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<poem>अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।
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इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।</poem>
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परशुराम [[विष्णु|श्रीविष्णु]] के अवतार हैं, इसलिए उन्हें उपास्य देवता मानकर पूजा जाता है। वैशाख शुक्ल तृतीया की परशुराम जयंती एक व्रत और उत्सव के तौर पर मनाई जाती है। स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करे और दिन में उपवास अथवा फलाहार कर दोपहर में परशुराम का पूजन करे तथा उनकी कथा सुनेंl
परशुराम [[विष्णु|श्रीविष्णु]] के अवतार हैं, इसलिए उन्हें उपास्य देवता मानकर पूजा जाता है। वैशाख शुक्ल तृतीया की परशुराम जयंती एक व्रत और उत्सव के तौर पर मनाई जाती है। स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करे और दिन में उपवास अथवा फलाहार कर दोपहर में परशुराम का पूजन करे तथा उनकी कथा सुनेंl
==कथा==
==कथा==
परशुराम बाल जीवन से ही क्षत्रिय कर्मा थे। ये सदा एक परशु अर्थात फावड़ा लिए रहते थे। एक बार इनके पिता महर्षि [[जमदग्नि]] इनकी माता [[रेणुका]] पर अति क्रोदित हो गये। उन्होंने अन्य पुत्रों से उनकी माता का सिर काट लेने की कठोर आज्ञा दी। किन्तु उनकी हिम्मत नहीं पडी। परशुराम यद्यपि माता के अन्य उपासक थे, तथापि पिता की आज्ञा पाकर उन्होंने अपनी माता का सिर काट डाला। क्रोध वेश में भरे महर्षि जमदग्नि भी परशुराम की यह पितृ भक्ति देखकर विस्मित हो उठे, कादाम्चित उन्हें यही विश्वास हो रहा होगा कि अन्य पुत्रों पे भ्रांति पर परशुराम को माता का सिर काट लेने में तनिक भी विलम्भ नहीं लगा तो दोवड कर पुत्र को अपने गले से लगा लिया और उनसे वरदान माँगने का अनुरोध करने लगे। मात्रु भक्ति पर परशुराम ने अपने तेजस्वी एवं सर्व समर्थ पिता से वरदान माँगते हुए प्रार्थना की तात! मेरी माता तुरन्त जीवित हो जाय और उन्हें मेरे द्वारा शराचेध की इस घटना का स्मरण भी रहे। माता और पिता के आग्यानुसारी पुत्र की मनोकामनाएँ कब पूरी नहीं हुईं ? देवी रेणुका का जीवित हो उठी और उनका प्रेम पूरख परशुराम पर यावज्जीवन पूर्ववत बना रहा है।<ref>{{cite web |url=http://epurohith.com/viewtopics.php?cat_id=308 |title=परशुराम जयन्ती |accessmonthday= 31 मई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ई-पुरोहित डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref>
परशुराम बाल जीवन से ही क्षत्रिय कर्मा थे। ये सदा एक परशु अर्थात् फावड़ा लिए रहते थे। एक बार इनके पिता महर्षि [[जमदग्नि]] इनकी माता [[रेणुका]] पर अति क्रोदित हो गये। उन्होंने अन्य पुत्रों से उनकी माता का सिर काट लेने की कठोर आज्ञा दी। किन्तु उनकी हिम्मत नहीं पडी। परशुराम यद्यपि माता के अन्य उपासक थे, तथापि पिता की आज्ञा पाकर उन्होंने अपनी माता का सिर काट डाला। क्रोध वेश में भरे महर्षि जमदग्नि भी परशुराम की यह पितृ भक्ति देखकर विस्मित हो उठे, कादाम्चित उन्हें यही विश्वास हो रहा होगा कि अन्य पुत्रों पे भ्रांति पर परशुराम को माता का सिर काट लेने में तनिक भी विलम्भ नहीं लगा तो दोवड कर पुत्र को अपने गले से लगा लिया और उनसे वरदान माँगने का अनुरोध करने लगे। मात्रु भक्ति पर परशुराम ने अपने तेजस्वी एवं सर्व समर्थ पिता से वरदान माँगते हुए प्रार्थना की तात! मेरी माता तुरन्त जीवित हो जाय और उन्हें मेरे द्वारा शराचेध की इस घटना का स्मरण भी रहे। माता और पिता के आग्यानुसारी पुत्र की मनोकामनाएँ कब पूरी नहीं हुईं ? देवी रेणुका का जीवित हो उठी और उनका प्रेम पूरख परशुराम पर यावज्जीवन पूर्ववत बना रहा है।<ref>{{cite web |url=http://epurohith.com/viewtopics.php?cat_id=308 |title=परशुराम जयन्ती |accessmonthday= 31 मई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ई-पुरोहित डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref>





