"बूढ़ा फौजी -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर
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पहचान पत्र पर चिपकाए | पहचान पत्र पर चिपकाए | ||
कैंटीन की लाईन में खड़ा | कैंटीन की लाईन में खड़ा | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी | ||
ढूँढ रहा है अपने हिस्से की शराब | ढूँढ रहा है अपने हिस्से की शराब | ||
जिसे देगा वह दारोगा को | जिसे देगा वह दारोगा को | ||
ताकि सुरक्षित रहे उसके हिस्से की ज़मीन | ताकि सुरक्षित रहे उसके हिस्से की ज़मीन | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी फ़र्क़ नहीं कर पा रहा | ||
देश और ज़मीन में | |||
पहचान पत्र पर छपे तीन शेर | पहचान पत्र पर छपे तीन शेर | ||
चुपके से उसके कान में | चुपके से उसके कान में | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 47: | ||
न हार जीत़ | न हार जीत़ | ||
निरंतर बूढ़ा होता जा रहा है | निरंतर बूढ़ा होता जा रहा है फ़ौजी | ||
निरंतर क्रूरतर होती जा रही है लड़ाई | निरंतर क्रूरतर होती जा रही है लड़ाई | ||
समय अपनी हथेलियों में | समय अपनी हथेलियों में | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
घोर बसंत समय में | घोर बसंत समय में | ||
जैसे पेड़ लड़ते हैं हवा स़े | जैसे पेड़ लड़ते हैं हवा स़े | ||
बीज लड़ता है | बीज लड़ता है मिट्टी स़े | ||
युद्ध से बचे हुए | युद्ध से बचे हुए | ||
वे सारे शस्त्र | वे सारे शस्त्र | ||
जो बरसों से पड़े हैं कुंद, अनछुए | जो बरसों से पड़े हैं कुंद, अनछुए | ||
चुभते हैं बूढ़े | चुभते हैं बूढ़े फ़ौजी को | ||
वह नहीं कह पाता किसी से | वह नहीं कह पाता किसी से | ||
कितनी | कितनी लड़ाइयाँ हारने के बाद | ||
हो जाता है आदमी रूपान्तरित | हो जाता है आदमी रूपान्तरित | ||
एक ऐतिहासिक स्मारक में | एक ऐतिहासिक स्मारक में | ||
पंक्ति 78: | पंक्ति 78: | ||
अपनी पुरानी बन्दूक को | अपनी पुरानी बन्दूक को | ||
हर रोज़ | हर रोज़ साफ़ करता है | ||
एक | एक ज़रूरी और पवित्र दिनचर्या की तरह | ||
फिर कीली पर टांग देता है | फिर कीली पर टांग देता है | ||
शिव जी के कलैण्डर की बगल में बूढ़ा फ़ौजी | |||
यन्त्रवत रटता हुआ-‘कन्धे शस्त्र’ | यन्त्रवत रटता हुआ-‘कन्धे शस्त्र’ | ||
और उसके सामने से निःसंकोच | और उसके सामने से निःसंकोच | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 95: | ||
युद्धनीतियों में इतने बड़े बदलाव के बाद | युद्धनीतियों में इतने बड़े बदलाव के बाद | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी कभी नहीं चलाएगा बंदूक | ||
हो सकता है वह चले भी नहीं | हो सकता है वह चले भी नहीं | ||
वक्ते ज़रूरत | वक्ते ज़रूरत | ||
पंक्ति 104: | पंक्ति 104: | ||
एक ललकार है़ | एक ललकार है़ | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी | ||
अनायास आ गया है उन लोगों के बीच | अनायास आ गया है उन लोगों के बीच | ||
जो समझते हैं कि वे जीत आए हैं | जो समझते हैं कि वे जीत आए हैं | ||
पंक्ति 112: | पंक्ति 112: | ||
