"रमज़ान": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Woman-praying.jpg|thumb|250px|[[नमाज़]] पढ़ती महिला]]
{{सूचना बक्सा त्योहार
{{tocright}}
|चित्र=Woman-praying.jpg
'''माहे रमज़ान''' शब्द रम्ज़ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली [[सूर्य]] की अत्याधिक गर्मी। माहे रमज़ान ईश्वरीय नामों में से एक नाम है। इसी महीने में पवित्र [[क़ुरआन]] नाज़िल हुआ था। यह ईश्वर का महीना है। इस महीने की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है।
|चित्र का नाम= नमाज़ पढ़ती महिला
|अन्य नाम = माहे रमज़ान, रमादान
|अनुयायी = [[मुस्लिम]]
|उद्देश्य = इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।
|प्रारम्भ =
|तिथि=
|उत्सव =इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं।
|अनुष्ठान =
|धार्मिक मान्यता =भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा।
|प्रसिद्धि =
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=पकवान
|पाठ 1=बाक़रख़ानी, खजला, फेनी, खजूर और सेवइयाँ
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर [[क़ुरान शरीफ़]] नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे [[शबे क़द्र]] कहते हैं। शबे क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए। यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
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[[अल्लाह]] ने अपने बंदों पर पाँच चीज़ें फ़र्ज़ की हैं। कलिमा-ए-तयैबा, [[नमाज़]], [[हज]], रोज़ा और [[ज़कात]]। इन्हें [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] के ख़ास सुतून (स्तंभ) कहते हैं। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। रमज़ान बरकतों वाला महीना है, इस माहे मुबारक में अल्लाह अपने बंदो को बेइंतिहा न्यामतों से नवाज़ता है। इसी पवित्र महीने में [[अल्लाह|अल्लाह रब्बुल इज्जत]] ने [[क़ुरआन]] पेगंबर [[हज़रत मुहम्मद साहब]] पर नाज़िल फ़रमाया। रमज़ान महीने के अंत पर तीन दिनों तक [[ईद-उल-फ़ितर|ईद]] मनायी जाती है।<ref name="वेब दुनिया">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/ramzan/0809/02/1080902038_1.htm |title=रमज़ान : बरकतों वाला महीना |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last=खान |first=शराफत |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
'''माहे रमज़ान''' शब्द 'रम्ज़' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- "छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली [[सूर्य]] की अत्याधिक गर्मी"। माहे रमज़ान ईश्वरीय नामों में से एक नाम है। इसी महीने में पवित्र [[क़ुरआन]] नाज़िल हुआ था। यह ईश्वर का महीना है। इस महीने की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है।
==रमज़ान क्या है?==
रमज़ान महीने का नाम है, जिस प्रकार [[हिन्दी]] [[महीने]] [[चैत्र]], [[वैशाख]], [[ज्येष्ठ]], [[आषाढ़]], [[सावन]], [[भाद्रपद]], [[आश्विन]], [[कार्तिक]], [[अगहन]], [[पौष]], [[माघ]], [[फाल्गुन]] होते हैं और [[अंग्रेज़ी]] महीने [[जनवरी]], [[फ़रवरी]], [[मार्च]], [[अप्रेल]], [[मई]], [[जून]], [[जुलाई]], [[अगस्त]], [[सितंबर]], [[अक्टूबर]], [[नवंबर]], [[दिसंबर]] होते हैं। उसी प्रकार, मुस्लिम महीने, [[मोहर्रम]], [[सफ़र (माह)|सफ़र]], [[रबीउल अव्वल]], [[रबीउल आख़िर]], [[जमादी-उल-अव्वल]], [[जमादी-उल-आख़िर]], [[रजब]], [[शाबान]], रमज़ान, [[शव्वाल]], [[ज़िलक़ाद]] और [[ज़िलहिज्ज|ज़िलहिज्ज:]]  ये बारह महीने आते हैं।
====शबे क़द्र====
रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर [[क़ुरान शरीफ़]] नाज़िल<ref>उतरा</ref> था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि- "इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें।" इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है, जिसे [[शबे क़द्र]] कहते हैं। 21, 23, 25, 27, 29 वें में शबे क़द्र को तलाश करते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। [[शबे क़द्र]] का अर्थ है- "वह रात जिसकी क़द्र की जाए।" यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।
====पाँच फ़र्ज़====
[[अल्लाह]] ने अपने बंदों पर जो पाँच चीज़ें फ़र्ज़ की हैं, वे इस प्रकार हैं-
#कलिमा-ए-तयैबा
#[[नमाज़]]
#[[हज]]
#[[रोज़ा]]
#[[ज़कात]]


