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यह श्रौतसूत्र गार्ग्य नारायण की टीका सहित रामनारायण विद्यारत्न के द्वारा सम्पादित होकर कलकत्ता से 1874 ई. में प्रकाशित है। उसी टीका के साथ जी. एस. गोखले ने [[पुणे]] से 1917 में प्रकाशित किया। देवत्रात−भाष्य के साथ यह श्रौतसूत्र रणवीर सिंह बाबा आदि के द्वारा सम्पादित होकर 1986 और 1990 में होशियारपुर से लगभग आधा प्रकाशित हुआ है। आश्वलायन ने [[ऋग्वेद]] की बाष्कल तथा शाकल इन दोनों शाखाओं का अनुसरण किया− 'शाकलसमाम्नायस्य बाष्कलसमाम्नायस्य चेदमेव सूत्रं गृह्यं चेत्यध्येतृप्रसिद्धम्।' [[शांखायन श्रौतसूत्र]] और [[कौषीतकि ब्राह्मण]] से सम्बन्धों की तुलना में आश्वलायन श्रौतसूत्र और [[ऐतरेय ब्राह्मण]] के सम्बन्ध अधिक शिथिल हैं। आश्वलायन श्रौतसूत्र में ऐतरेय परम्परा का उल्लेख स्वतन्त्र और दूर की परम्परा की तरह किया गया है। उदाहरणार्थ आश्वलायन श्रौतसूत्र<ref>आश्वलायन श्रौतसूत्र, 1.3.12</ref> में उल्लेख है– 'अन्तरेण हविषी विष्णुमुपांश्वैतरेयिण: तत्र प्रैषेकतर एवाग्नीषोमावेवमित्यैतरेयिण:'<ref>3.6.3</ref> तथा 'एकाहश्चतैरेणियः।<ref>10.1.13</ref> ऐतरेय ब्राह्मण में अनुल्लिखित कुछ कर्मकाण्ड वेत्ताओं का अवलायन श्रौतसूत्र में उल्लेख है, जैसे कि 'आश्मरथ्य क्रियामाश्मरथ्योःन्विताप्रतिषेधान्'।<ref>5.13.10</ref> कौत्स<ref>1.2.5 भूर्भुवः स्वरित्येव जपित्वा कौत्सो हिंकरोति</ref>- गाणगारि 'तस्मै तस्मै य एषां प्रेताः स्युरिति गाणगारिः प्रत्यक्षमितरानर्चयेत् तदर्थत्वात्'<ref>2.6.16</ref> इत्यादि। सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि आश्वलायन श्रौतसूत्र में बहुत से ऐसे विषय हैं जो ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं मिलते, जैसे कि दर्शपूर्णमास, अग्निहोत्र अग्न्याधान, चातुर्मास्य याग इत्यादि। ये सब विषय प्रायः पहले तीन अध्यायों में हैं। केवल पशुयज्ञ सम्बन्धी<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 2.1–14</ref>, अग्निहोत्र<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 5.26–31</ref> तथा प्रायश्चित्त सम्बन्धी<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 7.2–12</ref> विषय– इन्हीं का ऐतरेय ब्राह्मण से निश्चित सम्बन्ध है। | यह श्रौतसूत्र गार्ग्य नारायण की [[टीका]] सहित रामनारायण विद्यारत्न के द्वारा सम्पादित होकर कलकत्ता से 1874 ई. में प्रकाशित है। उसी टीका के साथ जी. एस. गोखले ने [[पुणे]] से 1917 में प्रकाशित किया। देवत्रात−भाष्य के साथ यह श्रौतसूत्र रणवीर सिंह बाबा आदि के द्वारा सम्पादित होकर 1986 और 1990 में होशियारपुर से लगभग आधा प्रकाशित हुआ है। आश्वलायन ने [[ऋग्वेद]] की बाष्कल तथा [[शाकल शाखा|शाकल]] इन दोनों शाखाओं का अनुसरण किया− 'शाकलसमाम्नायस्य बाष्कलसमाम्नायस्य चेदमेव सूत्रं गृह्यं चेत्यध्येतृप्रसिद्धम्।' [[शांखायन श्रौतसूत्र]] और [[कौषीतकि ब्राह्मण]] से सम्बन्धों की तुलना में आश्वलायन श्रौतसूत्र और [[ऐतरेय ब्राह्मण]] के सम्बन्ध अधिक शिथिल हैं। आश्वलायन श्रौतसूत्र में ऐतरेय परम्परा का उल्लेख स्वतन्त्र और दूर की परम्परा की तरह किया गया है। उदाहरणार्थ आश्वलायन श्रौतसूत्र<ref>आश्वलायन श्रौतसूत्र, 1.3.12</ref> में उल्लेख है– 'अन्तरेण हविषी विष्णुमुपांश्वैतरेयिण: तत्र प्रैषेकतर एवाग्नीषोमावेवमित्यैतरेयिण:'<ref>3.6.3</ref> तथा 'एकाहश्चतैरेणियः।<ref>10.1.13</ref> ऐतरेय ब्राह्मण में अनुल्लिखित कुछ कर्मकाण्ड वेत्ताओं का अवलायन श्रौतसूत्र में उल्लेख है, जैसे कि 'आश्मरथ्य क्रियामाश्मरथ्योःन्विताप्रतिषेधान्'।<ref>5.13.10</ref> कौत्स<ref>1.2.5 भूर्भुवः स्वरित्येव जपित्वा कौत्सो हिंकरोति</ref>- गाणगारि 'तस्मै तस्मै य एषां प्रेताः स्युरिति गाणगारिः प्रत्यक्षमितरानर्चयेत् तदर्थत्वात्'<ref>2.6.16</ref> इत्यादि। सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि आश्वलायन श्रौतसूत्र में बहुत से ऐसे विषय हैं जो ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं मिलते, जैसे कि दर्शपूर्णमास, अग्निहोत्र अग्न्याधान, चातुर्मास्य याग इत्यादि। ये सब विषय प्रायः पहले तीन अध्यायों में हैं। केवल पशुयज्ञ सम्बन्धी<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 2.1–14</ref>, अग्निहोत्र<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 5.26–31</ref> तथा प्रायश्चित्त सम्बन्धी<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 7.2–12</ref> विषय– इन्हीं का ऐतरेय ब्राह्मण से निश्चित सम्बन्ध है। | ||
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आश्वलायन श्रौतसूत्र की विषयवस्तु और उसके ऐतरेय ब्राह्मण से सम्बनध का विवरण इस प्रकार हैः– | आश्वलायन श्रौतसूत्र की विषयवस्तु और उसके ऐतरेय ब्राह्मण से सम्बनध का विवरण इस प्रकार हैः– | ||
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06:30, 20 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
यह श्रौतसूत्र गार्ग्य नारायण की टीका सहित रामनारायण विद्यारत्न के द्वारा सम्पादित होकर कलकत्ता से 1874 ई. में प्रकाशित है। उसी टीका के साथ जी. एस. गोखले ने पुणे से 1917 में प्रकाशित किया। देवत्रात−भाष्य के साथ यह श्रौतसूत्र रणवीर सिंह बाबा आदि के द्वारा सम्पादित होकर 1986 और 1990 में होशियारपुर से लगभग आधा प्रकाशित हुआ है। आश्वलायन ने ऋग्वेद की बाष्कल तथा शाकल इन दोनों शाखाओं का अनुसरण किया− 'शाकलसमाम्नायस्य बाष्कलसमाम्नायस्य चेदमेव सूत्रं गृह्यं चेत्यध्येतृप्रसिद्धम्।' शांखायन श्रौतसूत्र और कौषीतकि ब्राह्मण से सम्बन्धों की तुलना में आश्वलायन श्रौतसूत्र और ऐतरेय ब्राह्मण के सम्बन्ध अधिक शिथिल हैं। आश्वलायन श्रौतसूत्र में ऐतरेय परम्परा का उल्लेख स्वतन्त्र और दूर की परम्परा की तरह किया गया है। उदाहरणार्थ आश्वलायन श्रौतसूत्र[1] में उल्लेख है– 'अन्तरेण हविषी विष्णुमुपांश्वैतरेयिण: तत्र प्रैषेकतर एवाग्नीषोमावेवमित्यैतरेयिण:'[2] तथा 'एकाहश्चतैरेणियः।