"गोरखनाथ मंदिर": अवतरणों में अंतर

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{{सूचना बक्सा मन्दिर
;नाथ संप्रदाय
|चित्र=Temples Gorakhnath.jpg
हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है। श्री गोरक्षनाथ मंदिर इस संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देख रेख यहीं से होती है।
|चित्र का नाम=श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)
 
|वर्णन='गोरखनाथ' अथवा 'गोरक्षनाथ मंदिर' [[नाथ संप्रदाय]] का प्रमुख केन्द्र है।
[[नाथ सम्प्रदाय]] की मान्यता के अनुसार [[शिव|सच्चिदानंद शिव]] के साक्षात् स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' [[सतयुग]] में [[पेशावर]] (पंजाब) में, [[त्रेतायुग]] में [[गोरखपुर]], [[उत्तरप्रदेश]], [[द्वापर युग]] में हरमुज, [[द्वारिका]] के पास तथा [[कलियुग]] में गोरखमधी, [[सौराष्ट्र]] में आविर्भूत हुए थे। चारों युगों में विद्यमान एक अयोनिज अमर महायोगी, सिद्ध महापुरुष के रूप में [[एशिया]] के विशाल भूखंड [[तिब्बत]], [[मंगोलिया]], [[कंधार]], [[अफगानिस्तान]], [[नेपाल]], सिंघल तथा सम्पूर्ण [[भारतवर्ष]] को अपने योग से कृतार्थ किया।
|स्थान=[[गोरखपुर]], [[उत्तर प्रदेश]]
 
|निर्माता=
;श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर) का र्निर्माण
|जीर्णोद्धारक=
[[चित्र:Temples Gorakhnath.jpg|thumb|350px|श्री गोरक्षनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)]]
|निर्माण काल=
गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीन काल से चलता रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए 'गोरक्षनाथ जी' नें आकर भगवती [[राप्ती नदी|राप्ती]] के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहाँ वर्तमान में 'श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)' स्थित है। नाथ योगी सम्प्रदाय के महान प्रवर्तक नें अपनी अलौकिक आध्यात्मिक गरिमा से इस स्थान को पवित्र किया था, अतः योगेश्वर गोरखनाथ के पुण्य स्थल के कारण इस स्थान का नाम 'गोरखपुर' पड़ा। महायोगी गुरु गोरखनाथ की यह तपस्याभूमि प्रारंभ में एक तपोवन के रूप में रही होगी और जनशून्य शांत तपोवन में योगियों के निवास के लिए कुछ छोटे- छोटे मठ रहे होंगे, मंदिर का निर्माण बाद में हुआ होगा। आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करतें हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। वर्तमान पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भब्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हो रहा है। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और ब्यापकता में समाहित हो गया है।
|देवी-देवता=[[शिव]], [[विष्णु]], [[गणेश]], [[काली देवी]], [[राम]], [[हनुमान]], [[शनि देव]]
 
|वास्तुकला=
;यौगिक साधना का स्थल
|भौगोलिक स्थिति=
भारत में मुस्लिम शासन के प्रारंभिक चरण में ही इस मंदिर से प्रवाहित यौगिक साधना की लहर समग्र एशिया में फैल रही थी। नाथ संप्रदाय के योग महाज्ञान की रश्मि से लोगों को संतृप्त करने के पवित्र कार्य में गोरक्षनाथ मंदिर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दी के द्वितीय चरण में गोरक्षनाथ मंदिर का अच्छे ढंग से जीर्णोद्धार किया गया। तभी से निरन्तर मंदिर के आकार- प्रकार के संवर्धन, समलंकरण व मंदिर से संबन्धित उसी के प्रांगण में स्थित अनेकानेक विशिष्ट देव स्थानों के जीर्णोद्धार, नवनिर्माण आदि में गोरक्षनाथ मंदिर की व्यवस्था संभाल रहे महंतों का ख़ासा योगदान रहा है।
|संबंधित लेख=
 