==रमज़ान क्या है?==
इन्हें [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] के ख़ास 'सुतून'<ref>स्तंभ</ref> कहते हैं। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। रमज़ान बरकतों वाला महीना है, इस माहे मुबारक में अल्लाह अपने बंदो को बेइंतिहा न्यामतों से नवाज़ता है। इसी पवित्र महीने में [[अल्लाह|अल्लाह रब्बुल इज्जत]] ने [[क़ुरआन]] [[हज़रत मुहम्मद साहब|पेगंबर हज़रत मुहम्मद साहब]] पर नाज़िल फ़रमाया। रमज़ान महीने के अंत पर तीन दिनों तक [[ईद-उल-फ़ितर|ईद]] मनायी जाती है।<ref name="वेब दुनिया">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/ramzan/0809/02/1080902038_1.htm |title=रमज़ान : बरकतों वाला महीना |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last=खान |first=शराफत |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
रमज़ान महीने का नाम है, जिस प्रकार [[हिन्दी]] [[महीने]] [[चैत्र]], [[वैशाख]], [[ज्येष्ठ]], [[आषाढ़]], [[सावन]], [[भाद्रपद]], [[आश्विन]], [[कार्तिक]], [[अगहन]], [[पौष]], [[माघ]], [[फाल्गुन]] होते हैं और [[अंग्रेज़ी]] महीने [[जनवरी]], [[फ़रवरी]], [[मार्च]], [[अप्रेल]], [[मई]], [[जून]], [[जुलाई]], [[अगस्त]], [[सितंबर]], [[अक्टूबर]], [[नवंबर]], [[दिसंबर]] होते हैं। उसी प्रकार, मुस्लिम महीने, [[मोहर्रम]], सफ़र, रबीउल अव्वल, रबीउलसानी, जुमादलऊला, जुमादल उख़्र, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, द्हू अल-क़िदाह, द्हू अल-हिज्जाह ये बारह महीने आते हैं।
==तीन भाग==
रमज़ान इस्लामी महीने का नौवां महीना है। इसका नाम भी इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने से बना है। यह महीना [[इस्लाम]] के सबसे पाक महीनों में शुमार किया जाता है। इस्लाम के सभी अनुयाइयों को इस महीने में [[रोज़ा]], [[नमाज़]], फितरा आदि करने की सलाह दी गई है। रमज़ान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को 'अशरा' कहते हैं, जिसका मतलब [[अरबी भाषा|अरबी]] में 10 है। इस तरह इसी महीने में पूरी क़ुरआन नालि हुई, जो इस्लाम की पाक किताब है। क़ुरआन के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोज़ा रखना हर [[मुस्लिम]] के लिए ज़रूरी बताया गया है। रोज़ा सिर्फ भूखे, प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि अश्लील या गलत काम से बचना है। इसका मतलब हमें हमारे शारीरिक और मानसिक दोनों के कामों को नियंत्रण में रखना है। इस मुबारक महीने में किसी तरह के झगडे़ या गुस्से से ना सिर्फ मना फरमाया गया है, बल्कि किसी से गिला शिकवा है तो उससे माफी मांग कर समाज में एकता कायम करने की सलाह दी गई है। इसके साथ एक तय रकम या सामान ग़रीबों में बांटने की हिदायत है, जो समाज के ग़रीब लोगों के लिए बहुत ही मददगार है।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-ramzan/%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9-1110803009_1.htm|title= रमजान का पवित्र महीना|accessmonthday=30 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref>
[[चित्र:Ramzaan-3.jpg|thumb|250px|रमज़ान में [[नमाज़]] अदा करते लोग]]
====रोज़ा====
{{Main|रोज़ा}}
रोज़े को [[अरबी भाषा|अरबी]] में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से ग़लत या बुरा नहीं बोलना, [[आँख]] से ग़लत नहीं देखना, [[कान]] से ग़लत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। किसी को भला बुरा नहीं कहना। हर वक़्त ख़ुदा की इबादत करना।
==हज़रत मोहम्मद का कथन==
हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै ने फ़रमाया है कि चार बातों को इस महीने में खूब करो, जिनमें से दो चीज़े [[अल्लाह]] को राज़ी करने के लिए हैं। वह यह कि पहला कलिमा खूब पढ़ो और अस्‍तग़फार खूब पढ़ो। दूसरी दो चीजें अपने फ़ायदे के लिए हैं। वह यह कि जन्‍नत की दुआ करो और जहन्‍नुम से बचने की दुआ मांगो।


रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे [[शबे क़द्र]] कहते हैं। 21, 23, 25, 27, 29 वें में शबे क़द्र को तलाश करते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। [[शबे क़द्र]] का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए। यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।
'''कलिमा''' - "ला इलाहा इलल ला मोहम्‍मदुर रसूलुल्‍लाह।"<br />
हदीसों में इसको सबसे अच्‍छा ज़िक्र माना गया है। अगर सातों आसमान, सातों ज़मीन और उनके आबाद करने वाले<ref>यानी सारे इंसान और जिन्‍नात</ref>, सारे फ़रिश्‍ते, चांद-सूरज, सारे पहाड़, सारे [[समुद्र]] तराजू के एक पलड़े में रख दिए जाएं और एक तरफ़ यह कलमा रख दिया जाए तो कलमे वाला हिस्‍सा भारी पड़ जाएगा। इसलिए यह कलिमा चलते-फिरते, उठते-बैठते पढ़ते रहना चाहिए।


==रोज़ा==
'''अस्‍तग़फार''' - "अस्‍तग़फिरुल्‍ला हल लज़ी लाइलाहा इल्‍ला हुवल हयिल कयुम व अतुबु इलैही।"<br />
रोज़े को [[अरबी भाषा|अरबी]] में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से ग़लत या बुरा नहीं बोलना, [[आँख]] से ग़लत नहीं देखना, [[कान]] से ग़लत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। किसी को भला बुरा नहीं कहना। हर वक़्त ख़ुदा की इबादत करना।<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/news/77154/77154.html |title=इबादतों का महीना है रमज़ान |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last=हबीब |first=तारिक |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आज की ख़बर |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
हदीसों में आया है कि जो शख्‍स अस्‍तग़फार को खूब पढ़ता है, अल्‍लाह पाक हर तंगी में उसके लिए रास्‍ता निकाल देता है और हर दु:ख को दूर कर देते हैं और उसके लिए ऐसी जगह से रोजी-रोजग़ार पहुंचाता है कि उसे गुमान भी नहीं होता। '[[हदीस]]' में आया है कि आदमी गुनाहगार तो होता ही है, पर बेहतरीन गुनाहगार वह है, जो तौबा करते रहे। जब आदमी गुनाह करता है तो एक काला नुक्‍ता उसके दिल पर लग जाता है। अगर तौबा कर लेता है तो वह धुल जाता है वरना बाकी रहता है।


