"मन अब तो जाग -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर
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सांकल ज्ञान की तौरत है गजराज यो धूम मचावत है। | |||
अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है। | |||
शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है। | |||
शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है।। | |||
मानत ना मन मेरो कह्यो समझाय थक्यो अरे बार ही बारा। | |||
थोरी ही बात में, भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा। | |||
मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा। | |||
शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा।। | |||
चेत तो चेत चितार मना यह काम न आवे कोऊ सुत दारा। | |||
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा। | |||
प्रीत नहीं कोई रीत नहीं सब देख के प्रेत कहे परिवारा। | |||
प्रीतम तो परमेश्वर है, मन तू जग से करता न किनारा।। | |||
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चेत तो चेत चितार मना यह काम न आवे कोऊ सुत | |||
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख | |||
प्रीत नहीं कोई रीत नहीं सब देख के प्रेत कहे | |||
प्रीतम तो परमेश्वर है, मन तू जग से करता न | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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09:05, 7 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
सांकल ज्ञान की तौरत है गजराज यो धूम मचावत है। |
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