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'''लालगुड़ी जयरमण''' ([[अंग्रेज़ी]]: Lalgudi Jayaraman; जन्म- [[17 सितम्बर]], [[1930]], तिरूचि ज़िला, [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[22 अप्रैल]], [[2013]]) [[भारत]] के जाने-माने [[वायलिन]] वादक थे। '[[तेलुगू भाषा|तेलुगू]]', '[[तमिल भाषा|तमिल]]', '[[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]]' और '[[संस्कृत]]' के संगीतकार के रूप में उनकी विशेष पहचान थी।
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'''लालगुड़ी जयरमण''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Lalgudi Jayaraman''; जन्म- [[17 सितम्बर]], [[1930]], तिरुचि ज़िला, [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[22 अप्रैल]], [[2013]]) [[भारत]] के जाने-माने [[वायलिन]] वादक थे। '[[तेलुगू भाषा|तेलुगू]]', '[[तमिल भाषा|तमिल]]', '[[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]]' और '[[संस्कृत]]' के संगीतकार के रूप में उनकी विशेष पहचान थी। अपने समृद्ध कल्पना, तीव्र अभिग्रहण क्षमता और [[कर्नाटक संगीत]] में अग्रणी संगीतज्ञों की व्यक्तिगत शैली को उनके साथ समारोह में जा कर आसानी से अपना लेने की अपनी क्षमता के चलते ये बहुत जल्द अग्रणी पंक्ति के संगीतज्ञ बन गए। संगीत समारोहों से मिले समृद्ध अनुभव के अलावा अपनी कड़ी मेहनत, लगन और अपने अन्दर उत्पन्न हो रहे संगीत के विचारों को मौलिक अभिव्यक्ति देने की दृढ़ इच्छा के बल पर ये दुर्लभ प्रतिभा के एकल वायलिन वादक के रूप में उभर कर आये।<ref name="aa"/>
==जीवन परिचय==
श्री लालगुड़ी जयरमण अय्यर का जन्म [[17 सितम्बर]], [[1930]] को चेन्नई (तमिलनाडु) के महान संत संगीतकार त्यागराज के वंश में हुआ था। इन्होंने बहुमुखी प्रतिभा के धनी अपने दिवंगत पिता गोपाल अय्यर वी.आर. से कर्नाटक संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता ने बड़ी कुशलता से इन्हें स्वयं प्रशिक्षित किया था। मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने एक वायलिन वादक के रूप में अपने संगीत कॅरियर की शुरूआत की।