|शीर्षक 1=विशेष
;मंदिर पर शत्रुओं का आक्रमण
|पाठ 1=[[गोरखनाथ|गुरु गोरखनाथ]] जी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है, इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक व चित्ताकर्षक है।
मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके व्यापक प्रसिद्धि के कारण शत्रुओं का ध्यान विशेष रूप से इधर आकर्षित हुआ। विक्रमी चौदहवीं सदी में [[भारत]] के मुस्लिम सम्राट [[अलाउद्दीन खिलजी]] के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किये गये थे। मठ का पुनर्निर्माण किया गया और पुनः यौगिक संस्कृति का प्रधान केंद्र बना। विक्रमी सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक [[औरंगजेब]] नें इसे दो बार नष्ट किया परन्तु शिव गोरक्ष द्वारा त्रेता युग में जलाई गयी अखंड ज्योति आज तक अखंड रूप से जलती हुई आध्यात्मिक, धार्मिक आलोक से उर्जा प्रदान कर रही है। यह अखंड ज्योति श्री गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।
|शीर्षक 2=
 
|पाठ 2=
;मंदिर की भव्यता और रमणीयता
|अन्य जानकारी=[[नाथ सम्प्रदाय]] की मान्यता के अनुसार [[शिव|सच्चिदानंद शिव]] के साक्षात् स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' [[सतयुग]] में [[पेशावर]] में, [[त्रेता युग]] में [[गोरखपुर]], [[द्वापर युग]] में हरमुज, [[द्वारिका]] के पास तथा [[कलियुग]] में गोरखमधी, [[सौराष्ट्र]] में आविर्भूत हुए थे।
क़रीब बावन एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को है, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।
|बाहरी कड़ियाँ=[http://www.gorakhnathmandir.in/ आधिकारिक वेबसाइट]
 
