"दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर
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|जन्म=[[21 फ़रवरी]], 1896 | |जन्म=[[21 फ़रवरी]], 1896 | ||
|जन्म स्थान=मेदनीपुर ज़िला, बंगाल ([[पश्चिम बंगाल]]) | |जन्म स्थान=मेदनीपुर ज़िला, बंगाल ([[पश्चिम बंगाल]]) | ||
|मृत्यु=[[15 अक्टूबर]], | |मृत्यु=[[15 अक्टूबर]], सन् [[1961]] | ||
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[भारत]] | |मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[भारत]] | ||
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<poem>सह जाते हो | <poem> | ||
सह जाते हो | |||
उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, | उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, | ||
हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, | हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 39: | ||
क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ | क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ | ||
कह जाते हो | कह जाते हो | ||
और | और जगत् की ओर ताककर | ||
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर, | दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर, | ||
सह जाते हो। | सह जाते हो। | ||
कह | कह जाते हो- | ||
" | "यहाँ कभी मत आना, | ||
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख | उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख | ||
यहाँ है सदा उठाना, | यहाँ है सदा उठाना, | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 51: | ||
यहाँ परार्थ वही, जो रहे | यहाँ परार्थ वही, जो रहे | ||
स्वार्थ से हो भरपूर, | स्वार्थ से हो भरपूर, | ||
जगत की निद्रा, है जागरण, | |||
और जागरण | और जागरण जगत् का - इस संसृति का | ||
अन्त - विराम - मरण | अन्त - विराम - मरण | ||
अविराम घात - आघात | अविराम घात - आघात | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 64: | ||
दिवस की कर्म - कुटिल तम - भ्रान्ति | दिवस की कर्म - कुटिल तम - भ्रान्ति | ||
रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति, | रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति, | ||
सदा अशान्ति!" </poem> | सदा अशान्ति!" | ||
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14:16, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
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सह जाते हो |
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