*तमिलनाडु के तिरूचि ज़िले में जन्में लालगुड़ी जयरमण ने संगीत के क्षेत्र में अपनी ख़ास पहचान बनाई थी।
इन्होंने समग्र रूप से वायलिन वादन की एक नई तकनीक को स्थापित किया, जिसे भारतीय शास्त्रीय संगीत की सर्वश्रेष्ठ अनुकूलता के लिए बनाया गया था, और एक अद्वितीय शैली को स्थापित किया, जिसे ‘लालगुडी बानी’ के रूप में जाना जाता है। इनकी सिद्ध और आकर्षक शैली, सुंदर और मौलिक थी जो कि पारंपरिक शैली से अलग नहीं थीं। इसके कारण इनके प्रशंसकों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही गई। इस बहुआयामी व्यक्तित्व सौंदर्य के कारण इन्हें कई कृतियों जैसे ‘तिलानस’, ‘वरनम’ और नृत्य रचना के निर्माण का श्रेय भी दिया गया, जिसमें राग, भाव, ताल और गीतात्मक सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। इन्होंने वायलिन में सबसे अधिक मांग वाली शैली को पेश किया और रचनाओं की गीतात्मक सामग्री का प्रस्तुतिकरण किया।
*लालगुड़ी जयरमण ने मात्र 12 वर्ष की आयु में ही अपने संगीत करियर की शुरुआत एक सहायक कलाकार के रूप में की थी।
ये ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने [[कर्नाटक चित्रावली|कर्नाटक शैली]] के वायलिन वादन को अंतर्राष्टीय ख्याति दिलवाई। साथ ही इन्होंने वर्ष [[1996]] में वायलिन, वेणु (बांसुरी) और वीणा के साथ को जोड़ने की एक नई अवधारणा की शुरूआत की और कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम (कंसर्ट) भी किए।<ref name="aa"/>
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==विवाह==
*एक संगीतकार के रूप में उन्हें चार भाषाओं- '[[तेलुगू भाषा|तेलुगू]]', '[[तमिल भाषा|तमिल]]', '[[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]]' और '[[संस्कृत]]' में प्रसिद्धि प्राप्त थी।
लालगुड़ी जयरमण का विवाह श्रीमती राजलक्ष्मी से हुआ। इनके दो बच्चें हैं- इनके बेटे का नाम जी.जे. आर. कृष्णन है और इनकी बेटी का नाम लालगुडी विजयलक्ष्मी है। इनका बेटा और बेटी दोनों अपने महान पिता के नक्शे कदम पर आज भी चल रहे हैं और अपनी प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते हैं। आजकल की प्रसिद्ध वीणा वादक जयंती कुमारेश, लालगुडी की भतीजी हैं।<ref name="aa"/>
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==समकालीन अन्य संगीत विशेषज्ञों के साथ सम्बन्ध==
*82 वर्ष की आयु में लालगुड़ी जयरमण का निधन [[22 अप्रैल]], [[2013]] को हुआ।
गायकों के साथ संगत करने के लिए लालगुड़ी जयरमण की काफी मांग रहती थी और अरियाकुडी रामानुजा अयंगर, चेम्बई वैदीनाथ भागावतार, सेमांदगुड़ी श्रीनिवास अय्यर, जी।एन। बालासुब्रमण्यम, मदुरै मणि अय्यर, के.वी. नारायणस्वामी, महाराजापुरम संथानम, डी.के. जयरामन, एम. बाल मुरलीकृष्णा, टी.वी. संकर नारायणनन, टी.एन. शेष गोपालन और बांसुरी संगीतज्ञ जैसे एन. रमानी जैसे महान विशेषज्ञों और गायकों के साथ इन्होंने काम किया।
==देश-विदेश में संगीत कार्यक्रम==
इन्होंने बड़े पैमाने पर [[भारत]] के साथ-साथ विदेशों में भी अपने संगीत की प्रस्तुतियां दी। भारत सरकार ने इन्हें भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य के रूप में रूस भेजा था। वर्ष [[1965]] में एडिनबर्ग त्योहार पर प्रसिद्ध वायलिनवादक येहुदी मेनुहिन इनके तकनीक से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इन्हें अपना इतालवी वायलिन भेंट किया था। साथ ही इन्होंने सिंगापुर, मलेशिया, मनीला और पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रदर्शन किया। वर्ष [[1979]] के दौरान इनकी नई दिल्ली आकाशवाणी में हुए रिकॉर्डिंग को अंतर्राष्ट्रीय संगीत परिषद्, बगदाद, एशियाई पैसिफिक रोस्ट्रम और इराक प्रसारण एजेंसी में इनके प्रस्तुत रिकॉर्डिंग को विभिन्न देशों से प्राप्त 77 प्रविष्टियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। इन्होंने बेल्जियम और फ्रांस के संगीत समारोह में भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
 
