"पाताल भुवनेश्वर": अवतरणों में अंतर
('<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको य...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा पर्यटन | |||
[[ | |चित्र=PaataL.jpg | ||
|चित्र का नाम=पाताल भुवनेश्वर समीर द्वार | |||
देवदार के घने जंगलों के बीच यहां पर अनेक भूमिगत | |विवरण=[[भारत]] के प्राचीनतम ग्रन्थ [[स्कन्द पुराण]] में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा के सामने पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। [[किंवदंती|किंवदन्ती]] है कि यहाँ पर [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने तपस्या की और [[कलियुग]] में [[आदि शंकराचार्य]] ने इसे पुनः खोजा। | ||
|राज्य=[[उत्तराखण्ड]] | |||
|केन्द्र शासित प्रदेश= | |||
|ज़िला=[[पिथौरागढ़ ज़िला|पिथौरागढ़]] | |||
|निर्माता= | |||
|स्वामित्व= | |||
|प्रबंधक= | |||
|निर्माण काल= | |||
|स्थापना= | |||
|भौगोलिक स्थिति= | |||
|मार्ग स्थिति=[[उत्तराखंड]] के [[कुमाऊं मण्डल|कुमाऊं मंडल]] के प्रसिद्ध नगर [[अल्मोड़ा]] से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। | |||
|मौसम= | |||
|तापमान= | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|कब जाएँ=कभी भी जा सकते हैं | |||
|कैसे पहुँचें= | |||
|हवाई अड्डा= | |||
|रेलवे स्टेशन=काठगोदाम रेलवे स्टेशन | |||
|बस अड्डा= | |||
|यातायात=रेल, बस, कार | |||
|क्या देखें= | |||
|कहाँ ठहरें= | |||
|क्या खायें= | |||
|क्या ख़रीदें= | |||
|एस.टी.डी. कोड= | |||
|ए.टी.एम= | |||
|सावधानी= | |||
|मानचित्र लिंक=[https://www.google.co.in/maps/dir/New+Delhi+Railway+Station,+Railway+Colony,+New+Delhi,+Delhi/Patal+Bhuvaneshwar,+Uttarakhand/@28.7255805,77.490427,8z/data=!3m1!4b1!4m13!4m12!1m5!1m1!1s0x390cfd3f4f623e55:0xa97095284d0a9e7f!2m2!1d77.218483!2d28.641384!1m5!1m1!1s0x39a0d60420d98df3:0xc4ab9170b8ebd194!2m2!1d80.0919032!2d29.688153?hl=en गूगल मानचित्र] | |||
|संबंधित लेख=[[एक हथिया देवाल]], [[धारचुला]], [[मुन्स्यारी]] | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=[[स्कन्द पुराण|स्कन्दपुराण]] में वर्णन है कि स्वयं महादेव [[शिव]] पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। | |||
|बाहरी कड़ियाँ=[http://www.nainitaltourism.com/patal_bhuvaneshwar.html Patal Bhuvaneshwar] | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''पाताल भुवनेश्वर''' [[पिथौरागढ़]] जनपद [[उत्तराखंड]] राज्य का प्रमुख पर्यटक केन्द्र है। यहां देवदार के घने जंगलों के बीच यहां पर अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का संग्रह है जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर [[शंकर]] जी का मंदिर स्थापित है। यह संपूर्ण परिसर [[2007]] से [[भारतीय पुरातत्व विभाग |भारतीय पुरातत्व विभाग]] द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है। हालांकि गुफ़ाओं के अन्दर प्रवेश आदि का कार्य अब भी स्थानीय स्तर पर बनी मंदिर कमेटी द्वारा किया जाता है। पाताल भुवनेश्वर निवासी मेजर समीर कोतवाल [[28 अगस्त]] [[1999]] को [[आसाम]] में उग्रवादियों के एक गुट के साथ लडाई में शहीद हो गये थे। दिवंगत '''मेजर समीर कोतवाल''' की स्मृति में पाताल भुवनेश्वर कस्बे के प्रवेश द्वार को 'समीर द्वार' का नाम दिया गया है। पर्यटकों की सुविधा हेतु [[कुमाऊँ मण्डल]] विकास निगम का गेस्ट हाउस है। | |||
==पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा== | |||
'पाताल भुवनेश्वर का गुफ़ा मंदिर' [[उत्तराखंड]] के [[कुमाऊं मण्डल|कुमाऊं मंडल]] के प्रसिद्ध नगर [[अल्मोड़ा]] से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसके रास्ते में दिखाई देती हैं धवल हिमालय पर्वत की नयनाभिराम नंदा देवी, पंचचूली, पिंडारी, ऊंटाधूरा आदि चोटियां। [[दिल्ली]] से चल कर पहले दिन 350 किमी की दूरी तय कर अल्मोड़ा पहुंच सकते हैं। [[चित्र:Ashtah kamal n Ganesha.jpg|left|thumb|पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा मंदिर]] | |||
==धार्मिक मान्यता== | |||