|अद्यतन=
;मंदिर परिसर के दर्शनीय स्थल
}}
;अखण्ड ज्योति
'''गोरखनाथ अथवा गोरक्षनाथ मंदिर''' [[नाथ संप्रदाय]] का प्रमुख केन्द्र है। [[हिन्दू धर्म]], दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में 'नाथ संप्रदाय' का प्रमुख स्थान है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देख रेख यहीं से होती है। [[नाथ सम्प्रदाय]] की मान्यता के अनुसार [[शिव|सच्चिदानंद शिव]] के साक्षात् स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' [[सतयुग]] में [[पेशावर]] (पंजाब) में, [[त्रेतायुग]] में [[गोरखपुर]], [[उत्तरप्रदेश]], [[द्वापर युग]] में हरमुज, [[द्वारिका]] के पास तथा [[कलियुग]] में गोरखमधी, [[सौराष्ट्र]] में आविर्भूत हुए थे। चारों युगों में विद्यमान एक अयोनिज अमर महायोगी, सिद्ध महापुरुष के रूप में [[एशिया]] के विशाल भूखंड [[तिब्बत]], [[मंगोलिया]], [[कंधार]], [[अफ़ग़ानिस्तान]], [[नेपाल]], सिंघल तथा सम्पूर्ण [[भारतवर्ष]] को अपने योग से कृतार्थ किया।
==गोरखनाथ मंदिर का निर्माण==
गोरक्षनाथ मंदिर [[गोरखपुर]] में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीन काल से चलता रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए 'गोरक्षनाथ जी' ने आकर भगवती [[राप्ती नदी|राप्ती]] के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहाँ वर्तमान में 'श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)' स्थित है। नाथ योगी सम्प्रदाय के महान् प्रवर्तक ने अपनी अलौकिक आध्यात्मिक गरिमा से इस स्थान को पवित्र किया था, अतः [[गोरखनाथ|योगेश्वर गोरखनाथ]] के पुण्य स्थल के कारण इस स्थान का नाम 'गोरखपुर' पड़ा। महायोगी [[गोरखनाथ|गुरु गोरखनाथ]] की यह तपस्याभूमि प्रारंभ में एक तपोवन के रूप में रही होगी और जनशून्य शांत तपोवन में योगियों के निवास के लिए कुछ छोटे- छोटे मठ रहे, मंदिर का निर्माण बाद में हुआ। आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। वर्तमान पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भव्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हो रहा है। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और व्यापकता में समाहित हो गया है।
==यौगिक साधना का स्थल==
[[भारत]] में मुस्लिम शासन के प्रारंभिक चरण में ही इस मंदिर से प्रवाहित यौगिक साधना की लहर समग्र एशिया में फैल रही थी। नाथ संप्रदाय के योग महाज्ञान की रश्मि से लोगों को संतृप्त करने के पवित्र कार्य में गोरक्षनाथ मंदिर की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दी के द्वितीय चरण में गोरक्षनाथ मंदिर का अच्छे ढंग से जीर्णोद्धार किया गया। तभी से निरन्तर मंदिर के आकार- प्रकार के संवर्धन, समलंकरण व मंदिर से संबन्धित उसी के प्रांगण में स्थित अनेकानेक विशिष्ट देव स्थानों के जीर्णोद्धार, नवनिर्माण आदि में गोरक्षनाथ मंदिर की व्यवस्था संभाल रहे महंतों का ख़ासा योगदान रहा है।
==अखंड ज्योति==
मुस्लिम शासन काल में [[हिन्दू|हिन्दुओं]] और [[बौद्ध|बौद्धों]] के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके व्यापक प्रसिद्धि के कारण शत्रुओं का ध्यान विशेष रूप से इधर आकर्षित हुआ। विक्रमी चौदहवीं सदी में [[भारत]] के मुस्लिम सम्राट [[अलाउद्दीन खिलजी]] के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किये गये थे। मठ का पुनर्निर्माण किया गया और पुनः यौगिक संस्कृति का प्रधान केंद्र बना। विक्रमी सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक [[औरंगजेब]] ने इसे दो बार नष्ट किया परन्तु शिव गोरक्ष द्वारा [[त्रेता युग]] में जलाई गयी अखंड ज्योति आज तक अखंड रूप से जलती हुई आध्यात्मिक, धार्मिक आलोक से उर्जा प्रदान कर रही है। यह अखंड ज्योति श्री गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।
==भव्यता और रमणीयता==
क़रीब 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को है, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।
==मंदिर परिसर के दर्शनीय स्थल==
मान्यता है कि मंदिर में गोरखनाथ जी द्वारा जलायी अखण्ड ज्योति त्रेतायुग से आज तक अनेक झंझावातों के बावजूद अखण्ड रूप से जलती आ रही है। यह ज्योति आध्यात्मिक ज्ञान, अखण्डता और एकात्मता का प्रतीक है।
मान्यता है कि मंदिर में गोरखनाथ जी द्वारा जलायी अखण्ड ज्योति त्रेतायुग से आज तक अनेक झंझावातों के बावजूद अखण्ड रूप से जलती आ रही है। यह ज्योति आध्यात्मिक ज्ञान, अखण्डता और एकात्मता का प्रतीक है।
 