[[भारत सरकार]] ने [[अमेरिका]] एवं [[लंदन]] में ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ में  [[भारत]] का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन्हें चुना और इन्होंने लंदन में ‘एकल’ और ‘जुगलबंदी’ कंसर्ट पेश किया और साथ ही जर्मनी और इटली में भी प्रस्तुति दी, जिसकी काफी प्रशंसा की गई थी। वर्ष [[1984]] में श्री लालगुडी ने ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और कतर का दौरा किया, जो अत्यधिक सफल रहा। इन्होंने ओपेरा बैले ‘जय जय देवी’ के गीत और संगीत की रचना की, जिसका प्रीमियर वर्ष [[1994]] में क्लीवलैंड (अमेरिका) में किया गया और संयुक्त राज्य के कई शहरों में इसे प्रदर्शित किया गया था। [[अक्टूबर]], [[1999]] में लालगुडी ने श्रुथी लया संघम (इंस्टिट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स) के तत्वावधान में ब्रिटेन में अपने कला का प्रदर्शन किया था। यहां संगीत कार्यक्रम के बाद लालगुड़ी द्वारा रचित एक नृत्य नाटिका ‘पंचेस्वरम’ का मंचन भी किया गया था।<ref name="aa"/>
==रचनाएँ==
‘थिलानस’ और ‘वरनम’ के लिए सबसे प्रसिद्ध श्री लालगुड़ी जयरमण को आधुनिक समय में सबसे सफल शाश्त्रीय संगीतकारों में से एक माना जाता है। इनकी रचनाएं चार भाषाओं ([[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगू]], [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] और [[संस्कृत]]) में हैं। वे राग के सभी क्षेत्रों में संगीत रचना करते थे। इनकी शैली की विशेषता है इनकी रचनाओं का माधुर्य, ध्यानपूर्वक सूक्ष्म तालबद्ध का परिष्कृत आलिंगन। इनकी रचनाएं [[भरतनाट्यम]] नृत्यांगनाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।<ref name="aa"/>
==निधन==
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==पुरस्कार एवं सम्मान==
*इन्हें वर्ष [[1963]] में म्यूजिक लवर्स एसोसिएशन ऑफ लालगुडी द्वारा ‘नाद विद्या तिलक’ से सम्मानित किया गया।
*भारती सोसायटी (न्यूयॉर्क) द्वारा इन्हें वर्ष [[1971]] में ‘विद्या संगीत कलारत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
*फेडेरेशन ऑफ म्यूजिक सभा ([[मद्रास]]) द्वारा ‘संगीत चूड़ामणि’ से इन्हें वर्ष [[1971]] में सम्मानित किया गया।
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*वर्ष [[1994]] में इन्हें मैरीलैंड (अमेरिका) की मानद नागरिकता भी प्रदान की गयी।
*वर्ष [[2001]] में इन्हें [[भारत सरकार]] द्वारा अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘[[पद्मभूषण]]से सम्मानित किया गया।
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*[[कर्नाटक]] के [[मुख्यमंत्री]] द्वारा इन्हें ‘फर्स्ट चौदइया मेमोरिएल-लेवल पुरस्कार’ भी दिया गया।
*वर्ष [[2010]] में इन्हें [[संगीत नाटक अकादमी]] का सदस्य भी बनाया गया।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.itshindi.com/lalgudi-jayaraman.html |title=लालगुडी जयरामन|accessmonthday=13 December |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=itshindi.com|language=हिंदी }}</ref>


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लालगुड़ी जयरमण
लालगुड़ी जयरमण
लालगुड़ी जयरमण
पूरा नाम लालगुड़ी जयरमण
जन्म 17 सितम्बर
जन्म भूमि 1930, तिरुचि ज़िला, तमिलनाडु
मृत्यु 22 अप्रैल, 2013
पति/पत्नी राजलक्ष्मी
संतान जी.जे.आर. कृष्णन तथा लालगुड़ी विजयलक्ष्मी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय संगीत
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री (1972)

पद्मभूषण (2001)

प्रसिद्धि वायलिन वादक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी एक संगीतकार के रूप में लालगुड़ी जयरमण को चार भाषाओं- 'तेलुगू', 'तमिल', 'कन्नड़' और 'संस्कृत' में प्रसिद्धि प्राप्त थी।

लालगुड़ी जयरमण (अंग्रेज़ी: Lalgudi Jayaraman; जन्म- 17 सितम्बर, 1930, तिरुचि ज़िला, तमिलनाडु; मृत्यु- 22 अप्रैल, 2013) भारत के जाने-माने वायलिन वादक थे। 'तेलुगू', 'तमिल', 'कन्नड़' और 'संस्कृत' के संगीतकार के रूप में उनकी विशेष पहचान थी। अपने समृद्ध कल्पना, तीव्र अभिग्रहण क्षमता और कर्नाटक संगीत में अग्रणी संगीतज्ञों की व्यक्तिगत शैली को उनके साथ समारोह में जा कर आसानी से अपना लेने की अपनी क्षमता के चलते ये बहुत जल्द अग्रणी पंक्ति के संगीतज्ञ बन गए। संगीत समारोहों से मिले समृद्ध अनुभव के अलावा अपनी कड़ी मेहनत, लगन और अपने अन्दर उत्पन्न हो रहे संगीत के विचारों को मौलिक अभिव्यक्ति देने की दृढ़ इच्छा के बल पर ये दुर्लभ प्रतिभा के एकल वायलिन वादक के रूप में उभर कर आये।[1]

जीवन परिचय

श्री लालगुड़ी जयरमण अय्यर का जन्म 17 सितम्बर, 1930 को चेन्नई (तमिलनाडु) के महान संत संगीतकार त्यागराज के वंश में हुआ था। इन्होंने बहुमुखी प्रतिभा के धनी अपने दिवंगत पिता गोपाल अय्यर वी.आर. से कर्नाटक संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता ने बड़ी कुशलता से इन्हें स्वयं प्रशिक्षित किया था। मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने एक वायलिन वादक के रूप में अपने संगीत कॅरियर की शुरूआत की।

इन्होंने समग्र रूप से वायलिन वादन की एक नई तकनीक को स्थापित किया, जिसे भारतीय शास्त्रीय संगीत की सर्वश्रेष्ठ अनुकूलता के लिए बनाया गया था, और एक अद्वितीय शैली को स्थापित किया, जिसे ‘लालगुडी बानी’ के रूप में जाना जाता है। इनकी सिद्ध और आकर्षक शैली, सुंदर और मौलिक थी जो कि पारंपरिक शैली से अलग नहीं थीं। इसके कारण इनके प्रशंसकों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही गई। इस बहुआयामी व्यक्तित्व सौंदर्य के कारण इन्हें कई कृतियों जैसे ‘तिलानस’, ‘वरनम’ और नृत्य रचना के निर्माण का श्रेय भी दिया गया, जिसमें राग, भाव, ताल और गीतात्मक सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। इन्होंने वायलिन में सबसे अधिक मांग वाली शैली को पेश किया और रचनाओं की गीतात्मक सामग्री का प्रस्तुतिकरण किया। ये ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने कर्नाटक शैली के वायलिन वादन को अंतर्राष्टीय ख्याति दिलवाई। साथ ही इन्होंने वर्ष 1996 में वायलिन, वेणु (बांसुरी) और वीणा के साथ को जोड़ने की एक नई अवधारणा की शुरूआत की और कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम (कंसर्ट) भी किए।[1]

विवाह

लालगुड़ी जयरमण का विवाह श्रीमती राजलक्ष्मी से हुआ। इनके दो बच्चें हैं- इनके बेटे का नाम जी.जे. आर. कृष्णन है और इनकी बेटी का नाम लालगुडी विजयलक्ष्मी है। इनका बेटा और बेटी दोनों अपने महान पिता के नक्शे कदम पर आज भी चल रहे हैं और अपनी प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते हैं। आजकल की प्रसिद्ध वीणा वादक जयंती कुमारेश, लालगुडी की भतीजी हैं।[1]

समकालीन अन्य संगीत विशेषज्ञों के साथ सम्बन्ध

गायकों के साथ संगत करने के लिए लालगुड़ी जयरमण की काफी मांग रहती थी और अरियाकुडी रामानुजा अयंगर, चेम्बई वैदीनाथ भागावतार, सेमांदगुड़ी श्रीनिवास अय्यर, जी।एन। बालासुब्रमण्यम, मदुरै मणि अय्यर, के.वी. नारायणस्वामी, महाराजापुरम संथानम, डी.के. जयरामन, एम. बाल मुरलीकृष्णा, टी.वी. संकर नारायणनन, टी.एन. शेष गोपालन और बांसुरी संगीतज्ञ जैसे एन. रमानी जैसे महान विशेषज्ञों और गायकों के साथ इन्होंने काम किया।

