"कबीर के दोहे": अवतरणों में अंतर
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{{कबीर विषय सूची}} | |||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
|चित्र=Kabirdas-2.jpg | |||
|पूरा नाम=[[संत कबीरदास]] | |||
|अन्य नाम=कबीरा, कबीर साहब | |||
|जन्म=सन 1398 (लगभग) | |||
|जन्म भूमि=लहरतारा ताल, [[काशी]] | |||
|अभिभावक= | |||
|पालक माता-पिता=नीरु और नीमा | |||
|पति/पत्नी=लोई | |||
|संतान=कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) | |||
|कर्म भूमि=[[काशी]], [[बनारस]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=समाज सुधारक कवि | |||
|मृत्यु=सन 1518 (लगभग) | |||
|मृत्यु स्थान=[[मगहर]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
|मुख्य रचनाएँ=[[साखी]], [[सबद]] और [[रमैनी]] | |||
|विषय=सामाजिक | |||
|भाषा=[[अवधी भाषा|अवधी]], सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा=निरक्षर | |||
|पुरस्कार-उपाधि= | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख=[[कबीर ग्रंथावली]], [[कबीरपंथ]], [[बीजक]], [[कबीर के दोहे]] आदि | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
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<poem> | <poem> | ||
कस्तूरी | कस्तूरी कुन्डल बसे, मृग ढूढै बन माहि। | ||
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे | ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि॥ | ||
कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न | कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय। | ||
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति | भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरन् कुल खोय॥ | ||
काल करै सो आज कर, आज करै सो | काल करै सो आज कर, आज करै सो अब। | ||
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ | पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब॥ | ||
कामी लज्जा ना करै, न माहें अहिलाद। | |||
नींद न माँगै साँथरा, भूख न माँगे स्वाद॥ | |||
कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। | कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। | ||
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ | ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥ | ||
करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय। | करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय। | ||
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से | बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय॥ | ||
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। | |||
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥ | |||
कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस। | कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस। | ||
जाके आंगन नदि बहे, सो कस मरत | जाके आंगन नदि बहे, सो कस मरत प्यास॥ | ||
कथनी कथी तो क्या भया जो करनी ना | कथनी कथी तो क्या भया जो करनी ना ठहराइ। | ||
कालबूत के कोट ज्यूं देखत ही ढहि | कालबूत के कोट ज्यूं देखत ही ढहि जाइ॥ | ||
कबिरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय। | कबिरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय। | ||
अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का | अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का होय॥ | ||
कबीरा गर्व ना किजीये, उंचा देख | कबीरा गर्व ना किजीये, उंचा देख आवास। | ||
काल परौ भुइं लेटना, उपर जमसी | काल परौ भुइं लेटना, उपर जमसी घास॥ | ||
कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे | कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे खैर। | ||
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से | ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥ | ||
कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर। | कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर। | ||
जो पर पीर न जानई, सो काफिर | जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥ | ||
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और। | |||
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥ | |||
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान। | |||
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान॥ | |||
कबीर सुता क्या करे, करे काज निवार। | |||
जिस पंथ तू चलना, तो पंथ संवार॥ | |||
कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि। | कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि। | ||
मन न फिरावै आपणा, कहा फिरावै | मन न फिरावै आपणा, कहा फिरावै मोहि॥ | ||
कबीर तूं काहै डरै, सिर पर हरि का हाथ। | कबीर तूं काहै डरै, सिर पर हरि का हाथ। | ||
हस्ती चढि नहि डोलिये, कुकर भूखे | हस्ती चढि नहि डोलिये, कुकर भूखे साथ॥ | ||
कबीर घोड़ा प्रेम का, चेतनि चढ़ि असवार। | कबीर घोड़ा प्रेम का, चेतनि चढ़ि असवार। | ||
ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई | ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई मार॥ | ||
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ। | |||
नैनूं रमैया रमि रह्या, दूजा कहाँ समाइ॥ | |||
कबीर नवै सब आपको, पर को नवै न कोय। | |||
घालि तराजू तौलिये, नवै सो भारी होय॥ | |||
सूरा के मैदान में, कायर का क्या | सूरा के मैदान में, कायर का क्या काम। | ||
कायर भागे पीठ दे, सूरा करे | कायर भागे पीठ दे, सूरा करे संग्राम॥ | ||
सतनाम जाने बिना, हंस लोक नहिं जाए। | सतनाम जाने बिना, हंस लोक नहिं जाए। | ||
ज्ञानी पंडित सूरमा, कर कर मुये | ज्ञानी पंडित सूरमा, कर कर मुये उपाय॥ | ||
सुख मे सुमिरन ना किया, | सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद। | ||
कह कबीर ता दास की, कौन सुने | कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद॥ | ||
साई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय। | साई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय। | ||
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा | मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय॥ | ||
सुमिरन करहु राम का, काल गहै है केस। | सुमिरन करहु राम का, काल गहै है केस। | ||
न जानो कब मारिहै, का घर का | न जानो कब मारिहै, का घर का परदेस॥ | ||
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर | सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। | ||
जाके हिरदय सांच हें, वाके हिरदय | जाके हिरदय सांच हें, वाके हिरदय आप॥ | ||
सहज सहज सब कोऊ कहै, सहज न चीन्है कोइ। | सहज सहज सब कोऊ कहै, सहज न चीन्है कोइ। | ||
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सुखिया सब संसार है खावै और सोवै। | सुखिया सब संसार है खावै और सोवै। | ||
दुखिया दास कबीर है जागै अरू | दुखिया दास कबीर है जागै अरू रोवै॥ | ||