====अखण्ड धूना====
;अखण्ड धूना
यह गोरखनाथ मंदिर परिसर में विशेष प्रेरणास्रोत का काम करती है। इसमें गोरखनाथ जी द्वारा प्रज्ज्वलित अग्नि आज भी विद्यमान है।
यह गोरखनाथ मंदिर परिसर में विशेष प्रेरणास्रोत का काम करती है। इसमें गोरखनाथ जी द्वारा प्रज्ज्वलित अग्नि आज भी विद्यमान है।
====मंदिर के भीतर देवप्रतिमाएं====
[[चित्र:gkp Temple.jpg|thumb|400px|श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर), [[गोरखपुर]]]]
मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य वेदी पर शिवावतार अमरकाय योगी [[गोरखनाथ|गुरु गोरखनाथ]] जी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है, इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक व चित्ताकर्षक है। यह सिद्धिमयी दिव्य योगमूर्ति है। श्री गुरु गोरखनाथ जी की चरण पादुकाएं भी यहाँ प्रतिष्ठित हैं, जिनकी प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। परिक्रमा भाग में [[शिव|भगवान शिव]] की भव्य मांगलिक मूर्ति, [[गणेश|विघ्नविनाशक श्री गणेशजी]], मंदिर के पश्चिमोत्तर कोने में [[काली देवी|काली माता]], उत्तर दिशा में कालभैरव और उत्तर की ओर पाश्र्व में शीतला माता का मंदिर है। इस मंदिर के समीप ही भैरव जी, इसी से सटा हुआ भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग मंदिर है। उत्तरवर्ती भाग में राधा कृष्ण मंदिर, हट्टी माता मंदिर, संतोषी माता मंदिर, श्री राम दरबार, श्री नवग्रह देवता, श्री [[शनि देव|शनि देवता]], भगवती बालदेवी, भगवान विष्णु का मंदिर तथा योगेश्वर गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गयी अखंड धूना स्थित है। विशाल हनुमान जी मंदिर, महाबली भीमसेन मंदिर, योगिराज ब्राहृनाथ, गंभीरनाथ और महंत दिग्विजयनाथ जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो भक्तों के [[हृदय]] में आस्था एवं श्रद्धा का भाव संचारित करती हैं। पवित्र भीम सरोवर, जल-यंत्र, कथा-मण्डपम यज्ञशाला, संत निवास, अतिथिशाला, गोशाला आदि स्थित हैं।
;खिचड़ी मेला
प्रतिदिन मंदिर में [[भारत]] के सुदूर प्रांतों से आये पर्यटकों, यात्रियों और स्थानीय व पास- पड़ोस के असंख्य लोगों की भीड़ दर्शन के लिए आती है। [[मंगलवार]] को यहां दर्शनार्थियों की संख्या ख़ासी होती है। मंदिर में गोरखबानी की अनेक सबदियां संगमरमर की भित्ति पर अर्थ सहित जगह-जगह अंकित हैं और नवनाथों के चित्रों का अंकन भी मंदिर में भव्य तरीके से किया गया है। [[मकर संक्रान्ति]] के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है जो '''खिचड़ी मेला''' के नाम से प्रसिद्ध है।
==शैक्षिक व सामाजिक महत्त्व==
मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं।
==मंदिर के महंत==
गुरु गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते हैं, जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे। तत्पश्चात् परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज<ref> 1811-1831 ई</ref>, मेहर नाथ जी महाराज<ref> 1831-1855 ई</ref>, दिलावर नाथ जी<ref> 1855-1896 ई</ref>, बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज<ref> 1934-1969 ई</ref> क्रमानुसार वर्तमान समय में महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर अधिष्ठित हैं। नाथ योग सिद्धपीठ गोरखनाथ मंदिर के योग तपोमय पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गुरु गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरूप [[15 फरवरी]] [[1994]] को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्य नाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक शिष्य योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ। योगी जी व्यवहारकुशलता, दृढ़ता, कर्मठता, वाक्पटुता के आदर्श मार्गों का अनुसरण करते हुए हिंदुत्व के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं। योगी जी के युवा नेतृत्व में थोड़े ही समय में पूरे भारत वर्ष में हिंदुत्व का तेजोमय पुनर्जागरण अवश्यम्भावी है। महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी [[आदित्यनाथ]] ने [[1998]] में सबसे कम उम्र का [[सांसद]] बनने का गौरव प्राप्त किया। योगी आदित्यनाथ ने 'हिन्दू युवा वाहिनी' का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को हिन्दुत्वनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरणा देते है।


