|
|
(5 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 17 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
| {{कला सामान्य ज्ञान}} | | {{कला सामान्य ज्ञान नोट}} |
| | {{कला सामान्य ज्ञान}} |
|
| |
|
| {| class="bharattable-green" width="100%" | | {| class="bharattable-green" width="100%" |
पंक्ति 8: |
पंक्ति 9: |
| | | | | |
| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| | | {निम्नलिखित में कौन [[कर्नाटक संगीत]] के [[संगीतज्ञ]] नहीं हैं? |
| {[[संगीत]] में समान गति को क्या कहा जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -मात्रा
| |
| -ताल
| |
| +लय
| |
| -विभाग
| |
| | |
| {भारतीय ग्रंथानुसार 'ताल' में 'लय' वर्ण किसका द्योतक है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[कृष्ण]]
| |
| +[[पार्वती]]
| |
| -[[शिव]]
| |
| -[[गणेश]]
| |
| ||[[चित्र:Bhagwan-Shiv-1.jpg|शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय|100px|right]] पार्वती, पर्वतराज [[हिमालय]] और मेना की कन्या हैं। मेना और हिमवान ने आदिशक्ति के वरदान से आदिशक्ति को कन्या के रूप में प्राप्त किया। उसका नाम पार्वती रखा गया। वह भूतपूर्व [[सती]] तथा आदिशक्ति थीं। इन्हीं को [[उमा]], गिरिजा और शिवा भी कहते हैं।{{point}} अधिक जानकारी देखें:-[[पार्वती|पार्वती देवी]]
| |
| | |
| {निम्नलिखित में से कौन-सा हिन्दुस्तानी ताल नहीं है? | |
| |type="()"}
| |
| -कहरवा
| |
| -दादरा
| |
| -धमार
| |
| +आदिताल
| |
| | |
| {[[संगीत]] में समय नापने को क्या कहा जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| +मात्रा
| |
| -ताल
| |
| -लय
| |
| -विभाग
| |
| | |
| {भातखण्डे संगीत पद्धति में सम को किस चिह्न द्वारा प्रदर्शित किया जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -+
| |
| +x
| |
| -o
| |
| -1
| |
| | |
| {'[[ध्रुपद]]' एवं '[[धमार]]' गायकों में किस प्रकार के आलाप की परम्परा है?
| |
| |type="()"}
| |
| +नोमतोम का आलाप
| |
| -आकार का आलाप
| |
| -उपरोक्त दोनों
| |
| -इनमें से कोई नहीं
| |
| | |
| {निम्नलिखित में से कौन-सा तान का रूप है?
| |
| |type="()"}
| |
| -अलंकृत तान
| |
| -कूट तान
| |
| -जबड़े की तान
| |
| +ये सभी
| |
| | |
| {'खटका' का दूसरा नाम क्या है?
| |
| |type="()"}
| |
| -मुर्की
| |
| -कण
| |
| -गमक
| |
| +जमजमा
| |
| | |
| {'मिजराब' द्वारा किस वाद्य यंत्र को बजाया जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[सितार]]
| |
| -गिटार
| |
| -वीणा
| |
| -वायलिन
| |
| ||[[चित्र:Sitar.jpg|सितार|100px|right]]सितार के जन्म के विषय में विद्वानों के अनेक मत हैं। अभी तक किसी भी मत के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण नहीं प्राप्त हो सका हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार इसका निर्माण वीणा के एक प्रकार के आधार पर हुआ है। भारतीयता को महत्त्व देने वाले भारतीय विद्वान इस मत को सहज में ही मान लेते हैं।{{point}} अधिक जानकारी देखें:-[[सितार]]
| |
| | |
| {'संगति' गाने-बजाने की नवीन पद्धति है, जिसकी शुरुआत की थी-
| |
| |type="()"}
| |
| -पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने
| |
| -पं. भातखण्डे ने
| |
| +पं. त्यागराज ने
| |
| -पं. शारंगदेव ने
| |
| | |
| {निम्नलिखित में कौन [[कर्नाटक]] संगीत के संगीतज्ञ नहीं है?
