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'''चन्द्रप्रभ''' को [[जैन धर्म]] के आठवें [[तीर्थंकर]] के रूप में जाना जाता है। चन्द्रप्रभ जी का जन्म पावन नगरी चन्द्रपुरी में [[पौष माह]] की [[कृष्ण पक्ष]] [[द्वादशी]] को [[अनुराधा नक्षत्र]] में हुआ था। इनकी [[माता]] का नाम लक्ष्मणा देवी और [[पिता]] का नाम राजा महासेन था। इनके शरीर का वर्ण श्वेत और चिह्न [[चन्द्रमा]] था।
'''चन्द्रप्रभ''' को [[जैन धर्म]] के आठवें [[तीर्थंकर]] के रूप में जाना जाता है। चन्द्रप्रभ जी का जन्म पावन नगरी [[चन्द्रपुरी]] में [[पौष माह]] की [[कृष्ण पक्ष]] [[द्वादशी]] को [[अनुराधा नक्षत्र]] में हुआ था। इनकी [[माता]] का नाम लक्ष्मणा देवी और [[पिता]] का नाम राजा महासेन था। इनके शरीर का वर्ण श्वेत और चिह्न [[चन्द्रमा]] था।


*चन्द्रप्रभ के [[यक्ष]] का नाम अजित और यक्षिणी का नाम मनोवेगा था।
*चन्द्रप्रभ के [[यक्ष]] का नाम अजित और यक्षिणी का नाम मनोवेगा था।
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*पौष कृष्ण पक्ष [[त्रयोदशी]] को चन्द्रपुरी में भगवान चन्द्रप्रभ जी ने दीक्षा प्राप्ति की थी।
*पौष कृष्ण पक्ष [[त्रयोदशी]] को चन्द्रपुरी में भगवान चन्द्रप्रभ जी ने दीक्षा प्राप्ति की थी।
*दो दिन के बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था।
*दो दिन के बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था।
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठोर तप करने के बाद चन्द्रपुरी में ही 'नाग' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठोर तप करने के बाद चन्द्रपुरी में ही 'नाग' वृक्ष के नीचे इन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई थी।
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*[[भाद्रपद मास]] के कृष्ण पक्ष की [[सप्तमी]] तिथि को चन्द्रप्रभ ने [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Chandraprabh|title=श्री चन्द्रप्रभ जी|accessmonthday=26 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first=|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>


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14:08, 13 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

चन्द्रप्रभ को जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है। चन्द्रप्रभ जी का जन्म पावन नगरी चन्द्रपुरी में पौष माह की कृष्ण पक्ष द्वादशी को अनुराधा नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम लक्ष्मणा देवी और पिता का नाम राजा महासेन था। इनके शरीर का वर्ण श्वेत और चिह्न चन्द्रमा था।

  • चन्द्रप्रभ के यक्ष का नाम अजित और यक्षिणी का नाम मनोवेगा था।
  • जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार चन्द्रप्रभ के कुल गणधरों की संख्या 93 थी, जिनमें दिन्न स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
  • पौष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को चन्द्रपुरी में भगवान चन्द्रप्रभ जी ने दीक्षा प्राप्ति की थी।
  • दो दिन के बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठोर तप करने के बाद चन्द्रपुरी में ही 'नाग' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।
  • इन्होनें अपने भक्तों और मानव समाज को सदा ही सत्य के मार्ग पर चलते रहने का सन्देश दिया।
  • भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को चन्द्रप्रभ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री चन्द्रप्रभ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2012।

संबंधित लेख

जैन धर्म शब्दावली

त्रिरत्न तड़ितकुमार ढुढ़िया चक्रेश्वरी चन्द्रप्रभ चंडकौशिक गोपालदारक गुण व्रत गवालीक खरतरगच्छ कृष्ण (जैन) कुंभ (जैन) काश्यप (जैन) कायोत्सर्ग कंदीत आदेयकर्म अस्तेय असुर कुमार अविरति अवसर्पिणी अवधिदर्शन अरुणोद (जैन) अद्धामिश्रित वचन अतिरिक्तकंबला अतिपांडुकंबला अतिथि संविभाग अच्युत (जैन) अच्छुप्ता अचक्षु दर्शनावरणीय अंतराय