"स्वर्ण मंदिर": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 13 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
|चित्र=Golden-Temple-Amritsar-4.jpg | |चित्र=Golden-Temple-Amritsar-4.jpg | ||
|चित्र का नाम=स्वर्ण मंदिर, अमृतसर | |चित्र का नाम=स्वर्ण मंदिर, अमृतसर | ||
|विवरण=स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण स्वर्ण मंदिर कहते हैं। | |विवरण=स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और [[स्वर्ण]] की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। | ||
|राज्य=[[पंजाब]] | |राज्य=[[पंजाब]] | ||
|केन्द्र शासित प्रदेश= | |केन्द्र शासित प्रदेश= | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
|स्वामित्व= | |स्वामित्व= | ||
|प्रबंधक= | |प्रबंधक= | ||
|निर्माण काल=[[दिसम्बर]] 1588-[[सितंबर]] 1604 | |निर्माण काल=[[दिसम्बर]] 1588 - [[सितंबर]] 1604 | ||
|स्थापना= | |स्थापना= | ||
|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=31.62,74.876944&ll=31.620424,74.876933&spn=0.01681,0.042272&t=m&z=15&vpsrc=6&iwloc=near उत्तर- 31° 37' 12.00", पूर्व- 74° 52' 37.00"] | |भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=31.62,74.876944&ll=31.620424,74.876933&spn=0.01681,0.042272&t=m&z=15&vpsrc=6&iwloc=near उत्तर- 31° 37' 12.00", पूर्व- 74° 52' 37.00"] | ||
|मार्ग स्थिति=स्वर्ण मंदिर अमृतसर रेलवे स्टेशन से लगभग | |मार्ग स्थिति=स्वर्ण मंदिर, अमृतसर रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है। | ||
|मौसम= | |मौसम= | ||
|तापमान= | |तापमान= | ||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
|मानचित्र लिंक=[http://maps.google.com/maps?saddr=amritsar+railway+station&daddr=Harmandir+Sahib&hl=en&sll=31.619876,74.876322&sspn=0.004203,0.010568&geocode=FQmo4gEduEZ2BCGPY3I6Z1sGwg%3BFWR74gEdY4Z2BCGOJCZ2iYRDYA&vpsrc=0&mra=ls&t=m&z=15 गूगल मानचित्र] | |मानचित्र लिंक=[http://maps.google.com/maps?saddr=amritsar+railway+station&daddr=Harmandir+Sahib&hl=en&sll=31.619876,74.876322&sspn=0.004203,0.010568&geocode=FQmo4gEduEZ2BCGPY3I6Z1sGwg%3BFWR74gEdY4Z2BCGOJCZ2iYRDYA&vpsrc=0&mra=ls&t=m&z=15 गूगल मानचित्र] | ||
|संबंधित लेख=[[जलियाँवाला बाग़]], [[गुरुद्वारे अमृतसर|गुरुद्वारे]], [[खरउद्दीन मस्जिद अमृतसर|खरउद्दीन मस्जिद]], [[बाघा बॉर्डर अमृतसर|बाघा बॉर्डर]], [[हाथी गेट मंदिर अमृतसर|हाथी गेट मंदिर]], [[रणजीत सिंह संग्रहालय अमृतसर|रणजीत सिंह संग्रहालय]], [[अकाल तख्त]], [[आनन्दपुर साहिब]], [[दुर्गियाना मंदिर]], [[श्री केशगढ़ साहिब]] | |संबंधित लेख=[[जलियाँवाला बाग़]], [[गुरुद्वारे अमृतसर|गुरुद्वारे]], [[खरउद्दीन मस्जिद अमृतसर|खरउद्दीन मस्जिद]], [[बाघा बॉर्डर अमृतसर|बाघा बॉर्डर]], [[हाथी गेट मंदिर अमृतसर|हाथी गेट मंदिर]], [[रणजीत सिंह संग्रहालय अमृतसर|रणजीत सिंह संग्रहालय]], [[अकाल तख्त]], [[आनन्दपुर साहिब]], [[दुर्गियाना मंदिर]], [[श्री केशगढ़ साहिब]] | ||
|शीर्षक 1= | |शीर्षक 1= | ||
|पाठ 1= | |पाठ 1= | ||
|शीर्षक 2= | |शीर्षक 2= | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2= | ||
