"गांधारी से संवाद (2) -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर
प्रकाश बादल (वार्ता | योगदान) ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=|चित्र=K...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "कब्र" to "क़ब्र") |
||
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
|कवि =[[कुलदीप शर्मा]] | |कवि =[[कुलदीप शर्मा]] | ||
|जन्म= | |जन्म= | ||
|जन्म स्थान=([[ | |जन्म स्थान=([[उना हिमाचल|उना]], [[हिमाचल प्रदेश]]) | ||
|मुख्य रचनाएँ= | |मुख्य रचनाएँ= | ||
|यू-ट्यूब लिंक= | |यू-ट्यूब लिंक= | ||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
तुमने तो की थी प्रतिज्ञा | |||
कि लड़ोगे तुम | |||
और | अन्तिम कारण तक | ||
उन सबके लिए | |||
जो लड़ना और जीना भूल चुके हैं | |||
जो न परास्त हुए न मरे हैं | |||
अद्र्घ विक्षिप्त से रणभूमि के किनारे | |||
कनकौए की तरह खड़े हैं | |||
जिनके अधिकार और हथियार | |||
पहले ही छिन चुके हैं | |||
लोकतन्त्र के इस जंगल में | |||
जिन एकलव्यों के अंगूठे कट चुके हैं | |||
जिनका जीवित सर | |||
बीरबल की तरह युद्घभूमि के किनारे | |||
बांस के खम्भे पर टांग दिया गया है | |||
जिन्हें भाषा और धर्म | |||
रंग और जात के नाम पर | |||
अलग अलग बांट दिया गया है | |||
तुमने तो कहा था | |||
तुमने तो कहा था- | |||
हम लड़ेंगे अन्तिम सॉंस तक | |||
न्याय के लिए़ | |||
तुमने तिरंगे तले की थी घोषणा | |||
कि तमाम खतरों के बावजूद | |||
जिन्दा रहेगा सच | |||
तुमने लिया था संकल्प | |||
कि अपनी आत्मा की अस्मिता | |||
होता है यह | रखोगे अक्षुण्ण | ||
रक्त की अन्तिम बूंद तक़ | |||
पर तुम्हीं ने बांध ली | |||
आंखों पर पट्टी | |||
और चुन लिया अपने लिए अंधेरा | |||
ताकि देखना न पड़े | |||
न्याय के लिए जूझते | |||
दम तोड़ते आदमी का चेहरा | |||
तुम्हें पता था | |||
न्याय और जीवन के लिए | |||
लड़ते आदमी का चेहरा देखना | |||
सचमुच मुश्किल होता है | |||
तब और भी ज़्यादा | |||
जब तुम अन्धेरे में हो | |||
और चेहरा मशाल की तरह जल रहा हो़ | |||
तब और भी ज़्यादा | |||
जब तुम खड़े हो | |||
मूक दर्शकों की पंक्ति में | |||
तुम देखते हो और ओढ़ लेते हो मौन | |||
मक्कारी में डूबे पूछते हो | |||
आराम में खलल डालता यह आदमी | |||
आखिर है कौन | |||
उधर अदालत की चौखट पर | |||
सर पटकती है | |||
न्याय की उम्मीद | |||
भीतर बेसाख्ता झूठ बोलता है चश्मदीद़ | |||
वहां हथौड़े की ठक ठक के नीचे | |||
सदियों | कराहता है आहत सच | ||
और सहम कर वहीं दुबक जाता है | |||
असहाय सा कोने में | |||
काले कव्वे से नहीं डरता है झूठ | |||
काले कव्वे की शह पर | |||
इतराता है, गुर्राता है | |||
कानून की किसी उपधारा को | |||
ढाल बनाकर निकल जाता है | |||
प्रजातन्त्र के जंगल में | |||
नए तरीके के साथ नए शिकार पऱ | |||
एक | |||
क्या तुमने सुना है | |||
सिसक- सिसक कर रोता सच | |||
अदालत के उठ जाने के बाद | |||
वहीं किसी अंधेरे कोने में | |||
पत्थर पर सिर टिकाए | |||
दीवारों में तलाशता हुआ संवेदना ? | |||
जहाँ तुम जाते हो न्याय की उम्मीद में | |||
वहाँ धृतराष्टृ की बगल में | |||
सदियों से खड़ी है गांधारी | |||
अंधी मर्यादा में गर्वोन्नत | |||
देखती नहीं कुछ | |||
सुनती है बस | |||
पर फ़र्क़ नहीं कर सकती | |||
घायल की कराहट | |||
और अपराधी की गुर्राहट के बीच़ | |||
रेवड़ियां बाँटती है खैरात में | |||
पर अपना ही कुनबा | |||
आ जाता है सामने हरबाऱ | |||
सदियों से खड़ी है गांधारी | |||
जिसकी आंखों पर पट्टी | |||
हाथ में तराजू है | |||
और तोलने को कुछ भी नहीं | |||
संविधान की आड़ी तिरछी रेखाओं ने | |||
जिसे ऊँची कुर्सी पर टॉंग रखा है | |||
उसके एक हाथ में | |||
मरी हुई परिभाषाओं से भरी | |||
एक भारी किताब है | |||
दूसरे हाथ में लकड़ी का हथौड़ा है | |||
जिसे दिन दिहाड़े धर दबोचा चौक पर | |||
कानून उस पर बरसता संवैधानिक कोड़ा है | |||
यहां हर नागरिक लकड़ी का घोड़ा है़ | |||
वह गूँगा नहीं है | |||
नक्कारखाने में उसका मौन | |||
एक लाचारी है | |||
जिस अपराधी के पक्ष में | |||
एक डरी हुई चुप्पी है | |||
डसके लिए हथौड़े की ठक- ठक कर | |||
ऑर्डर-ऑर्डर कहता जज | |||
महज़ डुगडुगी बजाता मदारी है़ | |||
जिन्दा आदमी के जले गोश्त की | |||
गन्ध से घबराई ज़ाहिरा | |||
एक और बुर्का ओढ़ लेती है झूठ का | |||
जब मोदी पूछता है | |||
अलग अलग करके बताओ | |||
कितने हिन्दू हैं मरने वालों में | |||
कितने मुस्व्लमान ? | |||
संसद की दीर्घा में बैठा प्रहरी | |||
कुछ और पसर जाता है आराम से | |||
जब समवेत स्वर में कहते हैं सभी | |||
जैसिका को किसी ने नहीं मारा | |||
जैसिका कभी मरी ही नहीं | |||
उसे दफन किया गया है फाईलों में ज़िन्दा़ | |||
गांधारी के शब्दकोश में आदमी | |||
न जिंदा है न मरा है | |||
अदालत का एक कटघरा है | |||
जहां उसका सच सलीब पर तुलता है | |||
गवाह और अपराधी के बीच | |||
एक अदालती रिश्ता है | |||
जो सच की क़ब्र पर | |||
फूल की तरह खिलता है़। | |||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} | ||
पंक्ति 122: | पंक्ति 172: | ||
{{समकालीन कवि}} | {{समकालीन कवि}} | ||
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:कुलदीप शर्मा]][[Category:कविता]] | [[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:कुलदीप शर्मा]][[Category:कविता]] | ||
[[Category:हिन्दी कविता]] | |||
[[Category:पद्य साहित्य]] | |||
[[Category:काव्य कोश]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:23, 14 मई 2013 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||
|
|