भविष्य पुराण]] में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को [[रेणुका]] के गर्भ से भगवान [[विष्णु]] ने [[परशुराम]] के रूप में जन्म लिया। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और कुँवारी कन्याएँ इस दिन [[गौरी]] माँ की पूजा करके मिठाई, [[फल]] और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी की पूजा करके [[धातु]] या [[मिट्टी]] के [[कलश]] में [[जल]], फल, [[फूल]], [[तिल]], अन्न आदि लेकर दान करती हैं । |विचारक=}} | |||
अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक [[वैश्य]] था। उसकी सदाचार, [[देवता]] और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के प्रति काफ़ी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात् उसने इस पर्व के आने पर [[गंगा]] में [[स्नान]] करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। | |||
[[स्कंद पुराण]] और [[भविष्य पुराण]] में उल्लेख है कि वैशाख | [[स्कंद पुराण]] और [[भविष्य पुराण]] में उल्लेख है कि [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[तृतीया]] को [[रेणुका]] के गर्भ से [[विष्णु|भगवान विष्णु]] ने [[परशुराम]] के रूप में जन्म लिया। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, [[गौरी]] की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में [[जल]], फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और [[विश्वामित्र]] की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र [[ब्रह्मर्षि]] कहलाए। उल्लेख है कि [[सीता]] के स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री [[राम]] को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए थे। वह अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा। | ||
< | ==सौभाग्य का प्रतीक== | ||
'अक्षय तृतीया' के दिन ख़रीदे गये वेशक़ीमती [[आभूषण]] एवं सामान शाश्वत समृद्धि के प्रतीक हैं। इस दिन ख़रीदा व धारण किया गया सोना अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इस दिन शुरू किये गए किसी भी नये काम या किसी भी काम में लगायी गई पूँजी में सदा सफलता मिलती है और वह फलता-फूलता है। यह माना जाता है कि इस दिन ख़रीदा गया [[सोना]] कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान [[विष्णु]] एवं माता [[लक्ष्मी]] स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://arvindsisodiakota.blogspot.in/2012/04/blog-post_8972.html अक्षय तृतीया : आखा तीज : स्वयंसिद्ध अभिजीत मुहूर्त ] | |||
*[http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-7276.html अक्षय तृतीया: विष्णु अवतार दिवस] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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{{व्रत और उत्सव}} | [[Category:संस्कृति कोश]][[Category:पर्व और त्योहार]][[Category:व्रत और उत्सव]] | ||
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07:25, 18 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
अक्षय तृतीया
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अन्य नाम | 'अखतीज' या 'अक्खा तीज' |
अनुयायी | हिंदू, भारतीय |
उद्देश्य | अक्षय तृतीया के दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
तिथि | वैशाख शुक्ल तृतीया |
उत्सव | अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है। इस तिथि का जहाँ धार्मिक महत्व है, वहीं यह तिथि व्यापारिक रौनक बढ़ाने वाली भी मानी गई है। |
धार्मिक मान्यता | पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। नर नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ। |
प्रसिद्धि | यह माना जाता है कि इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। |
अन्य जानकारी | हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को 'सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन' भी कहते है, क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिये पंचांग देखने की ज़रूरत नहीं होती। |
अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल तृतीया को कहा जाता है। वैदिक कलैण्डर के चार सर्वाधिक शुभ दिनों में से यह एक मानी गई है। 'अक्षय' से तात्पर्य है 'जिसका कभी क्षय न हो' अर्थात् जो कभी नष्ट नहीं होता। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वृन्दावन में ठाकुर जी के चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यत: 'अखतीज' या 'अक्खा तीज' के नाम से भी पुकारा जाता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 'अक्षय तृतीया' के नाम से लोक विख्यात है। अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है।
दिव्य अवतार तिथि
ग्रीष्म ऋतु का पदार्पण, हरियाली फ़सल को पका कर, लोगों में खुशी का संचार कर, विभिन्न व्रत, पर्वों के साथ होता है। भारत भूमि व्रत व पर्वों के मोहक हार से सजी हुई मानव मूल्यों व धर्म रक्षा की गौरव गाथा गाती है। धर्म व मानव मूल्यों की रक्षा हेतु श्रीहरि विष्णु देशकाल के अनुसार अनेक रूपों को धारण करते हैं, जिसमें भगवान परशुराम, नर नारायण के तीन पवित्र व शुभ अवतार अक्षय तृतीया को उदय हुए थे। मानव कल्याण की इच्छा से धर्म शास्त्रों में पुण्य शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है, जिसमें अक्षय तृतीया का व्रत भी प्रमुख है, जो कि अपने आप में स्वयंसिद्ध है।
वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
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क्षमा-प्रार्थना का दिन