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ। | सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ। | ||
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥ | धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥ | ||
सतगुरु मिला जु जानिये, ज्ञान उजाला होय। | |||
भ्रम का भांड तोड़ि करि, रहै निराला होय॥ | |||
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। | साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। | ||
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आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥ | आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥ | ||
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान। | |||
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन॥ | |||
जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोओ तू फूल। | जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोओ तू फूल। | ||
ताहि फूल को फूल हैं, वाको हैं | ताहि फूल को फूल हैं, वाको हैं तिरसूल॥ | ||
जो जल बाढ़े नांव में, घर में बाढ़े दाम। | जो जल बाढ़े नांव में, घर में बाढ़े दाम। | ||
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो | दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥ | ||
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय। | |||
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥ | |||
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ। | जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ। | ||
मैं बौरी बन डरी, रही किनारे | मैं बौरी बन डरी, रही किनारे बैठ॥ | ||
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए | जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। | ||
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो | मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥ | ||
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल | जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय। | ||
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब | यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय॥ | ||
जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ | जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम। | ||
दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक | दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम॥ | ||
जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप। | |||
जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥ | |||
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग। | |||
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग॥ | |||
जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। | जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। | ||
सब अंधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या | सब अंधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या माहिं॥ | ||
जब तूं आया | जब तूं आया जगत् में, लोग हसें तू रोए। | ||
एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए | एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए ॥ | ||
जीवत समझे जीवत बुझे, जीवत ही करो आस। | |||
जीवत करम की फाँस न काटी, मुए मुक्ति की आस॥ | |||
जेहि खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव। | |||
कहै कबीर सुन साधवा, करु सतगुरु की सेव॥ | |||
ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं। | ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं। | ||
मूरख लोग ना जानहीं, बाहिर ढ़ूंढ़न जाहिं | मूरख लोग ना जानहीं, बाहिर ढ़ूंढ़न जाहिं ॥ | ||
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंड़ित भया न कोय। | |||
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंड़ित होय॥ | |||
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। | |||
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय॥ | |||
पतिबरता मैली भली, गले काँच को पोत। | |||
सब सखियन में यों दिपै , ज्यों रवि ससि की जोत॥ | |||
पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा। | पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा। | ||
दिल महं खोजु, दिलहि में खोजो यही करीमा | दिल महं खोजु, दिलहि में खोजो यही करीमा रामा॥ | ||
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया | पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय। | ||
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे | एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय॥ | ||
पहले अगन [[बिरहा]] की, पाछे प्रेम की प्यास। | |||
कहे कबीर तब जानिए, नाम मिलन की आस॥ | |||
पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार। | पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार। | ||
ताते यह चाकी भली, पीस खाए | ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार॥ | ||
परनारी का राचणौ, जिसकी लहसण की खानि। | |||
खूणैं बेसिर खाइय, परगट होइ दिवानि॥ | |||
परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं। | |||
दिवस चारि सरसा रहै, अति समूला जाहिं॥ | |||
पूरा सतगुरु न मिला, सुनी अधूरी सीख। | |||
स्वाँग यती का पहिनि के, घर घर माँगी भीख॥ | |||
चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय। | चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय। | ||
दुइ पट भीतर आइ कै, साबित गया न | दुइ पट भीतर आइ कै, साबित गया न कोय॥ | ||
चारिउं वेदि पठाहि, हरि सूं न लाया हेत। | चारिउं वेदि पठाहि, हरि सूं न लाया हेत। | ||
बालि कबीरा ले गया, पंडित ढूंढे | बालि कबीरा ले गया, पंडित ढूंढे खेत॥ | ||
चाह मिटी, | चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। | ||
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ | जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ | ||
माली आवत देख कै कलियन करी पुकार। | |||
फूली फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बार॥ | |||
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। | |||
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर॥ | |||
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। | |||
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥ | |||
माया | माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत। | ||
कहै कबीर गुरु ज्ञान ते, एक आध उबरंत॥ | |||
मन माया तो एक हैं, माया नहीं समाय। | मन माया तो एक हैं, माया नहीं समाय। | ||
तीन लोक संसय परा, काहि कहूं | तीन लोक संसय परा, काहि कहूं समझाय॥ | ||
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय। | |||
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥ | |||
मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ। | |||