[[भारत]] के प्राचीनतम ग्रन्थ [[स्कन्द पुराण]] में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा के सामने पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। [[किंवदंती|किंवदन्ती]] है कि यहाँ पर [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने तपस्या की और [[कलियुग]] में [[आदि शंकराचार्य]] ने इसे पुनः खोजा। इस गुफ़ा में प्रवेश का एक संकरा रास्ता है जो कि क़रीब 100 फीट नीचे जाता है। नीचे एक दूसरे से जुड़ी कई गुफ़ायें है जिन पर पानी रिसने के कारण विभिन्न आकृतियाँ बन गयी है जिनकी तुलना वहाँ के पुजारी अनेकों देवी देवताओं से करते हैं। ये गुफ़ायें पानी ने लाइम स्टोन (चूना पत्थर) को काटकर बनाईं हैं। गुफ़ाओं के अन्दर प्रकाश की उचित व्यवस्था है। [[कुमाऊं मण्डल|कुमाऊं]] आँचल की [[पिथौरागढ़]] क्षेत्र अपना एक अलग महत्व रखता है। ज़िला पिथौरागढ़ की तहसील को गुफ़ाओं वाला देव कहा गया है। पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र में महाकाली मंदिर, चामुंडा मंदिर, गुफ़ा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। | |||
==विशेषताएँ== | |||
* प्राचीन काल से ही पाताल भुवनेश्वर प्रसिद्ध रहा है। चारों ओर वृक्षों से आच्छादित एक गुफ़ा जो बाहर से किसी गांव के पुराने घर का 4 फुट लम्बा, डेढ़ फुट चौड़ा द्वार यानि एक बड़ी सूई में छोटा सा छेद मालूम होता है, उस द्वार के सामने पहुंच कर एकदम आप उस स्थान विशेष से प्रभावित नहीं होंगे। | |||
* यही है [[सरयू नदी]] व [[रामगंगा नदी]] के मध्य गुपतड़ी नामक स्थान की ऐतिहासिक पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा। यहां तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं। गुफ़ा में मौजूद मंदिर भगवान [[शिव]] का है। कहा जाता है कि [[ब्रह्मा]] स्वर्ग के दूसरे देवताओं के साथ यहां शिव अराधना के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर संकरे पानी की धारा से होते हुए गुफ़ा में जाना होता है। | |||
* गंगोलीहाट क्षेत्र में प्राचीन शिव पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा मंदिर धरती के अंदर 8 से 10 फीट गहरी गुफ़ा के अंदर बना हुआ है। जिसमें तरह-तरह की मूर्तियां विद्यमान हैं। यह स्थान सरयु राम गंगा के बीच बसा हुआ है। जिसका मुख उत्तर दिशा है। [[चित्र:myth-The-Hans-of-Lord-Brahma.jpg|thumb|300px|हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति]] | |||
* गुफ़ा के अंदर जाने का मुख्य रास्ता भी कई छोटी गुफ़ाओं का रास्ता दिखाता है। इस गुफ़ा में उतरने के लिए कोई पौढ़ियां नहीं है, आपको पच्चीस फुट सीधा उतरने के लिए घुप्प अंधेरा मिलेगा। | |||
* वर्षों से लोग उबड़-खाबड़ पत्थरों पर पैर टिका उल्टा या सीधा उतर लकड़ी जलाकर गुफ़ा के दर्शन करते थे। अब कुछ वर्षों पहले [[थल सेना|भारतीय थल सेना]] के सौजन्य से जैनरेटर की रोशनी में जन्जीर की मदद से उतर कर आप आराम से गुफ़ा को बिजली की रोशनी में देख सकते हैं। केवल जैनरेटर में तेल के खर्चे के लिए आपको पुजारी को 25-30 रु. तक की राशि देनी होगी। | |||
* मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80/84 सीढियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों-युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। | |||
* गुफ़ा में बने पत्थरों के ढांचे देख के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का प्रवेश द्वार बहुत संकरा है, सीढियों द्वारा लगभग सरक कर नीचे उतरना पडता है। जिसमें एक बार में एक व्यक्ति ही बड़ी मुश्किल से नीचे उतर पाता है। लेकिन गुफ़ा में सीढियां उतरते ही एक बडे कमरे में आप अपने को 33 करोड़ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक शिलाओं, प्रतिमाओं व बहते हुए पानी के मध्य पाते हैं। | |||
* गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) '''नरसिम्हा भगवान''' के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही '''शेषनाग''' के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है। | |||
* आगे बढने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि [[परीक्षित|राजा परीक्षित]] को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र [[जन्मेजय]] ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु [[तक्षक]] नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है। | |||
