"अशून्यशयन द्वितीया": अवतरणों में अंतर
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* इस व्रत से नारियों को अवैधव्य एवं पुरुषों को अवियोग की अवस्था प्राप्त होती है। | * इस व्रत से नारियों को अवैधव्य एवं पुरुषों को अवियोग की अवस्था प्राप्त होती है। | ||
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12:38, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- श्रावण के उपरान्त चार मासों की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को अशून्यशयनव्रत किया जाता है।
- इस व्रत में लक्ष्मी एवं हरि की पूजा करनी चाहिये।[1]
- इस व्रत से नारियों को अवैधव्य एवं पुरुषों को अवियोग की अवस्था प्राप्त होती है।
- हेमाद्रि व्रत खण्ड [2] में आया है-: लक्षम्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा। शय्या समाप्यशून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुधर्मोत्तर पुराण (1|145|6-20 एवं 3|132|1-12); वामन पुराण (16|16-29), [[अग्निपुराण (177|3-12), भविष्योत्तर पुराण (1|20|4-28); कृत्यकल्पतरु (व्रत0 41-44), हेमाद्रि व्रत खण्ड (1, 366-371
- ↑ हेमाद्रि व्रत खण्ड 1, 373
- ↑ कृत्यकल्पतरु (पृ0 228
अन्य संबंधित लिंक
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