"राजिम": अवतरणों में अंतर
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'''राजिम''' [[छत्तीसगढ़]] | |चित्र=Rajiv-Lochan-Mandir.jpg | ||
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==नामकरण== | |||
एक स्थानीय दंतकथा के अनुसार इस स्थान का नाम 'राजिव' या 'राजिम' नामक एक तैलिक स्त्री के नाम से हुआ था। मन्दिर के भीतर 'सतीचैरा' है, जिसका संबंध इसी स्त्री से हो सकता है।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=783|url=}}</ref> | |||
====राजीवलोचन मन्दिर==== | |||
राजिम का प्रमुख मन्दिर 'राजीवलोचन' है। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ हैं। स्तम्भों पर अष्ट भुजा वाली [[दुर्गा]], [[गंगा]]-[[यमुना]] और [[विष्णु]] के विभिन्न [[विष्णु के अवतार|अवतारों]], जैसे- [[राम]], [[वराह अवतार|वराह]] और [[नरसिंह अवतार|नरसिंह]] आदि के चित्र बने हुए हैं। यहाँ से प्राप्त दो [[अभिलेख|अभिलेखों]] से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर के निर्माता राजा जगतपाल थे। इनमें से एक अभिलेख राजा वसंतराज से सम्बंधित है, किंतु लक्ष्मणदेवालय के एक दूसरे अभिलेख से विदित होता है कि इस मन्दिर को [[मगध]] नरेश सूर्यवर्मा (8वीं शती ई.) की पुत्री तथा शिवगुप्त की माता ‘वासटा’ ने बनवाया था। राजीवलोचन मन्दिर के पास 'बोधि वृक्ष' के नीचे तपस्या करते [[बुद्ध]] की प्रतिमा भी है।<ref name="aa"/> | |||
मन्दिर के स्तंभ पर [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] नरेशों के समय में निर्मित नरवराह की चतुर्भुज मूर्ति उल्लेखनीय है। [[वराह अवतार|वराह]] के वामहस्त पर भू-देवी अवस्थित हैं। शायद यह [[मध्य प्रदेश]] से प्राप्त प्राचीनतम मूर्ति है। राजिम से पांडुवंशीय [[कोसल]] नरेश तीवरदेव का ताम्रदानपट्ट प्राप्त हुआ था, जिसमें तीरदेव द्वारा '[[पैठामभुक्ति]]' में स्थित पिंपरिपद्रक नामक [[ग्राम]] के निवासी किसी [[ब्राह्मण]] को दिए गए दान का वर्णन है। यह दानपट्ट तीवरदेव के 7वें वर्ष [[श्रीपुर]] (सिरपुर) से प्रचलित किया गया था। फ़्लीट के अनुसार तीवरदेव का समय 8वीं शती ई. के पश्चात् माना जाना चाहिए। | |||
====कुलेश्वर महादेव मन्दिर==== | |||
राजिम में 'कुलेश्वर महादेव मन्दिर' भी प्रमुख है, जो की नौवीं [[शताब्दी]] में स्थापित हुआ था। यह मन्दिर [[महानदी]] के बीच में [[द्वीप]] पर बना हुआ है। इसका निर्माण बड़ी सादगी से किया गया है। मन्दिर के पास 'सोमा', 'नाला' और [[कलचुरी वंश]] के स्तम्भ भी पाए गए हैं। | |||
==माघ मेला== | |||
राजिम के ऐतिहासिक [[माघ मास|माघ]] [[पूर्णिमा]] का मेला पूरे [[भारत]] में प्रसिद्ध है। इस पवित्र नगरी के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के मन्दिरों में प्राचीन भारतीय [[संस्कृति]] और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। 14वीं शताब्दी में बना 'भगवान रामचंद्र का मन्दिर', 'जगन्नाथ मन्दिर', 'भक्तमाता राजिम मन्दिर' और 'सोमेश्वर महादेव मन्दिर' श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विश्वास का केन्द्र है। | |||
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==संगम स्थल== | |||
राजिम में [[महानदी]] और [[पैरी नदी|पैरी]] नामक नदियों का [[संगम]] है। संगम स्थल पर 'कुलेश्वर महादेव का मन्दिर' है, जो इतना सुदृढ़ है कि सैंकड़ों वर्षों से नदी के निरंतर प्रवाह के थपेड़े सहता हुआ अडिग खड़ा हुआ है। 'राजिम' या 'राजिव' का प्राचीन नामांतर 'पद्मक्षेत्र' भी कहा जाता है।<ref>राजीव=कमल</ref> [[पद्मपुराण]], पातालखण्ड<ref>पातालखण्ड 27, 58-59</ref> में [[राम|श्री रामचन्द्र]] का इस स्थान (देवपुर) से संबंध बताया गया है। | |||
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07:33, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
राजिम
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विवरण | 'राजिम' छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह पवित्र स्थान हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। यहाँ का माघ पूर्णिमा का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है। |
