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*किसी विद्वान एवं सुचरित्रवान [[ब्राह्मण]] को घट के साथ में पलंग का दान करना चाहिए। | *किसी विद्वान एवं सुचरित्रवान [[ब्राह्मण]] को घट के साथ में पलंग का दान करना चाहिए। | ||
*एक सहस्र [[अश्वमेध यज्ञ| | *एक सहस्र [[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेधों]] का फल, महापातक भी कट जाते हैं।<ref>[[मत्स्य पुराण]] (95|5-38); कृत्यकल्पतरु (व्रत0 370-387); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 58-61); कृत्यरत्नाकर (466-471); निर्णयसिन्धु (226</ref> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
14:41, 23 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी (अमान्त गणना के अनुसार) पर एकभक्त शिवचतुर्दशीव्रत किया जाता है।
- शिव प्रार्थना; चतुर्दशी को उपवास; श्वेत कमलों, गंध आदि से पाद से लेकर सिर तक शंकर एवं उमा की पूजा करनी चाहिए।
- यही कार्तिक की चतुर्दशी तथा अन्य चतुर्दशियों पर किया जाना चाहिए।
- मार्गशीर्ष से लेकर आगे के सभी 12 मासों में विभिन्न नामों से शंकर को प्रणाम करना चाहिए।
- प्रत्येक मास में 12 पदार्थों में से (जैसे– गोमूत्र, गोबर, दूध, दही आदि) किसी एक का पान करना चाहिए।
- विभिन्न पुष्पों का प्रयोग, यथा–मन्दार, मालती आदि का प्रयोग करना चाहिए।
- एक या 12 वर्षों तक कार्तिक में; वर्ष के अन्त में एक नील वृष का उत्सर्ग करना चाहिए।
- किसी विद्वान एवं सुचरित्रवान ब्राह्मण को घट के साथ में पलंग का दान करना चाहिए।
- एक सहस्र अश्वमेधों का फल, महापातक भी कट जाते हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मत्स्य पुराण (95|5-38); कृत्यकल्पतरु (व्रत0 370-387); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 58-61); कृत्यरत्नाकर (466-471); निर्णयसिन्धु (226
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