जो कभी लड़े ही नहीं | जो कभी लड़े ही नहीं | ||
उन हारे हुए लोगों के बीच | उन हारे हुए लोगों के बीच | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी धीरे-धीरे | ||
अपनी जीत के तमाम किस्से भूलता जा रहा है़ | अपनी जीत के तमाम किस्से भूलता जा रहा है़ | ||
वह कैसे बताए उन्हें | वह कैसे बताए उन्हें | ||
कि जीवन में से | कि जीवन में से | ||
लड़ाई खारिज करके भी | लड़ाई खारिज करके भी | ||
कितनी | कितनी ख़राब लड़ाई लड़ रहे हैं वे सब ! | ||
उधर | उधर फ़ौज से लौटे लोग | ||
ले आए हैं अपनी जेबों में | ले आए हैं अपनी जेबों में | ||
कारगिल के किस्से | कारगिल के किस्से | ||
सीमापार की कहानियां | सीमापार की कहानियां | ||
और शेष जीवन के लिए | और शेष जीवन के लिए पैन्शन | ||
वे आते ही मसरूफ हो गए हैं | वे आते ही मसरूफ हो गए हैं | ||
स्थानीय राजनीति में | स्थानीय राजनीति में | ||
पंक्ति 132: | पंक्ति 132: | ||
निर्धारित कर रहे हैं सबके सुख़ | निर्धारित कर रहे हैं सबके सुख़ | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी लौटा है लड़ाई से | ||
वह लड़ना चाहता है हर हाल | वह लड़ना चाहता है हर हाल | ||
मान-अपमान, जय-पराजय की चिंता किए बगैऱ | मान-अपमान, जय-पराजय की चिंता किए बगैऱ | ||
पंक्ति 138: | पंक्ति 138: | ||
जहां चारदिवारियों से घिरा है | जहां चारदिवारियों से घिरा है | ||
हर सुरक्षित घर | हर सुरक्षित घर | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी वहां भी | ||
धरती पर खींचता है | धरती पर खींचता है | ||
हर रोज़ एक लकीर | हर रोज़ एक लकीर | ||
पंक्ति 146: | पंक्ति 146: | ||
कोई अन्याय़ | कोई अन्याय़ | ||
इसी | इसी देश, इन्हीं लोगों से | ||
बदा है उसका भाग्य | बदा है उसका भाग्य | ||
देश और भाग्य में | |||
कुछ भी चुनना संभव नहीं है उसके लिए़ | कुछ भी चुनना संभव नहीं है उसके लिए़ | ||
अमूमन वे सारे भले लोग | अमूमन वे सारे भले लोग | ||
तीज त्यौहारों पर करते हैं | तीज त्यौहारों पर करते हैं | ||
हैसियत से | हैसियत से थोड़ा ज़्यादा खर्च | ||
और कुढ़ते है साल भऱ | और कुढ़ते है साल भऱ | ||
अपने हिस्से की | अपने हिस्से की खुशी | ||
तलाश लेते हैं | |||
दुखती रगों से हाथ बचाते हुए | दुखती रगों से हाथ बचाते हुए | ||
ऐसे लोगों के बीच | ऐसे लोगों के बीच | ||
बूढ़ा फ़ौजी भूल गया है | |||
तर्क का स्वाद | तर्क का स्वाद | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी जब तैयार कर रहा होता है | ||
दिन भर की लड़ाईयों की सूचियां | दिन भर की लड़ाईयों की सूचियां | ||
वे लोग निकल जाते हैं | वे लोग निकल जाते हैं | ||
सैर का रोज़ाना नियम निभाने! | सैर का रोज़ाना नियम निभाने! | ||
बूढ़े फ़ौजी के लिए नहीं बचे हैं विकल्प | |||
डसका घर हो गया है खंदक में तब्दील | डसका घर हो गया है खंदक में तब्दील | ||
संगीत भी उसके कानों में | संगीत भी उसके कानों में | ||
बजता है हूटर की तरह | बजता है हूटर की तरह | ||
वे सारी लड़ाईयां जो | वे सारी लड़ाईयां जो ज़रूरी थी | ||
और लड़ी नहीं गईं | और लड़ी नहीं गईं | ||
उसके सपनों में आती हैं सब | उसके सपनों में आती हैं सब | ||
पंक्ति 181: | पंक्ति 181: | ||
जो हर लड़ाई हार कर | जो हर लड़ाई हार कर | ||
खुश रहना सीख गए हैं | |||
जिनके लिए | जिनके लिए खुशामद | ||
हर खतरे के | हर खतरे के ख़िलाफ़ एक अचूक उपाय है | ||
जिनके लिए गाय ‘माता’ है | जिनके लिए गाय ‘माता’ है | ||
और माता ‘गाय’ है़ | और माता ‘गाय’ है़ | ||
पंक्ति 190: | पंक्ति 190: | ||
जिनकी मुस्कान भी कर देती है बेचैन | जिनकी मुस्कान भी कर देती है बेचैन | ||
ऐसे लोगों के खिलाफ | ऐसे लोगों के खिलाफ | ||
कभी नहीं लड़ पाएगा बूढ़ा | कभी नहीं लड़ पाएगा बूढ़ा फ़ौजी़ | ||
जहां सभी युद्ध नकली हैं | जहां सभी युद्ध नकली हैं | ||
डाले गए सारे हथियार असली़ | डाले गए सारे हथियार असली़ | ||
पंक्ति 196: | पंक्ति 196: | ||
तिरंगे को सलामी देने बढ़ रही है | तिरंगे को सलामी देने बढ़ रही है | ||
जवानो की एक ताज़ा टुकड़ी | जवानो की एक ताज़ा टुकड़ी | ||
और बूढ़े | और बूढ़े फ़ौजी की मॉंसपेशियों में | ||
बढ़ रहा है तनाव | बढ़ रहा है तनाव | ||
कि नाउम्मीदी के इस घोर घटाटोप में | कि नाउम्मीदी के इस घोर घटाटोप में | ||
इतनी कम संभावनाओं के बावजूद | इतनी कम संभावनाओं के बावजूद | ||
बाकायदा मुस्कुरा रहे हैं प्रधानमन्त्री | बाकायदा मुस्कुरा रहे हैं प्रधानमन्त्री | ||
बुलेटप्रूफ | बुलेटप्रूफ शीशे की ओट में | ||
फ़ौजी के अधटूटे दांतों में | |||
जाने कब से फंसी है अचार की एक फांक | जाने कब से फंसी है अचार की एक फांक | ||
खोखले आन्दोलनों नीतियों और नारों के बीच फंसे | खोखले आन्दोलनों नीतियों और नारों के बीच फंसे | ||
लोकतन्त्र की तरह | लोकतन्त्र की तरह | ||
जो हल्का सा स्वाद दे रही है | जो हल्का सा स्वाद दे रही है | ||
पुरानी स्मृतियों का | |||
अचार जिसे उसकी मॉं बनाना जानती थी | अचार जिसे उसकी मॉं बनाना जानती थी | ||
लोकतन्त्र जिसे नेहरू चलाना जानते थ़े | लोकतन्त्र जिसे नेहरू चलाना जानते थ़े | ||
पंक्ति 219: | पंक्ति 219: | ||
और हर लड़ाई उजाले में लड़ी जाती थी़ | और हर लड़ाई उजाले में लड़ी जाती थी़ | ||
बूढ़ा | बूढ़ा फ़ौजी जो लड़ाई के अतिरिक्त | ||
कुछ नहीं जानता | कुछ नहीं जानता | ||
पास रखी बंदूक के बावजूद | पास रखी बंदूक के बावजूद | ||
पंक्ति 225: | पंक्ति 225: | ||
उससे छीन ली गई है लड़ाई | उससे छीन ली गई है लड़ाई | ||
पहचान के सारे सुराग मिटाकर | पहचान के सारे सुराग मिटाकर | ||
आस-पास रख दिये हैं | आस-पास रख दिये हैं दुश्मन ही दुश्मन-- | ||
</poem> | </poem> | ||
पंक्ति 236: | पंक्ति 236: | ||
{{समकालीन कवि}} | {{समकालीन कवि}} | ||
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:कुलदीप शर्मा]][[Category:कविता]] | [[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:कुलदीप शर्मा]][[Category:कविता]] | ||
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10:51, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
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