|अन्य जानकारी=स्वर्ण मंदिर की [[वास्तुकला]] [[हिन्दू]] तथा [[मुस्लिम]] निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित | |अन्य जानकारी=स्वर्ण मंदिर की [[वास्तुकला]] [[हिन्दू]] तथा [[मुस्लिम]] निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करती है तथा स्वर्ण मंदिर को विश्वास के सर्वोत्तम वास्तु-कलात्मक नमूने के रूप में माना जा सकता है। | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
|अद्यतन={{अद्यतन| | |अद्यतन={{अद्यतन|20:07, 26 जुलाई 2012 (IST)}} | ||
}} | }} | ||
'''स्वर्ण मंदिर''' को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और [[स्वर्ण]] की पर्त के कारण स्वर्ण मंदिर कहते हैं। यह [[अमृतसर]] ([[पंजाब]]) में स्थित [[सिक्ख|सिक्खों]] का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर [[सिक्ख धर्म]] | '''स्वर्ण मंदिर''' को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और [[स्वर्ण]] की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। यह [[अमृतसर]] ([[पंजाब]]) में स्थित [[सिक्ख|सिक्खों]] का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर [[सिक्ख धर्म]] की सहनशीलता तथा स्वीकार्यता का संदेश अपनी [[वास्तुकला]] के माध्यम से प्रदर्शित करता है, जिसमें अन्य [[धर्म|धर्मों]] के संकेत भी शामिल किए गए हैं। दुनिया भर के सिक्ख अमृतसर आना चाहते हैं और श्री हरमंदिर साहिब में अपनी अरदास देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करना चाहते हैं। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
सन 1589 ने [[गुरु अर्जुन देव]] के एक शिष्य शेखमियां मीर ने सरोवर के बीच में स्थित वर्तमान स्वर्ण-मन्दिर की नींव डाली। मन्दिर के चारों ओर चार दरवाज़ों का प्रबन्ध किया गया था। यह [[नानक देव, गुरु|गुरु नानक]] के उदार धार्मिक विचारों का प्रतीक समझा गया। मन्दिर में गुरु-ग्रंथ-साहिब की, जिसका संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया था, स्थापना की गई थी। सरोवर को गहरा करवाने और परिवर्धित करने का कार्य बाबू बूढ़ा नामक व्यक्ति को सौंपा गया था और इन्हें ही ग्रंथ-साहब का प्रथम ग्रंथी बनाया गया। | सन 1589 ने [[गुरु अर्जुन देव]] के एक शिष्य शेखमियां मीर ने सरोवर के बीच में स्थित वर्तमान स्वर्ण-मन्दिर की नींव डाली। मन्दिर के चारों ओर चार दरवाज़ों का प्रबन्ध किया गया था। यह [[नानक देव, गुरु|गुरु नानक]] के उदार धार्मिक विचारों का प्रतीक समझा गया। मन्दिर में [[गुरु ग्रंथ साहिब|गुरु-ग्रंथ-साहिब]] की, जिसका संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया था, स्थापना की गई थी। सरोवर को गहरा करवाने और परिवर्धित करने का कार्य बाबू बूढ़ा नामक व्यक्ति को सौंपा गया था और इन्हें ही ग्रंथ-साहब का प्रथम ग्रंथी बनाया गया। | ||
[[चित्र:Golden-Temple-Amritsar-5.jpg|thumb|300px|left|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]]]] | [[चित्र:Golden-Temple-Amritsar-5.jpg|thumb|300px|left|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]]]] | ||
1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने [[मुसलमान|मुसलमानों]] के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने अधकटे सिर को सम्भालते हुए अनेक शत्रुओं को मौत के घाट उतारा। उनकी दुधारी तलवार मन्दिर के संग्रहालय में सुरक्षित है। स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है। ये छठे [[गुरु हरगोविन्द सिंह|गुरु हरगोविन्द]] के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे। उन्होंने इतनी छोटी-सी उम्र में एक मृत शिष्य को जीवन दान देने में अपने प्राण | 1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने [[मुसलमान|मुसलमानों]] के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने अधकटे सिर को सम्भालते हुए अनेक शत्रुओं को मौत के घाट उतारा। उनकी दुधारी तलवार मन्दिर के संग्रहालय में सुरक्षित है। स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है। ये छठे [[गुरु हरगोविन्द सिंह|गुरु हरगोविन्द]] के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे। उन्होंने इतनी छोटी-सी उम्र में एक मृत शिष्य को जीवन दान देने में अपने प्राण दे दिए थे। कहा जाता है, कि गुरुद्वारे की नौं मन्ज़िलें इस बालक की आयु की प्रतीक हैं। पंजाब-केसरी [[रणजीत सिंह|महाराज रणजीत सिंह]] ने स्वर्ण-मन्दिर को एक बहुमूल्य पटमण्डप दान में दिया था, जो संग्रहालय में है। | ||
==स्थापना== | ==स्थापना== | ||
[[गुरु अर्जुन देव|गुरु अर्जुन साहिब]], पांचवें नानक, ने सिक्खों की पूजा के एक केन्द्रीय स्थल के सृजन की कल्पना की और उन्होंने स्वयं श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला की संरचना की। पहले इसमें एक पवित्र तालाब (अमृतसर या अमृत सरोवर) बनाने की योजना गुरु अमरदास साहिब द्वारा बनाई गई थी, जो तीसरे नानक कहे जाते हैं किन्तु [[गुरु रामदास]] साहिब ने इसे बाबा बुद्ध जी के पर्यवेक्षण में निष्पादित किया। इस स्थल की भूमि मूल गांवों के जमींदारों से मुफ़्त या भुगतान के आधार पर पूर्व गुरु साहिबों द्वारा अर्जित की गई थी। यहाँ एक | [[गुरु अर्जुन देव|गुरु अर्जुन साहिब]], पांचवें नानक, ने सिक्खों की पूजा के एक केन्द्रीय स्थल के सृजन की कल्पना की और उन्होंने स्वयं श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला की संरचना की। पहले इसमें एक पवित्र तालाब (अमृतसर या अमृत सरोवर) बनाने की योजना [[गुरु अमरदास|गुरु अमरदास साहिब]] द्वारा बनाई गई थी, जो तीसरे नानक कहे जाते हैं किन्तु [[गुरु रामदास]] साहिब ने इसे बाबा बुद्ध जी के पर्यवेक्षण में निष्पादित किया। इस स्थल की भूमि मूल गांवों के जमींदारों से मुफ़्त या भुगतान के आधार पर पूर्व गुरु साहिबों द्वारा अर्जित की गई थी। यहाँ एक क़स्बा स्थापित करने की योजना भी बनाई गई थी। अत: सरोवर पर निर्माण कार्य के साथ कस्बों का निर्माण भी इसी के साथ 1570 ई. में शुरू हुआ। दोनों परियोजनाओं का कार्य 1577 ई. में पूरा हुआ था। | ||
{{बाँयाबक्सा|पाठ=सिख संप्रदाय को मानने वाला हर व्यक्ति चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहता हो, अपनी | {{बाँयाबक्सा|पाठ=सिख संप्रदाय को मानने वाला हर व्यक्ति चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहता हो, अपनी ज़िंदगी में एक बार स्वर्ण मन्दिर में मत्था टेकने की इच्छा ज़रूर रखता है।|विचारक=}} | ||
====आधारशिला==== | ====आधारशिला==== | ||
गुरु अर्जन साहिब ने [[लाहौर]] के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा इसकी आधारशिला रखवाई जो [[दिसम्बर]] 1588 में रखी गई। इसके निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण गुरु अर्जन साहिब ने स्वयं किया और बाबा बुद्ध जी, भाई गुरुदास जी, भाई सहलो जी और अन्य कई समर्पित [[सिक्ख]] बंधुओं के द्वारा उन्हें सहायता दी गई। ऊँचे स्तर पर ढाँचे को खड़ा करने के विपरीत, गुरु अर्जन साहिब ने इसे कुछ निचले स्तर पर बनाया और इसे चारों ओर