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[[1919]] में 'पेरिस पीस कंफ्रेंस' के दौरान 'कमीशन ऑफ़ रेसपोंसिबिलिटीज' के द्वारा युद्ध अपराध के आरोपी राजनीतिक नेताओं पर मुकदमा चलाने के लिए पहली बार अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण की स्थापना की गई। [[1 नवम्बर]]-[[16 नवम्बर]], [[1937]] को 'लीग ऑफ़ नेशंस' के तत्वावधान में जेनेवा में आयोजित सम्मेलन में इस मुद्दे को एक बार फिर उठाया गया, लेकिन कोई व्यावहारिक परिणाम हासिल नहीं हुआ। '[[संयुक्त राष्ट्र]]' ने कहा कि नुरेमबर्ग और टोक्यो न्यायाधिकरण के बाद [[1948]] में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए इस प्रकार के अत्याचार को निपटने के लिए [[संयुक्त राष्ट्र महासभा|महासभा]] ने पहली बार स्थायी अंतरराष्ट्रीय अदालत की होने की आवश्यकता को पहचाना है। महासभा के अनुरोध पर [[1950]] के दशक के प्रारम्भ में 'अंतरराष्ट्रीय विधि आयोग' ने दो विधियों को तैयार किया, लेकिन इन्हें एक शीत युद्ध की तरह स्थगित कर दिया गया और एक राजनीतिक रूप से अवास्तविक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत का निर्माण किया गया। | [[1919]] में 'पेरिस पीस कंफ्रेंस' के दौरान 'कमीशन ऑफ़ रेसपोंसिबिलिटीज' के द्वारा युद्ध अपराध के आरोपी राजनीतिक नेताओं पर मुकदमा चलाने के लिए पहली बार अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण की स्थापना की गई। [[1 नवम्बर]]-[[16 नवम्बर]], [[1937]] को 'लीग ऑफ़ नेशंस' के तत्वावधान में जेनेवा में आयोजित सम्मेलन में इस मुद्दे को एक बार फिर उठाया गया, लेकिन कोई व्यावहारिक परिणाम हासिल नहीं हुआ। '[[संयुक्त राष्ट्र]]' ने कहा कि नुरेमबर्ग और टोक्यो न्यायाधिकरण के बाद [[1948]] में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए इस प्रकार के अत्याचार को निपटने के लिए [[संयुक्त राष्ट्र महासभा|महासभा]] ने पहली बार स्थायी अंतरराष्ट्रीय अदालत की होने की आवश्यकता को पहचाना है। महासभा के अनुरोध पर [[1950]] के दशक के प्रारम्भ में 'अंतरराष्ट्रीय विधि आयोग' ने दो विधियों को तैयार किया, लेकिन इन्हें एक शीत युद्ध की तरह स्थगित कर दिया गया और एक राजनीतिक रूप से अवास्तविक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत का निर्माण किया गया। | ||
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09:04, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (संक्षिप्त नाम- 'आईसीसी', अंग्रेज़ी: International Criminal Court or ICC) एक स्थायी न्यायाधिकरण है, जिसमें जनसंहार, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध, युद्ध अपराधों और आक्रमण का अपराध[1] के लिए अपराधियों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का निर्माण 1945 के बाद से अंतरराष्ट्रीय क़ानून का शायद सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार रहा है।
स्थापना
यह अदालत 1 जुलाई, 2002 को अस्तित्व में आई। यह केवल अपनी स्थापना या उस तिथि से बाद के दिनों में किए गए अपराधों पर मुकदमा चला सकती है। अदालत की आधिकारिक बैठक द हेग, नीदरलैंड में होती है, लेकिन इसकी कार्रवाई कहीं भी हो सकती है।
इतिहास