दौज़ख से पनाह मांगें और जन्‍नत में जाने की दुआ करें। हम जब भी अल्‍लाह से जन्‍नत की दुआ करें तो जन्‍नतुल फिरदोस मांगें, क्‍योंकि जन्‍नत के भी कई दर्जें होते हैं और सबसे ऊंचा दर्जा जन्‍नतुल फिरदोस है। जब मांग ही रहे हैं तो सबसे ऊंची चीज़ मांगें, क्‍योंकि उस देने वाले (अल्‍लाह) के ख़ज़ाने में कोई कमी नहीं है। हम मांग-मांग कर थक जाएंगे पर वह देकर नहीं थकता।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-ramzan/%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%BC-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82-1130709026_1.htm|title= रमजान मुबारक|accessmonthday= 30 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==बरकतों वाला महीना==
==बरकतों वाला महीना==
[[चित्र:Ramzaan.jpg|thumb|250px|left|नमाज़ियों का हुजूम]]
रमज़ान की कई फज़ीलत हैं। इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।<ref name="वेब दुनिया" />
रमज़ान की कई फज़ीलत हैं। इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।<ref name="वेब दुनिया" />
==इबादत का महीना==
====इबादत====
इस महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है, ताकि वह अल्लाह के बंदों की इबादत में खलल न डाल सके। इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं। इस महीने में [[आकाश]] तथा स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तथा नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। इस महीने की एक रात की उपासना, जिसे 'शबे क़द्र' के नाम से जाना जाता है, एक हज़ार महीनों की उपासना से बढ़ कर है। इस महीने में रोज़ा रखने वाले का कर्तव्य, ईश्वर की अधिक से अधिक प्रार्थना करना है।
इस महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है, ताकि वह अल्लाह के बंदों की इबादत में खलल न डाल सके। इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं। इस महीने में [[आकाश]] तथा स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तथा नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। इस महीने की एक रात की उपासना, जिसे 'शबे क़द्र' के नाम से जाना जाता है, एक हज़ार महीनों की उपासना से बढ़ कर है। इस महीने में रोज़ा रखने वाले का कर्तव्य, ईश्वर की अधिक से अधिक प्रार्थना करना है।
==रोज़े का मक़सद==
==रोज़े का मक़सद==
रोज़े का मक़सद सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ ग़लत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चु्ग़ली की जाए। ज़बान से सिर्फ़ अल्लाह का ज़िक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मक़सद तक पहुँच सके। रोज़े का असल मक़सद है कि बंदा अपनी ज़िन्दगी में तक्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फ़ायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक दे।<ref name="वेब दुनिया" />
रोज़े का मक़सद सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ ग़लत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चु्ग़ली की जाए। ज़बान से सिर्फ़ अल्लाह का ज़िक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मक़सद तक पहुँच सके। रोज़े का असल मक़सद है कि बंदा अपनी ज़िन्दगी में तक्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फ़ायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक दे।<ref name="वेब दुनिया" />
====सेहरी====
====सेहरी====
रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, "सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है।" एक दूसरी हदीस में आया है, "सेहरी खाओ चाहे एक घूँट पानी ही पी लो"
रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, "सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है।" एक दूसरी हदीस में आया है, "सेहरी खाओ चाहे एक घूँट पानी ही पी लो"
 
[[चित्र:Roza-iftar-in-Ramzaan.jpg|thumb|250px|रमज़ान में रोज़ा इफ़्तार की दावत]]
====इफ़्तार====
==रोज़ा इफ़्तार==
भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा।  
भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा। जो रोज़ेदार को इफ़्तार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "जिसने किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कु्छ भी कमी न होगी" (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई)<ref>{{cite web |url=http://ipcblogger.net/nawaz/?p=134 |title=रमज़ान के महीने में की जाने वाली इबादतें |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=नवीन जीवन |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
जो रोज़ेदार को इफ़्तार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "जिसने किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कु्छ भी कमी न होगी" (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई)<ref>{{cite web |url=http://ipcblogger.net/nawaz/?p=134 |title=रमज़ान के महीने में की जाने वाली इबादतें |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=नवीन जीवन |language=[[हिन्दी]] }}</ref>