;मंदिर के भीतर देवप्रतिमाएं
मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य वेदी पर शिवावतार अमरकाय योगी गुरु गोरखनाथ जी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है, इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक व चित्ताकर्षक है। यह सिद्धिमयी दिव्य योगमूर्ति है। श्री गुरु गोरखनाथ जी की चरण पादुकाएं भी यहाँ प्रतिष्ठित हैं, जिनकी प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। परिक्रमा भाग में भगवान शिव की भव्य मांगलिक मूर्ति, विघ्नविनाशक श्री गणेशजी, मंदिर के पश्चिमोत्तर कोने में कालीमाता, उत्तर दिशा में कालभैरव और उत्तर की ओर पाश्र्व में शीतलामाता का मंदिर है। इस मंदिर के समीप ही भैरव जी, इसी से सटा हुआ भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग मंदिर है। उत्तरवर्ती भाग में राधा कृष्ण मंदिर, हट्टी माता मंदिर, संतोषी माता मंदिर, श्री राम दरबार, श्री नवग्रह देवता, श्री शनि देवता, भगवती बालदेवी, भगवान विष्णु की मंदिर तथा योगेश्वर गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गयी अखंड धूना स्थित है। विशाल हनुमान जी मंदिर, महाबली भीमसेन मंदिर, योगिराज ब्राहृनाथ, गंभीरनाथ और महंत दिग्विजयनाथ जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो भक्तों के हृदय में आस्था एवं श्रद्धा का भाव संचारित करती हैं। पवित्र भीम सरोवर, जल-यंत्र, कथा-मण्डपम यज्ञशाला, संत निवास, अतिथिशाला, गोशाला आदि स्थित हैं।
प्रतिदिन मंदिर में भारत के सुदूर प्रांतों से आये पर्यटकों, यात्रियों और स्थानीय व पास- पड़ोस के असंख्य लोगों की भीड़ दर्शन के लिए आती है। [[मंगलवार]] को यहां दर्शनार्थियों की संख्या ख़ासी होती है। मंदिर में गोरखबानी की अनेक सबदियां संगमरमर की भित्ति पर अर्थ सहित जगह-जगह अंकित हैं और नवनाथों के चित्रों का अंकन भी मंदिर में भव्य तरीके से किया गया है। [[मकर संक्रान्ति]] के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है जो '''खिचड़ी मेला''' के नाम से प्रसिद्ध है।
;शैक्षिक व सामाजिक महात्म्य
मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है।
गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं।
;मंदिर के महंत
गुरु गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते हैं, जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे। तत्पश्चात परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज<ref> 1811-1831 ई</ref>, मेहर नाथ जी महाराज<ref> 1831-1855 ई</ref>, दिलावर नाथ जी<ref> 1855-1896 ई</ref>, बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज<ref> 1934-1969 ई</ref> क्रमानुसार वर्तमान समय में महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर अधिष्ठित हैं। नाथ योग सिद्धपीठ गोरखनाथ मंदिर के योग तपोमय पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गुरु गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरुप 15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्य नाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक शिष्य योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ। योगी जी व्यवहारकुशलता, दृढ़ता, कर्मठता, वाक्पटुता के आदर्श मार्गों का अनुसरण करते हुए हिंदुत्व के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं। योगी जी के युवा नेतृत्व में थोड़े ही समय में पूरे भारत वर्ष में हिंदुत्व का तेजोमय पुनर्जागरण अवश्यम्भावी है। महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। योगी आदित्यनाथ ने 'हिन्दू युवा वाहिनी' का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को हिन्दुत्वनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरणा देते है।
[[चित्र:gkp Temple.jpg|thumb|800px|center|श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर), गोरखपुर]]


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{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.jagranyatra.com/2010/04/gorakshnath-temple-gorakhpur-religious-tourism/ आस्था का प्रमुख केन्द्र श्री गोरक्षनाथ मंदिर]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{उत्तर प्रदेश के मन्दिर}}{{उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल}}
[[Category:नया पन्ना अक्टूबर-2011]]
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:हिन्दू धार्मिक स्थल]][[Category:उत्तर प्रदेश के मन्दिर]][[Category:उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
 
