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'कल्प' शब्द अनेकार्थी है- विधि, नियम, न्याय आदि। थोड़े अक्षरों वाले साररूप एवं निर्दोष वाक्य का नाम 'सूत्र' है। हिन्दूधर्म तथा हिन्दू-संस्कृति के प्राण 'कल्पसूत्र' हैं। जिस प्रकार ब्राह्मण ग्रन्थों के विचारात्मक पक्ष का एक विकास उपनिषद थे और वे वैदिक मतों की पाठ्य पुस्तकों का स्थान लेते थे, उसी प्रकार श्रौत् सूत्र उनके याज्ञिक पक्ष की निरन्तरता बनाए हुए हैं, यद्यपि वे उपनिषदों के समान परमात्मा की स्वयं प्रकाशित श्रुति का भाग नहीं माने जाते। उनको कभी पवित्रता का स्वरूप प्रदान नहीं किया गया। सम्भवतः उसका कारण यह था कि उनको एक ऐसे निबन्ध के रूप में जाना जाता था, जिनका संकलन [[ब्राह्मण ग्रन्थ|ब्राह्मण ग्रन्थों]] की विषय वस्तु से मौखिक पौरौहित्य परम्परा से किया गया था और जिसका एकमात्र उद्देश्य प्रायोगिक आवश्यकता को पूरा करना था। उनमें सबसे पुराना उस समय पीछे तक जाता हुआ प्रतीत होता है। जब [[बौद्ध धर्म]] सत्ता में आया था। वस्तुतः यह सर्वथा सम्भव प्रतीत होता है कि विरोधी धर्म के उदय ने ब्राह्मण ग्रन्थों की पूजा पद्धति के लिए व्यवस्थित लघु पुस्तकों की रचना का प्रथम प्रोत्साहन दिया हो। बौद्ध लोग अपने अवसर पर धार्मिक सिद्धान्तों के प्रकथन के लिए उपयोग में लाने के निमित्त सूत्रों में निबन्ध रचना को सर्वोत्तम पद्धति मानने लगे होंगे। क्योंकि सर्वप्राचीन पाली पाठय ग्रन्थ इसी स्वरूप की रचनाएँ हैं। शब्द 'कल्प सूत्र' ऐसे धर्म से सम्बन्धित सूत्रों के सम्पूर्ण कलेवर के लिए प्रयुक्त होता है जो धर्म किसी विशिष्ट वैदिक शाखा से जुड़ा हुआ था। जहाँ इस प्रकार का सम्पूर्ण संग्रह सुरक्षित रखा जा सका है, उसी शाखा का कल्पसूत्र (इस प्रकार के साहित्य का) सर्वप्राचीन और सर्वाधिक विस्तृत भाग है। | {| class="bharattable" align="right" style="margin:10px; text-align:center" | ||
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'कल्प' शब्द अनेकार्थी है- विधि, नियम, न्याय आदि। थोड़े अक्षरों वाले साररूप एवं निर्दोष वाक्य का नाम 'सूत्र' है। हिन्दूधर्म तथा हिन्दू-संस्कृति के प्राण 'कल्पसूत्र' हैं। जिस प्रकार [[ब्राह्मण ग्रन्थ|ब्राह्मण ग्रन्थों]] के विचारात्मक पक्ष का एक विकास [[उपनिषद]] थे और वे वैदिक मतों की पाठ्य पुस्तकों का स्थान लेते थे, उसी प्रकार श्रौत् सूत्र उनके याज्ञिक पक्ष की निरन्तरता बनाए हुए हैं, यद्यपि वे उपनिषदों के समान परमात्मा की स्वयं प्रकाशित श्रुति का भाग नहीं माने जाते। उनको कभी पवित्रता का स्वरूप प्रदान नहीं किया गया। सम्भवतः उसका कारण यह था कि उनको एक ऐसे [[निबन्ध]] के रूप में जाना जाता था, जिनका संकलन [[ब्राह्मण ग्रन्थ|ब्राह्मण ग्रन्थों]] की विषय वस्तु से मौखिक पौरौहित्य परम्परा से किया गया था और जिसका एकमात्र उद्देश्य प्रायोगिक आवश्यकता को पूरा करना था। उनमें सबसे पुराना उस समय पीछे तक जाता हुआ प्रतीत होता है। जब [[बौद्ध धर्म]] सत्ता में आया था। वस्तुतः यह सर्वथा सम्भव प्रतीत होता है कि विरोधी धर्म के उदय ने ब्राह्मण ग्रन्थों की पूजा पद्धति के लिए व्यवस्थित लघु पुस्तकों की रचना का प्रथम प्रोत्साहन दिया हो। [[बौद्ध]] लोग अपने अवसर पर धार्मिक सिद्धान्तों के प्रकथन के लिए उपयोग में लाने के निमित्त सूत्रों में निबन्ध रचना को सर्वोत्तम पद्धति मानने लगे होंगे। क्योंकि सर्वप्राचीन पाली पाठय ग्रन्थ इसी स्वरूप की रचनाएँ हैं। शब्द 'कल्प सूत्र' ऐसे धर्म से सम्बन्धित सूत्रों के सम्पूर्ण कलेवर के लिए प्रयुक्त होता है जो धर्म किसी विशिष्ट वैदिक शाखा से जुड़ा हुआ था। जहाँ इस प्रकार का सम्पूर्ण संग्रह सुरक्षित रखा जा सका है, उसी शाखा का कल्पसूत्र (इस प्रकार के साहित्य का) सर्वप्राचीन और सर्वाधिक विस्तृत भाग है। | |||
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हिन्दू जीवन के समस्त कर्म, क्रिया, संस्कृति, अनुष्ठानादि समझाने के एक मात्र अवलंब ये सूत्र ही हैं। [[वेद|वेदों]] में 4 प्रकार के सूत्र मिलते हैं- <br /> | हिन्दू जीवन के समस्त कर्म, क्रिया, संस्कृति, अनुष्ठानादि समझाने के एक मात्र अवलंब ये सूत्र ही हैं। [[वेद|वेदों]] में 4 प्रकार के सूत्र मिलते हैं- <br /> | ||
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*भौतिक विज्ञान के वर्णन करने वाले शुल्बसूत्रों के लोप होने से वैदिक भौतिक विज्ञान भी लुप्त हो गया। | *भौतिक विज्ञान के वर्णन करने वाले शुल्बसूत्रों के लोप होने से वैदिक भौतिक विज्ञान भी लुप्त हो गया। | ||
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हस्तलिखित ग्रंथ, कल्पसूत्र |
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'कल्प' शब्द अनेकार्थी है- विधि, नियम, न्याय आदि। थोड़े अक्षरों वाले साररूप एवं निर्दोष वाक्य का नाम 'सूत्र' है। हिन्दूधर्म तथा हिन्दू-संस्कृति के प्राण 'कल्पसूत्र' हैं। जिस प्रकार ब्राह्मण ग्रन्थों के विचारात्मक पक्ष का एक विकास उपनिषद थे और वे वैदिक मतों की पाठ्य पुस्तकों का स्थान लेते थे, उसी प्रकार श्रौत् सूत्र उनके याज्ञिक पक्ष की निरन्तरता बनाए हुए हैं, यद्यपि वे उपनिषदों के समान परमात्मा की स्वयं प्रकाशित श्रुति का भाग नहीं माने जाते। उनको कभी पवित्रता का स्वरूप प्रदान नहीं किया गया। सम्भवतः उसका कारण यह था कि उनको एक ऐसे निबन्ध के रूप में जाना जाता था, जिनका संकलन ब्राह्मण ग्रन्थों की विषय वस्तु से मौखिक पौरौहित्य परम्परा से किया गया था और जिसका एकमात्र उद्देश्य प्रायोगिक आवश्यकता को पूरा करना था। उनमें सबसे पुराना उस समय पीछे तक जाता हुआ प्रतीत होता है। जब बौद्ध धर्म सत्ता में आया था। वस्तुतः यह सर्वथा सम्भव प्रतीत होता है कि विरोधी धर्म के उदय ने ब्राह्मण ग्रन्थों की पूजा पद्धति के लिए व्यवस्थित लघु पुस्तकों की रचना का प्रथम प्रोत्साहन दिया हो। बौद्ध लोग अपने अवसर पर धार्मिक सिद्धान्तों के प्रकथन के लिए उपयोग में लाने के निमित्त सूत्रों में निबन्ध रचना को सर्वोत्तम पद्धति मानने लगे होंगे। क्योंकि सर्वप्राचीन पाली पाठय ग्रन्थ इसी स्वरूप की रचनाएँ हैं। शब्द 'कल्प सूत्र' ऐसे धर्म से सम्बन्धित सूत्रों के सम्पूर्ण कलेवर के लिए प्रयुक्त होता है जो धर्म किसी विशिष्ट वैदिक शाखा से जुड़ा हुआ था। जहाँ इस प्रकार का सम्पूर्ण संग्रह सुरक्षित रखा जा सका है, उसी शाखा का कल्पसूत्र (इस प्रकार के साहित्य का) सर्वप्राचीन और सर्वाधिक विस्तृत भाग है।
सूत्र
हिन्दू जीवन के समस्त कर्म, क्रिया, संस्कृति, अनुष्ठानादि समझाने के एक मात्र अवलंब ये सूत्र ही हैं। वेदों में 4 प्रकार के सूत्र मिलते हैं-
श्रौतसूत्र
श्रौतसूत्र में मन्त्र-संहिता के कर्मकाण्ड को स्पष्ट किया जाता है।
गृह्यसूत्र
गृह्यसूत्र में कुलाचार का वर्णन होता है।
धर्मसूत्र
धर्मसूत्र में धर्माचार का वर्णन है।
शुल्बसूत्र
शुल्बसूत्र में ज्यामिति आदि विज्ञान वर्णित है।
कुछ विद्वान् शुल्बसूत्र को कल्पसूत्र का भेद नहीं मानते। ग्रन्थों की कुल संख्या 43 है। तीनों सूत्रों के उपलब्ध ग्रन्थों का नामोल्लेख निम्नवत् है-
- कात्यायन शुल्बसूत्र यजुर्वेद का प्रधान शुल्बसूत्र है।
- भौतिक विज्ञान के वर्णन करने वाले शुल्बसूत्रों के लोप होने से वैदिक भौतिक विज्ञान भी लुप्त हो गया।
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