"कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 27": अवतरणों में अंतर
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{[[भारत]] का राष्ट्रीय [[वाद्य यंत्र]] कौन-सा है? | {[[भारत]] का राष्ट्रीय [[वाद्य यंत्र]] कौन-सा है? | ||
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-[[बाँसुरी]] | -[[बाँसुरी]] | ||
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||[[चित्र:Sitar.jpg|right|100px|सितार]]'सितार' के जन्म के विषय में विद्वानों के अनेक मत हैं। अभी तक किसी भी मत के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण नहीं प्राप्त हो सका हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार [[सितार]] का निर्माण [[वीणा]] के एक प्रकार के आधार पर हुआ है। भारतीयता को महत्त्व देने वाले भारतीय | ||[[चित्र:Sitar.jpg|right|100px|सितार]]'सितार' के जन्म के विषय में विद्वानों के अनेक मत हैं। अभी तक किसी भी मत के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण नहीं प्राप्त हो सका हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार [[सितार]] का निर्माण [[वीणा]] के एक प्रकार के आधार पर हुआ है। भारतीयता को महत्त्व देने वाले भारतीय विद्वान् इस मत को सहज में ही मान लेते हैं। सितार को [[भारत]] का राष्ट्रीय वाद्य यंत्र होने का गौरव भी प्राप्त है। सितार बहुआयामी साज होने के साथ ही एक ऐसा [[वाद्य यंत्र]] है, जिसके ज़रिये भावनाओं को प्रकट किया जाता हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सितार]] | ||
{[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] को 'हिंदुस्तान का सबसे बड़ा शायर' की उपाधि किसने दी थी? | {[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] को 'हिंदुस्तान का सबसे बड़ा शायर' की उपाधि किसने दी थी? | ||
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-[[ओंकारनाथ ठाकुर]] | -[[ओंकारनाथ ठाकुर]] | ||
||[[चित्र:Faiyaz-Khan.jpg|right|100px|फ़ैयाज़ ख़ाँ]]'फ़ैयाज़ ख़ाँ' [[ध्रुपद]] तथा [[ख़याल]] गायन शैली के श्रेष्ठतम गायक थे। पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध के जिन संगीतज्ञों की गणना शिखर पुरुष के रूप में की जाती है, उनमें [[फ़ैयाज़ ख़ाँ]] का नाम भी शामिल है। ध्रुपद, [[धमार]], ख़याल, तराना और [[ठुमरी]] आदि, इन सभी शैलियों की गायकी पर उन्हें कुशलता प्राप्त थी। वर्ष [[1930]] के आस-पास फ़ैयाज़ ख़ाँ ने [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर|गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के निवास स्थान 'जोरासांकों ठाकुरबाड़ी' पर आयोजित संगीत समारोह में भाग लिया था। समारोह के दौरान वे रवीन्द्रनाथ ठाकुर से अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्हें '''हिंदुस्तान का सबसे बड़ा शायर''' की उपाधि दी। अपने प्रभावशाली [[संगीत]] से फ़ैयाज़ ख़ाँ ने देश के सभी संगीत केन्द्रों में खूब यश अर्जित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ैयाज़ ख़ाँ]] | ||[[चित्र:Faiyaz-Khan.jpg|right|100px|फ़ैयाज़ ख़ाँ]]'फ़ैयाज़ ख़ाँ' [[ध्रुपद]] तथा [[ख़याल]] गायन शैली के श्रेष्ठतम गायक थे। पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध के जिन संगीतज्ञों की गणना शिखर पुरुष के रूप में की जाती है, उनमें [[फ़ैयाज़ ख़ाँ]] का नाम भी शामिल है। ध्रुपद, [[धमार]], ख़याल, तराना और [[ठुमरी]] आदि, इन सभी शैलियों की गायकी पर उन्हें कुशलता प्राप्त थी। वर्ष [[1930]] के आस-पास फ़ैयाज़ ख़ाँ ने [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर|गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के निवास स्थान 'जोरासांकों ठाकुरबाड़ी' पर आयोजित संगीत समारोह में भाग लिया था। समारोह के दौरान वे रवीन्द्रनाथ ठाकुर से अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्हें '''हिंदुस्तान का सबसे बड़ा शायर''' की उपाधि दी। अपने प्रभावशाली [[संगीत]] से फ़ैयाज़ ख़ाँ ने देश के सभी संगीत केन्द्रों में खूब यश अर्जित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ैयाज़ ख़ाँ]] | ||
{[[पैगम्बर मुहम्मद]] की कही गई बातें तथा उनकी स्मृतियाँ किस [[ग्रंथ]] में संकलित हैं? | |||
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+[[हदीस]] | |||
-[[क़ुरान]] | |||
-तोराह | |||
-[[जेंदावेस्ता]] | |||
{[[दक्षिण भारत]] से उत्तर भारत में [[भक्ति आन्दोलन]] किसने चलाया? | |||
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+[[रामानन्द]] | |||
-[[शंकराचार्य]] | |||
-[[विवेकानन्द]] | |||
-[[कबीर]] | |||
||स्वामी रामानन्द का केन्द्र मठ [[काशी]] के 'पंच गंगाघाट' पर स्थित था। एक किंवदन्ती के अनुसार छुआ-छूत मतभेद के कारण [[राघवानन्द|गुरु राघवानन्द]] ने उन्हें नया सम्प्रदाय चलाने की अनुमति दी थी। दूसरा वर्ग एक प्राचीन रामावत सम्प्रदाय की कल्पना करता है और [[रामानन्द]] को उसका एक प्रमुख आचार्य मानता है। डॉ. फर्कुहर के अनुसार यह रामावत सम्प्रदाय दक्षिण [[भारत]] में था और उसके प्रमुख [[ग्रन्थ]] '[[वाल्मीकि रामायण]]' तथा '[[अध्यात्म रामायण]]' थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामानन्द]] | |||
{निम्नलिखित में से [[पारसी धर्म]] के संस्थापक कौन थे? | {निम्नलिखित में से [[पारसी धर्म]] के संस्थापक कौन थे? | ||
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+[[ज़रथुष्ट्र]] | +[[ज़रथुष्ट्र]] | ||
-मिकादो | -मिकादो | ||
||[[चित्र:Zoroaster.jpg|right|100px|ज़रथुष्ट्र]]'ज़रथुष्ट्र' [[पारसी धर्म]] के संस्थापक थे। ग्रीक भाषा में इन्हें 'ज़ोरोस्टर' कहा जाता है और आधुनिक [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में 'जारटोस्थ'। पारसी धर्म [[ईरान]] का राजधर्म हुआ करता था। क्योंकि पैगंबर [[ज़रथुष्ट्र]] ने इस [[धर्म]] की स्थापना की थी, इसीलिए इसे 'ज़रथुष्ट्री धर्म' भी कहा जाता है। सम्भवत: ज़रथुष्ट्र किसी संस्थागत धर्म के प्रथम पैगम्बर थे। इतिहासकारों का मत है कि वे 1700-1500 ई.पू. के बीच सक्रिय थे। पारसी धर्म पैगम्बरी धर्म है, क्योंकि ज़रथुष्ट्र को पारसी धर्म में 'अहुर | ||[[चित्र:Zoroaster.jpg|right|100px|ज़रथुष्ट्र]]'ज़रथुष्ट्र' [[पारसी धर्म]] के संस्थापक थे। ग्रीक भाषा में इन्हें 'ज़ोरोस्टर' कहा जाता है और आधुनिक [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में 'जारटोस्थ'। पारसी धर्म [[ईरान]] का राजधर्म हुआ करता था। क्योंकि पैगंबर [[ज़रथुष्ट्र]] ने इस [[धर्म]] की स्थापना की थी, इसीलिए इसे 'ज़रथुष्ट्री धर्म' भी कहा जाता है। सम्भवत: ज़रथुष्ट्र किसी संस्थागत धर्म के प्रथम पैगम्बर थे। इतिहासकारों का मत है कि वे 1700-1500 ई.पू. के बीच सक्रिय थे। पारसी धर्म पैगम्बरी धर्म है, क्योंकि ज़रथुष्ट्र को पारसी धर्म में '[[अहुर मज़्दा]]' (ईश्वर) का पैगम्बर माना गया है। लगभग 77 वर्ष और 11 दिन की आयु में ज़रथुष्ट्र की मृत्यु हुई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज़रथुष्ट्र]], [[पारसी धर्म]] | ||
{निम्नलिखित में से किस स्थान पर 'सूर्य मन्दिर' नहीं है? | |||
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-मार्त्तण्ड ([[जम्मू-कश्मीर]]) | |||
+[[पाटलिपुत्र]] ([[बिहार]]) | |||
-मोधरा ([[गुजरात]]) | |||
-सूर्यनकोविल ([[तमिलनाडु]]) | |||
||[[चित्र:Patna-Golghar.jpg|right|100px|गोलघर, पटना]]'पाटलिपुत्र' प्राचीन समय से ही [[भारत]] के प्रमुख नगरों में गिना जाता था। [[पाटलीपुत्र]] वर्तमान [[पटना]] का ही प्राचीन नाम था। आज पटना भारत के [[बिहार]] प्रान्त की राजधानी है। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्रचीन नगरों में से एक है, जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद हैं। पाटलिपुत्र की विशेष ख्याति भारत के ऐतिहासिक काल के विशालतम साम्राज्य, [[मौर्य साम्राज्य]] की राजधानी के रूप में हुई। [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के समय में पाटलिपुत्र की समृद्धि तथा शासन-सुव्यवस्था का वर्णन [[यूनानी]] राजदूत [[मैगस्थनीज़]] ने भली-भांति किया है। उसमें पाटलिपुत्र के स्थानीय शासन के लिए बनी एक समिति की भी चर्चा की गई है। उस समय यह नगर 9 मील {{मील|मील=9}} लंबा तथा डेढ़ मील चौड़ा एवं चर्तुभुजाकार था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पाटलिपुत्र]], [[बिहार]] | |||
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14:37, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
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