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_धार्मिक_स्थल]]
__NOTOC__

13:20, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

गोरखनाथ मंदिर
श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)
श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)
वर्णन 'गोरखनाथ' अथवा 'गोरक्षनाथ मंदिर' नाथ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है।
स्थान गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
देवी-देवता शिव, विष्णु, गणेश, काली देवी, राम, हनुमान, शनि देव
विशेष गुरु गोरखनाथ जी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है, इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक व चित्ताकर्षक है।
अन्य जानकारी नाथ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिव के साक्षात् स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' सतयुग में पेशावर में, त्रेता युग में गोरखपुर, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत हुए थे।
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गोरखनाथ अथवा गोरक्षनाथ मंदिर नाथ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में 'नाथ संप्रदाय' का प्रमुख स्थान है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देख रेख यहीं से होती है। नाथ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिव के साक्षात् स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' सतयुग में पेशावर (पंजाब) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत हुए थे। चारों युगों में विद्यमान एक अयोनिज अमर महायोगी, सिद्ध महापुरुष के रूप में एशिया के विशाल भूखंड तिब्बत, मंगोलिया, कंधार, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, सिंघल तथा सम्पूर्ण भारतवर्ष को अपने योग से कृतार्थ किया।

गोरखनाथ मंदिर का निर्माण

गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीन काल से चलता रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए 'गोरक्षनाथ जी' ने आकर भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहाँ वर्तमान में 'श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)' स्थित है। नाथ योगी सम्प्रदाय के महान् प्रवर्तक ने अपनी अलौकिक आध्यात्मिक गरिमा से इस स्थान को पवित्र किया था, अतः योगेश्वर गोरखनाथ के पुण्य स्थल के कारण इस स्थान का नाम 'गोरखपुर' पड़ा। महायोगी गुरु गोरखनाथ की यह तपस्याभूमि प्रारंभ में एक तपोवन के रूप में रही होगी और जनशून्य शांत तपोवन में योगियों के निवास के लिए कुछ छोटे- छोटे मठ रहे, मंदिर का निर्माण बाद में हुआ। आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। वर्तमान पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भव्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हो रहा है। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और व्यापकता में समाहित हो गया है।

यौगिक साधना का स्थल

भारत में मुस्लिम शासन के प्रारंभिक चरण में ही इस मंदिर से प्रवाहित यौगिक साधना की लहर समग्र एशिया में फैल रही थी। नाथ संप्रदाय के योग महाज्ञान की रश्मि से लोगों को संतृप्त करने के पवित्र कार्य में गोरक्षनाथ मंदिर की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दी के द्वितीय चरण में गोरक्षनाथ मंदिर का अच्छे ढंग से जीर्णोद्धार किया गया। तभी से निरन्तर मंदिर के आकार- प्रकार के संवर्धन, समलंकरण व मंदिर से संबन्धित उसी के प्रांगण में स्थित अनेकानेक विशिष्ट देव स्थानों के जीर्णोद्धार, नवनिर्माण आदि में गोरक्षनाथ मंदिर की व्यवस्था संभाल रहे महंतों का ख़ासा योगदान रहा है।

अखंड ज्योति

मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके व्यापक प्रसिद्धि के कारण शत्रुओं का ध्यान विशेष रूप से इधर आकर्षित हुआ। विक्रमी चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किये गये थे। मठ का पुनर्निर्माण किया गया और पुनः यौगिक संस्कृति का प्रधान केंद्र बना। विक्रमी सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया परन्तु शिव गोरक्ष द्वारा त्रेता युग में जलाई गयी अखंड ज्योति आज तक अखंड रूप से जलती हुई आध्यात्मिक, धार्मिक आलोक से उर्जा प्रदान कर रही है। यह अखंड ज्योति श्री गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।

भव्यता और रमणीयता

क़रीब 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को है, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।

मंदिर परिसर के दर्शनीय स्थल

मान्यता है कि मंदिर में गोरखनाथ जी द्वारा जलायी अखण्ड ज्योति त्रेतायुग से आज तक अनेक झंझावातों के बावजूद अखण्ड रूप से जलती आ रही है। यह ज्योति आध्यात्मिक ज्ञान, अखण्डता और एकात्मता का प्रतीक है।

