"हम्मीर रासो (महेश)": अवतरणों में अंतर

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*[[रासो काव्य]] परम्परा [[हिन्दी]] साहित्य की एक विशिष्ट काव्यधारा रही है, जो वीरगाथा काल में उत्पन्न होकर मध्य युग तक चली आई।  
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* [[रासो काव्य]] परम्परा [[हिन्दी साहित्य]] की एक विशिष्ट काव्यधारा रही है, जो वीरगाथा काल में उत्पन्न होकर मध्य युग तक चली आई।  
*आदि काल में जन्म लेने वाली इस विधा को मध्यकाल में विशेष पोषण मिला।  
*आदि काल में जन्म लेने वाली इस विधा को मध्यकाल में विशेष पोषण मिला।  
*[[पृथ्वीराज रासो]] से प्रारम्भ होने वाली यह काव्य विधा देशी राज्यों में भी मिलती है।  
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13:11, 2 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

हम्मीर रासो महेश कवि द्वारा रचित रासो काव्य है।

  • रासो काव्य परम्परा हिन्दी साहित्य की एक विशिष्ट काव्यधारा रही है, जो वीरगाथा काल में उत्पन्न होकर मध्य युग तक चली आई।
  • आदि काल में जन्म लेने वाली इस विधा को मध्यकाल में विशेष पोषण मिला।
  • पृथ्वीराज रासो से प्रारम्भ होने वाली यह काव्य विधा देशी राज्यों में भी मिलती है।
  • तत्कालीन कविगण अपने आश्रयदाताओं को युद्ध की प्रेरणा देने के लिए उनके बल पौरुष आदि का अतिरंजित वर्णन इन रासो काव्यों में करते रहे हैं।
  • रासो काव्य परम्परा में सर्वप्रथम ग्रन्थ 'पृथ्वीराज रासो' माना जाता है।
  • हम्मीर रासो के रचयिता महेश कवि है।
  • यह रचना जोधराज कृत हम्मीर रासो के पहले की है।
  • छन्द संख्या लगभग 300 है।
  • इसमें रणथंभौर के राणा हम्मीर का चरित्र वर्णन है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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