==रमज़ान के निराले ज़ायके==
==रमज़ान के निराले ज़ायके==
====बाक़रख़ानी====
====बाक़रख़ानी====
बाक़रख़ानी रमज़ान के अलावा दूसरे महीनों में नसीब नहीं होती, क्योंकि एक दिन के बाद ही इसका स्वाद बदल जाता है। इसे एक ख़ास [[तापमान]] पर पकाया जाता है। देखने में यह बिस्कुट की तरह होती है। ताजी बाक़रख़ानी के स्वाद का कहना ही क्या।  
बाक़रख़ानी रमज़ान के अलावा दूसरे महीनों में नसीब नहीं होती, क्योंकि एक दिन के बाद ही इसका स्वाद बदल जाता है। इसे एक ख़ास [[तापमान]] पर पकाया जाता है। देखने में यह बिस्कुट की तरह होती है। ताजी बाक़रख़ानी के स्वाद का कहना ही क्या।  
[[चित्र:Fenni-mathura.jpg|thumb|250px|स्वादिष्ट मिठाई फ़ेनी ख़रीदती महिला]]
====खजला, फेनी और सेवइयाँ====
====खजला, फेनी और सेवइयाँ====
रमज़ान का ख़ास पकवान है खजला, फेनी और सेवइयाँ। इन्हें दूध में भिगो कर खाया जाता है, जो रमज़ान का पौष्टिक आहार होता है। सूखी सेवईं चीनी, खोया और मावा के साथ जब तैयार होती है तो लोग अँगुली चाटते रह जाते हैं। ये सहरी के वक़्त का ख़ास पकवान है।
रमज़ान का ख़ास पकवान है खजला, फेनी और सेवइयाँ। इन्हें दूध में भिगो कर खाया जाता है, जो रमज़ान का पौष्टिक आहार होता है। सूखी सेवईं चीनी, खोया और मावा के साथ जब तैयार होती है तो लोग अँगुली चाटते रह जाते हैं। ये सहरी के वक़्त का ख़ास पकवान है।
====खजूर====
====खजूर====
खजूर से रोजा खोलना सुन्नत है। खजूर [[ईरान]], [[ईराक़]], [[पाकिस्तान]], [[अरब देश|सऊदी अरब]], [[मिस्र]] और [[भारत|हिन्दुस्तान]] में [[गुजरात]] से आता है।
खजूर से रोजा खोलना सुन्नत है। खजूर [[ईरान]], ईराक़, [[पाकिस्तान]], [[अरब देश|सऊदी अरब]], [[मिस्र]] और [[भारत|हिन्दुस्तान]] में [[गुजरात]] से आता है।


====फ्रूट चाट====
====फ्रूट चाट====
आमतौर पर इफ़्तार की फ्रूट चाट में [[केला]], [[अमरुद]], [[पपीता]], [[सेब]], [[ख़रबूज़ा]], [[अनार]], [[तरबूज़]] आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इफ़्तार से आधा एक घंटा पूर्व सभी फलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर ऊपर से चीनी और चाट मसाला डाल दिया जाता है, क्योंकि 15 घंटों के रोज़े के बाद इनसे तरोताज़गी का अहसास होता है और ये ताक़त भी देते हैं।
आमतौर पर इफ़्तार की फ्रूट चाट में [[केला]], [[अमरुद]], [[पपीता]], [[सेब]], [[ख़रबूज़ा]], [[अनार]], [[तरबूज़]] आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इफ़्तार से आधा एक घंटा पूर्व सभी फलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर ऊपर से चीनी और चाट मसाला डाल दिया जाता है, क्योंकि 15 घंटों के रोज़े के बाद इनसे तरोताज़गी का अहसास होता है और ये ताक़त भी देते हैं।
 
[[चित्र:Fenni-mathura.jpg|thumb|250px|स्वादिष्ट मिठाई फ़ेनी ख़रीदती महिला]]
====पकौड़ियां, चने====
====पकौड़ियां, चने====
रमज़ान के दिनों में इफ़्तार के समय के संतुलित आहार हैं पकौड़ियां व चने, जो देश के हर कोने में रोज़ेदार के दस्तरखान पर ज़रूर होते हैं। प्याज, पालक, [[बैंगन]], गोभी, [[आलू]], [[दाल]], न जाने कितने तरह के पकौड़ों का स्वाद एक साथ मिलता है।
रमज़ान के दिनों में इफ़्तार के समय के संतुलित आहार हैं पकौड़ियां व चने, जो देश के हर कोने में रोज़ेदार के दस्तरखान पर ज़रूर होते हैं। प्याज, पालक, [[बैंगन]], गोभी, [[आलू]], [[दाल]], न जाने कितने तरह के पकौड़ों का स्वाद एक साथ मिलता है।
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====शरबत====
====शरबत====
सर्दियों की बात ही छोड़ दें। अब तो अगले 20 साल तक तपिश भरी गरमी में ही रमज़ान का मुबारक़ महीना रहेगा, इसलिए [[खजूर]] से रोज़ा खोलने के बाद पानी की जगह लोग तरह-तरह के शरबतों से अपने गले को तर करेंगे।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/50-50-70610.html |title=रमज़ान के निराले ज़ायके  |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिन्दुस्तान |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
सर्दियों की बात ही छोड़ दें। अब तो अगले 20 साल तक तपिश भरी गरमी में ही रमज़ान का मुबारक़ महीना रहेगा, इसलिए [[खजूर]] से रोज़ा खोलने के बाद पानी की जगह लोग तरह-तरह के शरबतों से अपने गले को तर करेंगे।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/50-50-70610.html |title=रमज़ान के निराले ज़ायके  |accessmonthday=[[31 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिन्दुस्तान |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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09:18, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

