"सपूत और कपूत -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (श्रेणी:Chhand (को हटा दिया गया हैं।))
छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर")
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
भ्रात बहन  का  नहीं, नहीं वह मात तात का।
भ्रात बहन  का  नहीं, नहीं वह मात तात का।
शिवदीन धन्य जननी जने, जन्में ना कोई उत,
शिवदीन धन्य जननी जने, जन्में ना कोई उत,
क्या जरूरत दो चार की, एक ही भला  सपूत।
क्या ज़रूरत दो चार की, एक ही भला  सपूत।
                       राम गुन गायरे।।  
                       राम गुन गायरे।।  
----
----
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
           मूर्ख मतिमंदन को सुसंगत ना सुहाती है।
           मूर्ख मतिमंदन को सुसंगत ना सुहाती है।
कुसंगत में बैठ-बैठ हंसते है हराम लूंड,
कुसंगत में बैठ-बैठ हंसते है हराम लूंड,
           माता पिता बांचे क्या कर्मन की पाती है|
           माता पिता बांचे क्या कर्मन की पाती है।
पूर्व जन्म संस्कार बिगडायल होने से,
पूर्व जन्म संस्कार बिगडायल होने से,
             बेटा बन काढे बैर जारत नित छाती है।
             बेटा बन काढे बैर जारत नित छाती है।
पंक्ति 44: पंक्ति 44:
                 धर्म कर्म रहित  दुष्ट पेट भरे आपका।
                 धर्म कर्म रहित  दुष्ट पेट भरे आपका।
कहता शिवदीन राम ऐसे निकाम पूत,
कहता शिवदीन राम ऐसे निकाम पूत,
             गुरू का न गोविन्द का मां का न बाप का।  
             गुरु का न गोविन्द का माँ का न बाप का।  
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}
पंक्ति 57: पंक्ति 57:
[[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:समकालीन साहित्य]]
[[Category:समकालीन साहित्य]]
[[Category:शिवदीन राम जोशी]]
|}
|}
__NOTOC__
__NOTOC__
__NOEDITSECTION__
__NOEDITSECTION__
__INDEX__
__INDEX__

10:47, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

पूत सपूत जने जननी, पितु मात की बात को शीश चढावे।
कुल की मरियाद रखे उर में, दिन रैन सदा प्रभु का गुन गावे।
सत संगत सार गहे गुन को, फल चार धरा पर सहज ही पावे।
शिवदीन प्रवीन धनाढ्य वही, सुत धन्य है धन्य जो लाल कहावे।


पूत सपूत निहाल करे, पर हेतु करे नित्त और भलाई।
मात पिता खुश हाल रहें, सबको खुश राखत वो सुखदाई।
सत संगत सार गहे गुन-ज्ञान, गुमान करे न करे वो बुराई।
शिवदीन मिले मुसकाता हुआ, सुत सत्य वही जन सज्जन भाई।


पूत सपूत जने जननी,
         अहो भक्त जने जग होय भलाई।
लोक बने परलोक बने,
         बिगरी को बनायदें श्री रघुराई।
सुख पावत तात वे मात सदा,
          सुत ज्ञानी हरे, हरे पीर पराई।
मानो तो बात सही है सही,
          शिवदीन कपूत तो है दु:खदाई।


जननी का जोबन हरन, करन अनेक कुचाल,
जनमें पूत कपूत धृक, दु:ख उपजत हर हाल।
दु:ख उपजत हर हाल, नृपति बन रहे रात का,
भ्रात बहन का नहीं, नहीं वह मात तात का।
शिवदीन धन्य जननी जने, जन्में ना कोई उत,
क्या ज़रूरत दो चार की, एक ही भला सपूत।
                      राम गुन गायरे।।


काहूँ के न जनमें उतडा कपूत पूत,
           मूर्ख मतिमंदन को सुसंगत ना सुहाती है।
कुसंगत में बैठ-बैठ हंसते है हराम लूंड,
           माता पिता बांचे क्या कर्मन की पाती है।
पूर्व जन्म संस्कार बिगडायल होने से,
            बेटा बन काढे बैर जारत नित छाती है।
कहता शिवदीन राम राम-नाम सत्य सदा,
         संतन की कृपा से जीव बिगरी बन जाती है।


बहुत से कपूत पूत भूत सा भयंकर रूप,
                मूर्खता घनेरी घोर भांडा है प्रलाप का।
कपूतन का दु:ख नाम सुख का कहां है काम,
                राम ही बचावे ये तो मारग संताप का।
आशीर्वाद लेवे नहीं लेके कछु देवे नहीं,
                धर्म कर्म रहित दुष्ट पेट भरे आपका।
कहता शिवदीन राम ऐसे निकाम पूत,
             गुरु का न गोविन्द का माँ का न बाप का।


संबंधित लेख