"भिक्षुकोपनिषद": अवतरणों में अंतर

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शुक्ल यजुर्वेदीय इस उपनिषद में आत्म-कल्याण और लोक-कल्याण हेतु भिक्षा द्वारा जीवन-यापन करने वाले संन्यासियों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। इस उपनिषद में कुल पांच मन्त्र हैं।
शुक्ल यजुर्वेदीय इस उपनिषद में आत्म-कल्याण और लोक-कल्याण हेतु भिक्षा द्वारा जीवन-यापन करने वाले सन्न्यासियों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। इस उपनिषद में कुल पांच मन्त्र हैं।
इस उपनिषद में बताया गया है कि मोक्ष की कामना रखने वाले भिक्षुओं की चार श्रेणियां होती हैं-'कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस।'
इस उपनिषद में बताया गया है कि मोक्ष की कामना रखने वाले भिक्षुओं की चार श्रेणियां होती हैं-'कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस।'
==कुटीचक्र==
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13:53, 2 मई 2015 के समय का अवतरण

शुक्ल यजुर्वेदीय इस उपनिषद में आत्म-कल्याण और लोक-कल्याण हेतु भिक्षा द्वारा जीवन-यापन करने वाले सन्न्यासियों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। इस उपनिषद में कुल पांच मन्त्र हैं। इस उपनिषद में बताया गया है कि मोक्ष की कामना रखने वाले भिक्षुओं की चार श्रेणियां होती हैं-'कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस।'

कुटीचक्र

भिक्षु गौतम, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य और वसिष्ठ आदि के समान आठ ग्रास भोजन लेकर योगमार्ग से मोक्ष के लिए प्रयत्न करते हैं। इसमें मात्र शरीर की रक्षा के लिए न्यूनतक भोजन ग्रहण करने का विधान है।

बहूदक

भिक्षु त्रिदण्ड, कमण्डलु, शिखा, यज्ञोपवीत और काषाय वस्त्र धारण करते हैं। मधु-मांस आदि का पूर्णत: त्याग करते हैं। किसी सदाचारी व्यक्ति के घर से भिक्षा द्वारा आठ ग्रास भोजन ग्रहण करके योगमार्ग द्वारा मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होते हैं।

हंस

भिक्षु किसी गांव में एक रात्रि, नगर में पांच रात्रि, तीर्थक्षेत्र में सात रात्रि से अधिक निवास नहीं करते। वे गोमूत्र और गोबर का आहार ग्रहण करते हुए नित्य चान्द्रायण व्रत का पालन करके योगमार्ग से मोक्ष की खोज करते हैं।

परमहंस

भिक्षु संवर्तक, आरुणि, श्वेतकेतु, जड़भरत, दत्तात्रेय, शुकदेव, वामदेव और हारीतक आदि की भांति आठ ग्रास भोजन ग्रहण करके योगमार्ग में विचरण करते हुए मोक्ष-प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इनका निवास किसी वृक्ष के नीचे, किसी शून्य गृह में या फिर श्मशान में होता है। उनके लिए 'द्वैत भाव' का कोई अभिमत नहीं होता। मिट्टी और सोने में कोई भेद नहीं होता। वे सभी वर्णों में समान भाव से भिक्षावृत्ति करते हैं और सभी जीवों में अपनी 'आत्मा' के दर्शन करते हैं। वे शुद्ध मन से परमहंस वृत्ति का पालन करते हुए शरीर का त्याग करते हैं।


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