| |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -त्यागराज | | -[[त्यागराज]] |
| -रामदास | | -रामदास |
| -पुरन्दरदास | | -पुरन्दरदास |
पंक्ति 95: |
पंक्ति 23: |
| -सभी में | | -सभी में |
|
| |
|
| {[[कर्नाटक]] [[संगीत]] में 'सरगम' को क्या कहा जाता है? | | {[[कर्नाटक संगीत]] में 'सरगम' को क्या कहा जाता है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -वर्णम | | -वर्णम |
पंक्ति 102: |
पंक्ति 30: |
| -मुखारी | | -मुखारी |
|
| |
|
| {हिंदुस्तानी शैली का विकास किसने किया था? | | {[[संगीत]] की हिंदुस्तानी शैली का विकास किसने किया था? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[अमीर ख़ुसरो]] | | +[[अमीर ख़ुसरो]] |
| -[[तानसेन]] | | -[[तानसेन]] |
| -[[स्वामी हरिदास]] | | -[[स्वामी हरिदास]] |
| -भातखण्डे | | -[[विष्णुनारायण भातखंडे]] |
| ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|100px|right]][[हिन्दी]] खड़ी बोली के पहले लोकप्रिय कवि अमीर ख़ुसरो ने कई गज़ल, ख़याल, कव्वाली, रुबाई, तराना की रचना की हैं। अमीर ख़ुसरो का जन्म सन 1253 ई. में [[एटा]] ([[उत्तरप्रदेश]]) के पटियाली नामक क़स्बे में [[गंगा]] किनारे हुआ था। अमीर ख़ुसरो मध्य [[एशिया]] की लाचन जाति के तुर्क सैफ़उद्दीन के पुत्र हैं। {{point}} अधिक जानकारी देखें:- [[अमीर ख़ुसरो]] | | ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|border|right|90px|अमीर ख़ुसरो]]'अमीर ख़ुसरो' [[हिन्दी]] [[खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय [[कवि]] थे, जिन्होंने कई [[ग़ज़ल]], [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] और [[तराना]] आदि की रचनाएँ की थीं। कहा जाता है कि [[तबला]] हज़ारों साल पुराना [[वाद्य यंत्र]] है किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ [[अमीर ख़ुसरो]] ने [[पखावज]] के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया। ख़ुसरो की अन्तिम ऐतिहासिक मसनवी 'तुग़लक़' नामक है जो उन्होंने [[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] के राज्य-काल में लिखी और जिसे उन्होंने उसी सुल्तान को समर्पित किया। सुल्तान के साथ ख़ुसरो [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के आक्रमण में भी सम्मिलित थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] |
|
| |
|
| {निम्नलिखित में से कौन '[[ध्रुपद]]' गायक नहीं थे? | | {निम्नलिखित में से कौन '[[ध्रुपद]]' गायक नहीं थे? |
पंक्ति 116: |
पंक्ति 44: |
| -[[तानसेन]] | | -[[तानसेन]] |
| -[[बैजू बावरा]] | | -[[बैजू बावरा]] |
| | | ||'ध्रुपद' [[भारत]] की समृद्ध गायन शैली है। 'ध्रुपद' का शब्दश: अर्थ होता है- 'ध्रुव+पद' अर्थात् 'जिसके नियम निश्चित हों, अटल हों, जो नियमों में बंधा हुआ हो।' यह अत्यधिक प्राचीन शैली है। [[नाट्यशास्त्र]] के अनुसार वर्ण, अलंकार, गान-क्रिया, यति, वाणी, लय आदि जहाँ परस्पर सम्बद्ध रहें, उन गीतों को 'ध्रुव' कहा गया है। जिन पदों में यह नियम शामिल हों, उन्हें 'ध्रुवपद' या '[[ध्रुपद]]' कहा जाता है। ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ और फेफड़े पर बल पड़ता है। इसलिये लोग इसे 'मर्दाना गीत' भी कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुपद]] |
| {'[[ध्रुपद]]' में किस ताल का प्रयोग होता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -दादरा | |
| -रूपक
| |
| -कहरवा
| |
| +चारताल | |
| | |
| {निम्नलिखित में कौन-सा असत्य है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[ध्रुपद]] को मर्दाना गीत कहा जाता है।
| |
| +ध्रुपद की रचना सर्वप्रथम [[तानसेन]] ने की थी।
| |
| -बड़े ख्याल के आविष्कारक सुल्तान हुसैन शर्की थे।
| |
| -'ख़याल' [[फ़ारसी भाषा]] से लिया गया है। | |
| | |
| {प्राचीन काल में [[ध्रुपद]] गाने वाले को क्या कहा जाता था?
