"तृष्ना सब रोगों का मूल -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर
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तृष्णा सब रोगों का मूल। | |||
तृष्णा भय भव दुःख उपजावे, चुभे कलेजे शूल।। | |||
जो सुख चावे तृष्णा त्यागे, अपने आप दर्द दुःख भागे। | |||
शिवदीन चढ़ावे गुरु चरनन की, शिर पर पावन धूल।। | |||
तृष्णा डायन सब जग खाया, ना कोई बचा समझले भाया। | |||
काया माया साथ नहीं दे, पंथ अंत प्रतिकूल।। | |||
लोभ मोह क्रोधादि नाग रे, काम आदि से दूर भाग रे। | |||
जाग सके तो जीव जाग रे, राम नाम मत भूल।। | |||
परमानन्द सदा सुख दायक, संत सयाने सत्य सहायक। | |||
तृष्णा | सत संगत सब रोग नसावे, बिछे सुमारग फूल।। | ||
जो सुख चावे तृष्णा त्यागे, अपने आप दर्द दुःख | </poem> | ||
शिवदीन चढ़ावे गुरु चरनन की, शिर पर पावन | {{Poemclose}} | ||
तृष्णा डायन सब जग खाया, ना कोई बचा समझले | |||
काया | {| width="100%" | ||
लोभ मोह क्रोधादि नाग रे, काम आदि से दूर भाग | |- | ||
जाग सके तो जीव जाग रे, | | | ||
परमानन्द सदा सुख दायक, संत सयाने सत्य | |||
सत संगत सब रोग | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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13:57, 18 जून 2012 के समय का अवतरण
तृष्णा सब रोगों का मूल। |
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