"चर्खे को विदाई -जवाहरलाल नेहरू": अवतरणों में अंतर
('{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |चित्र=Nehru_prerak.png |चित्र का ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
}} | }} | ||
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|स्वतंत्रता आन्दोलन]] की सफलता के फलस्वरूप जब देश से जब | [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|स्वतंत्रता आन्दोलन]] की सफलता के फलस्वरूप जब देश से जब अंग्रेज़ों के जाने का समय आ गया था उस समय भी [[महात्मा गाँधी|गांधी जी]] आपने आश्रम में [[चरखा|चरखे]] पर सूत ही कात रहे थे। [[भारत]] के भावी [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] विभिन्न मुद्दों पर मन्त्रणा करने के लिये गांधी जी के पास पहुंचे तो उन्हें सूत कातता देखकर बोले- | ||
बापू ! अब आप | बापू ! अब आप चरखा क्यों कात रहे हैं ? देश आज़ाद होने जा रहा है। हम ऐसी केन्द्रीय योजनायें शुरू करेंगे जिनसे लोगों को काम मिलेगा, बड़े बड़े कल कारखाने होंगे भारी मात्रा में उत्पादन होगा और इसके नतीजे में सब लोग सम्पन्न और सन्तुष्ठ होंगे। ऐसे में अब चरखे की क्या ज़रूरत है अब तक अंग्रेज़ों के बड़े बड़े कारखाने लगे हैं, कपड़ा मिल लगे हैं, आज़ाद होने पर हम अपने बड़े उद्योग लगायेंगे। ऐसे अल्प उत्पादक और छोटे यंत्रों का अब क्या काम है? अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ साथ अब चरखे को भी विदाई दे दीजिये। | ||
यह सुनकर महात्मा गांधी रोष भरे स्वर में बोले - | यह सुनकर महात्मा गांधी रोष भरे स्वर में बोले - | ||
जवाहर! अगर तुम्हारे राज में मेरा | जवाहर! अगर तुम्हारे राज में मेरा चरखा खूंटी पर टंग जायेगा तो मेरी जगह तुम्हारी जेल में होगी। | ||
वास्तव में गांधी का चरखा | वास्तव में गांधी का चरखा ग्रामोद्योग का प्रतीक था जिसके माध्यम से वो देश के विकास में भारत के प्रत्येक गांव की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते थे। | ||
;[[जवाहरलाल नेहरू]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ। | ;[[जवाहरलाल नेहरू]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ। |
10:44, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
चर्खे को विदाई -जवाहरलाल नेहरू
| |
विवरण | जवाहरलाल नेहरू |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
स्वतंत्रता आन्दोलन की सफलता के फलस्वरूप जब देश से जब अंग्रेज़ों के जाने का समय आ गया था उस समय भी गांधी जी आपने आश्रम में चरखे पर सूत ही कात रहे थे। भारत के भावी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू विभिन्न मुद्दों पर मन्त्रणा करने के लिये गांधी जी के पास पहुंचे तो उन्हें सूत कातता देखकर बोले-
बापू ! अब आप चरखा क्यों कात रहे हैं ? देश आज़ाद होने जा रहा है। हम ऐसी केन्द्रीय योजनायें शुरू करेंगे जिनसे लोगों को काम मिलेगा, बड़े बड़े कल कारखाने होंगे भारी मात्रा में उत्पादन होगा और इसके नतीजे में सब लोग सम्पन्न और सन्तुष्ठ होंगे। ऐसे में अब चरखे की क्या ज़रूरत है अब तक अंग्रेज़ों के बड़े बड़े कारखाने लगे हैं, कपड़ा मिल लगे हैं, आज़ाद होने पर हम अपने बड़े उद्योग लगायेंगे। ऐसे अल्प उत्पादक और छोटे यंत्रों का अब क्या काम है? अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ साथ अब चरखे को भी विदाई दे दीजिये।
यह सुनकर महात्मा गांधी रोष भरे स्वर में बोले -
जवाहर! अगर तुम्हारे राज में मेरा चरखा खूंटी पर टंग जायेगा तो मेरी जगह तुम्हारी जेल में होगी।
वास्तव में गांधी का चरखा ग्रामोद्योग का प्रतीक था जिसके माध्यम से वो देश के विकास में भारत के प्रत्येक गांव की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते थे।
- जवाहरलाल नेहरू से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख