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13:13, 20 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

वायु संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए भगवान शिव के ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। भगवान शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं।

  • भगवान शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं।
  • जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं।
  • शिव की महिमा का गान ही 'वायु संहिता' का प्रतिपाद्य विषय है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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