एक | कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ॥ | ||
मांगण मरण समान है, बिरता बंचै कोई। | |||
कहै कबीर रघुनाथ सूं, मति रे मंगावे मोहि॥ | |||
मुंड मुंडावत दिन गए, अजहूँ न मिलिया राम। | |||
राम नाम कहू क्या करे, जे मन के औरे काम॥ | |||
मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव। | |||
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव॥ | |||
एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा। | एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा। | ||
एक राम घट घट में छा रहा, एक राम दुनिया से | एक राम घट घट में छा रहा, एक राम दुनिया से न्यारा॥ | ||
एकै साध सब सधै, सब साधे सब | एकै साध सब सधै, सब साधे सब जाय। | ||
जो तू सींचे मूल को, फूले फल | जो तू सींचे मूल को, फूले फल अघाय॥ | ||
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ। | ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ। | ||
आपन को सीतल करे, और हु सीतल | आपन को सीतल करे, और हु सीतल होइ॥ | ||
एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारी। | |||
है जैसा तैसा रहे, कहे कबीर बिचारी॥ | |||
धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय। | धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय। | ||
साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न | साह सुमुंद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय॥ | ||
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। | |||
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥ | |||
रज गुन ब्रह्मा तम गुन संकर सत्त गुन हरि सोई। | रज गुन ब्रह्मा तम गुन संकर सत्त गुन हरि सोई। | ||
कहै कबीर राम रमि रहिये हिन्दू तुरक न | कहै कबीर राम रमि रहिये हिन्दू तुरक न कोई॥ | ||
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय। | |||
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय॥ | |||
लाली मेरे लाल की जित देखों तित लाल। | लाली मेरे लाल की जित देखों तित लाल। | ||
लाली देखन मैं चली, हो गई लाल | लाली देखन मैं चली, हो गई लाल गुलाल॥ | ||
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट। | |||
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट॥ | |||
ऊंचे कुल का जनमिया, जे करणी ऊंच होइ। | ऊंचे कुल का जनमिया, जे करणी ऊंच होइ। | ||
सुबण कलस सुरा भरा, साधू निन्दै | सुबण कलस सुरा भरा, साधू निन्दै सोइ॥ | ||
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास। | उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास। | ||
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥ | तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥ | ||
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय। | |||
बलिहारी गुरु आपनै, गोबिंद दियो मिलाय॥ | |||
गुरु | गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि। | ||
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥ | |||
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं। | |||
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥ | |||
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव। | |||
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥ | |||
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह। | |||
कह कबीर वा साधु की, हम चरनन की खेह॥ | |||
हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय। | |||
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय॥ | |||
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय। | |||
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय॥ | |||
बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न मिलिया कोय। | बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न मिलिया कोय। | ||
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय | जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ॥ | ||
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। | बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। | ||
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ | पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ | ||
बोली एक अनमोल है, जो कोइ बोलै जानि। | |||
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि॥ | |||
दोष पराए देख कर चल्या हंसत | दोष पराए देख कर चल्या हंसत हंसत। | ||
अपनै चीति न आबई जाको आदि न | अपनै चीति न आबई जाको आदि न अंत॥ | ||
दर्शन करना है तो, दर्पण माँजत रहिये। | |||
दर्पण में लगी कई, तो दर्श कहाँ से पाई॥ | |||
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। | दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। | ||
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥</poem> | जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥ | ||
नये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय। | |||
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय॥ | |||
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय। | |||
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ | |||
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फ़कीर। | |||
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर॥ | |||
अकथ कहानी प्रेम की, कुछ कही न जाये। | |||
गूंगे केरी सर्करा, बैठे मुस्काए॥ | |||
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। | |||
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥ | |||
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान। | |||
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥ | |||
</poem> | |||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} | ||
{{लेख क्रम2 |पिछला=कबीर की रचनाएँ|पिछला शीर्षक=कबीर की रचनाएँ|अगला शीर्षक= कबीर|अगला= कबीर}} | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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07:38, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
कबीर के दोहे
| |
पूरा नाम | संत कबीरदास |
अन्य नाम | कबीरा, कबीर साहब |
जन्म | सन 1398 (लगभग) |
जन्म भूमि | लहरतारा ताल, काशी |
मृत्यु | सन 1518 (लगभग) |
मृत्यु स्थान | मगहर, उत्तर प्रदेश |
पालक माता-पिता | नीरु और नीमा |
पति/पत्नी | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
कर्म भूमि | काशी, बनारस |
कर्म-क्षेत्र | समाज सुधारक कवि |
मुख्य रचनाएँ | साखी, सबद और रमैनी |
विषय | सामाजिक |
भाषा | अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी |
शिक्षा | निरक्षर |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | कबीर ग्रंथावली, कबीरपंथ, बीजक, कबीर के दोहे आदि |
अन्य जानकारी | कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
कस्तूरी कुन्डल बसे, मृग ढूढै बन माहि। |
कबीर के दोहे |