"शान्तनु कुण्ड": अवतरणों में अंतर
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'''शान्तनु कुण्ड''' [[मथुरा]] से लगभग तीन मील की | {{सूचना बक्सा पर्यटन | ||
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'''शान्तनु कुण्ड''' [[मथुरा]] से लगभग तीन मील की दूर [[गोवर्धन]] रोड पर स्थित है। इसका वर्तमान नाम 'सतोहा' है। यह स्थान [[शान्तनु|महाराज शान्तनु]] की तपस्या स्थली है। | |||
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12:52, 29 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
शान्तनु कुण्ड
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विवरण | यह स्थान महाराज शान्तनु की तपस्या स्थली है। शान्तनु कुण्ड मथुरा से लगभग तीन मील की दूर गोवर्धन रोड पर स्थित है। इसका वर्तमान नाम 'सतोहा' है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल |
कब जाएँ | कभी भी |
कार, बस, ऑटो आदि | |
संबंधित लेख | ललिता कुण्ड काम्यवन, विशाखा कुण्ड वृन्दावन, राधाकुण्ड गोवर्धन, ब्रज, वृन्दावन, काम्यवन
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अद्यतन | 18:22, 29 जुलाई 2016 (IST)
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शान्तनु कुण्ड मथुरा से लगभग तीन मील की दूर गोवर्धन रोड पर स्थित है। इसका वर्तमान नाम 'सतोहा' है। यह स्थान महाराज शान्तनु की तपस्या स्थली है।
- महाराज शान्तनु ने पुत्र कामना से इस स्थान पर भगवद आराधना की थी। भीष्म पितामह इनके पुत्र थे। भीष्म पितामह की माता का नाम गंगा था, किन्तु गंगा विशेष कारण से महाराज शान्तनु को छोड़कर चली गई थी।
- महाराज शान्तनु मथुरा के सामने यमुना के उस पार एक धीवर के घर यपलावण्यवती[1] 'मत्स्यगन्धा' या 'मत्स्योदरी' को देखकर उससे विवाह करने के इच्छुक हो गये, किन्तु धीवर, महाराज को अपनी पोष्य कन्या को देने के लिए प्रस्तुत नहीं हुआ। उसने कहा- "मेरी कन्या से उत्पन्न पुत्र ही आपके राज्य का अधिकारी होगा। मेरी इस शर्त को स्वीकार करने पर ही आप मेरी इस कन्या को ग्रहण कर सकते हैं।" महाराज शान्तनु ने युवराज देवव्रत[2] के कारण विवाह करना अस्वीकार कर दिया। किन्तु मन ही मन दु:खी रहने लगे। कुमार देवव्रत को यह बात मालूम होने पर वे धीवर के घर पहुँचे और उसके सामने प्रतिज्ञा की कि- "मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा और मत्स्योदरी के गर्भ से उत्पन्न बालक तुम्हारा दोहता ही राजा होगा।" ऐसी प्रतिज्ञा कर उस धीवर-कन्या से महाराज शान्तनु का विवाह करवाया। इससे प्रतीत होता है कि महाराज शान्तनु की राजधानी हस्तिनापुर होने पर भी शान्तनु कुण्ड में भी उनका एक निवास स्थल था।
- संतान की कामना करने वाली स्त्रियाँ इस कुण्ड में स्नान करती हैं तथा मन्दिर के पीछे गोबर का स्वस्तिक[3] बनाकर पूजा करती हैं।
- शान्तनु कुण्ड के बीच में ऊँचे टीले पर शान्तनु के आराध्य 'श्रीशान्तनु बिहारी जी' का मन्दिर है।
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