"शिवसंकल्पोपनिषद": अवतरणों में अंतर
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येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु॥4॥<br /> अर्थात जिस अविनाशी मन की सामर्थ्य से सभी कालों का ज्ञान किया जा सकता है तथा जिसके द्वारा सप्त होतागण यज्ञ का विस्तार करते हैं, ऐसा हमारा मन श्रेष्ठ कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो। | येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु॥4॥<br /> अर्थात जिस अविनाशी मन की सामर्थ्य से सभी कालों का ज्ञान किया जा सकता है तथा जिसके द्वारा सप्त होतागण यज्ञ का विस्तार करते हैं, ऐसा हमारा मन श्रेष्ठ कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो। | ||
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13:45, 13 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
शुक्ल यजुर्वेद के इस उपनिषद में कुल छह मन्त्र हैं, जिनमें मन की अद्भुत सामर्थ्य का वर्णन करते हुए, मन को 'शिवसंकल्पयुक्त' बनाने की प्रार्थना की गयी है। मन्त्रों का गठन अतयन्त सारगर्भित है।
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन सर्वम्।
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु॥4॥
अर्थात जिस अविनाशी मन की सामर्थ्य से सभी कालों का ज्ञान किया जा सकता है तथा जिसके द्वारा सप्त होतागण यज्ञ का विस्तार करते हैं, ऐसा हमारा मन श्रेष्ठ कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो।
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