रमज़ान
नमाज़ पढ़ती महिला
नमाज़ पढ़ती महिला
अन्य नाम माहे रमज़ान, रमादान
अनुयायी मुस्लिम
उद्देश्य इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।
उत्सव इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं।
धार्मिक मान्यता भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा।
पकवान बाक़रख़ानी, खजला, फेनी, खजूर और सेवइयाँ
अन्य जानकारी रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे क़द्र कहते हैं। शबे क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए। यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।

माहे रमज़ान शब्द 'रम्ज़' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- "छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली सूर्य की अत्याधिक गर्मी"। माहे रमज़ान ईश्वरीय नामों में से एक नाम है। इसी महीने में पवित्र क़ुरआन नाज़िल हुआ था। यह ईश्वर का महीना है। इस महीने की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है।

रमज़ान क्या है?

रमज़ान महीने का नाम है, जिस प्रकार हिन्दी महीने चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन होते हैं और अंग्रेज़ी महीने जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रेल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर होते हैं। उसी प्रकार, मुस्लिम महीने, मोहर्रम, सफ़र, रबीउल अव्वल, रबीउल आख़िर, जमादी-उल-अव्वल, जमादी-उल-आख़िर, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़िलक़ाद और ज़िलहिज्ज: ये बारह महीने आते हैं।

शबे क़द्र

रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल[1] था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि- "इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें।" इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है, जिसे शबे क़द्र कहते हैं। 21, 23, 25, 27, 29 वें में शबे क़द्र को तलाश करते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। शबे क़द्र का अर्थ है- "वह रात जिसकी क़द्र की जाए।" यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।

पाँच फ़र्ज़

अल्लाह ने अपने बंदों पर जो पाँच चीज़ें फ़र्ज़ की हैं, वे इस प्रकार हैं-

  1. कलिमा-ए-तयैबा
  2. नमाज़
  3. हज
  4. रोज़ा
  5. ज़कात

इन्हें इस्लाम के ख़ास 'सुतून'[2] कहते हैं। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। रमज़ान बरकतों वाला महीना है, इस माहे मुबारक में अल्लाह अपने बंदो को बेइंतिहा न्यामतों से नवाज़ता है। इसी पवित्र महीने में अल्लाह रब्बुल इज्जत ने क़ुरआन पेगंबर हज़रत मुहम्मद साहब पर नाज़िल फ़रमाया। रमज़ान महीने के अंत पर तीन दिनों तक ईद मनायी जाती है।[3]

तीन भाग

रमज़ान इस्लामी महीने का नौवां महीना है। इसका नाम भी इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने से बना है। यह महीना इस्लाम के सबसे पाक महीनों में शुमार किया जाता है। इस्लाम के सभी अनुयाइयों को इस महीने में रोज़ा, नमाज़, फितरा आदि करने की सलाह दी गई है। रमज़ान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को 'अशरा' कहते हैं, जिसका मतलब अरबी में 10 है। इस तरह इसी महीने में पूरी क़ुरआन नालि हुई, जो इस्लाम की पाक किताब है। क़ुरआन के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोज़ा रखना हर मुस्लिम के लिए ज़रूरी बताया गया है। रोज़ा सिर्फ भूखे, प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि अश्लील या गलत काम से बचना है। इसका मतलब हमें हमारे शारीरिक और मानसिक दोनों के कामों को नियंत्रण में रखना है। इस मुबारक महीने में किसी तरह के झगडे़ या गुस्से से ना सिर्फ मना फरमाया गया है, बल्कि किसी से गिला शिकवा है तो उससे माफी मांग कर समाज में एकता कायम करने की सलाह दी गई है। इसके साथ एक तय रकम या सामान ग़रीबों में बांटने की हिदायत है, जो समाज के ग़रीब लोगों के लिए बहुत ही मददगार है।[4]

रमज़ान में नमाज़ अदा करते लोग

रोज़ा

रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से ग़लत या बुरा नहीं बोलना, आँख से ग़लत नहीं देखना, कान से ग़लत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। किसी को भला बुरा नहीं कहना। हर वक़्त ख़ुदा की इबादत करना।

हज़रत मोहम्मद का कथन

हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै ने फ़रमाया है कि चार बातों को इस महीने में खूब करो, जिनमें से दो चीज़े अल्लाह को राज़ी करने के लिए हैं। वह यह कि पहला कलिमा खूब पढ़ो और अस्‍तग़फार खूब पढ़ो। दूसरी दो चीजें अपने फ़ायदे के लिए हैं। वह यह कि जन्‍नत की दुआ करो और जहन्‍नुम से बचने की दुआ मांगो।

कलिमा - "ला इलाहा इलल ला मोहम्‍मदुर रसूलुल्‍लाह।"
हदीसों में इसको सबसे अच्‍छा ज़िक्र माना गया है। अगर सातों आसमान, सातों ज़मीन और उनके आबाद करने वाले[5], सारे फ़रिश्‍ते, चांद-सूरज, सारे पहाड़, सारे समुद्र तराजू के एक पलड़े में रख दिए जाएं और एक तरफ़ यह कलमा रख दिया जाए तो कलमे वाला हिस्‍सा भारी पड़ जाएगा। इसलिए यह कलिमा चलते-फिरते, उठते-बैठते पढ़ते रहना चाहिए।

अस्‍तग़फार - "अस्‍तग़फिरुल्‍ला हल लज़ी लाइलाहा इल्‍ला हुवल हयिल कयुम व अतुबु इलैही।"
हदीसों में आया है कि जो शख्‍स अस्‍तग़फार को खूब पढ़ता है, अल्‍लाह पाक हर तंगी में उसके लिए रास्‍ता निकाल देता है और हर दु:ख को दूर कर देते हैं और उसके लिए ऐसी जगह से रोजी-रोजग़ार पहुंचाता है कि उसे गुमान भी नहीं होता। 'हदीस' में आया है कि आदमी गुनाहगार तो होता ही है, पर बेहतरीन गुनाहगार वह है, जो तौबा करते रहे। जब आदमी गुनाह करता है तो एक काला नुक्‍ता उसके दिल पर लग जाता है। अगर तौबा कर लेता है तो वह धुल जाता है वरना बाकी रहता है।

दौज़ख से पनाह मांगें और जन्‍नत में जाने की दुआ करें। हम जब भी अल्‍लाह से जन्‍नत की दुआ करें तो जन्‍नतुल फिरदोस मांगें, क्‍योंकि जन्‍नत के भी कई दर्जें होते हैं और सबसे ऊंचा दर्जा जन्‍नतुल फिरदोस है। जब मांग ही रहे हैं तो सबसे ऊंची चीज़ मांगें, क्‍योंकि उस देने वाले (अल्‍लाह) के ख़ज़ाने में कोई कमी नहीं है। हम मांग-मांग कर थक जाएंगे पर वह देकर नहीं थकता।[6]

बरकतों वाला महीना

नमाज़ियों का हुजूम

रमज़ान की कई फज़ीलत हैं। इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।[3]

इबादत

इस महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है, ताकि वह अल्लाह के बंदों की इबादत में खलल न डाल सके। इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं। इस महीने में आकाश तथा स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तथा नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। इस महीने की एक रात की उपासना, जिसे 'शबे क़द्र' के नाम से जाना जाता है, एक हज़ार महीनों की उपासना से बढ़ कर है। इस महीने में रोज़ा रखने वाले का कर्तव्य, ईश्वर की अधिक से अधिक प्रार्थना करना है।

रोज़े का मक़सद

रोज़े का मक़सद सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ ग़लत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चु्ग़ली की जाए। ज़बान से सिर्फ़ अल्लाह का ज़िक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मक़सद तक पहुँच सके। रोज़े का असल मक़सद है कि बंदा अपनी ज़िन्दगी में तक्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फ़ायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक दे।[3]