राज्य | छत्तीसगढ़ |
ज़िला | रायपुर |
समुद्र तल से ऊँचाई | 281 मीटर |
दर्शनीय स्थल | 'राजीवलोचन मन्दिर', 'जगन्नाथ मन्दिर', 'भक्तमाता राजिम मन्दिर' और 'सोमेश्वर महादेव मन्दिर' आदि। |
प्रशासनिक भाषा | हिन्दी, छत्तीसगढ़ी |
संबंधित लेख | छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ की संस्कृति, राजिम कुंभ |
अन्य जानकारी | राजिम का प्रमुख मन्दिर 'राजीवलोचन' है। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ हैं। स्तम्भों पर अष्ट भुजा वाली दुर्गा, गंगा-यमुना और विष्णु के विभिन्न अवतारों, जैसे- राम, वराह और नरसिंह आदि के चित्र बने हुए हैं। |
राजिम छत्तीसगढ़ के रायपुर ज़िले में महानदी के तट पर स्थित है। यह अपने शानदार मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ 'राजिम' या 'राजीवलोचन' भगवान रामचंद्र का प्राचीन मन्दिर है, जो शायद 8वीं या 9वीं शती का है। राजिम के ऐतिहासिक माघ पूर्णिमा का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस पवित्र नगरी के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के मन्दिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है।
नामकरण
एक स्थानीय दंतकथा के अनुसार इस स्थान का नाम 'राजिव' या 'राजिम' नामक एक तैलिक स्त्री के नाम से हुआ था। मन्दिर के भीतर 'सतीचैरा' है, जिसका संबंध इसी स्त्री से हो सकता है।[1]
राजीवलोचन मन्दिर
राजिम का प्रमुख मन्दिर 'राजीवलोचन' है। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ हैं। स्तम्भों पर अष्ट भुजा वाली दुर्गा, गंगा-यमुना और विष्णु के विभिन्न अवतारों, जैसे- राम, वराह और नरसिंह आदि के चित्र बने हुए हैं। यहाँ से प्राप्त दो अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर के निर्माता राजा जगतपाल थे। इनमें से एक अभिलेख राजा वसंतराज से सम्बंधित है, किंतु लक्ष्मणदेवालय के एक दूसरे अभिलेख से विदित होता है कि इस मन्दिर को मगध नरेश सूर्यवर्मा (8वीं शती ई.) की पुत्री तथा शिवगुप्त की माता ‘वासटा’ ने बनवाया था। राजीवलोचन मन्दिर के पास 'बोधि वृक्ष' के नीचे तपस्या करते बुद्ध की प्रतिमा भी है।[1]
मन्दिर के स्तंभ पर चालुक्य नरेशों के समय में निर्मित नरवराह की चतुर्भुज मूर्ति उल्लेखनीय है। वराह के वामहस्त पर भू-देवी अवस्थित हैं। शायद यह मध्य प्रदेश से प्राप्त प्राचीनतम मूर्ति है। राजिम से पांडुवंशीय कोसल नरेश तीवरदेव का ताम्रदानपट्ट प्राप्त हुआ था, जिसमें तीरदेव द्वारा 'पैठामभुक्ति' में स्थित पिंपरिपद्रक नामक ग्राम के निवासी किसी ब्राह्मण को दिए गए दान का वर्णन है। यह दानपट्ट तीवरदेव के 7वें वर्ष श्रीपुर (सिरपुर) से प्रचलित किया गया था। फ़्लीट के अनुसार तीवरदेव का समय 8वीं शती ई. के पश्चात् माना जाना चाहिए।
कुलेश्वर महादेव मन्दिर
राजिम में 'कुलेश्वर महादेव मन्दिर' भी प्रमुख है, जो की नौवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। यह मन्दिर महानदी के बीच में द्वीप पर बना हुआ है। इसका निर्माण बड़ी सादगी से किया गया है। मन्दिर के पास 'सोमा', 'नाला' और कलचुरी वंश के स्तम्भ भी पाए गए हैं।
माघ मेला
राजिम के ऐतिहासिक माघ पूर्णिमा का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस पवित्र नगरी के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के मन्दिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। 14वीं शताब्दी में बना 'भगवान रामचंद्र का मन्दिर', 'जगन्नाथ मन्दिर', 'भक्तमाता राजिम मन्दिर' और 'सोमेश्वर महादेव मन्दिर' श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विश्वास का केन्द्र है।
इन्हें भी देखें: राजिम कुंभ
संगम स्थल
राजिम में महानदी और पैरी नामक नदियों का संगम है। संगम स्थल पर 'कुलेश्वर महादेव का मन्दिर' है, जो इतना सुदृढ़ है कि सैंकड़ों वर्षों से नदी के निरंतर प्रवाह के थपेड़े सहता हुआ अडिग खड़ा हुआ है। 'राजिम' या 'राजिव' का प्राचीन नामांतर 'पद्मक्षेत्र' भी कहा जाता है।[2] पद्मपुराण, पातालखण्ड[3] में श्री रामचन्द्र का इस स्थान (देवपुर) से संबंध बताया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख