"सिद्धिदात्री नवम": अवतरणों में अंतर
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[[दुर्गा]] की नवम शक्ति का नाम सिद्धि है। ये सिद्धिदात्री हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माता इन्हीं को माना गया है। [[मार्कण्डेय पुराण]] के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान [[शिव]] ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में '''[[अर्द्धनारीश्वर]]''' नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन [[सिंह]] है। ये [[कमल]] पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में [[गदा]] और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में [[शंख]] और ऊपर वाले हाथ में [[कमल|कमल पुष्प]] है। [[नवरात्रि]] पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है। | |||
====ध्यान==== | |||
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वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। | वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। | ||
कमलस्थितां चतुर्भुजा | कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥ | ||
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। | स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। | ||
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां | शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥ | ||
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। | पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। | ||
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ | मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ | ||
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कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ | कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ | ||
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कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो। | कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो। | ||
स्मेरमुखी शिवपत्नी | स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता। | पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता। | ||
नलिस्थितां नलनार्क्षी | नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। | परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। | ||
परमशक्ति, परमभक्ति, | परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता। | विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता। | ||
विश्व वार्चिता विश्वातीता | विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी। | भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी। | ||
भव सागर तारिणी | भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी। | धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी। | ||
मोक्षदायिनी | मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥ | ||
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ओंकारपातु शीर्षो | ओंकारपातु शीर्षो माँ ऐं बीजं माँ हृदयो। | ||
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥ | हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥ | ||
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं | ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं माँ नेत्र घ्राणो। | ||
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै | कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्व वदनो॥ | ||
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14:10, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
सिद्धिदात्री नवम
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विवरण | नवरात्र के नवें दिन माँ दुर्गा के नवें स्वरूप 'सिद्धिदात्री' की पूजा होती है। |
स्वरूप वर्णन | माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। |
पूजन समय | चैत्र शुक्ल नवमी को प्रात: काल |
धार्मिक मान्यता | माता सिद्धिदात्री की अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए। |
अन्य जानकारी | भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है। |
दुर्गा की नवम शक्ति का नाम सिद्धि है। ये सिद्धिदात्री हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माता इन्हीं को माना गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
कवच
ओंकारपातु शीर्षो माँ ऐं बीजं माँ हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं माँ नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्व वदनो॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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