सेहरी

रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, "सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है।" एक दूसरी हदीस में आया है, "सेहरी खाओ चाहे एक घूँट पानी ही पी लो"

रमज़ान में रोज़ा इफ़्तार की दावत

रोज़ा इफ़्तार

भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा। जो रोज़ेदार को इफ़्तार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "जिसने किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कु्छ भी कमी न होगी" (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई)[7]

रमज़ान के निराले ज़ायके

बाक़रख़ानी

बाक़रख़ानी रमज़ान के अलावा दूसरे महीनों में नसीब नहीं होती, क्योंकि एक दिन के बाद ही इसका स्वाद बदल जाता है। इसे एक ख़ास तापमान पर पकाया जाता है। देखने में यह बिस्कुट की तरह होती है। ताजी बाक़रख़ानी के स्वाद का कहना ही क्या।

खजला, फेनी और सेवइयाँ

रमज़ान का ख़ास पकवान है खजला, फेनी और सेवइयाँ। इन्हें दूध में भिगो कर खाया जाता है, जो रमज़ान का पौष्टिक आहार होता है। सूखी सेवईं चीनी, खोया और मावा के साथ जब तैयार होती है तो लोग अँगुली चाटते रह जाते हैं। ये सहरी के वक़्त का ख़ास पकवान है।

खजूर

खजूर से रोजा खोलना सुन्नत है। खजूर ईरान, ईराक़, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र और हिन्दुस्तान में गुजरात से आता है।

फ्रूट चाट

आमतौर पर इफ़्तार की फ्रूट चाट में केला, अमरुद, पपीता, सेब, ख़रबूज़ा, अनार, तरबूज़ आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इफ़्तार से आधा एक घंटा पूर्व सभी फलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर ऊपर से चीनी और चाट मसाला डाल दिया जाता है, क्योंकि 15 घंटों के रोज़े के बाद इनसे तरोताज़गी का अहसास होता है और ये ताक़त भी देते हैं।

स्वादिष्ट मिठाई फ़ेनी ख़रीदती महिला

पकौड़ियां, चने

रमज़ान के दिनों में इफ़्तार के समय के संतुलित आहार हैं पकौड़ियां व चने, जो देश के हर कोने में रोज़ेदार के दस्तरखान पर ज़रूर होते हैं। प्याज, पालक, बैंगन, गोभी, आलू, दाल, न जाने कितने तरह के पकौड़ों का स्वाद एक साथ मिलता है।

मिठाइयाँ

शाही टुकड़े, फिरनी, खीर, हलवा और मीठा पुलाव भी रमज़ान के दिनों में बाज़ारों की शोभा बढ़ाते हैं। सहरी के वक़्त चूँकि हल्का-फुल्का खाने को कहा गया है, इसलिए लोग इन्हीं मीठी चीज़ों से सहरी करते हैं।

मुग़लई मिठाइयाँ

हब्शी हलवा और तरह-तरह के मावे से बनी मुग़लई मिठाइयों की बात ही निराली है। इनका सौभाग्य आपको रमज़ान में मिलेगा। राजधानी दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद की दुकानों में ये सजी मिल जाएंगी।

शरबत

सर्दियों की बात ही छोड़ दें। अब तो अगले 20 साल तक तपिश भरी गरमी में ही रमज़ान का मुबारक़ महीना रहेगा, इसलिए खजूर से रोज़ा खोलने के बाद पानी की जगह लोग तरह-तरह के शरबतों से अपने गले को तर करेंगे।[8] इन्हें भी देखें: ईद-उल-फ़ितर एवं रमज़ान -फ़िरदौस ख़ान


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उतरा
  2. स्तंभ
  3. 3.0 3.1 3.2 खान, शराफत। रमज़ान : बरकतों वाला महीना (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010
  4. रमजान का पवित्र महीना (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जून, 2014।
  5. यानी सारे इंसान और जिन्‍नात
  6. रमजान मुबारक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जून, 2014।
  7. रमज़ान के महीने में की जाने वाली इबादतें (हिन्दी) नवीन जीवन। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010
  8. रमज़ान के निराले ज़ायके (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दुस्तान। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2010

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