07:43, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

परशुराम जयन्ती
परशुराम
परशुराम
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य परशुराम जयंती एक व्रत और उत्सव के तौर पर मनाई जाती है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि वैशाख शुक्ल तृतीया
उत्सव स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करे और दिन में उपवास अथवा फलाहार कर दोपहर में परशुराम का पूजन करे तथा उनकी कथा सुनेंl
अन्य जानकारी इनका नाम तो राम था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये 'परशुराम' कहलाते थे।

परशुराम जयन्ती वैशाख शुक्ल तृतीया अर्थात् अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। परशुराम की कथाएं रामायण, महाभारत एवं कुछ पुराणों में पाई जाती हैं। पूर्व के अवतारों के समान इनके नाम का स्वतंत्र पुराण नहीं है।

अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

अर्थ : चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान है एवं पीठपर धनुष्य-बाण है अर्थात् शौर्य है। अर्थात् यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं। जो कोई इनका विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा बाणसे परशुराम पराजित करेंगे। ऐसी उनकी विशेषता है।

परशुराम मूर्ति

भगवान परशुराम की मूर्ति के लक्षण भीमकाय देह, मस्तक पर जटाभार, कंधे पर धनुष्य एवं हाथ में परशु है।

पूजा विधि

परशुराम श्रीविष्णु के अवतार हैं, इसलिए उन्हें उपास्य देवता मानकर पूजा जाता है। वैशाख शुक्ल तृतीया की परशुराम जयंती एक व्रत और उत्सव के तौर पर मनाई जाती है। स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करे और दिन में उपवास अथवा फलाहार कर दोपहर में परशुराम का पूजन करे तथा उनकी कथा सुनेंl

कथा

परशुराम बाल जीवन से ही क्षत्रिय कर्मा थे। ये सदा एक परशु अर्थात् फावड़ा लिए रहते थे। एक बार इनके पिता महर्षि जमदग्नि इनकी माता रेणुका पर अति क्रोदित हो गये। उन्होंने अन्य पुत्रों से उनकी माता का सिर काट लेने की कठोर आज्ञा दी। किन्तु उनकी हिम्मत नहीं पडी। परशुराम यद्यपि माता के अन्य उपासक थे, तथापि पिता की आज्ञा पाकर उन्होंने अपनी माता का सिर काट डाला। क्रोध वेश में भरे महर्षि जमदग्नि भी परशुराम की यह पितृ भक्ति देखकर विस्मित हो उठे, कादाम्चित उन्हें यही विश्वास हो रहा होगा कि अन्य पुत्रों पे भ्रांति पर परशुराम को माता का सिर काट लेने में तनिक भी विलम्भ नहीं लगा तो दोवड कर पुत्र को अपने गले से लगा लिया और उनसे वरदान माँगने का अनुरोध करने लगे। मात्रु भक्ति पर परशुराम ने अपने तेजस्वी एवं सर्व समर्थ पिता से वरदान माँगते हुए प्रार्थना की तात! मेरी माता तुरन्त जीवित हो जाय और उन्हें मेरे द्वारा शराचेध की इस घटना का स्मरण भी रहे। माता और पिता के आग्यानुसारी पुत्र की मनोकामनाएँ कब पूरी नहीं हुईं ? देवी रेणुका का जीवित हो उठी और उनका प्रेम पूरख परशुराम पर यावज्जीवन पूर्ववत बना रहा है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. परशुराम जयन्ती (हिंदी) ई-पुरोहित डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 31 मई, 2013।

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