"तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-4": अवतरणों में अंतर
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*यह मनोमय शरीर अपने पूर्ववर्ती प्राणमय शरीर का आत्मा है, | *यह मनोमय शरीर अपने पूर्ववर्ती प्राणमय शरीर का आत्मा है, अर्थात् आधार है। | ||
*इस मनोमय शरीर से भिन्न आत्मा विज्ञानमय है, जो इस मनोमय शरीर में स्थित है। | *इस मनोमय शरीर से भिन्न आत्मा विज्ञानमय है, जो इस मनोमय शरीर में स्थित है। | ||
*विज्ञानमय देह का सिर 'श्रद्धा' है, सनातन सत्य (ऋत) उसका दाहिना पंख है, प्रत्यक्ष 'सत्य' बायां पंख है, 'योग' मध्य भाग है, 'मह:' को उसकी पूंछ वाला भाग माना गया है। उसे जानने वाला सभी भयों से मुक्त हो जाता है। | *विज्ञानमय देह का सिर 'श्रद्धा' है, सनातन सत्य (ऋत) उसका दाहिना पंख है, प्रत्यक्ष 'सत्य' बायां पंख है, 'योग' मध्य भाग है, 'मह:' को उसकी पूंछ वाला भाग माना गया है। उसे जानने वाला सभी भयों से मुक्त हो जाता है। | ||
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07:58, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
- तैत्तिरीयोपनिषद के ब्रह्मानन्दवल्ली का यह चौथा अनुवाक है।
मुख्य लेख : तैत्तिरीयोपनिषद
- इस अनुवाक में शरीर के 'मनोमय कोश' का वर्णन है।
- जिस ब्रह्मानन्द की अनुभूति मन में की जाती है, उसे वाणी द्वारा प्रकट नहीं किया जा सकता।
- यह मनोमय शरीर अपने पूर्ववर्ती प्राणमय शरीर का आत्मा है, अर्थात् आधार है।
- इस मनोमय शरीर से भिन्न आत्मा विज्ञानमय है, जो इस मनोमय शरीर में स्थित है।
- विज्ञानमय देह का सिर 'श्रद्धा' है, सनातन सत्य (ऋत) उसका दाहिना पंख है, प्रत्यक्ष 'सत्य' बायां पंख है, 'योग' मध्य भाग है, 'मह:' को उसकी पूंछ वाला भाग माना गया है। उसे जानने वाला सभी भयों से मुक्त हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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