'अक्षय' का अर्थ है. "जो कभी भी ख़त्म नहीं होता" अर्थात् 'जिसका कभी अन्त नहीं होता'। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है। इस दिन को 'सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन' भी कहते है, क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिये पंचांग देखने की ज़रूरत नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किये गये जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिये अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए।
धार्मिक महत्त्व
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। नर नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। अक्षय तृतीया को व्रत रखने और अधिकाधिक दान देने का बड़ा ही महात्म्य है। अक्षय तृतीया में सतयुग, किंतु कल्पभेद से त्रेतायुग की शुरुआत होने से इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। वैशाख मास में भगवान भास्कर की तेज धूप तथा लहलहाती गर्मी से प्रत्येक जीवधारी क्षुधा पिपासा से व्याकुल हो उठता है। इसलिए इस तिथि में शीतल जल, कलश, चावल, चना, दूध, दही आदि खाद्य व पेय पदार्थों सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है। सुख शांति की कामना से व सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर नारायण की पूजा का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रखकर जो प्राणी गंगा-जमुनादि तीर्थों में स्नान कर अपनी शक्तिनुसार देव स्थल व घर में ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं, उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
सुख व समृद्धि वर्धक
तृतीया तिथि माँ गौरी की तिथि है, जो बल-बुद्धि वर्धक मानी गई हैं। अत: सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन माँ गौरी व सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं, उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि अविवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन श्रद्धा विश्वास से माँ गौरी सहित अनंत प्रभु शिव को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं तो उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में अविलम्ब व निर्बाध रूप से जुड़ने का पवित्र अवसर अति शीघ्र मिलता है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है। इस तिथि का जहाँ धार्मिक महत्व है, वहीं यह तिथि व्यापारिक रौनक बढ़ाने वाली भी मानी गई है। इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की ख़रीद-फरोख्त को बहुत ही शुभ माना जाता है। जिससे आभूषण निर्माता व विक्रेता अपने प्रतिष्ठानों को बड़े ही सुन्दर ढंग से सजाते हैं और कई तरह से ग्राहकों को लुभाने व आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। कई बड़े प्रतिष्ठानों में तो विक्रय लक्ष्य भी तय किए जाते हैं। इसमें इच्छित आभूषणों की ख़रीद व शुभ कार्य सम्पन्न करने से मानव जीवन सुख व धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। श्रद्धालु भक्त प्रभु की अर्चना वंदना करते हुए विविध नैवेद्य अर्पित करते हैं। अक्षय तृतीया सुख-शांति व सौभाग्य में निरंतर वृद्धि करने वाली है।
व्रत पद्धति
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। अपने नित्य कर्म व घर की साफ-सफ़ाई से निवृत होकर स्नान करें। वैसे इस दिन समुद्र, गंगा या यमुना में स्नान करना चाहिए। इस दिन उपवास रखें और घर में ही किसी पवित्र स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन का संकल्प करें। संकल्प के बाद भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात् उन्हें सुगंधित चंदन, पुष्पमाला अर्पण करें। नैवेद्य में जौ या जौ का सत्तू, ककडी और चना की दाल अर्पण करें। भगवान विष्णु को तुलसी अधिक प्रिय है, अतः नैवेद्य के साथ तुलसी अवश्य चढाएँ। जहाँ तक हो सके तो ‘विष्णु सस्त्रनाम’ का पाठ भी करें। अंत में भक्ति पूर्वक आरती करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चंद्रमा इस दिन उच्चस्थ स्थिति में होते हैं। इस दिन उपवास रखते हैं और जौ, सत्तू, अन्न तथा चावल से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन को 'नवन्न पर्व' भी कहते हैं। इस दिन बरतन, पात्र, मिष्ठान, तरबूज़ा, ख़रबूज़ा, दूध, दही, चावल का दान देना चाहिए।
प्रचलित कथाएँ
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और कुँवारी कन्याएँ इस दिन गौरी माँ की पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं ।
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अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देवता और ब्राह्मणों के प्रति काफ़ी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात् उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना।
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता के स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए थे। वह अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।
सौभाग्य का प्रतीक
'अक्षय तृतीया' के दिन ख़रीदे गये वेशक़ीमती आभूषण एवं सामान शाश्वत समृद्धि के प्रतीक हैं। इस दिन ख़रीदा व धारण किया गया सोना अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इस दिन शुरू किये गए किसी भी नये काम या किसी भी काम में लगायी गई पूँजी में सदा सफलता मिलती है और वह फलता-फूलता है। यह माना जाता है कि इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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