1919 में 'पेरिस पीस कंफ्रेंस' के दौरान 'कमीशन ऑफ़ रेसपोंसिबिलिटीज' के द्वारा युद्ध अपराध के आरोपी राजनीतिक नेताओं पर मुकदमा चलाने के लिए पहली बार अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण की स्थापना की गई। 1 नवम्बर-16 नवम्बर, 1937 को 'लीग ऑफ़ नेशंस' के तत्वावधान में जेनेवा में आयोजित सम्मेलन में इस मुद्दे को एक बार फिर उठाया गया, लेकिन कोई व्यावहारिक परिणाम हासिल नहीं हुआ। 'संयुक्त राष्ट्र' ने कहा कि नुरेमबर्ग और टोक्यो न्यायाधिकरण के बाद 1948 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए इस प्रकार के अत्याचार को निपटने के लिए महासभा ने पहली बार स्थायी अंतरराष्ट्रीय अदालत की होने की आवश्यकता को पहचाना है। महासभा के अनुरोध पर 1950 के दशक के प्रारम्भ में 'अंतरराष्ट्रीय विधि आयोग' ने दो विधियों को तैयार किया, लेकिन इन्हें एक शीत युद्ध की तरह स्थगित कर दिया गया और एक राजनीतिक रूप से अवास्तविक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत का निर्माण किया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नाज़ी युद्ध अपराधियों के जांचकर्ता और अमेरिकी अधिकारियों द्वारा नुरेमबर्ग पर आयोजित 12 सैन्य जांचों में से एक आइनसाट्ज़ग्रूपेन मुकदमे पर संयुक्त राष्ट्र सेना के लिए एक मुख्य अभियोजक, बेंजामिन बी फेरेंच्ज़ बाद में एक अंतरराष्ट्रीय क़ानून के शासन की स्थापना के साथ ही उसके एक मुखर पैरोकार बन गए। 1975 में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका नाम 'डिफाइनिंग इंटरनेशनल अग्रेशन-द सर्च फॉर वर्ल्ड पीस' था, इसमें उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय अदालत की स्थापना के लिए तर्क दिया। 1989 में यह विचार पुनर्जीवित हुआ, जब तत्कालीन त्रिनिदाद और टोबैगो के प्रधानमंत्री ए.एन.आर. रॉबिन्सन ने अवैध दवा व्यापार से निपटने के लिए एक स्थायी अंतरराष्ट्रीय अदालत के निर्माण का प्रस्ताव किया। जबकि प्रारूप अधिनियम पर काम शुरू किया गया, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पूर्व यूगोस्लाविया और रवांडा में युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए तदर्थ अधिकरणों की स्थापना की और एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की आवश्यकता को उजागर किया।
रोम संविधि
आगे के वर्षों की बातचीत के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संधि को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से जून, 1998 में रोम में एक सम्मेलन बुलाया। 17 जुलाई, 1998 को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की रोम संविधि को 120 समर्थन वोट और 7 विरोधी वोट द्वारा अपनाया गया, जिसमें 21 देशों ने भाग नहीं लिया था। वे सात देश, जिन्होंने संधि के ख़िलाफ़ अपना वोट दिया, वे थे- चीन, इराक, इजरायल, लीबिया, कतर, संयुक्त राज्य अमेरिका और यमन।
महत्त्वपूर्ण बिन्दु
- 11 अप्रैल, 2002 को रोम संविधि एक बाध्यकारी संधि बनी, जब 60 देशों ने इसे मंजूरी दी। क़ानूनी तौर पर 1 जुलाई, 2002 को संविधि को लागू किया गया और आईसीसी केवल उस तिथि के बाद हुए अपराधों पर ही मुकदमा चला सकती है। फ़रवरी, 2003 में सदस्य देशों की सभा द्वारा 18 न्यायाधीशों के पहले बेंच का चुनाव किया गया।
- 1 मार्च, 2003 को अदालत के उद्घाटन सत्र में उन्होंने शपथ ग्रहण की। अदालत ने अपना पहला गिरफ़्तारी वारंट 8 जुलाई, 2005 को जारी किया और पहली पूर्व-जांच की सुनवाई 2006 में आयोजित की गई।
- आईसीसी की पहली जांच कांगोलीज मिलीशिया नेता थॉमस लुबंगा के विरुद्ध 26 जनवरी, 2009 को शुरू हुई थी। 24 नवम्बर, 2009 को कोंगोलीज मिलीशिया नेता जर्मेन काटंगा और मथेउ गुडजोलो चूई के विरुद्ध दूसरी जांच शुरू हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हालांकि वर्तमान में यह आक्रमण के अपराध पर अपने न्यायाधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता है।
बाहरी कड़ियाँ
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