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*कवि ने प्रथानुसार उस समय के शासक मुहम्मदशाह की प्रशंसा इस प्रकार की है -
*कवि ने प्रथानुसार उस समय के शासक मुहम्मदशाह की प्रशंसा इस प्रकार की है -
<poem>करौं मुहम्मदशाह बखानू । है सूरज देहली सुलतानू॥
<poem>करौं मुहम्मदशाह बखानू । है सूरज देहली सुलतानू॥
धरमपंथ जग बीच चलावा । निबर न सबरे सों दुख पावा॥
धरमपंथ जग बीच चलावा । निबर न सबरे सों दु:ख पावा॥
बहुतै सलातीन जग केरे। आइ सहास बने हैं चेरे॥
बहुतै सलातीन जग केरे। आइ सहास बने हैं चेरे॥
सब काहू परदाया धारई । धरम सहित सुलतानी करई॥
सब काहू परदाया धारई । धरम सहित सुलतानी करई॥
कवि ने अपनी कहानी की भूमिका इस प्रकार बाँधी है॥
*कवि ने अपनी कहानी की भूमिका इस प्रकार बाँधी है॥
मन दृग सों इक राति मझारा । सूझि परा मोहिं सब संसारा॥
मन दृग सों इक राति मझारा । सूझि परा मोहिं सब संसारा॥
देखेउँ एक नीक फुलवारी । देखेउँ तहाँ पुरुष औ नारी॥
देखेउँ एक नीक फुलवारी । देखेउँ तहाँ पुरुष औ नारी॥
दोउ मुख सोभा बरनि न जाई । चंद सुरुज उतरे भुइँ आई॥
दोउ मुख सोभा बरनि न जाई । चंद सुरुज उतरे भुइँ आई॥
तपी एक देखेउतेहि ठाऊँ । पूछेउँ तासौं तिन्हकर नाऊँ॥
तपी एक देखे उतेहि ठाऊँ । पूछेउँ तासौं तिन्हकर नाऊँ॥
कहा अहै राजा औ रानी । इंद्रावति औ कुँवर गियानी॥
कहा अहै राजा औ रानी । इंद्रावति औ कुँवर गियानी॥
आगमपुर इंद्रावती, कुँवर कलिंजर रास॥
आगमपुर इंद्रावती, कुँवर कलिंजर रास॥
प्रेम हुँते दोउन्ह कहँ, दीन्हा अलख मिलाय॥</poem>
प्रेम हुँते दोउन्ह कहँ, दीन्हा अलख मिलाय॥</poem>
*कवि ने [[जायसी]] के पहले के कवियों के अनुसार पाँच पाँच चौपाइयों के उपरांत दोहे का क्रम रखा है। इसी ग्रंथ को सूफी पद्धति का अंतिम ग्रंथ मानना चाहिए।
*कवि ने [[जायसी]] के पहले के कवियों के अनुसार पाँच पाँच चौपाइयों के उपरांत दोहे का क्रम रखा है। इसी [[ग्रंथ]] को सूफी पद्धति का अंतिम ग्रंथ मानना चाहिए।
*'इंद्रावती' की रचना करने पर शायद [[नूर मुहम्मद]] को समय समय पर यह उपालंभ सुनने को मिलता था कि तुम [[मुसलमान]] होकर [[हिन्दी]] [[भाषा]] में रचना करने क्यों गए।  
*'इंद्रावती' की रचना करने पर शायद [[नूर मुहम्मद]] को समय समय पर यह उपालंभ सुनने को मिलता था कि तुम [[मुसलमान]] होकर [[हिन्दी]] [[भाषा]] में रचना करने क्यों गए।  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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14:02, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

  • नूर मुहम्मद ने 1157 हिजरी (संवत् 1801) में 'इंद्रावती' नामक एक सुंदर आख्यान काव्य लिखा जिसमें 'कालिंजर' के राजकुमार राजकुँवर और आगमपुर की राजकुमारी इंद्रावती की प्रेमकहानी है।
  • कवि ने प्रथानुसार उस समय के शासक मुहम्मदशाह की प्रशंसा इस प्रकार की है -

करौं मुहम्मदशाह बखानू । है सूरज देहली सुलतानू॥
धरमपंथ जग बीच चलावा । निबर न सबरे सों दु:ख पावा॥
बहुतै सलातीन जग केरे। आइ सहास बने हैं चेरे॥
सब काहू परदाया धारई । धरम सहित सुलतानी करई॥

  • कवि ने अपनी कहानी की भूमिका इस प्रकार बाँधी है॥

मन दृग सों इक राति मझारा । सूझि परा मोहिं सब संसारा॥
देखेउँ एक नीक फुलवारी । देखेउँ तहाँ पुरुष औ नारी॥
दोउ मुख सोभा बरनि न जाई । चंद सुरुज उतरे भुइँ आई॥
तपी एक देखे उतेहि ठाऊँ । पूछेउँ तासौं तिन्हकर नाऊँ॥
कहा अहै राजा औ रानी । इंद्रावति औ कुँवर गियानी॥
आगमपुर इंद्रावती, कुँवर कलिंजर रास॥
प्रेम हुँते दोउन्ह कहँ, दीन्हा अलख मिलाय॥

  • कवि ने जायसी के पहले के कवियों के अनुसार पाँच पाँच चौपाइयों के उपरांत दोहे का क्रम रखा है। इसी ग्रंथ को सूफी पद्धति का अंतिम ग्रंथ मानना चाहिए।
  • 'इंद्रावती' की रचना करने पर शायद नूर मुहम्मद को समय समय पर यह उपालंभ सुनने को मिलता था कि तुम मुसलमान होकर हिन्दी भाषा में रचना करने क्यों गए।
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