"दया याचिका": अवतरणों में अंतर
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से ऐसा नहीं करते। संविधान में साफ कहा गया है कि राष्ट्रपति मंत्री परिषद से सलाह लेकर ही सजा माफ कर सकते हैं या उसमें छूट दे सकते हैं। | |||
==दया याचिका के नियम, प्रक्रिया और इतिहास== | ==दया याचिका के नियम, प्रक्रिया और इतिहास== | ||
* मौजूदा नियमों के | * मौजूदा नियमों के मुताबिक़, दया याचिका मामले पर [[गृह मंत्रालय]] राष्ट्रपति को लिखित में अपना पक्ष देता है। इसे ही कैबिनेट का पक्ष मानकर राष्ट्रपति दया याचिका पर फैसला लेते हैं। | ||
* [[सुप्रीम कोर्ट]] से | * [[सुप्रीम कोर्ट]] से फाँसी की सजा मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी नागरिक भी, अपराधी के संबंध में राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता है। संबंधित राज्य के [[राज्यपाल]] को भी दया याचिका भेजी जा सकती है। राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं। | ||
* दोषी व्यक्ति अधिकारियों, वकीलों या परिवार के लोगों के जरिये दया याचिकाएं भेज सकते हैं। गृह मंत्रालय या राष्ट्रपति के दफ्तर को याचिकाएं मेल भी की जा सकती हैं। | * दोषी व्यक्ति अधिकारियों, वकीलों या परिवार के लोगों के जरिये दया याचिकाएं भेज सकते हैं। गृह मंत्रालय या राष्ट्रपति के दफ्तर को याचिकाएं मेल भी की जा सकती हैं। | ||
* अलग-अलग राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं का अलग-अलग तरह से निपटारा किया है। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। लिहाजा राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय, दोनों के पास कई याचिकाएं कई साल तक लंबित रही हैं। | * अलग-अलग राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं का अलग-अलग तरह से निपटारा किया है। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। लिहाजा राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय, दोनों के पास कई याचिकाएं कई साल तक लंबित रही हैं। | ||
* पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जब कार्यकाल खत्म हुआ तो वह करीब 2 दर्जन दया याचिकाएं लंबित छोड़कर गए। उन्होंने सिर्फ दो दया याचिकाओं का निपटारा किया। रेप और मर्डर के दोषी धनंजय चटर्जी की दया याचिका को 2004 में उन्होंने खारिज कर दिया और 2006 में खीरज राम की | * पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जब कार्यकाल खत्म हुआ तो वह करीब 2 दर्जन दया याचिकाएं लंबित छोड़कर गए। उन्होंने सिर्फ दो दया याचिकाओं का निपटारा किया। रेप और मर्डर के दोषी धनंजय चटर्जी की दया याचिका को 2004 में उन्होंने खारिज कर दिया और 2006 में खीरज राम की फाँसी की सजा कम करके उम्रकैद में तब्दील कर दी। | ||
* [[अब्दुल कलाम]] के बाद [[के. आर. नारायणन]] राष्ट्रपति बने। उन्होंने 1997 से 2002 के बीच अपने कार्यकाल में एक भी दया याचिका का निपटारा नहीं किया। | * [[अब्दुल कलाम]] के बाद [[के. आर. नारायणन]] राष्ट्रपति बने। उन्होंने 1997 से 2002 के बीच अपने कार्यकाल में एक भी दया याचिका का निपटारा नहीं किया। | ||
* हालांकि ज्यादातर राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं पर बिना किसी दया के फैसले लिए। आरटीआई से मिली जानकारी के | * हालांकि ज्यादातर राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं पर बिना किसी दया के फैसले लिए। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, 1991 से 2010 के बीच 77 दया याचिकाओं में से राष्ट्रपतियों ने 69 को खारिज कर दिया। | ||
* सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड [[आर. वेंकटरमण]] (1987-1992) के नाम है। उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं। | * सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड [[आर. वेंकटरमण]] (1987-1992) के नाम है। उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं। | ||
* देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दोषियों की दया याचिकाएं स्वीकार कर लीं। सरकारों पर अपने राजनीतिक हित के | * देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दोषियों की दया याचिकाएं स्वीकार कर लीं। सरकारों पर अपने राजनीतिक हित के मुताबिक़ राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजने का आरोप लगता रहा है।<ref>{{cite web |url=http://aajtak.intoday.in/story/10-things-you-should-know-about-mercy-pleas-1-824148.html |title= दया याचिका के बारे में 10 ज़रूरी बातें|accessmonthday=5 फरवरी|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= html|publisher=आज तक|language=हिन्दी }}</ref> | ||
==स्मरणीय तथ्य== | ==स्मरणीय तथ्य== | ||
* एक रिपोर्ट के अनुसार 26 जनवरी 1950 से अब तक (2015) देश के राष्ट्रपति ने कुल 437 दया याचिकाओं में से 306 को स्वीकार किया। मृत्युदंड पाये 306 दोषियों की सजा राष्ट्रपति ने आजीवन कारावास में बदल दी जबकि 131 दया याचिकाओं को इस अवधि के दौरान खारिज कर दिया गया। रिपोर्ट में आतंकवाद और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वालों के अलावा मृत्युदंड समाप्त करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 1950 से 1982 के दौरान छह राष्ट्रपति हुए और इस अवधि में मृत्युदंड पाये 262 दोषियों की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिकाओं के आंकड़े अभिलेखीय शोध पर आधारित हैं। | * एक रिपोर्ट के अनुसार 26 जनवरी 1950 से अब तक (2015) देश के राष्ट्रपति ने कुल 437 दया याचिकाओं में से 306 को स्वीकार किया। मृत्युदंड पाये 306 दोषियों की सजा राष्ट्रपति ने आजीवन कारावास में बदल दी जबकि 131 दया याचिकाओं को इस अवधि के दौरान खारिज कर दिया गया। रिपोर्ट में आतंकवाद और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वालों के अलावा मृत्युदंड समाप्त करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 1950 से 1982 के दौरान छह राष्ट्रपति हुए और इस अवधि में मृत्युदंड पाये 262 दोषियों की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिकाओं के आंकड़े अभिलेखीय शोध पर आधारित हैं। मृत्युदंड पाये दोषियों के जीवन और मृत्यु का मामला सिर्फ तत्कालीन सरकार के आदर्शों और नजरिये पर ही निर्भर नहीं हो सकता बल्कि यह राष्ट्रपति के व्यक्तिगत नजरिये व विश्वास प्रणाली पर भी निर्भर करता है। | ||
* भारत के प्रथम राष्ट्रपति [[राजेन्द्र प्रसाद]] ने मृत्युदंड पाये 181 दोषियों में से 180 की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिका खारिज की। [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] ने सभी 57 याचिकाएँ स्वीकार की। [[डॉ. जाकिर हुसैन]] और [[वीवी गिरि]] ने भी सभी का मृत्युदंड आजीवन कारावास में बदल दिया। 1982 से 1997 के दौरान तीन राष्ट्रपति के कार्यकाल में 93 दया याचिकाएं खारिज हुई और 7 की सजा परिवर्तित की गई। [[ज्ञानी जैल सिंह]] ने 32 में से 30 याचिकाएं और [[आर. वेंकटरमण]] ने 50 में से 45 याचिकाएँ खारिज की थीं। [[शंकर दयाल शर्मा]] ने अपने सामने आई सभी दया याचिकाएँ खारिज कर दी थीं। | |||
*1997-2007 की अवधि में राष्ट्रपति [[के. आर. नारायणन]] ने किसी दया याचिका पर कोई निर्णय नहीं लिया। राष्ट्रपति [[अब्दुल कलाम]] ने एक दया याचिका खारिज की तथा एक आजीवन कारावास में बदली। [[प्रतिभा पाटिल]] ने 5 दया याचिका खारिज कीं और 34 की सजा को आजीवन कारावास में बदला। | |||
* राष्ट्रपति [[प्रणब मुखर्जी]] ने अब तक 33 में से 31 दया याचिकाओं को खारिज किया है।<ref name="au"/> | |||
==आश्चर्यजनक तथ्य== | |||
* दुनिया के 99 देश मृत्युदंड की सजा नहीं देते। | |||