अखण्ड धूना

यह गोरखनाथ मंदिर परिसर में विशेष प्रेरणास्रोत का काम करती है। इसमें गोरखनाथ जी द्वारा प्रज्ज्वलित अग्नि आज भी विद्यमान है।

मंदिर के भीतर देवप्रतिमाएं

श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर), गोरखपुर

मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य वेदी पर शिवावतार अमरकाय योगी गुरु गोरखनाथ जी महाराज की श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति, ध्यानावस्थित रूप में प्रतिष्ठित है, इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक व चित्ताकर्षक है। यह सिद्धिमयी दिव्य योगमूर्ति है। श्री गुरु गोरखनाथ जी की चरण पादुकाएं भी यहाँ प्रतिष्ठित हैं, जिनकी प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। परिक्रमा भाग में भगवान शिव की भव्य मांगलिक मूर्ति, विघ्नविनाशक श्री गणेशजी, मंदिर के पश्चिमोत्तर कोने में काली माता, उत्तर दिशा में कालभैरव और उत्तर की ओर पाश्र्व में शीतला माता का मंदिर है। इस मंदिर के समीप ही भैरव जी, इसी से सटा हुआ भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग मंदिर है। उत्तरवर्ती भाग में राधा कृष्ण मंदिर, हट्टी माता मंदिर, संतोषी माता मंदिर, श्री राम दरबार, श्री नवग्रह देवता, श्री शनि देवता, भगवती बालदेवी, भगवान विष्णु का मंदिर तथा योगेश्वर गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गयी अखंड धूना स्थित है। विशाल हनुमान जी मंदिर, महाबली भीमसेन मंदिर, योगिराज ब्राहृनाथ, गंभीरनाथ और महंत दिग्विजयनाथ जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। जो भक्तों के हृदय में आस्था एवं श्रद्धा का भाव संचारित करती हैं। पवित्र भीम सरोवर, जल-यंत्र, कथा-मण्डपम यज्ञशाला, संत निवास, अतिथिशाला, गोशाला आदि स्थित हैं।

खिचड़ी मेला

प्रतिदिन मंदिर में भारत के सुदूर प्रांतों से आये पर्यटकों, यात्रियों और स्थानीय व पास- पड़ोस के असंख्य लोगों की भीड़ दर्शन के लिए आती है। मंगलवार को यहां दर्शनार्थियों की संख्या ख़ासी होती है। मंदिर में गोरखबानी की अनेक सबदियां संगमरमर की भित्ति पर अर्थ सहित जगह-जगह अंकित हैं और नवनाथों के चित्रों का अंकन भी मंदिर में भव्य तरीके से किया गया है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है जो खिचड़ी मेला के नाम से प्रसिद्ध है।

शैक्षिक व सामाजिक महत्त्व

मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं।

मंदिर के महंत

गुरु गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते हैं, जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे। तत्पश्चात् परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज[1], मेहर नाथ जी महाराज[2], दिलावर नाथ जी[3], बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज[4] क्रमानुसार वर्तमान समय में महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर अधिष्ठित हैं। नाथ योग सिद्धपीठ गोरखनाथ मंदिर के योग तपोमय पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गुरु गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरूप 15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्य नाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक शिष्य योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ। योगी जी व्यवहारकुशलता, दृढ़ता, कर्मठता, वाक्पटुता के आदर्श मार्गों का अनुसरण करते हुए हिंदुत्व के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं। योगी जी के युवा नेतृत्व में थोड़े ही समय में पूरे भारत वर्ष में हिंदुत्व का तेजोमय पुनर्जागरण अवश्यम्भावी है। महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। योगी आदित्यनाथ ने 'हिन्दू युवा वाहिनी' का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को हिन्दुत्वनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरणा देते है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1811-1831 ई
  2. 1831-1855 ई
  3. 1855-1896 ई
  4. 1934-1969 ई

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