"रामलला नहछू": अवतरणों में अंतर
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'''रामलला नहछू''' [[गोस्वामी तुलसीदास]] की रचना है। इस रचना के दो पाठ प्राप्त हुए है- एक वह, जो प्रकाशित मिलता है, जिसमें 40 द्विपदियाँ हैं, और दूसरा उससे छोटा, जिसकी अभी तक एक ही प्रति मिली है और जिसमें केवल 26 द्विपदियाँ हैं। दोनों पाठों में समान द्विपदियाँ केवल 12 हैं। | |||
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तुलसीदास जी की यह रचना सोहर छ्न्दों में है और भगवान [[श्रीराम]] के [[विवाह]] के अवसर के नहछू का वर्णन करती है। '''नहछू नख काटने एक रीति है''', जो [[अवध]] क्षेत्रों में विवाह और [[यज्ञोपवीत संस्कार|यज्ञोपवीत]] के पूर्व की जाती है। यह विशेष रूप से नाई या नाइन के नेगचार से सम्बन्धित होती है। नख काटने पर उसे नेग-चार दिया जाता है। तुलसीदास की 'रामलला नहछू' रचना [[अवधी भाषा]] में है और सरल स्त्री लोकोपयोगी शैली में प्रस्तुत की गयी है। | |||
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10:55, 7 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
रामलला नहछू
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास | |
मूल शीर्षक | 'रामलला नहछू' | |
मुख्य पात्र | श्रीराम | |
देश | भारत | |
भाषा | अवधी | |
शैली | छ्न्द | |
विषय | यह कृति श्रीराम के विवाह के अवसर पर 'नहछू'[1] का वर्णन करती है। | |
भाग | इस रचना के दो पाठ प्राप्त हुए हैं। | |
टिप्पणी | तुलसीदास की 'रामलला नहछू' रचना अवधी भाषा में है और यह सरल स्त्री लोकोपयोगी शैली में प्रस्तुत की गयी है। |
रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास की रचना है। इस रचना के दो पाठ प्राप्त हुए है- एक वह, जो प्रकाशित मिलता है, जिसमें 40 द्विपदियाँ हैं, और दूसरा उससे छोटा, जिसकी अभी तक एक ही प्रति मिली है और जिसमें केवल 26 द्विपदियाँ हैं। दोनों पाठों में समान द्विपदियाँ केवल 12 हैं।
'नहछू' का अर्थ
तुलसीदास जी की यह रचना सोहर छ्न्दों में है और भगवान श्रीराम के विवाह के अवसर के नहछू का वर्णन करती है। नहछू नख काटने एक रीति है, जो अवध क्षेत्रों में विवाह और यज्ञोपवीत के पूर्व की जाती है। यह विशेष रूप से नाई या नाइन के नेगचार से सम्बन्धित होती है। नख काटने पर उसे नेग-चार दिया जाता है। तुलसीदास की 'रामलला नहछू' रचना अवधी भाषा में है और सरल स्त्री लोकोपयोगी शैली में प्रस्तुत की गयी है।
वर्णन
इस रचना में जिस 'नहछू' का वर्णन हुआ है, वह अवधपुर में होता है-
- "आजु अवधपुर आनन्द नहछू राम कहो" (छन्द 12)
- "कोटिन्ह बाजन बाजहि दसरथ के गृह हो" (छन्द 2)
किंतु राम विवाह से पूर्व ही विश्वामित्र के साथ चले गये थे, जहाँ उनका विवाह जनकपुरी में सीता के साथ हुआ। इसलिए इस रचना के सम्बन्ध में एक मत यह भी रहा है कि इसमें यज्ञोपवीत के अवसर का नहछू वर्णित हुआ हैं। किंतु इसमें राम के लिए 'वर' और 'दूलह' शब्द प्रयुक्त हुए हैं[2] और इसमें 'मायन'[3] का भी वर्णन हुआ है, जो विवाह के अवसर पर होता है।[4] 'मायन' में पावनी जातियों के स्त्री-पुरुष अपने उपहार लेकर आते हैं और यथोचित पुरस्कार पाते हैं। इस रचना में भी लोहारिन बरायन, अहीरिन दहेंडी, तंबोलिन बीड़ा, दरजिन दूल्हे के लिए जोड़ा-जामा, मोचिन पनही और मालिन मौर लाती हैं।[5] इसलिए इसमें सन्देह तनिक भी नहीं है कि मूद्रित पाठ में वर्णित 'नहछू' विवाह से सम्बन्धित है। मुद्रित पाठ में इन पावनी जातियों की स्त्रियों के हाव-भाव कटाक्षादि का भी वर्णन किया गया है और दशरथ आगत अहीरिन के यौवन पर मुग्ध दिखाये गये हैं।[6] पुन: इसमें कौसल्या की किसी जेठी का भी उल्लेख किया गया है, जिसके अनुशासन से वे 'नहछू' कराती हैं।[7]
छोटा पाठ
जो छोटा पाठ प्राप्त हुआ है, उसमें न मायन है और न हाव-भाव कटाक्षादि का वर्णन। दशरथ का चरित्र-शैथिल्य और कौसल्या का किसी जेठी से अनुमति प्राप्त करना भी नहीं हैं, शेष उपर्युक्त वर्णन- अयोध्या में नहछू का होना और उसके प्रसंग में नाइन के द्वारा राम का नख काटा जाना भी है। उसमें कहा गया है कि जनक और कौसल्या को लगाकर गाली भी गाई जाती है। अत: यह प्रकट है कि इस पाठ के अनुसार भी नहछू अयोध्या में होता है और वह विवाह के पूर्व का है।
काल व समय
इन तथ्यों पर विचार करने पर मुद्रित पाठ तुलसीदास का ज्ञात नहीं होता। अमुद्रित छोटा पाठ ही उनका हो सकता है, किंतु यह छोटा पाठ भी कदाचित उस समय का होना चाहिए, जब उन्हें कथा के सृजन समाज में प्रचलित रूप को अक्षुण रखने के लिए कोई ध्यान न रहा होगा। उन्होंने राम के विवाह का वर्णन अपनी राम-कथा विषयक शेष सभी रचनाओं में किया है, किंतु अवधपुर में राम के नहछू होने का उल्लेख किसी भी अन्य रचना में नहीं किया है। इसलिए रचना अपने छोटे पाठ में उनकी प्रारम्भिक रचनाओं में से ही हो सकती है। उनकी ज्ञात तिथिवाली रचनाएँ 'रामचरितमानस'[8] तथा 'रामज्ञा प्रश्न'[9] हैं। अत: इसे यदि हम 'रामाज्ञा प्रश्न' से भी कम से कम पाँच वर्ष संम्वत 1616 के लगभग की रचना मानें, तो सम्भव है हमारा अनुमान वास्तविकता के निकट हो। रचना की शिथिल और अपरिपक्व शैली भी इसे तुलसीदास की अन्य स्वीकृत रचनाओं से पूर्व का बताती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 521।
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