* फिजी, सूरीनाम और मेडागास्कर ने वर्ष 2015 में मृत्युदंड की सजा के प्रावधान को खत्म किया। | |||
* 58 देशों में अब भी मृत्युदंड की सजा दी जाती है। | |||
* 35 देशों ने पिछले दस साल (2005-2015) से किसी को मौत की सजा आरोपित घोषित नहीं किया है। | |||
* [[भारत]] ने पिछले दस साल (2005 से 2015 तक) में 1304 लोगों को फाँसी की सजा सुनाई है। जिसमें [[उत्तर प्रदेश]] से 395, [[बिहार]] में 144, [[महाराष्ट्र]] में 129, [[तमिल नाडु]] में 106, [[कर्नाटक]] में 106 लोगों को फाँसी की सजा सुनाई गयी। | |||
* भारत ने पिछले दस साल में 4 लोगों {धनंजय चटर्जी (2004), अजमल कसाब (2012), अफजल गुरु (2013), याकूब मेमन (2015)} को फाँसी पर लटकाया। | |||
* सन् 1977 में छ: देशों ने मृत्यदंड निषेध किया। | |||
* 2014 में 95 देशों ने मृत्यदंड निषेध किया। | |||
* भारत सहित 33 देशों में मृत्युदंड का तरीका एक जैसा है। | |||
* 45 देश गोली मारकार जान लेते हैं। | |||
* 6 देश पत्थर मारकर मृत्युदंड देते हैं। | |||
* दुनिया में 5 देश इंजेक्शन लगाकर मृत्युदंड देते हैं। | |||
* 3 देश सिर कलम करके मृत्युदंड की सजा देते हैं।<ref name="au">अमर उजाला, 2 सितंबर, 2015, पृृ. 16</ref> | |||
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09:51, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के मुताबिक़, राष्ट्रपति फाँसी की सजा को माफ कर सकते हैं, स्थगित कर सकते हैं, कम कर सकते हैं या उसमें बदलाव कर सकते हैं। लेकिन राष्ट्रपति अपनी मर्ज़ी से ऐसा नहीं करते। संविधान में साफ कहा गया है कि राष्ट्रपति मंत्री परिषद से सलाह लेकर ही सजा माफ कर सकते हैं या उसमें छूट दे सकते हैं।
दया याचिका के नियम, प्रक्रिया और इतिहास
- मौजूदा नियमों के मुताबिक़, दया याचिका मामले पर गृह मंत्रालय राष्ट्रपति को लिखित में अपना पक्ष देता है। इसे ही कैबिनेट का पक्ष मानकर राष्ट्रपति दया याचिका पर फैसला लेते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट से फाँसी की सजा मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी नागरिक भी, अपराधी के संबंध में राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता है। संबंधित राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकती है। राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं।
- दोषी व्यक्ति अधिकारियों, वकीलों या परिवार के लोगों के जरिये दया याचिकाएं भेज सकते हैं। गृह मंत्रालय या राष्ट्रपति के दफ्तर को याचिकाएं मेल भी की जा सकती हैं।
- अलग-अलग राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं का अलग-अलग तरह से निपटारा किया है। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। लिहाजा राष्ट्रपति और गृह मंत्रालय, दोनों के पास कई याचिकाएं कई साल तक लंबित रही हैं।
- पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जब कार्यकाल खत्म हुआ तो वह करीब 2 दर्जन दया याचिकाएं लंबित छोड़कर गए। उन्होंने सिर्फ दो दया याचिकाओं का निपटारा किया। रेप और मर्डर के दोषी धनंजय चटर्जी की दया याचिका को 2004 में उन्होंने खारिज कर दिया और 2006 में खीरज राम की फाँसी की सजा कम करके उम्रकैद में तब्दील कर दी।
- अब्दुल कलाम के बाद के. आर. नारायणन राष्ट्रपति बने। उन्होंने 1997 से 2002 के बीच अपने कार्यकाल में एक भी दया याचिका का निपटारा नहीं किया।
- हालांकि ज्यादातर राष्ट्रपतियों ने दया याचिकाओं पर बिना किसी दया के फैसले लिए। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, 1991 से 2010 के बीच 77 दया याचिकाओं में से राष्ट्रपतियों ने 69 को खारिज कर दिया।
- सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड आर. वेंकटरमण (1987-1992) के नाम है। उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं।
- देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 30 दोषियों की दया याचिकाएं स्वीकार कर लीं। सरकारों पर अपने राजनीतिक हित के मुताबिक़ राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजने का आरोप लगता रहा है।[1]
स्मरणीय तथ्य
- एक रिपोर्ट के अनुसार 26 जनवरी 1950 से अब तक (2015) देश के राष्ट्रपति ने कुल 437 दया याचिकाओं में से 306 को स्वीकार किया। मृत्युदंड पाये 306 दोषियों की सजा राष्ट्रपति ने आजीवन कारावास में बदल दी जबकि 131 दया याचिकाओं को इस अवधि के दौरान खारिज कर दिया गया। रिपोर्ट में आतंकवाद और देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वालों के अलावा मृत्युदंड समाप्त करने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 1950 से 1982 के दौरान छह राष्ट्रपति हुए और इस अवधि में मृत्युदंड पाये 262 दोषियों की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिकाओं के आंकड़े अभिलेखीय शोध पर आधारित हैं। मृत्युदंड पाये दोषियों के जीवन और मृत्यु का मामला सिर्फ तत्कालीन सरकार के आदर्शों और नजरिये पर ही निर्भर नहीं हो सकता बल्कि यह राष्ट्रपति के व्यक्तिगत नजरिये व विश्वास प्रणाली पर भी निर्भर करता है।
- भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने मृत्युदंड पाये 181 दोषियों में से 180 की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया और सिर्फ एक दया याचिका खारिज की। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने सभी 57 याचिकाएँ स्वीकार की। डॉ. जाकिर हुसैन और वीवी गिरि ने भी सभी का मृत्युदंड आजीवन कारावास में बदल दिया। 1982 से 1997 के दौरान तीन राष्ट्रपति के कार्यकाल में 93 दया याचिकाएं खारिज हुई और 7 की सजा परिवर्तित की गई। ज्ञानी जैल सिंह ने 32 में से 30 याचिकाएं और आर. वेंकटरमण ने 50 में से 45 याचिकाएँ खारिज की थीं। शंकर दयाल शर्मा ने अपने सामने आई सभी दया याचिकाएँ खारिज कर दी थीं।
- 1997-2007 की अवधि में राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने किसी दया याचिका पर कोई निर्णय नहीं लिया। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने एक दया याचिका खारिज की तथा एक आजीवन कारावास में बदली। प्रतिभा पाटिल ने 5 दया याचिका खारिज कीं और 34 की सजा को आजीवन कारावास में बदला।
- राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अब तक 33 में से 31 दया याचिकाओं को खारिज किया है।[2]
आश्चर्यजनक तथ्य
- दुनिया के 99 देश मृत्युदंड की सजा नहीं देते।
- फिजी, सूरीनाम और मेडागास्कर ने वर्ष 2015 में मृत्युदंड की सजा के प्रावधान को खत्म किया।
- 58 देशों में अब भी मृत्युदंड की सजा दी जाती है।
- 35 देशों ने पिछले दस साल (2005-2015) से किसी को मौत की सजा आरोपित घोषित नहीं किया है।
- भारत ने पिछले दस साल (2005 से 2015 तक) में 1304 लोगों को फाँसी की सजा सुनाई है। जिसमें उत्तर प्रदेश से 395, बिहार में 144, महाराष्ट्र में 129, तमिल नाडु में 106, कर्नाटक में 106 लोगों को फाँसी की सजा सुनाई गयी।
- भारत ने पिछले दस साल में 4 लोगों {धनंजय चटर्जी (2004), अजमल कसाब (2012), अफजल गुरु (2013), याकूब मेमन (2015)} को फाँसी पर लटकाया।
- सन् 1977 में छ: देशों ने मृत्यदंड निषेध किया।
- 2014 में 95 देशों ने मृत्यदंड निषेध किया।
- भारत सहित 33 देशों में मृत्युदंड का तरीका एक जैसा है।
- 45 देश गोली मारकार जान लेते हैं।
- 6 देश पत्थर मारकर मृत्युदंड देते हैं।
- दुनिया में 5 देश इंजेक्शन लगाकर मृत्युदंड देते हैं।
- 3 देश सिर कलम करके मृत्युदंड की सजा देते हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दया याचिका के बारे में 10 ज़रूरी बातें (हिन्दी) (html) आज तक। अभिगमन तिथि: 5 फरवरी, 2016।
- ↑ 2.0 2.1 अमर उजाला, 2 सितंबर, 2015, पृृ. 16
बाहरी कड़ियाँ
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