[3] ऐतरेय ब्राह्मण में अनुल्लिखित कुछ कर्मकाण्ड वेत्ताओं का अवलायन श्रौतसूत्र में उल्लेख है, जैसे कि 'आश्मरथ्य क्रियामाश्मरथ्योःन्विताप्रतिषेधान्'।[4] कौत्स[5]- गाणगारि 'तस्मै तस्मै य एषां प्रेताः स्युरिति गाणगारिः प्रत्यक्षमितरानर्चयेत् तदर्थत्वात्'[6] इत्यादि। सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि आश्वलायन श्रौतसूत्र में बहुत से ऐसे विषय हैं जो ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं मिलते, जैसे कि दर्शपूर्णमास, अग्निहोत्र अग्न्याधान, चातुर्मास्य याग इत्यादि। ये सब विषय प्रायः पहले तीन अध्यायों में हैं। केवल पशुयज्ञ सम्बन्धी[7], अग्निहोत्र[8] तथा प्रायश्चित्त सम्बन्धी[9] विषय– इन्हीं का ऐतरेय ब्राह्मण से निश्चित सम्बन्ध है।
विषय वस्तु
आश्वलायन श्रौतसूत्र की विषयवस्तु और उसके ऐतरेय ब्राह्मण से सम्बनध का विवरण इस प्रकार हैः–
आश्वलायन श्रौतसूत्र | विषय |
1. | दर्शपूर्णमास |
2. | अग्निहोत्र, पिण्डपितृयज्ञ, आग्रयण, चातुर्मास्य इत्यादि। |
3. | पशुयाग, प्रायश्चित्त इत्यादि। |
4. | सोमयाग का प्रारम्भिक भाग[10] |
5. | अग्निष्टोम[11] |
6. | 1–6 उक्थ्य, षोडशिन्, अतिरात्र[12] 6–7–10 प्रायश्चित्त इत्यादि। |
7. | 11–14 अग्निष्टोम का अन्तिम भाग[13] |
7.1 | सामान्य नियम। |
7.2-4 | चतुर्विंश[14] |
7.5–9 | अभिप्लव षडह इत्यादि[15] |
7.10–12 | पृष्ठ्य षडह इत्यादि[16] |
8.1–4 | छठे दिन पर होतृ और होत्रक–शस्त्र[17] |
8.6 | विषुवत्[18] |
8.7 | विश्वजित् और स्वरसामन्[19] |
8.8.8 | व्यूढ द्वादशाह[20] |
8.9.11 | छन्दोम[21] |
8.12 | दसवां दिवस[22] |
8.13 | दशम दिवस की अवशिष्ट विधि। |
8.14 | पठन सम्बन्धी नियम। |
9.12 | अहीन और सत्र। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आश्वलायन श्रौतसूत्र, 1.3.12
- ↑ 3.6.3
- ↑ 10.1.13
- ↑ 5.13.10
- ↑ 1.2.5 भूर्भुवः स्वरित्येव जपित्वा कौत्सो हिंकरोति
- ↑ 2.6.16
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण, 2.1–14
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण, 5.26–31
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण, 7.2–12
- ↑ तुलनीय ऐतरेय ब्राह्मण 1.1–2.18
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 2.19–3.48
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 3.49–50, 4.1–4.45–21
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 3.47–48
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 4.12, 14
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 4.13, 15, 16
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 4, 13, 15, 16, 27–5.15
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 6
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 4.19–22
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 4.19 अभिपल्व प्रकार समूढ छन्दोम
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 4, 27
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 7.16–21
- ↑ ऐतरेय ब्राह्मण 5.22–25