देश-विदेश में संगीत कार्यक्रम

इन्होंने बड़े पैमाने पर भारत के साथ-साथ विदेशों में भी अपने संगीत की प्रस्तुतियां दी। भारत सरकार ने इन्हें भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य के रूप में रूस भेजा था। वर्ष 1965 में एडिनबर्ग त्योहार पर प्रसिद्ध वायलिनवादक येहुदी मेनुहिन इनके तकनीक से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इन्हें अपना इतालवी वायलिन भेंट किया था। साथ ही इन्होंने सिंगापुर, मलेशिया, मनीला और पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रदर्शन किया। वर्ष 1979 के दौरान इनकी नई दिल्ली आकाशवाणी में हुए रिकॉर्डिंग को अंतर्राष्ट्रीय संगीत परिषद्, बगदाद, एशियाई पैसिफिक रोस्ट्रम और इराक प्रसारण एजेंसी में इनके प्रस्तुत रिकॉर्डिंग को विभिन्न देशों से प्राप्त 77 प्रविष्टियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। इन्होंने बेल्जियम और फ्रांस के संगीत समारोह में भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया।

भारत सरकार ने अमेरिका एवं लंदन में ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन्हें चुना और इन्होंने लंदन में ‘एकल’ और ‘जुगलबंदी’ कंसर्ट पेश किया और साथ ही जर्मनी और इटली में भी प्रस्तुति दी, जिसकी काफी प्रशंसा की गई थी। वर्ष 1984 में श्री लालगुडी ने ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और कतर का दौरा किया, जो अत्यधिक सफल रहा। इन्होंने ओपेरा बैले ‘जय जय देवी’ के गीत और संगीत की रचना की, जिसका प्रीमियर वर्ष 1994 में क्लीवलैंड (अमेरिका) में किया गया और संयुक्त राज्य के कई शहरों में इसे प्रदर्शित किया गया था। अक्टूबर, 1999 में लालगुडी ने श्रुथी लया संघम (इंस्टिट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स) के तत्वावधान में ब्रिटेन में अपने कला का प्रदर्शन किया था। यहां संगीत कार्यक्रम के बाद लालगुड़ी द्वारा रचित एक नृत्य नाटिका ‘पंचेस्वरम’ का मंचन भी किया गया था।[1]

रचनाएँ

‘थिलानस’ और ‘वरनम’ के लिए सबसे प्रसिद्ध श्री लालगुड़ी जयरमण को आधुनिक समय में सबसे सफल शाश्त्रीय संगीतकारों में से एक माना जाता है। इनकी रचनाएं चार भाषाओं (तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और संस्कृत) में हैं। वे राग के सभी क्षेत्रों में संगीत रचना करते थे। इनकी शैली की विशेषता है इनकी रचनाओं का माधुर्य, ध्यानपूर्वक सूक्ष्म तालबद्ध का परिष्कृत आलिंगन। इनकी रचनाएं भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।[1]

निधन

82 वर्ष की आयु में लालगुड़ी जयरमण का निधन 22 अप्रैल, 2013 को हुआ।

पुरस्कार एवं सम्मान

  • इन्हें वर्ष 1963 में म्यूजिक लवर्स एसोसिएशन ऑफ लालगुडी द्वारा ‘नाद विद्या तिलक’ से सम्मानित किया गया।
  • भारती सोसायटी (न्यूयॉर्क) द्वारा इन्हें वर्ष 1971 में ‘विद्या संगीत कलारत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
  • फेडेरेशन ऑफ म्यूजिक सभा (मद्रास) द्वारा ‘संगीत चूड़ामणि’ से इन्हें वर्ष 1971 में सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1972 में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
  • इन्हें ईस्ट वेस्ट एक्सचेंज (न्यूयॉर्क) द्वारा ‘नाद विद्या रत्नाकर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1979 में इन्हें तमिलनाडु सरकार और संगीत नाटक अकादमी द्वारा ‘स्टेट विद्वान’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1994 में इन्हें मैरीलैंड (अमेरिका) की मानद नागरिकता भी प्रदान की गयी।
  • वर्ष 2001 में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।
  • इन्होंने वर्ष 2006 में फिल्म ‘श्रीनगरम’ में बेस्ट म्यूजिक डायरेक्शन के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड’ भी प्राप्त किया।
  • कर्नाटक के मुख्यमंत्री द्वारा इन्हें ‘फर्स्ट चौदइया मेमोरिएल-लेवल पुरस्कार’ भी दिया गया।
  • वर्ष 2010 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी का सदस्य भी बनाया गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 लालगुडी जयरामन (हिंदी) itshindi.com। अभिगमन तिथि: 13 December, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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