"भारत का सांस्कृतिक इतिहास -हरिदत्त वेदालंकार": अवतरणों में अंतर
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भारत का सांस्कृतिक इतिहास -हरिदत्त वेदालंकार
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लेखक | हरिदत्त वेदालंकार |
मूल शीर्षक | भारत का सांस्कृतिक इतिहास |
प्रकाशक | आत्माराम एण्ड सन्स |
प्रकाशन तिथि | 2006 |
ISBN | 81-7043-617-6 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 279 |
भाषा | हिंदी |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
विशेष | इस पुस्तक का उद्देश्य प्राचीन भारतीय संस्कृति के सब पहलुओं को सरल एवं सुबोध रूप से संक्षिप्त तथा प्रामाणिक दिग्दर्शन कराना है। |
इस पुस्तक का उद्देश्य प्राचीन भारतीय संस्कृति के सब पहलुओं को सरल एवं सुबोध रूप से संक्षिप्त तथा प्रामाणिक दिग्दर्शन कराना है। यह पुस्तक हरिदत्त वेदालंकार द्वारा लिखित है।
उद्देश्य
इस पुस्तक का उद्देश्य प्राचीन भारतीय संस्कृति के सब पहलुओं को सरल एवं सुबोध रूप से संक्षिप्त तथा प्रामाणिक दिग्दर्शन कराना है। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जनता का इस विशष में अनुराग निरन्तर बढ़ रहा है और विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रमों में इसका समावेश कर रहे हैं। यह पुस्तक विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है, उनमें वर्णित सभी विषयों का इसमें संक्षिप्त एवं सारगर्भित प्रतिपादन है। आशा है कि विश्विद्यालयों के छात्रों के लिए यह पुस्तक उपयोगी होगी तथा प्राचीन संस्कृति के सम्बन्ध में जिज्ञासा रखने वाले सामान्य पाठक भी इससे लाभ उठा सकेंगे।
पुस्तक से
पुस्तक के पहले अध्याय में भारतीय संस्कृति की महत्ता, सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप, तथा हमारे देश की सांस्कृतिक एकता की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है और विभिन्न राजनीतिक युगों की सांस्कृतिक उन्नति का संक्षिप्त निर्देश है। इस अवतरणिका के बाद दूसरे से तेरहवें अध्यायों पर वैदिक, महाकाव्य-कालीन, गुप्त एवं मध्य युग की सांस्कृतिक दशा तथा बौद्ध, जैन, भक्ति-प्रधान पौराणिक हिन्दू-धर्म, बृहत्तर भारत, वर्ण-व्यवस्था, भारतीय दर्शन, शासन-प्रणाली, शिक्षा-पद्धति तथा कला आदि संस्कृति के महत्वपूर्ण अंगों का विवेचन है, हिन्दू धर्म और इस्लाम के पारस्परिक सम्पर्क के परिणामों का उल्लेख है। चौदहवें अध्याय में भारतीय संस्कृति की विशेषताओं और उसके भविष्य पर विचार किया गया है। पन्द्रहवें अध्याय में आधुनिक भारत के सांस्कृतिक नव जागरण का वर्णन है, इसमें ब्राह्म-समाज, आर्य-समाज आदि धार्मिक आन्दोलनों, सती-प्रथा के निषेध से हिन्दू कोड तक के सामाजिक सुधारों, वर्तमान भारत के वैज्ञानिक विकास, साहित्यिक उन्नति और कलात्मक पुनर्जागृति का संक्षिप्त उल्लेख है।
पुस्तक की कुछ प्रधान विशेषताओं का वर्णन अनुचित न होगा। इसकी भाषा और शैली अत्यन्त सरल और सुबोध रखी गई है। इसमें इस बात का प्रयत्न किया गया है कि प्रत्येक युग और सांस्कृतिक पहलू के अधिक विस्तार में न जाकर उसकी मुख्य बातों की ही चर्चा की जाए, विभिन्न विषयों का काल-क्रमानुसार इस प्रकार वर्णन किया जाए कि सारा विषय हस्तामलकवत हो जाए। पाठक और विद्यार्थी स्पष्ट रूप से यह जान सकें कि हमारी संस्कृति में कौन-सी संस्था, प्रथा, व्यवस्था, कला शैली, दार्शनिक विचार किस समय किन कारणों से प्रादुर्भूत हुए। उदाहरणार्थ जाति-भेद का वैदिक, मौर्य, सातवाहन, गुप्त तथा मध्य युगों में कैसे विकास हुआ, इसका संक्षिप्त वर्णन किया गया है। इस प्रकार धर्म तथा अन्य क्षेत्रों में भी सांस्कृतिक उन्नति की क्रमिक अवस्थाओं का निर्दशन है।
लेखक का कथन
भारतीय कला वाले अध्याय में न केवल भारतीय कला की विशेषताओं तथा उसकी विभिन्न शैलियों का परिचय दिया गया है किन्तु उसके स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए 14 चित्र भी दिए गए हैं। चित्रों का चुनाव इस दृष्टि से किया गया है कि इसमें भारतीय कला के सभी कालों के एक-दो उत्तम नमूने आ जाएं। लेखक कुछ अधिक चित्र देना चाहता था किन्तु पुस्तक के जल्दी छपने के कारण, उसे इतने ही चित्रों से सन्तोष करना पड़ा है। अगले संस्करण में वह इस दोष को पूरा करने का भरसक प्रयत्न करेगा। सात चित्र भारतीय पुराततत्व-विभाग की कृपा से प्राप्त हुए हैं। इनके प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करने के लिए मैं इस विभाग का अत्यन्त आभारी हूँ। विदेशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार स्पष्ट करने के लिए एक मानचित्र भी दिया गया है। [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वेदालंकार, हरिदत्त। भारत का सांस्कृतिक इतिहास (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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