* हवन कुण्ड के आगे गुफ़ा की मौन तन्द्रा को भंग कर पुजारी की आवाज़ गूंजती है कि आप शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के उपर शेष नाग का फ़न है तो आपको कुछ समझ नहीं आयेगा परन्तु जैसे ही उस गुफ़ा के चट्टानी पत्थरों पर गहन दृष्टिपात करें तो आपके शरीर में सिरहन सी दौड़ेगी और आप वास्तव में अनुभव करेगें की कुदरत द्वारा तराशे पत्थरों में नाग फ़न फैलाये है। | |||
* स्वर्ग से समागत [[ऐरावत|ऐरावत हाथी]] का शरीर उन चट्टानों में शायद न दिखे पर ज़मीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द ईचों की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैरों को देख कर आपको मानना ही पड़ेगा कि ईश्वर ([[विश्वकर्मा]]) के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं घड़ सकता है।<ref>[[स्कन्द पुराण]] के मानस खण्ड 103 अध्याय के 155 वें श्लोक में इसका वर्णन है। श्लोक 157 में वर्णित परिजात व कल्पतरू वृक्षों के बारे में वर्तमान में भी पुजारी चट्टानों की ओर इंगित करके उनके स्थान को दिखाता है।</ref> | |||
* शेषनाग के शरीर पर (हड्डियों) पर चल कर गुफ़ा के मध्य तक जाया जा सकता है जहां [[शिव]] ने [[गणेश]] (गणेशजी की मूर्ति) का सिर काट कर रख दिया था। उनके ऊपर गुफ़ा की छत में चट्टान से बना [[कमल]] का फूल है, जिससे पानी टपकते हुए मूर्ति पर पड़ता है। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण उनकी विशाल जटांए इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं। | |||
* गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से [[गाय]] की एक थन की आकृति नजर आती है। ये [[कामधेनु|कामधेनु गाय]] का स्तन है जिससे वृषभेश के ऊपर सतत दुग्ध धारा बहती है। [[कलियुग]] में अब [[दूध]] के बदले इससे पानी टपक रहा है।<ref> मानस खण्ड 103 अध्याय के श्लोक 275-276 में भी ये वर्णन है।</ref> | |||
* आगे जाकर एक मुड़ी गरदन वाला [[गरुड़]] एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने [[नाग|नागों]] के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी। (हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था।) | |||
* [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] व [[महेश]] की मूर्तियां साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है कि जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है। | |||
* एक स्थान पर यहाँ चार प्रस्तर खण्ड हैं जो चार युगों अर्थात् [[सतयुग]], [[त्रेतायुग]], [[द्वापरयुग]] तथा [[कलियुग]] को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नहीं होता। जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफ़ा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षों में 1 इंच बढ़ती है और पुजारी का कथन सत्य माने तो दोनों पिंडों के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जायेगा। | |||
[[चित्र:AmarnathBadrinathKedarnath-stone-in-Patal-Bhubneshwar.jpg|thumb|left|[[केदारनाथ]], [[बद्रीनाथ]], [[अमरनाथ]] की तीनों मूर्तियां]] | |||
* गुफ़ा में दाहिनी ओर [[केदारनाथ]], [[बद्रीनाथ]], [[अमरनाथ]] की तीनों मूर्तियां (बद्रीनाथ, केदारनाथ सहित चारों धामों के प्रतीक) विद्यमान हैं। यहां पर तीनों के दर्शन एक ही दृष्टि में होते हैं। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर के दर्शन से ही चार धाम के दर्शन के पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। उसी के साथ काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है उनके गर्भ से प्रवेश करके उनकी पूंछ से निकल जायें तो कहा जाता है कि मोक्ष प्राप्त हो जाता है। लेकिन वहां तक मनुष्य अभी तक नहीं पहुंच पाया। [[पुराण]] के अनुसार कोई मनुष्य उस स्थान तक पहुंच जाए तो उसका अगला जन्म नहीं होता। | |||
* गुफ़ा की शुरुआत पर वापस लौटने पर भगवान [[शंकर]] का मनोकामना कुण्ड (झोला) है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज़ पार करने पर मनोकामना पूरी होती है। उसके साथ आसन है तथा काली कमली बीछी है और उसके नीचे बाधम्बर बिछा है वहीं पर पाताल भैरवी है जो मुण्डमाला पहने खड़ी हैं। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था। | |||
[[चित्र:Paatal_(2).jpg|thumb|शंकर जी का मंदिर प्रवेश द्वार]] | |||
* यहां पर खुले दरवाजों के अन्दर संकरा चार द्वार हैं- | |||
# रण द्वार | |||
# पाप द्वार | |||
# धर्म द्वार | |||
# मोक्ष द्वार। | |||
रण द्वार [[कलियुग]] में बंद हुआ, धर्म द्वार एवं मोक्ष द्वार खुले हुए हैं। इसके साथ ही [[ब्रह्मा]] जी का पाँचवां सिर है जिसे ब्रह्मकपाल कहा गया है। जिसमें उत्तर वाला सिर वह है जिस पर तर्पण करते हैं। जिसमें एक के बाद एक कुण्डों में पानी जमा होता है। [[पुराण|पुराणों]] में लिखा गया है कि उन कुण्डों में पानी के साथ अमृत बहता था। इस गुफ़ा में 33 करोड़ देवताओं के बीच भगवान शिव का नर्मदेश्वर लिंग है जिस पर जितना भी पानी पड़ता है वह उसे सोख लेता है। इसके बाद [[आकाश गंगा]] है जिस पर बहुत लम्बी तारों की कतार है। इसके साथ ही [[सप्तर्षि|सप्त ऋषि]] मंडल है। | |||
[[चित्र:Patal buvaneshwar.jpg|thumb|left|आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे मड़ा शिवलिंग]] | |||
* 19वीं सदी में [[आदि शंकराचार्य|आदिगुरु शंकराचार्य]] द्वारा स्थापित तांबे मड़ा शिवलिंग भी यहीं स्थित है। माना यह भी जाता है गुफ़ा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। ये सब पाताल भुवनेश्वर की महानता है। | |||
==पौराणिक महत्व== | |||
[[स्कन्द पुराण|स्कन्दपुराण]] में वर्णन है कि स्वयं महादेव [[शिव]] पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। यह भी वर्णन है कि [[त्रेता युग]] में [[अयोध्या]] के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफ़ा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफ़ा के भीतर महादेव [[शिव]] सहित 33 करोड देवताओं के साक्षात दर्शन किये। [[द्वापर युग]] में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु [[शंकराचार्य]] का 822 ई के आसपास इस गुफ़ा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक [[शिवलिंग]] स्थापित किया। इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफ़ा के विषय में जाना। और आज देश विदेश से सैलानी यहां आते हैं। और गुफ़ा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं। [[मनुस्मृति]] में कहा गया है कि भगवान शंकर कैलाश में सिर्फ तपस्या करते थे। उनके समय बिताने के लिए विष्णुजी ने उनके लिये यह स्थान चुना। मान्यताएं चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफ़ा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता। | |||
* पाण्डवों के एक वर्ष के प्रवास के दौरान का दृश्य, उनके द्वारा जुए में हारना, सतयुग से कलयुग आने का चित्रण व कई प्राचीन शिल्प कला के दृष्य देखने को मिलते हैं। कुमाऊँ एक धार्मिक स्थल के साथ ही रोमांचक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है। | |||
* [[भारत]] का प्राचीन स्कन्द पुराण ग्रन्थ और टटोलिये मानस खण्ड के 103वें अध्याय के 273 से 288 तक के श्लोकों में गुफ़ा का वर्णन पढ़ कर उपरोक्त प्रतिकात्मक मूर्तियां मानो साक्षात जागृत हो जाएंगी और आप अपने 33 करोड़ देवी-देवताओं के दर्शन कर रहे होंगे। | |||
शृण्यवन्तु मनयः सर्वे पापहरं नणाभ् स्मराणत् स्पर्च्चनादेव, <br /> | |||
पूजनात् किं ब्रवीम्यहम् सरयू रामयोर्मध्ये पातालभुवनेश्वरः <ref> स्कन्द पुराण मानसखंड 103/10-11</ref> | |||
=== | (अर्थात् व्यास जी ने कहा मैं ऐसे स्थान का वर्णन करता हूं जिसका पूजन करने के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या, जिसका स्मरण और स्पर्च्च मात्र करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं वह सरयू, रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्वर है)। | ||
[[चित्र:Bhuwneshwer.JPG|thumb|भूमिगत गुफाओं में निर्मित आकृति]] | |||
* 103वें अध्याय के श्लोक 21 से 27 के अनुसार ये भूतल का सबसे पावन क्षेत्र है। पाताल भुवनेश्वर वहाँ जागरूक है और उनका पूजन करने से [[अश्वमेध यज्ञ]] से हज़ार गुणा फल प्राप्त होता है अतः उससे बढ़कर कोई दूसरा स्थान नहीं है। चार धाम करने का यश यहीं प्राप्त हो जाता है। श्लोक 30-34 के अनुसार पाताल भुवनेश्वर के समीप जाने वाला व्यक्ति एक सौ कुलों का उद्धार कर शिव सायुज्य प्राप्त करता है। | |||
* आश्चर्य ही है कि ज़मीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती शान्ति मिलती है। [[देवदार]] के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमांच से सराबोर पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा की सैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा से, कुछ रोमान्च के अनुभव के लिये, और कुछ शीतलता और शान्ति की तलाश में यहां आते हैं। गुफ़ा के पास हरे भरे वातावरण में सुन्दर होटल भी पर्यटकों के लिये बने हैं। ख़ास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से अधिक गुफ़ाएं हैं जहाँ इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज खुद-ब-खुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफ़ाओं की नगरी नहीं कहा जाता। | |||
==कैसे पहुँचे== | |||
पाताल भुवनेश्वर जाने के कई रास्ते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से [[काठगोदाम]] या [[टनकपुर]] जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होगा। आप [[अल्मोड़ा]] से पहले गंगोलीहाट शेराघाट, या बागेश्वर, या दन्या होते जा सकते हैं। टनकपुर, [[पिथौरागढ़]] से भी गंगोलीहाट जा सकते हैं। [[दिल्ली]] से बस द्वारा 350 कि.मी. यात्रा कर आप अल्मोड़ा पहुंच कर विश्राम कर सकते है और वहां से अगले दिन आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। रेलवे द्वारा यात्रा करनी हो तो काठगोदाम अन्तिम रेलवे स्टेशन है वहां से आपको बस या प्राइवेट वाहन बागेश्वर, अल्मोड़ा के लिए मिलते रहते हैं। | |||
==चित्र वीथिका== | |||
<gallery> | |||
चित्र:jata pb.jpg|भगवान शंकर की विशाल जटांए | |||
चित्र:Paatal .JPG|भूमिगत गुफाओं में निर्मित आकृतियों से जल रिसाव | |||
चित्र:Paatal_(3).jpg|घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफाओं का संग्रह | |||
</gallery> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{{लेख प्रगति|आधार= | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://unn-hp.org/www/religion/religion6.html पाताल भुवनेश्वर गुफा] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{उत्तराखंड के पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category: | [[Category:उत्तराखंड]] | ||
[[Category:पर्यटन कोश]] | |||
[[Category:उत्तराखंड के पर्यटन स्थल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
07:47, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
पाताल भुवनेश्वर
| |
विवरण | भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा के सामने पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। किंवदन्ती है कि यहाँ पर पाण्डवों ने तपस्या की और कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इसे पुनः खोजा। |
राज्य | उत्तराखण्ड |
ज़िला | पिथौरागढ़ |
मार्ग स्थिति | उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। |
कब जाएँ | कभी भी जा सकते हैं |
काठगोदाम रेलवे स्टेशन | |
रेल, बस, कार | |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | एक हथिया देवाल, धारचुला, मुन्स्यारी
|
अन्य जानकारी | स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। |
बाहरी कड़ियाँ | Patal Bhuvaneshwar |
पाताल भुवनेश्वर पिथौरागढ़ जनपद उत्तराखंड राज्य का प्रमुख पर्यटक केन्द्र है। यहां देवदार के घने जंगलों के बीच यहां पर अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का संग्रह है जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है। यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है। हालांकि गुफ़ाओं के अन्दर प्रवेश आदि का कार्य अब भी स्थानीय स्तर पर बनी मंदिर कमेटी द्वारा किया जाता है। पाताल भुवनेश्वर निवासी मेजर समीर कोतवाल 28 अगस्त 1999 को आसाम में उग्रवादियों के एक गुट के साथ लडाई में शहीद हो गये थे। दिवंगत मेजर समीर कोतवाल की स्मृति में पाताल भुवनेश्वर कस्बे के प्रवेश द्वार को 'समीर द्वार' का नाम दिया गया है। पर्यटकों की सुविधा हेतु कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का गेस्ट हाउस है।
पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा
'पाताल भुवनेश्वर का गुफ़ा मंदिर' उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसके रास्ते में दिखाई देती हैं धवल हिमालय पर्वत की नयनाभिराम नंदा देवी, पंचचूली, पिंडारी, ऊंटाधूरा आदि चोटियां। दिल्ली से चल कर पहले दिन 350 किमी की दूरी तय कर अल्मोड़ा पहुंच सकते हैं।
धार्मिक मान्यता
भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा के सामने पत्थरों से बना एक-एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। किंवदन्ती है कि यहाँ पर पाण्डवों ने तपस्या की और कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इसे पुनः खोजा। इस गुफ़ा में प्रवेश का एक संकरा रास्ता है जो कि क़रीब 100 फीट नीचे जाता है। नीचे एक दूसरे से जुड़ी कई गुफ़ायें है जिन पर पानी रिसने के कारण विभिन्न आकृतियाँ बन गयी है जिनकी तुलना वहाँ के पुजारी अनेकों देवी देवताओं से करते हैं। ये गुफ़ायें पानी ने लाइम स्टोन (चूना पत्थर) को काटकर बनाईं हैं। गुफ़ाओं के अन्दर प्रकाश की उचित व्यवस्था है। कुमाऊं आँचल की पिथौरागढ़ क्षेत्र अपना एक अलग महत्व रखता है। ज़िला पिथौरागढ़ की तहसील को गुफ़ाओं वाला देव कहा गया है। पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र में महाकाली मंदिर, चामुंडा मंदिर, गुफ़ा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ
- प्राचीन काल से ही पाताल भुवनेश्वर प्रसिद्ध रहा है। चारों ओर वृक्षों से आच्छादित एक गुफ़ा जो बाहर से किसी गांव के पुराने घर का 4 फुट लम्बा, डेढ़ फुट चौड़ा द्वार यानि एक बड़ी सूई में छोटा सा छेद मालूम होता है, उस द्वार के सामने पहुंच कर एकदम आप उस स्थान विशेष से प्रभावित नहीं होंगे।
- यही है सरयू नदी व रामगंगा नदी के मध्य गुपतड़ी नामक स्थान की ऐतिहासिक पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा। यहां तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं। गुफ़ा में मौजूद मंदिर भगवान शिव का है। कहा जाता है कि ब्रह्मा स्वर्ग के दूसरे देवताओं के साथ यहां शिव अराधना के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर संकरे पानी की धारा से होते हुए गुफ़ा में जाना होता है।
- गंगोलीहाट क्षेत्र में प्राचीन शिव पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा मंदिर धरती के अंदर 8 से 10 फीट गहरी गुफ़ा के अंदर बना हुआ है। जिसमें तरह-तरह की मूर्तियां विद्यमान हैं। यह स्थान सरयु राम गंगा के बीच बसा हुआ है। जिसका मुख उत्तर दिशा है।
- गुफ़ा के अंदर जाने का मुख्य रास्ता भी कई छोटी गुफ़ाओं का रास्ता दिखाता है। इस गुफ़ा में उतरने के लिए कोई पौढ़ियां नहीं है, आपको पच्चीस फुट सीधा उतरने के लिए घुप्प अंधेरा मिलेगा।
- वर्षों से लोग उबड़-खाबड़ पत्थरों पर पैर टिका उल्टा या सीधा उतर लकड़ी जलाकर गुफ़ा के दर्शन करते थे। अब कुछ वर्षों पहले भारतीय थल सेना के सौजन्य से जैनरेटर की रोशनी में जन्जीर की मदद से उतर कर आप आराम से गुफ़ा को बिजली की रोशनी में देख सकते हैं। केवल जैनरेटर में तेल के खर्चे के लिए आपको पुजारी को 25-30 रु. तक की राशि देनी होगी।
- मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80/84 सीढियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों-युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है।
- गुफ़ा में बने पत्थरों के ढांचे देख के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का प्रवेश द्वार बहुत संकरा है, सीढियों द्वारा लगभग सरक कर नीचे उतरना पडता है। जिसमें एक बार में एक व्यक्ति ही बड़ी मुश्किल से नीचे उतर पाता है। लेकिन गुफ़ा में सीढियां उतरते ही एक बडे कमरे में आप अपने को 33 करोड़ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक शिलाओं, प्रतिमाओं व बहते हुए पानी के मध्य पाते हैं।
- गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है।
- आगे बढने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है।
- हवन कुण्ड के आगे गुफ़ा की मौन तन्द्रा को भंग कर पुजारी की आवाज़ गूंजती है कि आप शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के उपर शेष नाग का फ़न है तो आपको कुछ समझ नहीं आयेगा परन्तु जैसे ही उस गुफ़ा के चट्टानी पत्थरों पर गहन दृष्टिपात करें तो आपके शरीर में सिरहन सी दौड़ेगी और आप वास्तव में अनुभव करेगें की कुदरत द्वारा तराशे पत्थरों में नाग फ़न फैलाये है।
- स्वर्ग से समागत ऐरावत हाथी का शरीर उन चट्टानों में शायद न दिखे पर ज़मीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द ईचों की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैरों को देख कर आपको मानना ही पड़ेगा कि ईश्वर (विश्वकर्मा) के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं घड़ सकता है।[1]
- शेषनाग के शरीर पर (हड्डियों) पर चल कर गुफ़ा के मध्य तक जाया जा सकता है जहां शिव ने गणेश (गणेशजी की मूर्ति) का सिर काट कर रख दिया था। उनके ऊपर गुफ़ा की छत में चट्टान से बना कमल का फूल है, जिससे पानी टपकते हुए मूर्ति पर पड़ता है। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण उनकी विशाल जटांए इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं।
- गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। ये कामधेनु गाय का स्तन है जिससे वृषभेश के ऊपर सतत दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।[2]
- आगे जाकर एक मुड़ी गरदन वाला गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी। (हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था।)
- ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है कि जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है।
- एक स्थान पर यहाँ चार प्रस्तर खण्ड हैं जो चार युगों अर्थात् सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नहीं होता। जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफ़ा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षों में 1 इंच बढ़ती है और पुजारी का कथन सत्य माने तो दोनों पिंडों के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जायेगा।
- गुफ़ा में दाहिनी ओर केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ की तीनों मूर्तियां (बद्रीनाथ, केदारनाथ सहित चारों धामों के प्रतीक) विद्यमान हैं। यहां पर तीनों के दर्शन एक ही दृष्टि में होते हैं। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर के दर्शन से ही चार धाम के दर्शन के पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। उसी के साथ काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है उनके गर्भ से प्रवेश करके उनकी पूंछ से निकल जायें तो कहा जाता है कि मोक्ष प्राप्त हो जाता है। लेकिन वहां तक मनुष्य अभी तक नहीं पहुंच पाया। पुराण के अनुसार कोई मनुष्य उस स्थान तक पहुंच जाए तो उसका अगला जन्म नहीं होता।
- गुफ़ा की शुरुआत पर वापस लौटने पर भगवान शंकर का मनोकामना कुण्ड (झोला) है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज़ पार करने पर मनोकामना पूरी होती है। उसके साथ आसन है तथा काली कमली बीछी है और उसके नीचे बाधम्बर बिछा है वहीं पर पाताल भैरवी है जो मुण्डमाला पहने खड़ी हैं। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था।
- यहां पर खुले दरवाजों के अन्दर संकरा चार द्वार हैं-
- रण द्वार
- पाप द्वार
- धर्म द्वार
- मोक्ष द्वार।
रण द्वार कलियुग में बंद हुआ, धर्म द्वार एवं मोक्ष द्वार खुले हुए हैं। इसके साथ ही ब्रह्मा जी का पाँचवां सिर है जिसे ब्रह्मकपाल कहा गया है। जिसमें उत्तर वाला सिर वह है जिस पर तर्पण करते हैं। जिसमें एक के बाद एक कुण्डों में पानी जमा होता है। पुराणों में लिखा गया है कि उन कुण्डों में पानी के साथ अमृत बहता था। इस गुफ़ा में 33 करोड़ देवताओं के बीच भगवान शिव का नर्मदेश्वर लिंग है जिस पर जितना भी पानी पड़ता है वह उसे सोख लेता है। इसके बाद आकाश गंगा है जिस पर बहुत लम्बी तारों की कतार है। इसके साथ ही सप्त ऋषि मंडल है।
- 19वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे मड़ा शिवलिंग भी यहीं स्थित है। माना यह भी जाता है गुफ़ा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। ये सब पाताल भुवनेश्वर की महानता है।
पौराणिक महत्व
स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। यह भी वर्णन है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफ़ा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफ़ा के भीतर महादेव शिव सहित 33 करोड देवताओं के साक्षात दर्शन किये। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु शंकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफ़ा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफ़ा के विषय में जाना। और आज देश विदेश से सैलानी यहां आते हैं। और गुफ़ा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि भगवान शंकर कैलाश में सिर्फ तपस्या करते थे। उनके समय बिताने के लिए विष्णुजी ने उनके लिये यह स्थान चुना। मान्यताएं चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफ़ा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता।
- पाण्डवों के एक वर्ष के प्रवास के दौरान का दृश्य, उनके द्वारा जुए में हारना, सतयुग से कलयुग आने का चित्रण व कई प्राचीन शिल्प कला के दृष्य देखने को मिलते हैं। कुमाऊँ एक धार्मिक स्थल के साथ ही रोमांचक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।
- भारत का प्राचीन स्कन्द पुराण ग्रन्थ और टटोलिये मानस खण्ड के 103वें अध्याय के 273 से 288 तक के श्लोकों में गुफ़ा का वर्णन पढ़ कर उपरोक्त प्रतिकात्मक मूर्तियां मानो साक्षात जागृत हो जाएंगी और आप अपने 33 करोड़ देवी-देवताओं के दर्शन कर रहे होंगे।
शृण्यवन्तु मनयः सर्वे पापहरं नणाभ् स्मराणत् स्पर्च्चनादेव,
पूजनात् किं ब्रवीम्यहम् सरयू रामयोर्मध्ये पातालभुवनेश्वरः [3]
(अर्थात् व्यास जी ने कहा मैं ऐसे स्थान का वर्णन करता हूं जिसका पूजन करने के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या, जिसका स्मरण और स्पर्च्च मात्र करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं वह सरयू, रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्वर है)।
- 103वें अध्याय के श्लोक 21 से 27 के अनुसार ये भूतल का सबसे पावन क्षेत्र है। पाताल भुवनेश्वर वहाँ जागरूक है और उनका पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ से हज़ार गुणा फल प्राप्त होता है अतः उससे बढ़कर कोई दूसरा स्थान नहीं है। चार धाम करने का यश यहीं प्राप्त हो जाता है। श्लोक 30-34 के अनुसार पाताल भुवनेश्वर के समीप जाने वाला व्यक्ति एक सौ कुलों का उद्धार कर शिव सायुज्य प्राप्त करता है।
- आश्चर्य ही है कि ज़मीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती शान्ति मिलती है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमांच से सराबोर पाताल भुवनेश्वर की गुफ़ा की सैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा से, कुछ रोमान्च के अनुभव के लिये, और कुछ शीतलता और शान्ति की तलाश में यहां आते हैं। गुफ़ा के पास हरे भरे वातावरण में सुन्दर होटल भी पर्यटकों के लिये बने हैं। ख़ास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से अधिक गुफ़ाएं हैं जहाँ इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज खुद-ब-खुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफ़ाओं की नगरी नहीं कहा जाता।
कैसे पहुँचे
पाताल भुवनेश्वर जाने के कई रास्ते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम या टनकपुर जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होगा। आप अल्मोड़ा से पहले गंगोलीहाट शेराघाट, या बागेश्वर, या दन्या होते जा सकते हैं। टनकपुर, पिथौरागढ़ से भी गंगोलीहाट जा सकते हैं। दिल्ली से बस द्वारा 350 कि.मी. यात्रा कर आप अल्मोड़ा पहुंच कर विश्राम कर सकते है और वहां से अगले दिन आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। रेलवे द्वारा यात्रा करनी हो तो काठगोदाम अन्तिम रेलवे स्टेशन है वहां से आपको बस या प्राइवेट वाहन बागेश्वर, अल्मोड़ा के लिए मिलते रहते हैं।
चित्र वीथिका
-
भगवान शंकर की विशाल जटांए
-
भूमिगत गुफाओं में निर्मित आकृतियों से जल रिसाव
-
घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफाओं का संग्रह
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्कन्द पुराण के मानस खण्ड 103 अध्याय के 155 वें श्लोक में इसका वर्णन है। श्लोक 157 में वर्णित परिजात व कल्पतरू वृक्षों के बारे में वर्तमान में भी पुजारी चट्टानों की ओर इंगित करके उनके स्थान को दिखाता है।
- ↑ मानस खण्ड 103 अध्याय के श्लोक 275-276 में भी ये वर्णन है।
- ↑ स्कन्द पुराण मानसखंड 103/10-11
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख