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प्रेम नहीं घट में जिसके, फिर पूजन लाख विचार करे वो। | |||
नहीं चीन परी जो दया इक मानव, तो गुण कोटिन और भरे वो। | |||
प्रेम नहीं घट में जिसके, फिर पूजन लाख विचार करे | श्री गुरु के शब्द सुने न सुने, फिर शास्त्र पुराण हृदय में धरे वो। | ||
नहीं चीन परी जो दया इक मानव, तो गुण कोटिन और भरे | शिवदीन मिले कछु ज्ञान तभी, गुरु गोविन्द के शरण परे वो। | ||
श्री गुरु के शब्द सुने न सुने, फिर शास्त्र पुराण हृदय में धरे | ---- | ||
शिवदीन मिले कछु ज्ञान तभी, गुरु गोविन्द के शरण परे | तात व मात की सेवा करें, उपकार करे वो बतावनो ना। | ||
शिवदीन हरी गुण गान करें, कभी दिन दुखी को सतावनो ना। | |||
तात व मात की सेवा करें, उपकार करे वो बतावनो | सन्मार्ग सुसंगत सार गाहे, व समुद्र में कूद के न्हावनो ना। | ||
शिवदीन हरी गुण गान करें, कभी दिन दुखी को सतावनो | सुख देख के फूल न फूलो अरे ! दु:ख देख घनो घबरावनो ना। | ||
सन्मार्ग सुसंगत सार गाहे, व समुद्र में कूद के न्हावनो | </poem> | ||
सुख देख के फूल न फूलो अरे ! दु:ख देख घनो घबरावनो | {{Poemclose}} | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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07:05, 17 मार्च 2012 के समय का अवतरण
प्रेम नहीं घट में जिसके, फिर पूजन लाख विचार करे वो। तात व मात की सेवा करें, उपकार करे वो बतावनो ना। |
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