से खुला रखा। इस प्रकार उन्होंने एक नए धर्म सिक्ख धर्म का संकेत सृजित किया। गुरु साहिब ने इसे जाति, वर्ण, लिंग और धर्म के आधार पर किसी भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुगम्य बनाया। | गुरु अर्जन साहिब ने [[लाहौर]] के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा इसकी आधारशिला रखवाई जो [[दिसम्बर]] 1588 में रखी गई। इसके निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण गुरु अर्जन साहिब ने स्वयं किया और बाबा बुद्ध जी, भाई गुरुदास जी, भाई सहलो जी और अन्य कई समर्पित [[सिक्ख]] बंधुओं के द्वारा उन्हें सहायता दी गई। ऊँचे स्तर पर ढाँचे को खड़ा करने के विपरीत, गुरु अर्जन साहिब ने इसे कुछ निचले स्तर पर बनाया और इसे चारों ओर से खुला रखा। इस प्रकार उन्होंने एक नए धर्म [[सिक्ख धर्म]] का संकेत सृजित किया। गुरु साहिब ने इसे जाति, वर्ण, लिंग और धर्म के आधार पर किसी भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुगम्य बनाया। | ||
==निर्माण एवं वास्तुकला== | ==निर्माण एवं वास्तुकला== | ||
स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य [[सितंबर]] 1604 में पूरा हुआ। गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया। इस कार्यक्रम के बाद 'अथ सत तीरथ' का दर्जा देकर यह [[सिक्ख धर्म]] का एक अपना तीर्थ बन गया। श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण सरोवर के मध्य में 67 वर्ग फीट के मंच पर किया गया है। यह मंदिर अपने आप में 40.5 वर्ग फीट है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में इसके दरवाज़े हैं। दर्शनी ड्योढ़ी (एक आर्च) इसके रास्ते के सिरे पर बनी हुई है। इस आर्च | स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य [[सितंबर]] 1604 में पूरा हुआ। गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित [[गुरु ग्रंथ साहिब]] (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया। [[चित्र:Golden-Temple-Amritsar-17.jpg|thumb|left|250px|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]]]] इस कार्यक्रम के बाद 'अथ सत तीरथ' का दर्जा देकर यह [[सिक्ख धर्म]] का एक अपना तीर्थ बन गया। श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण सरोवर के मध्य में 67 वर्ग फीट के मंच पर किया गया है। यह मंदिर अपने आप में 40.5 वर्ग फीट है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में इसके दरवाज़े हैं। दर्शनी ड्योढ़ी (एक आर्च) इसके रास्ते के सिरे पर बनी हुई है। इस आर्च के दरवाज़े का फ्रेम लगभग 10 फीट ऊंचा और 8 फीट 4 इंच चौड़ा है। इसके दरवाज़ों पर कलात्मक शैली में सजावट की गई है। यह एक रास्ते पर खुलता है जो श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य भवन तक जाता है। यह 202 फीट लंबा और 21 फीट चौड़ा है। इसका छोटा सा पुल 13 फीट चौड़े प्रदक्षिणा (गोलाकार मार्ग या परिक्रमा) से जोड़ा है। यह मुख्य मंदिर के चारों ओर घूमते हुए "हर की पौड़ी" तक जाता है। "हर की पौड़ी" के प्रथम तल पर गुरु ग्रंथ साहिब की सूक्तियां पढ़ी जा सकती हैं। इसके सबसे ऊपर एक गुम्बद अर्थात एक गोलाकार संरचना है जिस पर [[कमल]] की पत्तियों का आकार इसके आधार से जाकर ऊपर की ओर उल्टे कमल की तरह दिखाई देता है, जो अंत में सुंदर "छतरी" वाले एक "कलश" को समर्थन देता है।<ref>{{cite web |url=http://bharat.gov.in/knowindia/culture_heritage.php?id=37 |title=स्वर्ण मंदिर |accessmonthday=17 मई |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=भारत की आधिकारिक वेबसाइट |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==धार्मिक महत्त्व== | ==धार्मिक महत्त्व== | ||
स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला [[हिन्दू]] तथा [[मुस्लिम]] निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित | स्वर्ण मंदिर की [[वास्तु कला]] [[हिन्दू]] तथा [[मुस्लिम]] निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करती है तथा स्वर्ण मंदिर को विश्वास के सर्वोत्तम वास्तु-कलात्मक नमूने के रूप में माना जा सकता है। यह कई बार कहा जाता है कि इस वास्तुकला से [[भारत]] के कला इतिहास में [[सिक्ख]] संप्रदाय की एक स्वतंत्र वास्तुकला का सृजन हुआ है। यह मंदिर कलात्मक सौंदर्य और गहरी शांति का उल्लेखनीय संयोजन है। | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक= | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक=माध्यमिक1 | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= | ||
|शोध= | |शोध= | ||
पंक्ति 69: | पंक्ति 70: | ||
}} | }} | ||
<gallery> | <gallery> | ||
चित्र:Golden-Temple-Amritsar-15.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | |||
चित्र:Golden-Temlpe-12.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | |||
चित्र:Gilden-Temple-Amritsar-14.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | |||
चित्र:Golden-Temple-Amritsar-2.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | चित्र:Golden-Temple-Amritsar-2.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | ||
चित्र:Golden-Temple-Amritsar-3.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | चित्र:Golden-Temple-Amritsar-3.jpg|स्वर्ण मंदिर, [[अमृतसर]] | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 83: | ||
चित्र:Sri-Akal-Takht-Sahib.jpg|[[अकाल तख्त]] और स्वर्ण मन्दिर, [[अमृतसर]] | चित्र:Sri-Akal-Takht-Sahib.jpg|[[अकाल तख्त]] और स्वर्ण मन्दिर, [[अमृतसर]] | ||
</gallery> | </gallery> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पंजाब के पर्यटन स्थल}} | {{पंजाब के पर्यटन स्थल}}{{भारत के मुख्य पर्यटन स्थल}}{{सिक्ख धर्म}} | ||
{{भारत के मुख्य पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category:अमृतसर]] | [[Category:अमृतसर]] | ||
[[Category:अमृतसर के पर्यटन स्थल]] | [[Category:अमृतसर के पर्यटन स्थल]] | ||
पंक्ति 91: | पंक्ति 95: | ||
[[Category:पर्यटन कोश]] | [[Category:पर्यटन कोश]] | ||
[[Category:स्थापत्य कला]] | [[Category:स्थापत्य कला]] | ||
[[Category: | [[Category:सिक्ख धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
09:36, 6 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण
स्वर्ण मंदिर
| |
विवरण | स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। |
राज्य | पंजाब |
ज़िला | अमृतसर |
निर्माण काल | दिसम्बर 1588 - सितंबर 1604 |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 31° 37' 12.00", पूर्व- 74° 52' 37.00" |
मार्ग स्थिति | स्वर्ण मंदिर, अमृतसर रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | स्वर्ण मंदिर कलात्मक सौंदर्य और गहरी शांति का उल्लेखनीय संयोजन है। यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक सिक्ख का हृदय यहाँ बसता है। |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि |
राजा सांसी हवाई अड्डा, श्री गुरु राम दास जी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा | |
अमृतसर रेलवे स्टेशन | |
अमृतसर बस अड्डा | |
टैक्सी, ऑटो रिक्शा, रिक्शा | |
कहाँ ठहरें | होटल, अतिथि ग्रह, धर्मशाला |
एस.टी.डी. कोड | 0183 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | जलियाँवाला बाग़, गुरुद्वारे, खरउद्दीन मस्जिद, बाघा बॉर्डर, हाथी गेट मंदिर, रणजीत सिंह संग्रहालय, अकाल तख्त, आनन्दपुर साहिब, दुर्गियाना मंदिर, श्री केशगढ़ साहिब
|
अन्य जानकारी | स्वर्ण मंदिर की वास्तुकला हिन्दू तथा मुस्लिम निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करती है तथा स्वर्ण मंदिर को विश्वास के सर्वोत्तम वास्तु-कलात्मक नमूने के रूप में माना जा सकता है। |
अद्यतन | 20:07, 26 जुलाई 2012 (IST)
|
स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। यह अमृतसर (पंजाब) में स्थित सिक्खों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर सिक्ख धर्म की सहनशीलता तथा स्वीकार्यता का संदेश अपनी वास्तुकला के माध्यम से प्रदर्शित करता है, जिसमें अन्य धर्मों के संकेत भी शामिल किए गए हैं। दुनिया भर के सिक्ख अमृतसर आना चाहते हैं और श्री हरमंदिर साहिब में अपनी अरदास देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करना चाहते हैं।
इतिहास
सन 1589 ने गुरु अर्जुन देव के एक शिष्य शेखमियां मीर ने सरोवर के बीच में स्थित वर्तमान स्वर्ण-मन्दिर की नींव डाली। मन्दिर के चारों ओर चार दरवाज़ों का प्रबन्ध किया गया था। यह गुरु नानक के उदार धार्मिक विचारों का प्रतीक समझा गया। मन्दिर में गुरु-ग्रंथ-साहिब की, जिसका संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया था, स्थापना की गई थी। सरोवर को गहरा करवाने और परिवर्धित करने का कार्य बाबू बूढ़ा नामक व्यक्ति को सौंपा गया था और इन्हें ही ग्रंथ-साहब का प्रथम ग्रंथी बनाया गया।
1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने मुसलमानों के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने अधकटे सिर को सम्भालते हुए अनेक शत्रुओं को मौत के घाट उतारा। उनकी दुधारी तलवार मन्दिर के संग्रहालय में सुरक्षित है। स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है। ये छठे गुरु हरगोविन्द के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे। उन्होंने इतनी छोटी-सी उम्र में एक मृत शिष्य को जीवन दान देने में अपने प्राण दे दिए थे। कहा जाता है, कि गुरुद्वारे की नौं मन्ज़िलें इस बालक की आयु की प्रतीक हैं। पंजाब-केसरी महाराज रणजीत सिंह ने स्वर्ण-मन्दिर को एक बहुमूल्य पटमण्डप दान में दिया था, जो संग्रहालय में है।
स्थापना
गुरु अर्जुन साहिब, पांचवें नानक, ने सिक्खों की पूजा के एक केन्द्रीय स्थल के सृजन की कल्पना की और उन्होंने स्वयं श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला की संरचना की। पहले इसमें एक पवित्र तालाब (अमृतसर या अमृत सरोवर) बनाने की योजना गुरु अमरदास साहिब द्वारा बनाई गई थी, जो तीसरे नानक कहे जाते हैं किन्तु गुरु रामदास साहिब ने इसे बाबा बुद्ध जी के पर्यवेक्षण में निष्पादित किया। इस स्थल की भूमि मूल गांवों के जमींदारों से मुफ़्त या भुगतान के आधार पर पूर्व गुरु साहिबों द्वारा अर्जित की गई थी। यहाँ एक क़स्बा स्थापित करने की योजना भी बनाई गई थी। अत: सरोवर पर निर्माण कार्य के साथ कस्बों का निर्माण भी इसी के साथ 1570 ई. में शुरू हुआ। दोनों परियोजनाओं का कार्य 1577 ई. में पूरा हुआ था।