| |
| |type="()"}
| |
| -गायक
| |
| -ध्रुपदविद्
| |
| +कलावंत
| |
| -इनमें से कोई नहीं
| |
| | |
| {'विलम्बित ख़्याल' में प्रयोग न होने वाला ताल है?
| |
| |type="()"}
| |
| +रूपक
| |
| -तिलवाड़ा
| |
| -एकताल
| |
| -झूमरा
| |
| | |
| {'[[धमार]]' गायक शैली में किस भाषा का मुख्यतः प्रयोग किया जाता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[अवधी भाषा]]
| |
| -[[मैथिली भाषा]]
| |
| -[[फ़ारसी भाषा]]
| |
| +[[ब्रज भाषा]]
| |
| ||[[चित्र:Raskhan-2.jpg|रसखान के दोहे|100px|right]] ब्रजभाषा मूलत: ब्रजक्षेत्र की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और ब्रजभाषा नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]], [[अलीगढ़]] ज़िलों में बोली जाती है।{{point}} अधिक जानकारी देखें:-[[ब्रज भाषा]]
| |
| | |
| {'धमार ताल' कितनी मात्रा का होता है?
| |
| |type="()"}
| |
| -10मात्रा
| |
| -12मात्रा
| |
| +14मात्रा
| |
| -18 मात्रा
| |
| | |
| {'ठुमरी' गायन शैली में प्रयुक्त [[राग]] है?
| |
| |type="()"}
| |
| -राग खमाज
| |
| -राग भैरवी
| |
| -राग देश
| |
| +ये सभी
| |
| | |
| {निम्नलिखित में से कौन ठुमरी गायक/गायिका नहीं है?
| |
| |type="()"}
| |
| -बेगम अख्तर
| |
| -गिरजा देवी
| |
| -[[बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ]]
| |
| +[[बिरजू महाराज]]
| |
| ||[[चित्र:Birju-Maharaj-2.jpg|बिरजू महाराज|100px|right]] बिरजू महाराज का पूरा नाम बृज मोहन मिश्रा है। बिरजू महाराज [[नृत्य कला|भारतीय नृत्य]] की '[[कथक नृत्य|कथक]]' शैली के आचार्य और [[लखनऊ]] के कालका–बिंदादीन घराने के एक मुख्य प्रतिनिधि हैं। अपनी परिशुद्ध ताल और भावपूर्ण अभिनय के लिये प्रसिद्ध बिरजू महाराज ने एक ऐसी शैली विकसित की है, जो उनके दोनों चाचाओं और पिता से संबंधित तत्वों को सम्मिश्रित करती है।{{point}} अधिक जानकारी देखें:-[[बिरजू महाराज]]
| |
| | |
| {'दादरा' गायन शैली में किस गायन शैली की छाया दृष्टिगोचर होती है?
| |
| |type="()"}
| |
| -टप्पा
| |
| -[[धमार]]
| |
| +ठुमरी
| |
| -ख़याल
| |
| | |
| {'मार्गी संगीत' का अभिप्राय है?
| |
| |type="()"}
| |
| +मोक्ष प्राप्त करने से
| |
| -जनरंजन से
| |
| -[[संगीत]] के प्रचार से
| |
| -संगीतज्ञों की जीवनी से।
| |
| </quiz> | | </quiz> |
| |} | | |} |
पंक्ति 195: |
पंक्ति 52: |
| [[Category:सामान्य ज्ञान]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान]] |
| [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] |
| | [[Category:कला सामान्य ज्ञान]] |
| | [[Category:कला कोश]] |
| __INDEX__ | | __INDEX__ |