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*दलपतिराव रायसा के रचयिता कवि जोगीदास भाण्डेरी हैं।  
'''दलपतिराव रायसा''' एक [[रासो काव्य]] है जिसके रचयिता कवि जोगीदास भाण्डेरी हैं।  
*इस [[रासो काव्य]] में महाराज दलपतिराव के जीवन काल के विभिन्न युद्धों की घटनाओं का वर्णन किया गया है।  
*इस रासो काव्य में महाराज दलपतिराव के जीवन काल के विभिन्न युद्धों की घटनाओं का वर्णन किया गया है।  
*कवि ने दलपति राव के अन्तिम युद्ध जाजऊ सं. 1764 वि. में उसकी वीरगति के पश्चात रायसा लिखने का संकेत दिया है। इसलिये यह रचना सं. 1764 की ही मानी जानी चाहिए।  
*कवि ने दलपति राव के अन्तिम युद्ध जाजऊ सं. 1764 वि. में उसकी वीरगति के पश्चात् रायसा लिखने का संकेत दिया है। इसलिये यह रचना सं. 1764 की ही मानी जानी चाहिए।  
*रासो के अध्ययन से ऐसा लगता है कि कवि महाराजा दलपतिराव का समकालीन था।  
*रासो के अध्ययन से ऐसा लगता है कि कवि महाराजा दलपतिराव का समकालीन था।  
*इस ग्रन्थ में दलपतिराव के पिता शुभकर्ण का भी जीवन वृत्त वर्णित है। अतः यह दो रायसों का सम्मिलित संस्करण है।  
*इस ग्रन्थ में दलपतिराव के पिता शुभकर्ण का भी जीवन वृत्त वर्णित है। अतः यह दो रायसों का सम्मिलित संस्करण है।  
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07:47, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

दलपतिराव रायसा एक रासो काव्य है जिसके रचयिता कवि जोगीदास भाण्डेरी हैं।

  • इस रासो काव्य में महाराज दलपतिराव के जीवन काल के विभिन्न युद्धों की घटनाओं का वर्णन किया गया है।
  • कवि ने दलपति राव के अन्तिम युद्ध जाजऊ सं. 1764 वि. में उसकी वीरगति के पश्चात् रायसा लिखने का संकेत दिया है। इसलिये यह रचना सं. 1764 की ही मानी जानी चाहिए।
  • रासो के अध्ययन से ऐसा लगता है कि कवि महाराजा दलपतिराव का समकालीन था।
  • इस ग्रन्थ में दलपतिराव के पिता शुभकर्ण का भी जीवन वृत्त वर्णित है। अतः यह दो रायसों का सम्मिलित संस्करण है।
  • इस काव्य की कुल छन्द संख्या 313 है।
  • इस का सम्पादन श्री 'हरिमोहन लाल श्रीवास्तव' ने किया है, तथा 'कन्हैयालाल मुंशी', 'हिन्दी विद्यापीठ', आगरा ने इसे भारतीय साहित्य के 'मुंशी अभिनन्दन अंक' में इसे प्रकाशित किया गया है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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