सिख संप्रदाय को मानने वाला हर व्यक्ति चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहता हो, अपनी ज़िंदगी में एक बार स्वर्ण मन्दिर में मत्था टेकने की इच्छा ज़रूर रखता है।
|
आधारशिला
गुरु अर्जन साहिब ने लाहौर के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा इसकी आधारशिला रखवाई जो दिसम्बर 1588 में रखी गई। इसके निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण गुरु अर्जन साहिब ने स्वयं किया और बाबा बुद्ध जी, भाई गुरुदास जी, भाई सहलो जी और अन्य कई समर्पित सिक्ख बंधुओं के द्वारा उन्हें सहायता दी गई। ऊँचे स्तर पर ढाँचे को खड़ा करने के विपरीत, गुरु अर्जन साहिब ने इसे कुछ निचले स्तर पर बनाया और इसे चारों ओर से खुला रखा। इस प्रकार उन्होंने एक नए धर्म सिक्ख धर्म का संकेत सृजित किया। गुरु साहिब ने इसे जाति, वर्ण, लिंग और धर्म के आधार पर किसी भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुगम्य बनाया।
निर्माण एवं वास्तुकला
स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य सितंबर 1604 में पूरा हुआ। गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया।
इस कार्यक्रम के बाद 'अथ सत तीरथ' का दर्जा देकर यह सिक्ख धर्म का एक अपना तीर्थ बन गया। श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण सरोवर के मध्य में 67 वर्ग फीट के मंच पर किया गया है। यह मंदिर अपने आप में 40.5 वर्ग फीट है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में इसके दरवाज़े हैं। दर्शनी ड्योढ़ी (एक आर्च) इसके रास्ते के सिरे पर बनी हुई है। इस आर्च के दरवाज़े का फ्रेम लगभग 10 फीट ऊंचा और 8 फीट 4 इंच चौड़ा है। इसके दरवाज़ों पर कलात्मक शैली में सजावट की गई है। यह एक रास्ते पर खुलता है जो श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य भवन तक जाता है। यह 202 फीट लंबा और 21 फीट चौड़ा है। इसका छोटा सा पुल 13 फीट चौड़े प्रदक्षिणा (गोलाकार मार्ग या परिक्रमा) से जोड़ा है। यह मुख्य मंदिर के चारों ओर घूमते हुए "हर की पौड़ी" तक जाता है। "हर की पौड़ी" के प्रथम तल पर गुरु ग्रंथ साहिब की सूक्तियां पढ़ी जा सकती हैं। इसके सबसे ऊपर एक गुम्बद अर्थात एक गोलाकार संरचना है जिस पर कमल की पत्तियों का आकार इसके आधार से जाकर ऊपर की ओर उल्टे कमल की तरह दिखाई देता है, जो अंत में सुंदर "छतरी" वाले एक "कलश" को समर्थन देता है।[1]
धार्मिक महत्त्व
स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला हिन्दू तथा मुस्लिम निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करती है तथा स्वर्ण मंदिर को विश्वास के सर्वोत्तम वास्तु-कलात्मक नमूने के रूप में माना जा सकता है। यह कई बार कहा जाता है कि इस वास्तुकला से भारत के कला इतिहास में सिक्ख संप्रदाय की एक स्वतंत्र वास्तुकला का सृजन हुआ है। यह मंदिर कलात्मक सौंदर्य और गहरी शांति का उल्लेखनीय संयोजन है।
|
|
|
|
|
वीथिका
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
-
स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्वर्ण मंदिर (हिन्दी) (पी.एच.पी) भारत की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 17 मई, 2012।
संबंधित लेख